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हरियाणा के इस गांव में बेटियों के कारण मिलती है पहचान

हरियाणा का एक गांव ऐसा भी जहां परिवार वालों की पहचान उनकी बेटियों के नाम से होती है. इस गांव में करीब ढाई सौ परिवार हैं, जिनमें हर घर में बेटी है और परिवार के लोगों को भी अपने बेटियों पर नाज है.

डिजाइन फोटो
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Published : Oct 17, 2020, 8:56 PM IST

चंडीगढ़ : देश की राजधानी दिल्ली से करीब 80 किमी दूर स्थित है हरियाणा का जिला नूंह. जिसके माथे पर सबसे पिछड़ा होने का कलंक है. यहां विकास की रोशनी आजादी के इतने साल बाद भी नहीं पुहंची. लेकिन यही जिला पूरे देश की बेटियों को स्वाभिमान का संदेश दे रहा है.

नूंह जिले में एक गांव है किरूरी. जो बेटियों को लेकर प्रगतिशील सोच की मिसाल बना है. करीब 1200 लोगों की आबादी वाले इस गांव में लगभग 250 घर हैं. और हर घर में बेटी है. उसी बेटी के नाम से हर घर के बाहर नेम प्लेट लगी है.

वीडियो

कभी सेल्फी विद डॉटर अभियान से चर्चा में आये पूर्व सरपंच सुनील जगलान ने ये अभियान शुरू किया है. जिसे लाडो स्वाभिमान उत्सव नाम दिया गया है. सुनील जगलान का कहना है कि जब प्रधानमंत्री ने गांवों को लाल डोरा मुक्त कर लोगों को मालिकाना हक देते हुए स्वामित्व कार्ड बांटे तभी उनके मन में आया कि बेटियों को भी उनकी पहचान मिलनी चाहिए. क्योंकि जिस पिता की संपत्ति में समाज बेटियों का कोई अधिकार नहीं समझता अगर वही पिता अपने घर को बेटी के नाम से पहचान दे तो लोगों की सोच बदलेगी.

क्या कहती हैं किरूरी गांव की सपरपंच?

खास बात ये है कि किरूरी गांव की सरपंच भी महिला हैं. जिन्होंने गांव की पहले तस्वीर बदली और अब बेटियों की तकदीर बदलने में भूमिका निभा रही हैं. सरपंच अंजुम आरा का कहना है कि हमारे गांव की ये तस्वीर जब देश के सामने जाएगी तो लोग जान लेंगे कि यहां मां-बाप अपनी बेटियों को पढ़ाने और उनके भविष्य के लिए कितने सजग हैं. उनका मानना है कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से जो अलख प्रधानमंत्री ने जगाई थी, उसे उनका गांव किरूरी आगे बढ़ा रहा है.

खुश हैं किरूरी गांव की बेटियां

किरूरी गांव की बेटी मनीषा कहती हैं कि आज घर पर हमारे नाम की नेम प्लेट लगी है, जो हमें बहुत अच्छा लगा है. एक और बेटी रोशनी का कहना है कि गांव में स्वाभिमान उत्सव से हमारे माता-पिता को जितनी खुशी हुई है उससे कहीं ज्यादा हमें खुशी मिली है.

किरूरी गांव ने बेटियों से प्यार की इबारत लिखते हुए उस पुरुषवादी सोच पर चोट की है जो बेटियों को जन्म से ही पराया धन मानकर उन्हें सैद्धांतिक हिस्सेदारी देने से रोकती है. बेटियों को कोख में मारने के लिए बदनाम हरियाणा जैसे प्रदेश में भी नूंह जिला लिंगानुपात में सबसे अग्रणी जिलों में शुमार है. यहां 1000 लड़कों पर सबसे ज्यादा 921 बेटियां हैं. और अब यही जिला बेटियों को पढ़ाने, बढ़ाने और उनका स्वाभिमान जगाने की नई इबारत लिख रहा है. उम्मीद है कि किरूरी गांव की ये मुहिम नूंह के साथ-साथ देशभर की लाडो को स्वाभिमान उत्सव मनाने का संदेश देने में सफल होगी.

