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केदारघाटी में आई ब्रह्मकमल की बहार, भगवान शिव और विष्णु से है ये नाता

आज गणेश चतुर्थी है. देशभर में गणेश भगवान की पूजा की जा रही है. इन्हीं दिनों उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में ब्रह्मकमल भी खिले हैं. ब्रह्मकमल गणेश जी के पिता भगवान शिव को अति प्रिय है. आज हम आपको बताते हैं ब्रह्मकमल का भगवान शिव और विष्णु भगवान से संबंध क्या है.

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केदारघाटी में आई ब्रह्मकमल की बहार
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Published : Aug 31, 2022, 11:55 AM IST

रुद्रप्रयाग: केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाके के साथ ही हिमालय के आंचल में बसे भूभाग इन दिनों ब्रह्मकमल के पुष्पों से लकदक बने हुए हैं. मखमली बुग्यालों में ब्रह्मकमल खिलने से प्राकृतिक सौन्दर्य पर चार चांद लगे हैं. हिमालयी क्षेत्रों में ब्रह्मकमल, फेन कमल व सूर्य कमल तीन प्रजाति के कमल पाये जाते हैं. जबकि नील कमल समुद्र में पाया जाता है.

हजारों फीट की ऊंचाई पर होता है ब्रह्मकमल: पर्यावरणविदों के अनुसार ब्रह्मकमल 14 हजार से लेकर 16 हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है. जबकि फेन कमल 16 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है. सूर्य कमल की प्रजाति बहुत दुर्लभ मानी जाती है. ब्रह्म कमल की महिमा का वर्णन शिव महिम्न स्तोत्र में भी किया गया है. केदारनाथ धाम से लगभग 9 किमी दूरी तय करने के बाद वासुकी ताल, रांसी मनणामाई पैदल ट्रैक पर सीला समुद्र का भूभाग, मदमहेश्वर पाण्डवसेरा नन्दी कुण्ड तथा बिसुणीताल व देवताओं के घौला क्षेत्र का भूभाग इन दिनों असंख्य ब्रह्मकमल के फूलों से लकदक है.

Brahma Kamal
केदारघाटी में ब्रह्मकमल.
ये भी पढ़ें: विश्व विख्यात भगवान मदमहेश्वर धाम पहुंच रहे भक्त, देखते ही बन रही सुंदरता

भगवान विष्णु ने किया था शिव का अभिषेक: शिव महिम्न स्तोत्र में लिखा गया है कि एक बार विष्णु भगवान ने भगवान शंकर का एक हजार ब्रह्मकमल से अभिषेक किया. इस पर विष्णु की परीक्षा लेने के लिए भगवान शंकर ने एक ब्रह्मकमल पुष्प को गायब कर दिया. भगवान शंकर के अभिषेक के दौरान जब एक पुष्प कम पड़ा तो भगवान विष्णु ने अपने दाहिने नेत्र से भगवान शंकर का अभिषेक किया. जब विष्णु ने अपना दाहिने नेत्र से भगवान शंकर का अभिषेक किया तो भगवान शंकर विष्णु की भक्ति से बडे़ प्रसन्न हुए. उन्होंने विष्णु को वरदान दिया कि आज से आप कमल नयन नाम से विश्व विख्यात होंगे. उसी दिन से भगवान विष्णु का एक और नाम कमल नयन पड़ा.

Brahma Kamal
ब्रह्मकमल भगवान शिव को है प्रिय

भगवान शिव को प्रिय है ब्रह्मकमल: आचार्य हर्षमणि जमलोकी का कहना है कि जो व्यक्ति भगवान शंकर को ब्रह्मकमल अर्पित करता है, उसे शिवतत्व, शिव ज्ञान तथा शिवलोक की प्राप्ति होती है. उन्होंने बताया कि लगभग 14 हजार फीट की ऊंचाई से ब्रह्मकमल को शिवालयों तक लाने के लिए ब्रह्मचार्य, अनुष्ठान का पालन करना पड़ता है. नंगे पांव ब्रह्म कमल तोड़ने व शिवालयों तक पहुंचाने की परम्परा युगों पूर्व की है.

Brahma Kamal
केदारघाटी के नैसर्गिक सौंदर्य

दुर्लभ पुष्प है ब्रह्मकमल: आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल का कहना है कि ब्रह्मकमल की महिमा का वर्णन महापुराणों, पुराणों व उप पुराणों में विस्तृत से वर्णित की गयी है. ब्रह्म कमल हिमालयी आंचल में उगने वाला दुर्लभ पुष्प है. मदमहेश्वर धाम के हक हकूकधारी भगत सिंह पंवार ने बताया कि इन दिनों पाण्डवसेरा नन्दी कुण्ड के आंचल में असंख्य ब्रह्मकमल खिलने से वहां का प्राकृतिक सौन्दर्य स्वर्ग के समान महसूस हो रहा है.
ये भी पढ़ें: रुद्रनाथ की खूबसूरती स्वर्ग से सुंदर, देखिए मनमोहक तस्वीरें

उत्तराखंड में ब्रह्मकमल के संरक्षण का प्रयास: केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग रेंज अधिकारी पंकज त्यागी ने बताया कि विभाग द्वारा ब्रह्मकमल के संरक्षण व संवर्धन के लिए निरन्तर प्रयास किया जा रहा है. केदारनाथ धाम में ब्रह्मकमल के संरक्षण व संवर्धन के लिए एक ब्रह्म पौधशाला व तीन ब्रह्मकमल वाटिका का निर्माण किया गया है. मदमहेश्वर धाम में ब्रह्मकमल वाटिका निर्माण का आकलन शासन को भेजा गया है. स्वीकृति मिलने पर मदमहेश्वर धाम में भी ब्रह्म वाटिका व ब्रह्मकमल पौधशाला का निर्माण शुरू किया जायेगा.

