हैदराबाद : पिछले साल 2020 के अक्टूबर में पेट्रोल की कीमत दिल्ली में करीब 81 रुपये थी. डीजल का भाव भी 70 रुपये के करीब था. अभी दिल्ली में पेट्रोल 103.84 रुपये और डीजल 92.47 रुपये प्रति लीटर है. मुंबई में पेट्रोल 109 रुपये प्रति लीटर का हो गया है. पेट्रोल-डीजल के रेट इतने क्यों बढ़ रहे हैं. पिछले एक साल में पेट्रोल ने 33 रुपये की छलांग लगाई है. इनकी कीमतों में बढ़ोतरी का एक ही नतीजा है, महंगाई. यानी घर की ग्रॉसरी से लेकर दवा-दारू, स्टेशनरी, फैशन के प्रॉडक्ट सभी महंगे हो रहे है.
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आखिर क्यों महंगा हो रहा है पेट्रोल-डीजल
फ्यूल की अंतिम खुदरा कीमत मुख्य तौर पर पांच कारणों से तय होती है. कच्चे माल यानी क्रूड ऑयल कीमत, भारतीय रुपये के मुकाबले अमेरिकी डॉलर का रेट, रिफायनरी की लागत, सरकारी टैक्स और मार्केट में डिमांड. एक्सपर्ट अजय केडिया के अनुसार, सबसे बड़ा फैक्टर कच्चे तेल (Brent crude oil) है, जिसकी कीमत इंटरनेशनल मार्केट में 83.60 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया है.
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ओपेक की पॉलिसी से बढ़ी फ्यूल की डिमांड
22 अप्रैल, 2020 को कच्चे तेल का दाम 16 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के निचले स्तर पर आ गया था. इस कारण ओपेक देशों ने तेल उत्पादन को सीमित कर दिया था. जब कोरोना (COVID-19 ) का कहर कम हुआ तो दुनिया की अर्थव्यवस्था में फ्यूल की डिमांड बढ़ गई. इससे मांग में तेजी आई और क्रूड महंगा होने लगा. यूरोप और एशिया में इस समय गैस की कमी है, जिससे बिजली उत्पादन के लिए तेल की मांग बढ़ गई है. पिछले छह हफ्तों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. 20 अगस्त 2021 को इसकी कीमत 65 डॉलर प्रति बैरल थी, जो अब 80 डॉलर के पार हो गई है.
अगस्त और सितंबर में तेल उत्पादक अन्य देश मैक्सिको को भी कई बार बड़े तूफान से जूझना पड़ा. इससे ग्लोबल ऑयल मार्केट डिस्टर्ब हो गया. हालांकि ओपेक ने 3-4 महीने में प्रोडक्शन बढ़ाने की बात कही है मगर जीडीपी सुधारने की कवायद में जुटे देशों में तेल की डिमांड बढ़ी है. इस कारण ब्रेन्ट क्रूड ऑयल की कीमत 80-90 डॉलर तक जा सकती है. यानी भारत में तेल के रेट बढ़ेंगे.
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डॉलर ने कैसे किया तेल का खेल
भारत के आयात बिल में सबसे बड़ा योगदान ऑयल इम्पोर्ट का है. ब्रेंट कच्चे तेल के लिए भारत अपने आयात बिल का लगभग 20 प्रतिशत खर्च करता है. भारत तेल की कीमत डॉलर में अदा करता है , डॉलर का मूल्य जितना अधिक होगा, आयातकों को कच्चे तेल के लिए उतना ही अधिक भुगतान करना होगा. पिछले दिनों से एक डॉलर का रेट 75 रुपये के करीब जा पहुंचा है. इस कारण भारत में आयात होने वाला सामान महंगा हो रहा है.
ईरान से खरीद नहीं होने का असर
भारत की ईंधन मांग का एक बड़ा हिस्सा ईरान से तेल आयात से पूरा किया जाता था. भारत अपने कच्चे तेल की खपत का दस फीसदी ईरान से ही खरीदता था. समझौते के अनुसार, भारत इसके लिए ईरान को भारतीय रुपये में भुगतान करता था. अमेरिका और ईरान के बीच लड़ाई के कारण भारत ने करीब 6 महीने पहले उससे क्रूड ऑयल लेना बंद कर दिया. इस कारण भारत को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ा. पहला आयात के स्रोत कम हो गए और दूसरा, अब देश को क्रूड खरीद के लिए डॉलर में पेमेंट करना होता है.
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अब आगे क्या होगा.
जब तक क्रूड ऑयल की कीमत कम नहीं होती है यानी तीन से चार महीनों तक पेट्रोल की कीमत बढ़ेगी. अगर भारत सरकार और राज्य सरकार एक्साइज ड्यूटी में कमी करती है तो राहत मिल सकती है. बता दें कि साल 2014 में पेट्रोल पर 9.48 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी लगती थी जो फिलहाल 32.90 रुपये है.