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एलएसी पर हथियारों के इस्तेमाल से इसलिए बचते हैं भारत-चीन के सैनिक

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Published : Jun 18, 2020, 1:00 PM IST

भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर काफी तल्खी है और चीन हमेशा से एलएसी को मानने से इनकार करता रहा है.रक्षा विशेषज्ञ (रिटायर्ड) ब्रिगेडियर के.जी. बहल से जानिए, आखिर क्यों भारत-चीन सीमा पर सैनिक हथियारों के इस्तेमाल से बचते हैं.

भारत चीन के बीच विवाद
भारत चीन के बीच विवाद

देहरादून : पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन सीमा विवाद काफी तल्ख हो चुका है. 15-16 जून की रात लद्दाख के पास गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए. वहीं, इस झड़प के दौरान चीनी सेना के कमांडिंग ऑफिसर सहित करीब 40 जवान हताहत हुए हैं. हालांकि, चीन ने इसकी पुष्टि नहीं की है.

एक तरफ नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारत-पाकिस्तान के बीच फायरिंग की घटना होती रहती है, वहीं दूसरी तरफ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत-चीन के सैनिक हथियारों का प्रयोग करने से बचते हैं. इस रिपोर्ट में जानिए भारत-चीन के बीच सीमा विवाद क्यों हैं.

एलओसी और एलएसी क्या है
नियंत्रण रेखा भारत और पाकिस्तान के बीच खींची गई 740 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है. इसे लेकर पाकिस्तान से 1947, 1965 और 1971 में तीन युद्ध हुए हैं और तीनों में पाक को करारी हार का सामना करना पड़ा था. खास बात यह है कि नियंत्रण रेखा कोई लकीर नहीं है, जिसे सीधे देखा जा सकता है, बल्कि यह अदृश्य रूप से कायम है.

क्यों है एलएसी पर विवाद.

वहीं, भारत और चीन के बीच सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी कहा जाता है. चीन के साथ लगी लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल (एलएसी) करीब 3,488 किलोमीटर की है जबकि चीन मानता है कि यह बस 2000 किलोमीटर तक ही है. यह सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है. यह तीन सेक्टरों में बंटी हुई है - पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड, पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश.

ये भी पढ़ें: चीन को चौतरफा घेरने की तैयारी, बीएसएनएल ने की शुरुआत

पूर्वी हिस्से में एलएसी और 1914 के मैकमोहन रेखा के संबंध में जमीनी स्थितियों को लेकर भी चीन अड़ंगा लगाता रहता है. अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र पर चीन अक्सर अपना हक जताता रहता है. इसी तरह उत्तराखंड के बाड़ाहोती मैदानों के भूभाग को लेकर भी चीन विवाद करता रहता है. भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चीन पर अपना दावा करता है, जो फिलहाल चीन के नियंत्रण में है.

भारत के साथ 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने इस पूरे इलाके पर अवैध कब्जा कर लिया था. 1914 में तिब्बत एक स्वतंत्र लेकिन कमजोर देश था और चीन ने तिब्बत को कभी स्वतंत्र देश नहीं माना. 1950 में चीन ने तिब्बत को पूरी तरह से अपने कब्जे में लिया. इसी वजह से चीन अरुणाचल प्रदेश में मैकमोहन लाइन को नहीं मानता और अक्साई चीन पर भारत के दावे को भी खारिज करता है.

भारत-चीन सीमा पर क्यों नहीं चलती गोली
साल 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव चीन की यात्रा पर गए थे. इस दौरान दोनों देशों के बीच एलएसी पर शांति बरकरार रखने के लिए 9 बिंदुओं पर समझौता किया गया था. इस समझौते के तहत सहमति बनी थी कि भारत-चीन सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने पर जोर दिया जाएगा.

जानिए एक्सपर्ट की राय.

