नई दिल्ली : कानपुर के विकास दुबे एनकाउंटर मामले की स्वतंत्र जांच के लिए अधिवक्ता अनूप प्रकाश अवस्थी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिक दायर की है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ याचिका पर सुनवाई कर रही है.
याचिकाकर्ता अनूप अवस्थी ने अब सुप्रीम कोर्ट में हलफनाफा दाखिल कर जांच के लिए गठित एसआईटी पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने दावा किया है कि न्यायिक जांच आयोग के गठन, एसआईटी की नियुक्ति और विकास दुबे को बिना मजिस्ट्रेट की अनुमित के ट्रांजिट हिरासत में लेना अवैध है.
उनका कहना है कि न्यायिक जांच आयोग का गठन अवैध है, क्योंकि सरकार ने न विधानसभा की मंजूरी ली और न ही अध्यादेश पारित किया.
अवस्थी ने शशिकांत अग्रवाल की नियुक्ति का विरोध करते हुए कहा कि वह करीब 77 वर्ष के हैं, ऐसे पेचीदा मामले में जांच करने के लिए फिट नहीं हैं. उन्हें जज नहीं कहा जा सकता है क्योंकि उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट से विवादास्पद परिस्थितियों में इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद वह वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस कर रहे हैं.
एसआईटी पर सवाल उठाते हुए याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि एसआईटी में शामिल डीआईजी रविंद्र गौड़ (आईपीएस) 2007 में हुए एक फेक एनकाउंटर में आरोपी हैं. जिसके लिए सीबीआई ने उनके खिलाफ चार्जशीट करने की अनुमति मांगी थी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इजाजत नहीं दी थी. वर्तमान वह सेवारत हैं.
रविंद्र गौड़ पर कथित रूप से 30 जून 2007 में बरेली में मेडिसिन डीलर मुकुल गुप्ता की हत्या करने का आरोप है. मुकुल के माता-पिता की भी 2014 में हत्या कर दी गई थी. वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ रहे थे.
हलफनामे में कहा गया है कि कानपुर पुलिस की स्पेशल टीम में इस तरह की नियुक्ति प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है.
इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने विकास दुबे मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा कि पुलिस ने एनकाउंटर को लेकर शीर्ष कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पूरी तरह पालन किया था. उत्तर प्रदेश सरकार के इस जवाब में अनूप प्रकाश अवस्थी ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दायर किया.