मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वैक्सीन बनाने वाली प्रमुख कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के खिलाफ दो व्यक्तियों और उनके संगठनों द्वारा पोस्ट किये गए कंटेंट 'प्रथम दृष्टया मानहानि करने वाली' थी. अदालत ने इन कंटेंट को डिलीट करने का निर्देश दिया. न्यायमूर्ति आर आई चागला की एकल पीठ ने भी उन्हें अस्थायी रूप से कंपनी के खिलाफ कोई पोस्ट करने से रोक दिया. एसआईआई ने दिसंबर 2022 में कंपनी और उसकी कोविड-19 वैक्सीन कोविशील्ड के खिलाफ कथित रूप से गलत सामग्री पोस्ट करने पर दो व्यक्तियों और उनके संगठनों के खिलाफ 100 करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग करते हुए मानहानि का मुकदमा दायर किया.
उच्च न्यायालय ने सोमवार को अपने अंतरिम आदेश में कहा कि वह प्रथम दृष्टया एसआईआई की इस बात से संतुष्ट है कि दोनों व्यक्तियों द्वारा पोस्ट की गई सामग्री मानहानि करने वाली है. अदालत बाद में अंतिम सुनवाई के लिए कंपनी के मुकदमे पर विचार करेगी. न्यायाधीश ने अंतरिम आदेश में कहा, "मेरा प्रथम दृष्टया मानना है कि सामग्री अपने आप में मानहानिकारक है. टीके पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. प्रतिवादियों द्वारा कोई मामला नहीं बनाया गया है." अदालत बाद में अंतिम सुनवाई के लिए कंपनी के मुकदमे पर विचार करेगी.
हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को कंपनी के खिलाफ अपने सभी पोस्ट और कंटेट को हटाने का निर्देश दिया और मुकदमे की सुनवाई तथा फैसला होने तक ऐसे किसी भी कंटेट को पोस्ट नहीं करने का निर्देश दिया. एसआईआई ने अपने पक्ष में दावा किया कि प्रतिवादी - योहान टेंगरा, उनके संगठन अनार्की फॉर फ़्रीडम इंडिया और अंबर कोइरी व उनके संगठन अवेकन इंडिया मूवमेंट, कंपनी और उसके कोविड-19 वैक्सीन कोविशील्ड के खिलाफ अपमानजनक कंटेट पोस्ट और प्रसारित कर रहे थे.
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वाद में कहा गया है कि प्रतिवादी भी गलत जानकारी पोस्ट कर रहे थे कि कोविशील्ड वैक्सीन साइड-इफेक्ट्स के कारण कई लोगों की मौत का कारण था. जारी किए गए पोस्ट न केवल एसआईआई के कार्य पर सवाल उठा रहे थे, बल्कि इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी अदार पूनावाला को भी निशाना बना रहे थे. याचिका में उच्च न्यायालय से प्रतिवादियों को एसआईआई या उसके कर्मचारियों के खिलाफ किसी भी प्रकार के कंटेट को प्रकाशित करने, प्रसारित करने से रोकने की मांग की गई थी.
(पीटीआई-भाषा)