दोनों देशों के बीच यह तय हुआ कि भारत-चीन एक दूसरे के खिलाफ बल या सेना प्रयोग की धमकी नहीं दी जाएगी. दोनों देशों की सेनाओं की गतिविधियां वास्तविक नियंत्रण रेखा से आगे नहीं बढ़ेंगी. अगर किसी कारणवश एक पक्ष के जवान वास्तविक नियंत्रण की रेखा को पार करते हैं, तो दूसरे पक्ष के संकेत मिलने के बाद वापस अपनी सीमा में चले जाएंगे. दोनों देश एलएसी पर कम सैन्य बल रखेंगे.

पैंगोंग त्सो झील
लद्दाख में 134 किलोमीटर लंबी पैंगोंग त्सो झील हिमालय में करीब 14,000 फुट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है. इस झील का 45 किलोमीटर का क्षेत्र भारत में पड़ता है, जबकि 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में आता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा इस झील के बीच से गुजरती है. सैन्य मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिमी सेक्टर में चीन की तरफ से अतिक्रमण के एक तिहाई मामले इसी पैंगोंग त्सो झील के पास होते हैं.

मैकमोहन नाम क्यों पड़ा
साल 1913-1914 में जब ब्रिटेन और तिब्बत के बीच सीमा निर्धारण के लिए शिमला समझौता हुआ तो इस समझौते में मुख्य वार्ताकार थे सर हेनरी मैकमोहन. इसी वजह से इस रेखा को मैकमोहन रेखा के नाम से भी जाना जाता है. हेनरी मैकमोहन ने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा खींची. इसमें अरुणाचल के तवांग को भारत का हिस्सा माना गया. मैकमहोन लाइन के पश्चिम में भूटान और पूरब में ब्रह्मपुत्र नदी का ग्रेट बेंड है. यारलुंग जांगबो नदी के चीन से बहकर अरुणाचल में घुसने और ब्रह्मपुत्र बनने से पहले, नदी दक्षिण की तरफ बहुत घुमावदार तरीके से बेंड होती है. इसी को ग्रेट बेंड कहते हैं.

बातचीत से भी सुलझे हैं मुद्दे
1962 के युद्ध के बाद भारत-चीन ने बातचीत के जरिए भी कई मुद्दों को सुलझाया है. 1987 में समदोरांग चू रीजन विवाद, 2013 में डेपसांग विवाद, 2014 में चुमार और 2017 में डोकलाम विवाद को भारत-चीन ने बातचीत के जरिए ही सुलझाया है.

देहरादून : पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन सीमा विवाद काफी तल्ख हो चुका है. 15-16 जून की रात लद्दाख के पास गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए. वहीं, इस झड़प के दौरान चीनी सेना के कमांडिंग ऑफिसर सहित करीब 40 जवान हताहत हुए हैं. हालांकि, चीन ने इसकी पुष्टि नहीं की है.

एक तरफ नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारत-पाकिस्तान के बीच फायरिंग की घटना होती रहती है, वहीं दूसरी तरफ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत-चीन के सैनिक हथियारों का प्रयोग करने से बचते हैं. इस रिपोर्ट में जानिए भारत-चीन के बीच सीमा विवाद क्यों हैं.

एलओसी और एलएसी क्या है
नियंत्रण रेखा भारत और पाकिस्तान के बीच खींची गई 740 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है. इसे लेकर पाकिस्तान से 1947, 1965 और 1971 में तीन युद्ध हुए हैं और तीनों में पाक को करारी हार का सामना करना पड़ा था. खास बात यह है कि नियंत्रण रेखा कोई लकीर नहीं है, जिसे सीधे देखा जा सकता है, बल्कि यह अदृश्य रूप से कायम है.

क्यों है एलएसी पर विवाद.

वहीं, भारत और चीन के बीच सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी कहा जाता है. चीन के साथ लगी लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल (एलएसी) करीब 3,488 किलोमीटर की है जबकि चीन मानता है कि यह बस 2000 किलोमीटर तक ही है. यह सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है. यह तीन सेक्टरों में बंटी हुई है - पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड, पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश.

