भारत के जीवंत समाचार पत्र उद्योग को, जो रोजाना लाखों पाठकों तक अपनी पहुंच बनाता है, कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में हुए लॉकडाउन की वजह से गहरा झटका लगा है. लॉकडाउन के कारण समाचार पत्रों को विज्ञापन नहीं मिल रहे है, जिससे उनके राजस्व में गिरावट देखने को मिली है. राजस्व में कमी की वजह से बड़े समाचार पत्र घराने मजबूरन कर्मचारियों को नौकरी से निकाल रहे हैं और वेतन में कटौती कर रहे हैं.
भारत में प्रकाशित होने वाले अखबारों के बारे में रजिस्ट्रार की आखिरी रिपोर्ट (आरएनआई) के अनुसार, 31 मार्च 2018 को पंजीकृत प्रकाशनों की कुल संख्या 1,18,239 थी. इसमें 17,573 दैनिक समाचार पत्र और 1,00,666 आवधिक अखबार शामिल थे.
पिच मैडिसन एडवरटाइजिंग रिपोर्ट 2020 ने कहा कि प्रिंट विज्ञापन बाजार के 20 प्रतिशत बढ़कर 20,446 करोड़ रुपये के करीब आने की उम्मीद है.
हालात इतने खराब हैं कि हाल ही में लगभग 800 प्रकाशकों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (INS) की ओर से सरकार को भेजे गए प्रेषण में कहा गया है कि प्रिंट को पिछले दो महीनों में 4,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. साथ ही आने वाले महीनों में यह नुकसान करीब 12,000 से 15,000 करोड़ रुपये तक का हो सकता है.
भारतीय समाचार पत्र सोसायटी (INS) की मांग
आईएनएस ने औपचारिक रूप से सरकार से महत्वपूर्ण राहत उपायों के लिए अनुरोध किया है. इसमें प्रिंट को दो साल तक कर से छुट्टी, अखबारी कागज पर आयात शुल्क हटाने और अन्य उद्योगों को दी जा रही सभी राहतें प्रदान करना, सरकार द्वारा प्रायोजित विज्ञापन दरों में बढ़ोतरी और प्रिंट मीडिया पर समग्र बजट खर्च को कम करना आदि शामिल हैं. चूंकि अधिकतर युवा पाठक अपने लैपटॉप पर ई-पेपर और वेब पोर्टल्स के जरिए समाचार पढ़ते हैं, ऐसे में प्रिंट के लिए अच्छे दिन खत्म होते दिख रहे हैं.
सच कहें तो लॉकडाउन हटने के बाद मीडिया का विकास पुरानी शैली के समाचार पत्रों में नहीं, बल्कि डिजिटल समाचारों में निहित होगा. इससे अंग्रेजी समाचार पत्र बहुत तेजी से प्रभावित होंगे, हालांकि हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं पर इसका प्रभाव थोड़ा धीमा होगा.
इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (INS) ने सेक्टर की मदद के लिए प्रोत्साहन पैकेज की मांग की है, जिसमें अखबारी कागज पर 5% सीमा शुल्क हटाने और अखबार प्रतिष्ठानों के लिए दो साल की कर छुट्टी जैसे कदम शामिल हैं. आईएनस की इच्छा है कि केंद्र राज्य सरकारों को लंबित विज्ञापनों को निबटाने की सलाह दे.
विभिन्न उद्योग अनुमानों के अनुसार, विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) पर विभिन्न मीडिया कंपनियों का 1,500 करोड़ से 1,800 करोड़ रुपये का बकाया है. इसका एक बड़ा हिस्सा अकेले प्रिंट उद्योग का है, जो लगभग 800-900 करोड़ रुपये है. ऐसी राशि कई महीनों से बकाया है और इसे जल्द ही कभी भी साकार करने की बहुत कम संभावना है.
