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बिहार : सीतामढ़ी से लगने वाली भारत-नेपाल सीमा पर तनाव - border dispute in sitamarhi

भारत-नेपाल के बीच इन दिनों सीमाओं को लेकर खींचतान जारी है. जानकारी के मुताबिक सीमांकन के लिए लगाए गए पिलर गायब हो रहे हैं. साथ ही नो मैंस लैंड पर भी अतिक्रमण हो रहा है.

Indo nepal border dispute
भारत नेपाल बार्डर
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Published : Jun 8, 2020, 7:30 PM IST

पटना : बीहार के सीतामढ़ी में भारत-नेपाल सीमा विवाद एक बार फिर से बढ़ता हुआ दिख रहा है. यह विवाद सड़क को लेकर शुरू हुआ है. उत्तराखंड-नेपाल सीमा के पास घटियाबगढ़ से लिपुलेख दर्रा के बीच बन रही 80 किलोमीटर लंबी सड़क को लेकर दोनों देशों के बीच गतिरोध है. इसका सीधा असर सीतामढ़ी से लगी भारत-नेपाल सीमा पर भी दिखने लगा है.

जानकारों के मुताबिक साल 1950 की संधि के दौरान दोनों देशों के सीमांकन के लिए 118 किलोमीटर लंबी सीमा पर 374 पिलर लगाए गए थे. मौजूदा समय में इनमें से कई पिलर गायब कर दिए गए हैं. वहीं, नो मैंस लैंड पर नेपाली नागरिक अतिक्रमण कर रहे हैं. इस अतिक्रमण की आड़ में बस्ती बसाने की साजिश चल रही है.

ईटीवी भारती की रिपोर्ट

नेपाली नागरिक आरोपों को बता रहे निराधार
मामले की सच्चाई जानने के लिए ईटीवी भारत संवाददाता ग्राउंड जीरो पर पहुंचे. इस दौरान उन्होंने सीमा पर तैनात जवानों और कई नेपाली नागरिकों से बातचीत की. मेजरगंज थाना क्षेत्र के माधोपुर बॉर्डर पिलर नंबर-334 के पास बसे गांव के नेपाली नागरिकों का कहना है कि यह आरोप निराधार हैं. कहीं कोई पिलर गायब नहीं किया गया है. साथ ही नो मैंस लैंड पर भी कोई अतिक्रमण नहीं किया जा रहा. सीमा पर एसएसबी और एपीएफ के जवान 24 घंटे निगरानी कर रहे हैं.

जवान कर रहे पिलर क्षतिग्रस्त होने का दावा
वहीं, भारत-नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी के पदाधिकारी का कहना है कि जिले के मेजरगंज, सोनबरसा, बैरगनिया, भिट्ठा मोड़ और परिहार प्रखंड के पास नेपाल सीमा लगी हुई है जहां सीमांकन के लिए पिलर लगे हैं. इसमें कई पिलर क्षतिग्रस्त हो गए हैं. उस जगह पर भारत और नेपाल सरकार के संयुक्त प्रयास से नए पिलर लगाए जा रहे हैं.

नहीं है कोई विवाद- एसएसबी
इस सब के बीच एसएसबी का कहना है कि नो मैंस लैंड का नेपाली नागरिक मवेशियों को बांधने, चारा और जलावन रखने के लिए उपयोग कर रहे हैं, जिसे बहुत जल्द खाली करा लिया जाएगा. कुछ पिलर प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़ और भूकंप के कारण क्षतिग्रस्त हुए हैं. उन जगहों पर नए पिलर लगाए जाने का काम शुरू कर दिया गया है. सीमा पर किसी प्रकार का कोई विवाद और साजिश नहीं है.

अतिक्रमण के लिए कौन जिम्मेदार?
सूत्रों के मुताबिक नो मैंस लैंड पर जो अतिक्रमण किया गया है या हो रहा है उसके लिए एपीएफ और एसएसबी के जवान जिम्मेदार हैं. बता दें कि सीतामढ़ी जिले से 118 किलोमीटर की सीमा लगी हुई है. इसकी सुरक्षा एसएसबी की 51वीं और 20वीं बटालियन के जिम्मे है. इसमें 51वीं बटालियन 64 किलोमीटर क्षेत्र पर पहरेदारी कर रही है. वहीं, 20वीं बटालियन 54 किलोमीटर की सीमा सुरक्षा में लगी है.

पढ़ें-चीन ने कहा- दोनों देशों में बनी सहमति को लागू करने की जरूरत

भारत-नेपाल दोनों के लिए चिंतनीय
एसएसबी के एक पदाधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि 1950 की संधि के अनुसार नो मैंस लैंड के 30 गज के दायरे में किसी को बसने की इजाजत नहीं है. इसके बावजूद नो मैंस लैंड पर अतिक्रमण कर लिया गया है, जो दोनों देशों के लिए चिंता का विषय है.

एसएसबी बटालियन के क्षेत्र में कुल 374 पिलर हैं. जहां से कई एक पिलर गायब हैं. जिले के मेजरगंज थाना क्षेत्र के माधोपुर कैंप क्षेत्र में कुल 105 पिलर लगाए गए हैं. उसमें पांच मुख्य, 94 सहायक, चार माइनर और एक टी टाईप पिलर शामिल है. वहीं, सुरसंड सीमा क्षेत्र में कुल 155 पिलर लगाए गए हैं. शेष अन्य पिलर दूसरे प्रखंड सीमा क्षेत्रों में लगाए गए हैं.

