नई दिल्ली : बीजेपी वेस्टर्न यूपी में कड़ी चुनौती झेल रही है. इस इलाके में समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन कर बीजेपी की राह मुश्किल कर दी है, मगर टिकट बंटवारे में कैराना से नाहिद हसन को टिकट देकर फिर से ध्रुवीकरण की राह आसान कर दी है. नाहिद हसन गैंगस्टर एक्ट के एक केस के कारण मुजफ्फरनगर जिला जेल में बंद हैं. वह 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान भी अपने बयानों को लेकर चर्चित रहे हैं.
नाहिद हसन के बहाने हिंदू वोट को लामबंद करने की कोशिश : अब बीजेपी ने नाहिद हसन के टिकट को मुद्दा बना रही है. योगी आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी को तमंचावादी पार्टी कहना शुरू कर दिया है. भाजपा ने कैराना से ही अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत की है. खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कैराना में डोर-टु-डोर कैंपेन करने उतर गए. उनका अभियान कैराना के उस टीचर्स कॉलोनी से शुरू हुआ, जहां के लोगों ने 2016 में हुकुम सिंह से खराब कानून-व्यवस्था की शिकायत की थी.
'मकान बिकाऊ है' के पोस्टर के कारण वहां पलायन का मुद्दा गर्माया था. कैराना सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का वह केंद्र है, जहां से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तीन मंडलों मुरादाबाद, मेरठ और सहारनपुर में सीधा संदेश पहुंच सकता है. बीजेपी इसी बहाने वोटरों को वेस्टर्न यूपी में कैराना से पलायन और मुजफ्फरनगर दंगों की याद दिलाने लगी है.
कैराना में घरवापसी करने वालों से मिल चुके हैं सीएम योगी : इससे पहले सीएम योगी ने पिछले साल नवंबर में कैराना जाकर यह बता दिया था कि वह इसे चुनाव के केंद्र में रखेंगे. योगी आदित्यनाथ कैराना में घरवापसी करने वाले उन परिवारों से मिले थे, जिन्होंने करीब 6-7 साल पहले मुजफ्फरनगर दंगों के बाद घर छोड़कर पलायन किया था. सीएम योगी ने इन परिवारों से कहा कि आप लोगों को डरने की जरूरत नहीं है, सरकार पूरी तरह से आपके साथ है.
2016 में क्यों बना था कैराना से पलायन का मुद्दा : 2016 में कैराना से तत्कालीन भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने हिंदुओं के पलायन का बम फोड़ा था. उन्होंने एक लिस्ट जारी कर दावा किया था कि मुसलिमों के आतंक के कारण कैराना से 346 हिंदू परिवारों को घर छोड़कर विस्थापित होना पड़ा. उस दौर में कैराना में ' मकान बिकाऊ है ' वाली तस्वीरें भी खूब चर्चित हुई. बीजेपी ने आरोप लगाया कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद कैराना समेत वेस्टर्न यूपी में हिंदू परिवारों पर हमले हो रहे हैं और कारोबारियों से अवैध उगाही हो रही है.
2013 के कवाल दंगों से आहत जाट बिरादरी ने इस मुद्दे पर भी बीजेपी के साथ आए. इसके बाद से बीजेपी ने दो लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज की थी. 2017 के चुनाव के दौरान मुरादाबाद, मेरठ और सहारनपुर मंडल में बीजेपी ने 71 विधानसभा सीटों में 51 पर जीत दर्ज की थीं. जबकि सपा के खाते में 17 सीटें थीं. कांग्रेस के हिस्से में 2 सीटें आईँ और बसपा को धौलाना की एक सीट से संतोष करना पड़ा था. इसके अलावा अलीगढ़ और आगरा मंडल में भी जाट वोटरों ने बीजेपी का साथ दिया था. तब संजीव बालियान, सुरेश राणा और संगीत सोम जैसे नेताओं की फौज से भी बीजेपी ताकतवर हुई.
कवाल दंगों के बाद ध्वस्त हुआ था रालोद का समीकरण : दरअसल मुजफ्फरनगर के कवाल दंगों के बाद ही पश्चिम उत्तरप्रदेश में जाट-मुस्लिम समीकरण ध्वस्त हो गया था. 27 अगस्त 2013 को मलिकपुरा गांव के दो ममेरे भाई सचिन और गौरव की हत्या कर दी गई थी. इन दोनों पर छेड़खानी के आरोपी शाहनवाज की हत्या करने का आरोप था. दोनों भाइयों की हत्या को बाद मुजफ्फरनगर में दंगे हुए, जिसमें 62 लोगों की मौत हुई थी. 40 हजार से ज्यादा लोग राहत कैंपों में शरण लेने को मजबूर होना पड़ा था.