ट्विटर और फेसबुक पर 10 सबसे सक्रिय प्रिंट मीडिया आउटलेट की रैंकिंग
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इस वर्ष पिच मैडिसन की विज्ञापन रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय कंपनियों ने पिछले साल विज्ञापन पर लगभग नौ अरब डॉलर खर्च किए, जिनमें प्रिंट मीडिया पर लगभग 2.6 अरब डॉलर भी शामिल हैं.
भारतीय समाचार पत्र सोसायटी ने, जो लगभग 1,000 प्रकाशकों का प्रतिनिधित्व करती है, अनुमान लगाया है कि अगले छह से सात महीनों में उद्योग को दो अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है. इसने सरकारी विज्ञापन दरों में 50% की वृद्धि के माध्यम से संघीय समर्थन मांगा है.
2019 के आम चुनावों के दौरान सोशल मीडिया में प्रकाशित समाचार सामग्री
यह अध्ययन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (फेसबुक और ट्विटर) पर पारंपरिक और डिजिटल मीडिया समाचार और वेब पर चुनाव के दौरान 11 अप्रैल से 19 मई के बीच पाठकों द्वारा पढ़े गए सामाचार के डेटा पर आधारित है.
हमने चुनाव के दौरान 101 प्रमुख भारतीय समाचार माध्यमों के नमूने के साथ ऑनलाइन दर्शकों के साथ क्रॉस-प्लेटफॉर्म दर्शकों के जुड़ाव का विश्लेषण किया, जिसमें भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा की 543 सीटों के लिए पांच हजार से अधिक उम्मीदवारों ने जोर आजमाइश की. दुनिया में सबसे बड़े लोकतांत्रिक चुनाव में 90 करोड़ पात्र मतदाताओं ने मतदान में हिस्सा लिया.
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भारत में सोशल मीडिया का उपयोग
साल 2019 में भारतीय नागरिकों ने किसी भी अन्य देश के निवासियों की तुलना में अधिक एप्लिकेशन डाउनलोड किया. 2019 में भारतीय उपयोगकर्ताओं द्वारा 19 अरब से अधिक ऐप डाउनलोड किए, जिसके परिणामस्वरूप 2016 के मुताबले 2019 में डेटा की खपत में 195% की वृद्धि हुई. औसत भारतीय सोशल मीडिया उपयोगकर्ता प्रत्येक सप्ताह सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर 17 घंटे खर्च करता है, जो चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका में सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं से अधिक है.
भारतीय इंटरनेट उपयोगकर्ता सोशल मीडिया के शौकीन हैं. अनुमान है कि 2021 में भारत में लगभग 44.80 करोड़ सोशल नेटवर्क उपयोगकर्ता होंगे. 2019 से एक महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की गई, जहां इनकी संख्या 35.10 करोड़ पर आंकी गई है. फेसबुक देश में सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट है. 2019 तक भारत में लगभग 27 करोड़ फेसबुक उपयोगकर्ता थे. भारत में दुनिया के सबसे बड़े फेसबुक उपयोगकर्ता हैं.
इंटरनेट के उपयोग में आसानी के साथ, भारत में सक्रिय सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं की संख्या 2019 में 33 करोड़ थी और यह 2023 तक 44.80 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है.
भारत में 29 करोड़ सक्रिय सोशल मीडिया उपयोगकर्ता अपने मोबाइल उपकरणों के माध्यम से सामाजिक नेटवर्क का उपयोग करते हैं. भारत में सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं की औसत आयु 27.1 वर्ष है.
भारत में सोशल मीडिया के उपयोग के लिए मिलेनियल्स और जेन जेड मुख्य योगदानकर्ता हैं. सोशल मीडिया के 52.3% परिणाम मिलेनियल्स से आते हैं. सोशल मीडिया की 28.4% बातचीत जेन जेड से होती है और 15.1% 35-44 वर्ष की आयु के लोगों से होती है. इंटरनेट से जुड़े 97% भारतीय ऑनलाइन वीडियो देखते हैं.