चंडीगढ़ : देश की राजधानी दिल्ली से करीब 80 किमी दूर स्थित है हरियाणा का जिला नूंह. जिसके माथे पर सबसे पिछड़ा होने का कलंक है. यहां विकास की रोशनी आजादी के इतने साल बाद भी नहीं पुहंची. लेकिन यही जिला पूरे देश की बेटियों को स्वाभिमान का संदेश दे रहा है.

नूंह जिले में एक गांव है किरूरी. जो बेटियों को लेकर प्रगतिशील सोच की मिसाल बना है. करीब 1200 लोगों की आबादी वाले इस गांव में लगभग 250 घर हैं. और हर घर में बेटी है. उसी बेटी के नाम से हर घर के बाहर नेम प्लेट लगी है.

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कभी सेल्फी विद डॉटर अभियान से चर्चा में आये पूर्व सरपंच सुनील जगलान ने ये अभियान शुरू किया है. जिसे लाडो स्वाभिमान उत्सव नाम दिया गया है. सुनील जगलान का कहना है कि जब प्रधानमंत्री ने गांवों को लाल डोरा मुक्त कर लोगों को मालिकाना हक देते हुए स्वामित्व कार्ड बांटे तभी उनके मन में आया कि बेटियों को भी उनकी पहचान मिलनी चाहिए. क्योंकि जिस पिता की संपत्ति में समाज बेटियों का कोई अधिकार नहीं समझता अगर वही पिता अपने घर को बेटी के नाम से पहचान दे तो लोगों की सोच बदलेगी.

क्या कहती हैं किरूरी गांव की सपरपंच?

खास बात ये है कि किरूरी गांव की सरपंच भी महिला हैं. जिन्होंने गांव की पहले तस्वीर बदली और अब बेटियों की तकदीर बदलने में भूमिका निभा रही हैं. सरपंच अंजुम आरा का कहना है कि हमारे गांव की ये तस्वीर जब देश के सामने जाएगी तो लोग जान लेंगे कि यहां मां-बाप अपनी बेटियों को पढ़ाने और उनके भविष्य के लिए कितने सजग हैं. उनका मानना है कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से जो अलख प्रधानमंत्री ने जगाई थी, उसे उनका गांव किरूरी आगे बढ़ा रहा है.

खुश हैं किरूरी गांव की बेटियां

किरूरी गांव की बेटी मनीषा कहती हैं कि आज घर पर हमारे नाम की नेम प्लेट लगी है, जो हमें बहुत अच्छा लगा है. एक और बेटी रोशनी का कहना है कि गांव में स्वाभिमान उत्सव से हमारे माता-पिता को जितनी खुशी हुई है उससे कहीं ज्यादा हमें खुशी मिली है.

किरूरी गांव ने बेटियों से प्यार की इबारत लिखते हुए उस पुरुषवादी सोच पर चोट की है जो बेटियों को जन्म से ही पराया धन मानकर उन्हें सैद्धांतिक हिस्सेदारी देने से रोकती है. बेटियों को कोख में मारने के लिए बदनाम हरियाणा जैसे प्रदेश में भी नूंह जिला लिंगानुपात में सबसे अग्रणी जिलों में शुमार है. यहां 1000 लड़कों पर सबसे ज्यादा 921 बेटियां हैं. और अब यही जिला बेटियों को पढ़ाने, बढ़ाने और उनका स्वाभिमान जगाने की नई इबारत लिख रहा है. उम्मीद है कि किरूरी गांव की ये मुहिम नूंह के साथ-साथ देशभर की लाडो को स्वाभिमान उत्सव मनाने का संदेश देने में सफल होगी.

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