मृगांका सिंह करेगी नाहिद हसन का मुकाबला : कैराना में बीजेपी ने सांसद रहे बाबू हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को उम्मीदवार बनाया है. कैराना हुकुम सिंह की सीट रही है. 1996 में उन्होंने भाजपा में एंट्री ली थी. इसके बाद से हुकुम सिंह चार बार भाजपा के टिकट पर कैराना से चुनाव जीत चुके थे. साल 2018 में उनके देहांत के बाद बीजेपी ने मृगांका सिंह को उपचुनाव में टिकट दिया था, मगर वह आरएलडी और समाजवादी पार्टी की संयुक्त उम्मीदवार तबस्सुम हसन से हार गईं. 2019 में बीजेपी ने दोबारा कैराना लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की. अब यहां जीत-हार जाट वोटरों के हाथ में है.
आसान नहीं है 2017 की जीत को दोहराना : उत्तर प्रदेश में पहले चरण में 10 फरवरी को 15 जिलों की 73 सीटों पर चुनाव होंगे. दूसरे चरण में 14 फरवरी को 11 जिलों के 67 विधानसभा क्षेत्रों में वोट डाले जाएंगे. इन 140 सीटों में 120 सीटों पर जाट वोट बैंक का असर है. उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी 3 से 4 फीसदी के बीच है, लेकिन पश्चिमी यूपी में 17 फीसदी के करीब है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, मेरठ और सहारनपुर मंडल में कुल 71 विधानसभा सीट हैं. इन सीटों पर जाट मतदाता ही जीत-हार तय करते हैं. इनमें 35 सीटें तो ऐसी हैं, जो जाट वोटर की मुट्ठी में मानी जाती हैं. यहां और कोई दूसरा समीकरण काम नहीं आता. किसान आंदोलन और जाट वोटरों की नाराजगी के बीच बीजेपी के लिए 2017 को दोहराना आसान नहीं है.
मुस्लिम रालोद-सपा गठबंधन के पक्ष में : परंपरागत रूप से रालोद को जाट पार्टी माना जाता है. मगर मुजफ्फरनगर दंगों के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में जाट बीजेपी के साथ आए. 2016 में कैराना से हिंदुओं के पलायन के मुद्दे को बीजेपी ने हवा दी. इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी के साथ रहे. अनुमान है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाता रालोद-सपा गठबंधन के पक्ष में वोटिंग करेंगे. रालोद को किसान आंदोलन का भी फायदा मिला है. अजित सिंह के निधन के बाद जाट बिरादरी के एक धड़े में जयंत चौधरी को लेकर सहानुभूति भी है.
बीजेपी को लेकर हैं बंटे हैं जाट वोटर : भारतीय जनता पार्टी के लिए राहत की बात भारतीय किसान यूनियन का बयान है. भारतीय किसान यूनियन कह चुका है कि वह न ही बीजेपी के खिलाफ है और न समर्थन में. बीजेपी को वोट देने को लेकर जाट बिरादरी में भी मतभेद हैं. कई इलाकों में जाट तीन कानून वापस लेने के बाद पार्टी को माफ करने के मूड में हैं. जाट वोटर बीजेपी से बिल्कुल कन्नी काट ले, ऐसा संभव नहीं है. इसके अलावा बीजेपी ने अच्छी खासी संख्या में जाट कैंडिडेट को टिकट देकर उन्हें साधने का दांव चला है.
जाट बाहुल्य सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट से नाराजगी : दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन की ओर से मुस्लिम उम्मीदवारों को तरजीह देने से जाने से जाटों का एक बड़ा तबका नाराज है. जयंत चौधरी ने अपने पुराने फार्मूले के तहत मुस्लिम जाट समीकरण के हिसाब से टिकट बांटे. मेरठ के सिवालखास और बागपत से मुसलमान कैंडिडेट उतार दिए. टिकट बंटवारे की घोषणा होते ही जाट मुसलमानों की संभावित एकता के दावों को पलीता लग गया. इससे उलट बीजेपी ने एक भी मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट नहीं दिया है. बीजेपी को उम्मीद है कि वोटिंग होने तक उससे नाराज जाट फिर पार्टी की ओर लौट सकते हैं. इस पर तड़के के लिए कैराना है ही. 10 मार्च को नतीजे सामने होंगे.
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