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आज भी यहां 'लकड़ी की तिजोरी' में अनाज रखते हैं लोग, सालों साल नहीं होता खराब

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Published : Jan 27, 2021, 4:05 PM IST

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में लोग सालों से राशन को उर्स में जमा करते आ रहे हैं. उर्स की दीवारों को देवदार अखरोट की लकड़ी से तैयार किया जाता है. उर्स के अंदर रखा सामान 2 से 3 साल तक बिल्कुल खराब नहीं होता. ना ही इसके अंदर रखे आनाज में नमी, और ना ही कीड़े लगते हैं.

लकड़ी के 'लॉकर' में अनाज
लकड़ी के 'लॉकर' में अनाज

शिमला : खाने पीने के सामान को अकसर घर के अंदर रखा जाता है. इसके साथ ही इस आधुनिक युग में अनाज और खाने पीने के सामान को खराब होने से बचाने के लिए अक्सर बड़े बड़े हाईटेक गोदामों या फ्रिजर में स्टोर किया जाता है. खाद्य पदार्थ महीनों तक सुरक्षित रहें इसके लिए प्रिजर्वेटिव और रसायनों का भी इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन किन्नौर में लोग सालों से राशन को उर्स में जमा करते आ रहे हैं. इसे स्थानीय लोग कुठार भी कहते हैं. उर्स यानी कुठार एक तरह का लकड़ी से बना एक छोटा से गोदाम ही होता है. किन्नौर में लोग इसका इस्तेमाल राशन को जमा करने के लिए करते हैं.

देवदार-अखरोट की लकड़ी से बनता है उर्स

उर्स को लकड़ी से बनाया जाता है. इसे हमेशा घर से करीब 100 मीटर की दूरी पर ही तैयार किया जाता है. उर्स की दीवारों को देवदार-अखरोट की लकड़ी से तैयार किया जाता है. इसके अंदर 8 से 10 छोटे-छोटे संदूक के आकार के डब्बे होते हैं. इन्हीं डब्बों के अंदर चावल, आटा, दालें, चीनी के साथ-साथ हर दूसरी वो चीज रखी जाती है जो किचन में पूरे साल इस्तेमाल होती है. इसके अलावा इसमें सेब, सूखे अंगूर, अखरोट, चिलगोजा, मेवे रखे जाते हैं. उर्स के अंदर रखा सामान 2 से 3 साल तक बिल्कुल खराब नहीं होता. ना ही इसके अंदर रखे आनाज में नमी और ना ही कीड़े लगते हैं.

लकड़ी के 'लॉकर' में अनाज

कठिन भौगोलिक परिस्थितियां

किन्नौर एक विषम भौगौलिक परिस्थितियों वाला दूरदराज का इलाका है. सर्दियों में बर्फबारी के कारण छह महीने तक पूरा इलाका देश दुनिया से कट जाता है. इस दौरान घर से बाहर निकलना मुश्किल होता है. इसलिए लोग महीनों का राशन एक साथ खरीदकर उर्स में स्टोर कर लेते थे, क्योंकि भारी बर्फबारी और बारिश में भी इसके अंदर रखा सामान कभी खराब नहीं होता है.

100 किलोमीटर दूर से ढोकर लाना पड़ता था सामान

इसके अलावा यहां सड़क और यातायात के साधन इतने मजबूत नहीं थे. लोग 100 किलोमीटर दूर रामपुर से खाने पीने का सामान पीठ पर ढोकर लाते थे. बार-बार बाजार ना जाने पड़े, इसके लिए लोग एक बार में ही साल छह महीन का राशन खरीदकर उर्स में रख देते थे. ऐसे में लोगों को बार-बार बाजार जाने से छुटकारा मिल जाता था.

तिब्बत से बनकर आता था ताला

उर्स की सबसे बड़ी खासियत इसके दरवाजे पर लगने वाला बड़ा सा ताला होता है. पहले ये ताले तिब्बत से बनकर आते थे. इनका वजन डेढ़ से दो किलो तक होता था. इसे बिना चाबी के खोलना नामुमकिन था. बदलते दौर के साथ अब ये उर्स कुछ ग्रामीण इलाकों मे ही देखने को मिलते हैं. क्योंकि अब लोगों के पास आने जाने के साधन उपलब्ध हैं. इसके साथ ही अब गांवों में दुकानें खुल चुकी हैं. इसलिए लोग अब उर्स में राशन जमा करना छोड़ रहे हैं, लेकिन अभी भी कुछ लोग उर्स में राशन जमा करते हैं, उनका मानना है कि आकाल, युद्द और अन्य दूसरी परिस्थितियों में उर्स के अंदर रखा राशन लोगों को भुखमरी से बचा सकता है.