पटना : बीहार के सीतामढ़ी में भारत-नेपाल सीमा विवाद एक बार फिर से बढ़ता हुआ दिख रहा है. यह विवाद सड़क को लेकर शुरू हुआ है. उत्तराखंड-नेपाल सीमा के पास घटियाबगढ़ से लिपुलेख दर्रा के बीच बन रही 80 किलोमीटर लंबी सड़क को लेकर दोनों देशों के बीच गतिरोध है. इसका सीधा असर सीतामढ़ी से लगी भारत-नेपाल सीमा पर भी दिखने लगा है.

जानकारों के मुताबिक साल 1950 की संधि के दौरान दोनों देशों के सीमांकन के लिए 118 किलोमीटर लंबी सीमा पर 374 पिलर लगाए गए थे. मौजूदा समय में इनमें से कई पिलर गायब कर दिए गए हैं. वहीं, नो मैंस लैंड पर नेपाली नागरिक अतिक्रमण कर रहे हैं. इस अतिक्रमण की आड़ में बस्ती बसाने की साजिश चल रही है.

ईटीवी भारती की रिपोर्ट

नेपाली नागरिक आरोपों को बता रहे निराधार
मामले की सच्चाई जानने के लिए ईटीवी भारत संवाददाता ग्राउंड जीरो पर पहुंचे. इस दौरान उन्होंने सीमा पर तैनात जवानों और कई नेपाली नागरिकों से बातचीत की. मेजरगंज थाना क्षेत्र के माधोपुर बॉर्डर पिलर नंबर-334 के पास बसे गांव के नेपाली नागरिकों का कहना है कि यह आरोप निराधार हैं. कहीं कोई पिलर गायब नहीं किया गया है. साथ ही नो मैंस लैंड पर भी कोई अतिक्रमण नहीं किया जा रहा. सीमा पर एसएसबी और एपीएफ के जवान 24 घंटे निगरानी कर रहे हैं.

जवान कर रहे पिलर क्षतिग्रस्त होने का दावा
वहीं, भारत-नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी के पदाधिकारी का कहना है कि जिले के मेजरगंज, सोनबरसा, बैरगनिया, भिट्ठा मोड़ और परिहार प्रखंड के पास नेपाल सीमा लगी हुई है जहां सीमांकन के लिए पिलर लगे हैं. इसमें कई पिलर क्षतिग्रस्त हो गए हैं. उस जगह पर भारत और नेपाल सरकार के संयुक्त प्रयास से नए पिलर लगाए जा रहे हैं.

नहीं है कोई विवाद- एसएसबी
इस सब के बीच एसएसबी का कहना है कि नो मैंस लैंड का नेपाली नागरिक मवेशियों को बांधने, चारा और जलावन रखने के लिए उपयोग कर रहे हैं, जिसे बहुत जल्द खाली करा लिया जाएगा. कुछ पिलर प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़ और भूकंप के कारण क्षतिग्रस्त हुए हैं. उन जगहों पर नए पिलर लगाए जाने का काम शुरू कर दिया गया है. सीमा पर किसी प्रकार का कोई विवाद और साजिश नहीं है.

अतिक्रमण के लिए कौन जिम्मेदार?
सूत्रों के मुताबिक नो मैंस लैंड पर जो अतिक्रमण किया गया है या हो रहा है उसके लिए एपीएफ और एसएसबी के जवान जिम्मेदार हैं. बता दें कि सीतामढ़ी जिले से 118 किलोमीटर की सीमा लगी हुई है. इसकी सुरक्षा एसएसबी की 51वीं और 20वीं बटालियन के जिम्मे है. इसमें 51वीं बटालियन 64 किलोमीटर क्षेत्र पर पहरेदारी कर रही है. वहीं, 20वीं बटालियन 54 किलोमीटर की सीमा सुरक्षा में लगी है.

पढ़ें-चीन ने कहा- दोनों देशों में बनी सहमति को लागू करने की जरूरत

भारत-नेपाल दोनों के लिए चिंतनीय
एसएसबी के एक पदाधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि 1950 की संधि के अनुसार नो मैंस लैंड के 30 गज के दायरे में किसी को बसने की इजाजत नहीं है. इसके बावजूद नो मैंस लैंड पर अतिक्रमण कर लिया गया है, जो दोनों देशों के लिए चिंता का विषय है.

एसएसबी बटालियन के क्षेत्र में कुल 374 पिलर हैं. जहां से कई एक पिलर गायब हैं. जिले के मेजरगंज थाना क्षेत्र के माधोपुर कैंप क्षेत्र में कुल 105 पिलर लगाए गए हैं. उसमें पांच मुख्य, 94 सहायक, चार माइनर और एक टी टाईप पिलर शामिल है. वहीं, सुरसंड सीमा क्षेत्र में कुल 155 पिलर लगाए गए हैं. शेष अन्य पिलर दूसरे प्रखंड सीमा क्षेत्रों में लगाए गए हैं.

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