पटना: एक तरफ नीतीश कुमार अपने पार्टी के सांसदों विधायकों से फीडबैक लेने के साथ ही आने वाले चुनाव की तैयारी का भी आंकलन कर रहे हैं. बिहार में महाराष्ट्र जैसी स्थिति उत्पन्न ना हो जाए इसको लेकर भी महागठबंधन के नेताओं में बेचैनी है. वहीं सोमवार को जमीन के बदले नौकरी मामले में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को चार्जशीट किया गया. इसके बाद हरिवंश और नीतीश कुमार की मुलाकात से खलबली मची है.
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नीतीश-हरिवंश की मुलाकात पर सियासत तेज: सवाल उठते हैं कि आखिर नीतीश और हरिवंश के बीच किन मुद्दों को लेकर चर्चा हुई. दोनों के बीच क्या बात हुई, इसकी जानकारी किसी को नहीं है. वहीं हरिवंश और नीतीश कुमार की मुलाकात को लेकर जब बिहार सरकार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने दोनों की मुलाकात के एजेंडे को लेकर अनभिज्ञता जाहिर की. दोनों के बीच क्या बात हुई है ये तो वे ही बता सकते हैं.
"संसद भवन के उद्घाटन समारोह में भाग लिए थे, हम लोग इसको उचित नहीं मानते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कहा गया कि कभी वह नहीं मिलेंगे. अब दोनों मिले हैं तो दोनों के बीच क्या बात हुई है यह तो वही लोग बताएंगे."- विजय कुमार चौधरी, वित्त मंत्री, बिहार
विजय चौधरी ने कयासों को किया खारिज: एक तरह से नीतीश कुमार के नजदीकी मंत्रियों में से विजय कुमार चौधरी ने नीतीश कुमार और हरिवंश के मुलाकात पर जो कयास लगाए जा रहे हैं उसको खारिज किया है. असल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले 3 दिनों से लगातार सांसदों से मुलाकात कर रहे हैं और हरिवंश को भी मुख्यमंत्री ने फोन करके बुलाया था. कल दोनों की डेढ़ घंटे मुलाकात हुई वहीं आज भी हरिवंश और नीतीश की मुलाकात हुई है.
क्या हैं मुलाकात के मायने?: दोनों नेताओं के मुलाकात के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है. बता दें कि जेडीयू से सांसद हरिवंश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार दोनों का करीबी माना जाता है. सवाल उठ रहा है कि नीतीश कुमार और हरिवंश की मुलाकात सिर्फ औपचारिकता है या कुछ और है?
PK भी दे चुके हैं बड़ा बयान: चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बड़ा बयान देते हुए कहा था कि नीतीश कुमार महागठबंधन में जरूर हैं, लेकिन नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ चैनल बंद नहीं किया है. इसके लिए पीके ने हरिवंश का उदाहरण दिया था. उन्होंने कहा था नीतीश कुमार एनडीए अलग हो गए लेकिन हरिवंश ने राज्यसभा के उपसभापति के पद से इस्तीफा नहीं दिया. प्रशांत किशोर ने कहा था कि नीतीश कुमार अभी भी बीजेपी के संपर्क में हरिवंश के माध्यम से हैं.
क्या मध्यस्थ की भूमिका में हैं हरिवंश?: पिछले चार-पांच दिनों के घटनाक्रम पर अगर नजर डालें तो पॉलिटिक्स में काफी बड़ी घटनाएं हुई हैं. यह घटनाएं इशारा कर रही हैं कि जिस तरह से महाराष्ट्र में एनसीपी में टूट हुई है, कुछ वैसा ही खेला बिहार में हो सकता है और बीजेपी की ओर से जदयू में टूट का दावा भी किया जा रहा है. ऐसे में हरिवंश जदयू और बीजेपी के बीच एक पुल का काम कर सकते हैं. क्योंकि हरिवंश कभी नीतीश के करीबी थे और पीएम मोदी से भी अच्छे रिश्ते हैं.
नीतीश और हरिवंश की दूरियां हो गई खत्म?: गौरतलब है कि नए संसद भवन का जब पूरा विपक्ष विरोध कर रहा था तो उद्घाटन समारोह में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश पहुंचे थे. उनके जाने पर जेडीयू ने कड़ा रुख भी जताया था. इसके बाद नीतीश और हरिवंश की यह पहली मीटिंग बतायी जा रही है. बिहार में तमाम सियासी उठापटक के बीच सवाल उठ रहा है क्या दिल्ली से हरिवंश पटना दूत बनकर पहुंचे थे?
पिछले साल नीतीश कुमार ने अगस्त में बीजेपी से अलग होकर आरजेडी के साथ नई सरकार बनायी थी. इसके बाद 10 महीने के अंदर 5 बार अमित शाह बिहार का दौरा कर चुके हैं. अमित शाह ने पिछले दौरे में नीतीश कुमार के लिए एनडीए के दरवाजे बंद बताए थे. वहीं लखीसराय के इस बार के दौरे में नीतीश कुमार को भ्रष्टाचारियों का साथ देने के लिए कोसा और कहा कि ऐसे लोगों के साथ गठबंधन कर रहे हैं जिनपर 20 लाख करोड़ से भी ज्यादा के घोटाले के आरोप हैं. अमित शाह के इस बयान के बाद बयानबाजी शुरू हो गई है. कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर एक बार फिर से 2017 जैसे हालात बनाने की कोशिश में है.
पिछली बार नीतीश ने छोड़ा था लालू का साथ : साल 2017, जब भ्रष्टाचार के मामलों में केंद्रीय एजेंसियों ने लालू परिवार पर दबिश दी थी, तब नीतीश आरजेडी के साथ थे. उन्होंने लालटेन से दूरी बनाई और बीजेपी में शामिल हो गए थे. बीजेपी ने भी उन्हें हाथों-हाथ लिया था. 2020 में ज्यादा सीट जीतने के बाद भी नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाया था.
कौन हैं हरिवंश नारायण सिंह: हरिवंश नारायण सिंह राज्यसभा सांसद हैं. अगस्त 2018 में एनडीए के प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा के उपसभापति चुने गए थे. उनकी राज्यसभा सदस्यता का कार्यकाल 2020 में खत्म हो गया था. तब जेडीयू एनडीए में थी. उन्हे दोबारा राज्यसभा भेजा गया था. अभी भी वे पद पर आसीन है. नीतीश कुमार इस बात से भी हरिवंश से नाराज थे. क्योंकि जेडीयू का एनडीए से अलगाव होने के बाद भी हरिवंश अपने पद पर बने रहे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दोनों की बीच की दूरियां भी खत्म हो चुकी है.