ETV Bharat / bharat

पुस्तक में महिला सशक्तिकरण, नस्ली समानता पर जोर

होलोकॉस्ट,1958 के नॉटिंग हिल दंगा और 1943 में बंगाल के अकाल समेत इतिहास की कुछ सबसे बड़ी त्रासदियों की पड़ताल करती एक नई किताब में लैंगिक असमानता, नस्ली उत्पीड़न, युद्धकालीन आघात और महिला मुक्ति जैसे कई विषयों को शामिल किया गया है.

द ग्रैंडडॉटर प्रोजेक्ट
द ग्रैंडडॉटर प्रोजेक्ट
author img

By

Published : Aug 8, 2021, 4:09 PM IST

नई दिल्ली : होलोकॉस्ट,1958 के नॉटिंग हिल दंगा और 1943 में बंगाल के अकाल समेत इतिहास की कुछ सबसे बड़ी त्रासदियों की पड़ताल करती एक नई किताब में लैंगिक असमानता, नस्ली उत्पीड़न, युद्धकालीन आघात और महिला मुक्ति जैसे कई विषयों को शामिल किया गया है.

द ग्रैंडडॉटर प्रोजेक्ट में भारतीय मूल की ब्रिटिश लेखिका शाहीन चिश्ती ने किताब में तीन अलग-अलग महिलाओं के अनुभव को बताया है.जो सामूहिक रूप से अपनी पोतियों के लिए सामाजिक दृष्टिकोण में सुधार को लेकर आवाज उठाती हैं.

इन महिलाओं के जीवन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले इनके इर्द गिर्द रहे पुरुष उन्हें विकट परिस्थितियों में डाल देते हैं. युवावस्था में अकेले ही वे अपने अनुभवों से सीखती हुई लड़ाई लड़ती हैं.

नरसंहार की एक घटना में जीवित बचीं हुई, हेल्गा ऑस्ट्रिया के एंशलस आने तक अपने परिवार के लिए किसी फरिश्ते के रूप में बड़ी हुई है.ऑशविट्ज में वह अपने परिवार से अलग हुईं. उन्होंने अकेले ही उन भयावहता का सामना किया और इजराइल में एक नया जीवन शुरू करने की कोशिश की है.

इसके विपरीत कमला एक गरीब किसान परिवार में पैदा हुई थीं और बंगाल में अकाल के दौरान पली-बढ़ी उनके शराबी पिता उनकी मां से दुर्व्यवहार करते थे. अकाल के दौरान परिवार बेघर और भुखमरी की स्थिति में पहुंच गया था. वह बच गईं और उन्हें एक महिला आश्रय में काम मिल गया था.

आखिर में उन्होंने राजीव से शादी कर ली, जो उन्हें और उनकी बेटी को छोड़ देता है. लिनेट अपनी मां पाम के साथ कैरिबियाई तटों को छोड़कर 1950 के दशक में लंदन पहुंची. भयावह परिस्थितियों में रहते हुए इन दोनों ने लगातार भेदभाव का सामना किया और संघर्ष करती रही.

इसे भी पढ़े-'अब्बाजान' कहे जाने पर भड़के अखिलेश, भाजपा ने फिर छोड़ा 'बाण'

जब लिनेट की मां की मृत्यु हो गई, तो वह अकेली हो गई और नॉटिंग हिल दंगों के दौरान उन्हें पीटा गया और मरने के लिए छोड़ दिया गया, लेकिन वह जीवित बच गई. किताब में ये बहादुर महिलाएं पहली बार अपनी पोतियों को अपनी कहानियां सुनाती हैं, इस उम्मीद में कि वे जहां असफल हुई वहां उनकी पोतियां सफल हो सकती हैं और अपने लिए सर्वश्रेष्ठ करने के लिए सशक्त, प्रेरित और समर्थित महसूस कर सकती हैं.

सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की वंशज चिश्ती को उम्मीद है कि उनका यह उपन्यास महिला सशक्तिकरण और नस्ली समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाएगा. उनका कहना है कि हेल्गा, कमला और लिनेट पूरी तरह से अलग दुनिया से हो सकती हैं, फिर भी वे एक अनुभव साझा करती हैं वे अपने जीवन में पुरुषों के हाथों सताई जाती हैं. यह पुस्तक निंबल बुक्स ने प्रकाशित की है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : होलोकॉस्ट,1958 के नॉटिंग हिल दंगा और 1943 में बंगाल के अकाल समेत इतिहास की कुछ सबसे बड़ी त्रासदियों की पड़ताल करती एक नई किताब में लैंगिक असमानता, नस्ली उत्पीड़न, युद्धकालीन आघात और महिला मुक्ति जैसे कई विषयों को शामिल किया गया है.

द ग्रैंडडॉटर प्रोजेक्ट में भारतीय मूल की ब्रिटिश लेखिका शाहीन चिश्ती ने किताब में तीन अलग-अलग महिलाओं के अनुभव को बताया है.जो सामूहिक रूप से अपनी पोतियों के लिए सामाजिक दृष्टिकोण में सुधार को लेकर आवाज उठाती हैं.

इन महिलाओं के जीवन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले इनके इर्द गिर्द रहे पुरुष उन्हें विकट परिस्थितियों में डाल देते हैं. युवावस्था में अकेले ही वे अपने अनुभवों से सीखती हुई लड़ाई लड़ती हैं.

नरसंहार की एक घटना में जीवित बचीं हुई, हेल्गा ऑस्ट्रिया के एंशलस आने तक अपने परिवार के लिए किसी फरिश्ते के रूप में बड़ी हुई है.ऑशविट्ज में वह अपने परिवार से अलग हुईं. उन्होंने अकेले ही उन भयावहता का सामना किया और इजराइल में एक नया जीवन शुरू करने की कोशिश की है.

इसके विपरीत कमला एक गरीब किसान परिवार में पैदा हुई थीं और बंगाल में अकाल के दौरान पली-बढ़ी उनके शराबी पिता उनकी मां से दुर्व्यवहार करते थे. अकाल के दौरान परिवार बेघर और भुखमरी की स्थिति में पहुंच गया था. वह बच गईं और उन्हें एक महिला आश्रय में काम मिल गया था.

आखिर में उन्होंने राजीव से शादी कर ली, जो उन्हें और उनकी बेटी को छोड़ देता है. लिनेट अपनी मां पाम के साथ कैरिबियाई तटों को छोड़कर 1950 के दशक में लंदन पहुंची. भयावह परिस्थितियों में रहते हुए इन दोनों ने लगातार भेदभाव का सामना किया और संघर्ष करती रही.

इसे भी पढ़े-'अब्बाजान' कहे जाने पर भड़के अखिलेश, भाजपा ने फिर छोड़ा 'बाण'

जब लिनेट की मां की मृत्यु हो गई, तो वह अकेली हो गई और नॉटिंग हिल दंगों के दौरान उन्हें पीटा गया और मरने के लिए छोड़ दिया गया, लेकिन वह जीवित बच गई. किताब में ये बहादुर महिलाएं पहली बार अपनी पोतियों को अपनी कहानियां सुनाती हैं, इस उम्मीद में कि वे जहां असफल हुई वहां उनकी पोतियां सफल हो सकती हैं और अपने लिए सर्वश्रेष्ठ करने के लिए सशक्त, प्रेरित और समर्थित महसूस कर सकती हैं.

सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की वंशज चिश्ती को उम्मीद है कि उनका यह उपन्यास महिला सशक्तिकरण और नस्ली समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाएगा. उनका कहना है कि हेल्गा, कमला और लिनेट पूरी तरह से अलग दुनिया से हो सकती हैं, फिर भी वे एक अनुभव साझा करती हैं वे अपने जीवन में पुरुषों के हाथों सताई जाती हैं. यह पुस्तक निंबल बुक्स ने प्रकाशित की है.

(पीटीआई-भाषा)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.