ये भी पढ़ें: चीन को चौतरफा घेरने की तैयारी, बीएसएनएल ने की शुरुआत

पूर्वी हिस्से में एलएसी और 1914 के मैकमोहन रेखा के संबंध में जमीनी स्थितियों को लेकर भी चीन अड़ंगा लगाता रहता है. अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र पर चीन अक्सर अपना हक जताता रहता है. इसी तरह उत्तराखंड के बाड़ाहोती मैदानों के भूभाग को लेकर भी चीन विवाद करता रहता है. भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चीन पर अपना दावा करता है, जो फिलहाल चीन के नियंत्रण में है.

भारत के साथ 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने इस पूरे इलाके पर अवैध कब्जा कर लिया था. 1914 में तिब्बत एक स्वतंत्र लेकिन कमजोर देश था और चीन ने तिब्बत को कभी स्वतंत्र देश नहीं माना. 1950 में चीन ने तिब्बत को पूरी तरह से अपने कब्जे में लिया. इसी वजह से चीन अरुणाचल प्रदेश में मैकमोहन लाइन को नहीं मानता और अक्साई चीन पर भारत के दावे को भी खारिज करता है.

भारत-चीन सीमा पर क्यों नहीं चलती गोली
साल 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव चीन की यात्रा पर गए थे. इस दौरान दोनों देशों के बीच एलएसी पर शांति बरकरार रखने के लिए 9 बिंदुओं पर समझौता किया गया था. इस समझौते के तहत सहमति बनी थी कि भारत-चीन सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने पर जोर दिया जाएगा.

जानिए एक्सपर्ट की राय.

दोनों देशों के बीच यह तय हुआ कि भारत-चीन एक दूसरे के खिलाफ बल या सेना प्रयोग की धमकी नहीं दी जाएगी. दोनों देशों की सेनाओं की गतिविधियां वास्तविक नियंत्रण रेखा से आगे नहीं बढ़ेंगी. अगर किसी कारणवश एक पक्ष के जवान वास्तविक नियंत्रण की रेखा को पार करते हैं, तो दूसरे पक्ष के संकेत मिलने के बाद वापस अपनी सीमा में चले जाएंगे. दोनों देश एलएसी पर कम सैन्य बल रखेंगे.

पैंगोंग त्सो झील
लद्दाख में 134 किलोमीटर लंबी पैंगोंग त्सो झील हिमालय में करीब 14,000 फुट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है. इस झील का 45 किलोमीटर का क्षेत्र भारत में पड़ता है, जबकि 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में आता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा इस झील के बीच से गुजरती है. सैन्य मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिमी सेक्टर में चीन की तरफ से अतिक्रमण के एक तिहाई मामले इसी पैंगोंग त्सो झील के पास होते हैं.

मैकमोहन नाम क्यों पड़ा
साल 1913-1914 में जब ब्रिटेन और तिब्बत के बीच सीमा निर्धारण के लिए शिमला समझौता हुआ तो इस समझौते में मुख्य वार्ताकार थे सर हेनरी मैकमोहन. इसी वजह से इस रेखा को मैकमोहन रेखा के नाम से भी जाना जाता है. हेनरी मैकमोहन ने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा खींची. इसमें अरुणाचल के तवांग को भारत का हिस्सा माना गया. मैकमहोन लाइन के पश्चिम में भूटान और पूरब में ब्रह्मपुत्र नदी का ग्रेट बेंड है. यारलुंग जांगबो नदी के चीन से बहकर अरुणाचल में घुसने और ब्रह्मपुत्र बनने से पहले, नदी दक्षिण की तरफ बहुत घुमावदार तरीके से बेंड होती है. इसी को ग्रेट बेंड कहते हैं.

बातचीत से भी सुलझे हैं मुद्दे
1962 के युद्ध के बाद भारत-चीन ने बातचीत के जरिए भी कई मुद्दों को सुलझाया है. 1987 में समदोरांग चू रीजन विवाद, 2013 में डेपसांग विवाद, 2014 में चुमार और 2017 में डोकलाम विवाद को भारत-चीन ने बातचीत के जरिए ही सुलझाया है.

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