मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक एनआरआई को भारत में अपने बुजुर्ग माता-पिता से मिलने की अनुमति दी है. इमिग्रेशन अधिकारियों द्वारा अमेरिका में चाइल्ड पोर्नोग्राफी मामले में उसकी संलिप्तता का हवाला देते हुए उस पर लगाए गए प्रतिबंध को रद्द कर दिया गया. 2018 में आव्रजन अधिकारियों द्वारा अप्रवासी भारतीयों को सूचित किया गया था कि उसे अपने माता-पिता से मिलने के लिए भारत आने की अनुमति नहीं है. उसके पिता 93 वर्ष के हैं और मां 88 वर्ष की हैं. माता- पिता वर्तमान में मुंबई में रह रहे हैं.
इसके बाद एनआरआई ने बंबई उच्च न्यायालय में अपील करने का फैसला किया, जिसमें मांग की गई कि भारत सरकार को देश में प्रवेश करने से प्रतिबंधित 'नैतिक रूप से अक्षम' लोगों की सूची से उनका नाम हटाने का निर्देश दिया जाए. यह दावा करते हुए कि उन पर झूठे आधार पर प्रतिबंध लगाया गया है, एनआरआई ने स्पष्ट किया कि हालांकि, उसने 2013 में रोड आइलैंड के सुप्रीम कोर्ट में चाइल्ड पोर्नोग्राफी रखने के लिए दोषी ठहराया था, बाद में उन्होंने एक याचिका दायर की थी जिसे अदालत ने उन्हें स्वीकार कर लिया था और उसे परिवीक्षा पर भेज दिया था. जिससे उसकी 5 साल लंबी जेल की अवधि समाप्त हो गई.
एनआरआई 1990 में अमेरिका चला गया और अदालत को प्रस्तुत किया कि कनेक्टिकट राज्य ने 2018 में अपनी निर्वहन योजना जारी की थी. यह प्रमाणित करते हुए कि उसने सफलतापूर्वक यौन अपराध उपचार को पूरा किया था. उसके बाद उसके आपराधिक रिकॉर्ड में कोई नया उल्लंघन या गिरफ्तारी नहीं हुई.
याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि अभियोजन और उन पर लगाए गए यात्रा प्रतिबंध के बीच की अवधि के दौरान उसने कई मौकों पर मुंबई का दौरा किया था. उसने जून 2013 में एक बार, 2015 में तीन बार, 2016, 2017 में एक बार और 2018 की शुरुआत में एक बार भारत का दौरा करने का दावा किया. इसके बाद 31 अगस्त, 2018 को मुंबई हवाई अड्डे पर पहुंचने पर अचानक प्रतिबंधित लगा दिया गया.
याचिकाकर्ता के वकील मयूर खांडेपारकर ने तर्क दिया कि एनआरआई को निराधार भारत में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था. वकील ने कहा, 'याचिकाकर्ता को चाइल्ड पोर्नोग्राफी के साथ पाया गया था. उस पर कभी भी किसी बच्चे से छेड़छाड़ के मामले का आरोप नहीं लगाया गया है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का तर्क पूरी तरह से सही नहीं था.
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने न्यायमूर्ति एस.वी. गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति आर.एन. लड्डा ने सभी तर्कों को सुनने के बाद पाया कि एनआरआई के पास चाइल्ड पोर्नोग्राफी पाया गया था, न कि वह इसे बनाने में शामिल था. अदालत ने कहा, 'चाइल्ड पोर्नोग्राफी सामग्री रखने और बच्चे का यौन शोषण करने में अंतर है.'
अदालत ने उसे अपने माता-पिता से मिलने की अनुमति इस आधार पर दी कि उसके अपराध की प्रकृति उतनी गंभीर नहीं है, जितनी उसे बनाया गया है. अदालत ने उनके माता-पिता की वृद्धावस्था और उनकी स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को भी ध्यान में रखा. हालांकि, याचिकाकर्ता को अनुमति इस शर्त पर दी गई कि वह प्रवेश की तारीख से चार से छह सप्ताह से अधिक समय तक भारत में नहीं रहेगा.