शिमला : खाने पीने के सामान को अकसर घर के अंदर रखा जाता है. इसके साथ ही इस आधुनिक युग में अनाज और खाने पीने के सामान को खराब होने से बचाने के लिए अक्सर बड़े बड़े हाईटेक गोदामों या फ्रिजर में स्टोर किया जाता है. खाद्य पदार्थ महीनों तक सुरक्षित रहें इसके लिए प्रिजर्वेटिव और रसायनों का भी इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन किन्नौर में लोग सालों से राशन को उर्स में जमा करते आ रहे हैं. इसे स्थानीय लोग कुठार भी कहते हैं. उर्स यानी कुठार एक तरह का लकड़ी से बना एक छोटा से गोदाम ही होता है. किन्नौर में लोग इसका इस्तेमाल राशन को जमा करने के लिए करते हैं.

देवदार-अखरोट की लकड़ी से बनता है उर्स

उर्स को लकड़ी से बनाया जाता है. इसे हमेशा घर से करीब 100 मीटर की दूरी पर ही तैयार किया जाता है. उर्स की दीवारों को देवदार-अखरोट की लकड़ी से तैयार किया जाता है. इसके अंदर 8 से 10 छोटे-छोटे संदूक के आकार के डब्बे होते हैं. इन्हीं डब्बों के अंदर चावल, आटा, दालें, चीनी के साथ-साथ हर दूसरी वो चीज रखी जाती है जो किचन में पूरे साल इस्तेमाल होती है. इसके अलावा इसमें सेब, सूखे अंगूर, अखरोट, चिलगोजा, मेवे रखे जाते हैं. उर्स के अंदर रखा सामान 2 से 3 साल तक बिल्कुल खराब नहीं होता. ना ही इसके अंदर रखे आनाज में नमी और ना ही कीड़े लगते हैं.

लकड़ी के 'लॉकर' में अनाज

कठिन भौगोलिक परिस्थितियां

किन्नौर एक विषम भौगौलिक परिस्थितियों वाला दूरदराज का इलाका है. सर्दियों में बर्फबारी के कारण छह महीने तक पूरा इलाका देश दुनिया से कट जाता है. इस दौरान घर से बाहर निकलना मुश्किल होता है. इसलिए लोग महीनों का राशन एक साथ खरीदकर उर्स में स्टोर कर लेते थे, क्योंकि भारी बर्फबारी और बारिश में भी इसके अंदर रखा सामान कभी खराब नहीं होता है.

100 किलोमीटर दूर से ढोकर लाना पड़ता था सामान

इसके अलावा यहां सड़क और यातायात के साधन इतने मजबूत नहीं थे. लोग 100 किलोमीटर दूर रामपुर से खाने पीने का सामान पीठ पर ढोकर लाते थे. बार-बार बाजार ना जाने पड़े, इसके लिए लोग एक बार में ही साल छह महीन का राशन खरीदकर उर्स में रख देते थे. ऐसे में लोगों को बार-बार बाजार जाने से छुटकारा मिल जाता था.

तिब्बत से बनकर आता था ताला

उर्स की सबसे बड़ी खासियत इसके दरवाजे पर लगने वाला बड़ा सा ताला होता है. पहले ये ताले तिब्बत से बनकर आते थे. इनका वजन डेढ़ से दो किलो तक होता था. इसे बिना चाबी के खोलना नामुमकिन था. बदलते दौर के साथ अब ये उर्स कुछ ग्रामीण इलाकों मे ही देखने को मिलते हैं. क्योंकि अब लोगों के पास आने जाने के साधन उपलब्ध हैं. इसके साथ ही अब गांवों में दुकानें खुल चुकी हैं. इसलिए लोग अब उर्स में राशन जमा करना छोड़ रहे हैं, लेकिन अभी भी कुछ लोग उर्स में राशन जमा करते हैं, उनका मानना है कि आकाल, युद्द और अन्य दूसरी परिस्थितियों में उर्स के अंदर रखा राशन लोगों को भुखमरी से बचा सकता है.

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