रायपुर: जैसे नदी के रास्ते में बड़े-बड़े पहाड़ क्यों न आ जाएं, पर वो बिना हार माने अपने पथ पर अग्रसर रहती है. ठीक उसी तरह छत्तीसगढ़ की सरिता ने भी तमाम मुसीबतें झेली, लेकिन वो अपने रास्ते से नहीं डिगी. हालांकि, नक्सल प्रभावित इलाके दंतेवाड़ा की रहने वाली सरिता होनहार होने के बावजूद भी हालातों के आगे मजबूर है.
पिता की जान बचाने के लिए नक्सलियों से भिड़ी
27 अप्रैल, 2018 ये वो मनहूस तारीख थी, जिस दिन इस होनहार के सिर से पिता का साया उठ गया था. छत्तीसगढ़ में आतंक का पर्याय बन चुके नक्सलियों ने घर में घुसकर सरिता के पिता की बेरहमी से जान ले ली. जिस वक्त नक्सलियों ने हमला किया उस दौरान भी सरिता ने बहादुरी दिखाते हुए पिता की जान बचाने के लिए नक्सलियों से संघर्ष किया, लेकिन वो सफल नहीं हो पाई.
दो खेलों में किया प्रदेश का प्रधिनिधित्व
सरिता ने एक नहीं बल्कि दो-दो खेलों में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया. सरिता बताती है कि है कि 'पिता चाहते थे दोनों बेटियां पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी देश और दुनिया में अपना नाम करें.
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कबड्डी और फुटबॉल खेलती है सरिता
माता रुक्मणी आश्रम जगदलपुर में पढ़ाई के दौरान कबड्डी और फुटबॉल के खेल में राष्ट्रीय स्तर की टीम में शामिल हुई. साइंस सब्जेक्ट से 12 वीं पास करने के बाद उसे लगा था कि वो पिता का सपना जरूर पूरा करेगी, लेकिन नक्सलियों ने सबकुछ बर्बाद कर दिया. दो वक्त की रोटी, छोटी बहन की पढ़ाई के साथ-साथ बूढ़ी मां का ख्याल रखने जद्दोजहद ने सरिता के सपनों ग्रहण लगा दिया.
नहीं मिली सरकार से कोई मदद
सरकार की ओर से मदद नहीं मिलने के वजह से आज सरिता खेत में मजदूरी करने को मजबूर है. पिता की हत्या को एक साल बीत गए. बावजूद इसके सरिता के परिवार को अंतिम संस्कार के लिए दो हजार रुपये की मदद के सिवाय, प्रशासन की ओर से फूटी कौड़ी तक नहीं मिली.
सरिता को पढ़ाने की होगी व्यवस्था: कलेक्टर
वहीं मामले में कलेक्टर का कहना है कि नक्सल हिंसा पीड़ित परिवार को पुनर्वास नीति के तहत नौकरी और सहायता राशि मिलने का प्रावधान है. पीड़ित पक्ष का आवेदन नहीं आया है. इस मामले को देखा जाएगा और लड़की की पढ़ाई के लिए भी व्यवस्था करवाई जाएगी.