रुद्रप्रयाग: केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाके के साथ ही हिमालय के आंचल में बसे भूभाग इन दिनों ब्रह्मकमल के पुष्पों से लकदक बने हुए हैं. मखमली बुग्यालों में ब्रह्मकमल खिलने से प्राकृतिक सौन्दर्य पर चार चांद लगे हैं. हिमालयी क्षेत्रों में ब्रह्मकमल, फेन कमल व सूर्य कमल तीन प्रजाति के कमल पाये जाते हैं. जबकि नील कमल समुद्र में पाया जाता है.

हजारों फीट की ऊंचाई पर होता है ब्रह्मकमल: पर्यावरणविदों के अनुसार ब्रह्मकमल 14 हजार से लेकर 16 हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है. जबकि फेन कमल 16 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है. सूर्य कमल की प्रजाति बहुत दुर्लभ मानी जाती है. ब्रह्म कमल की महिमा का वर्णन शिव महिम्न स्तोत्र में भी किया गया है. केदारनाथ धाम से लगभग 9 किमी दूरी तय करने के बाद वासुकी ताल, रांसी मनणामाई पैदल ट्रैक पर सीला समुद्र का भूभाग, मदमहेश्वर पाण्डवसेरा नन्दी कुण्ड तथा बिसुणीताल व देवताओं के घौला क्षेत्र का भूभाग इन दिनों असंख्य ब्रह्मकमल के फूलों से लकदक है.

Brahma Kamal
केदारघाटी में ब्रह्मकमल.
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भगवान विष्णु ने किया था शिव का अभिषेक: शिव महिम्न स्तोत्र में लिखा गया है कि एक बार विष्णु भगवान ने भगवान शंकर का एक हजार ब्रह्मकमल से अभिषेक किया. इस पर विष्णु की परीक्षा लेने के लिए भगवान शंकर ने एक ब्रह्मकमल पुष्प को गायब कर दिया. भगवान शंकर के अभिषेक के दौरान जब एक पुष्प कम पड़ा तो भगवान विष्णु ने अपने दाहिने नेत्र से भगवान शंकर का अभिषेक किया. जब विष्णु ने अपना दाहिने नेत्र से भगवान शंकर का अभिषेक किया तो भगवान शंकर विष्णु की भक्ति से बडे़ प्रसन्न हुए. उन्होंने विष्णु को वरदान दिया कि आज से आप कमल नयन नाम से विश्व विख्यात होंगे. उसी दिन से भगवान विष्णु का एक और नाम कमल नयन पड़ा.

Brahma Kamal
ब्रह्मकमल भगवान शिव को है प्रिय

भगवान शिव को प्रिय है ब्रह्मकमल: आचार्य हर्षमणि जमलोकी का कहना है कि जो व्यक्ति भगवान शंकर को ब्रह्मकमल अर्पित करता है, उसे शिवतत्व, शिव ज्ञान तथा शिवलोक की प्राप्ति होती है. उन्होंने बताया कि लगभग 14 हजार फीट की ऊंचाई से ब्रह्मकमल को शिवालयों तक लाने के लिए ब्रह्मचार्य, अनुष्ठान का पालन करना पड़ता है. नंगे पांव ब्रह्म कमल तोड़ने व शिवालयों तक पहुंचाने की परम्परा युगों पूर्व की है.

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केदारघाटी के नैसर्गिक सौंदर्य

दुर्लभ पुष्प है ब्रह्मकमल: आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल का कहना है कि ब्रह्मकमल की महिमा का वर्णन महापुराणों, पुराणों व उप पुराणों में विस्तृत से वर्णित की गयी है. ब्रह्म कमल हिमालयी आंचल में उगने वाला दुर्लभ पुष्प है. मदमहेश्वर धाम के हक हकूकधारी भगत सिंह पंवार ने बताया कि इन दिनों पाण्डवसेरा नन्दी कुण्ड के आंचल में असंख्य ब्रह्मकमल खिलने से वहां का प्राकृतिक सौन्दर्य स्वर्ग के समान महसूस हो रहा है.
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उत्तराखंड में ब्रह्मकमल के संरक्षण का प्रयास: केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग रेंज अधिकारी पंकज त्यागी ने बताया कि विभाग द्वारा ब्रह्मकमल के संरक्षण व संवर्धन के लिए निरन्तर प्रयास किया जा रहा है. केदारनाथ धाम में ब्रह्मकमल के संरक्षण व संवर्धन के लिए एक ब्रह्म पौधशाला व तीन ब्रह्मकमल वाटिका का निर्माण किया गया है. मदमहेश्वर धाम में ब्रह्मकमल वाटिका निर्माण का आकलन शासन को भेजा गया है. स्वीकृति मिलने पर मदमहेश्वर धाम में भी ब्रह्म वाटिका व ब्रह्मकमल पौधशाला का निर्माण शुरू किया जायेगा.

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