फेसबुक और यूट्यूब भारत में सबसे लोकप्रिय सोशल मीडिया नेटवर्क हैं, अमेजन और फ्लिपकार्ट सबसे लोकप्रिय ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म हैं और टिक-टॉक 2019 का सबसे अधिक डाउनलोड किया जाने वाला एप है.
भारतीय बाजार में वाट्सएप के आने के बाद से डिजिटल मार्केट में एप उपयोग को बढ़ावा मिला. ग्रामीण क्षेत्रों में वाट्सएप की डाउनलोडिंग करीब दो गुना बढ़ी है. डेटा से पता चलता है कि मैसेजिंग सेवा की पहुंच शहरी क्षेत्रों के अलावा भी व्यापक स्तर पर फैली है. अन्य लोकप्रिय एप में टिक-कॉक और इंस्टाग्राम शामिल हैं.
सोशल वीडियो एप टिक-टॉक भारत में बहुत लोकप्रिय हुआ. यह एप स्टोर के साथ-साथ गूगल प्ले पर दुनियाभर में 1.5 अरब बार डाउनलोड किया जा चुका है. इसे भारत में 46.68 करोड़ बार डाउनलोड किया गया है, जो पूरी दुनिया में इस एप पर डाउनलोड का 31 प्रतिशत है.
सोशल मीडिया के उपयोग में बढ़ोतरी फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर औसत समय 60% बढ़ा है.
डेटा भी इसे इंगित करता है
डेटा इंटेलिजेंस फर्म कालागाटो की हालिया रिपोर्ट बताती है फरवरी 5 और 29 मार्च, 2020 के बीच फेसबुक और इंस्टाग्राम पर बिताए गए औसत समय में 62% की वृद्धि हुई जबकि टिक टॉक में 44% की वृद्धि देखी गई. लिंक्डइन में 27% की वृद्धि हुई और फरवरी में ट्विटर पर बिताए समय में 34% की वृद्धि हुई.
रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन से पहले 5 फरवरी को उपयोगकर्ताओं ने औसतन फेसबुक पर 41.4 मिनट बिताए, लेकिन 29 मार्च को लॉकडाउन के बाद, वे मंच पर 66.9 मिनट तक सक्रिय थे. टिक-टॉक पर समान तिथियों के लिए बिताया जाने वाला औसत समय 39.5 मिनट से 56.9 मिनट और इंस्टाग्राम पर 21.8 मिनट से 35.4 मिनट तक चला गया.
ऑस्ट्रेलिया ने गूगल, फेसबुक को समाचार मीडिया कंपनियों के साथ लाभ साझा करने के लिए कहा है.
कुछ विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि वैश्विक स्तर पर समाचार पत्र कर्मचारियों की संख्या 30,000 से अधिक है. गूगल और फेसबुक मीडिया कंपनियों द्वारा एकत्रित और संसाधित समाचार प्रदर्शित करते हैं और अरबों कमाते हैं. वे समाचारों को सोर्स करने या इसे प्रस्तुत करने पर कुछ भी खर्च नहीं करते हैं.
यह स्थिति दुनियाभर में सरकारों के तत्काल हस्तक्षेप की मांग करती है. अच्छी खबर यह है कि कुछ देशों ने इस प्रक्रिया को शुरू कर दिया है. फ्रांस ने इसमें बढ़त बना ली, उसके बाद स्पेन का स्थान रहा. अब ऑस्ट्रेलिया ने तकनीकी दिग्गज गूगल और सोशल-मीडिया मोगुल फेसबुक को आदेश दिया है कि वह मीडिया घरानों की समाचार सामग्री का भुगतान करे, जिनका राजस्व कोरोना वायरस से लॉकडाउन के कारण बंद हो गया है.
भारत ने इस मामले में अब तक कोई कदम नहीं उठाया है, लेकिन वह इस असंतुलन के लिए मूक दर्शक नहीं रह सकता. यहां तक कि भारत के समाचार पत्र संगठन भी राजस्व दबाव में हैं. लोकतंत्र में समाचार मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, उन्हें लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है.