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वीर चक्र कौशल यादव : गोलियां झेलकर मारे थे पांच पाकिस्तानी, जुलु टॉप पर फहराया था तिरंगा - कारगिल विजय दिवस

छत्तीसगढ़ का बेटा...जिसके साहस और शौर्य ने जंग के मैदान में दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए. जिसकी हिम्मत के आगे न सिर्फ शत्रुओं की गोलियां हार गईं, बल्कि जिसके बल ने तिरंगा न झुकने दिया. कारगिल विजय दिवस पर भिलाई के कौशल यादव की शौर्य गाथा ईटीवी भारत आपको सुना रहा है, जिसने जुलु टॉप पर झंडा फहराया था और जिसे मरणोपरांत मिला था वीर चक्र. पढ़ें पूरी खबर...

martyr kaushal yadav on kargil vijay diwas
छत्तीसगढ़ महतारी का बेटा
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Published : Jul 25, 2020, 10:58 PM IST

दुर्ग : सिर कटा सकते हैं लेकिन सिर झुका सकते नहीं...यह पंक्तियां सटीक बैठती हैं छत्तीसगढ़ महतारी के उस बेटे पर जिसने भारत माता की आन-बान और शान के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. भारत-पाकिस्तान के बीच साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध में देश के कई वीरों सपूतों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान कर दिया. इन्हीं में से एक थे भिलाई के रहने वाले वीर चक्र से सम्मानित शहीद कौशल यादव. हिन्दुस्तान का शीष न झुकने पाए, इसके लिए कौशल अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे. ईटीवी भारत आपको छत्तीसगढ़ के पराक्रम और शौर्य से भरे उस वीर की जयगाथा सुना रहा है, जिसके लहू का एक-एक कतरा 'भारत माता की जय' कहता रहा.

शहीद कौशल यादव को नमन

कारगिल युद्ध में शहीद हुए कौशल यादव का जन्म चार अक्टूबर 1969 को भिलाई में हुआ था. उनके पिता का नाम रामनाथ यादव और मां का नाम धनेश्वरी देवी है. कौशल को बचपन से घरवाले लाला कहकर पुकारते थे, किसे पता था कि यादव परिवार के घर का लाला माटी का लाल साबित होगा और वीर चक्र से सम्मानित होगा.

Shaheed Kaushal Yadav Nagar
शहीद कौशल यादव नगर

पढ़ाई से ज्यादा खेल में लगता था कौशल का मन
शहीद कौशल की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय BSP स्कूल (भिलाई) में पूरी हुई. कौशल की रुचि पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा नहीं थी, लेकिन खेलकूद में उनका बहुत मन लगता था. माता-पिता जब उन्हें पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देने के लिए कहा करते थे, तो लाला का जवाब होता था, 'जब सेना में जाऊंगा तब खूब खेलूंगा.' स्कूली जीवन में वे फुटबॉल, बॉक्सिंग और अच्छे एथलीट थे.

बचपन से ही था फौज में जाने का सपना
जब कौशल यादव भिलाई के कल्याण कॉलेज में बीएससी के प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे, तभी उनका चयन भारतीय सेना में हो गया. खबर की जानकारी मिलते ही लाला की खुशी का ठिकाना नहीं था. बचपन से ही फौज में जाने की उनकी बड़ी इच्छा को देखते हुए परिजनों ने उन्हें कभी रोकने की कोशिश भी नहीं की.

Shaheed Kaushal Yadav Memorial
शहीद कौशल यादव स्मारक

बचपन से ही संयुक्त परिवार में पले-बढ़े कौशल यादव छुट्टियों में घर आते थे. घर आने के बाद वे ज्यादातर अपना समय अपने जुड़वा भतीजों के साथ खेलने और घूमने में ही बिताते थे. उन्हें बच्चों से बेहद स्नेह था और बच्चों को उनसे.

जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में पदस्थ थे कौशल
साल 1989 से सेना की नौ पैरा यूनिट (बी ग्रुप) स्पेशल सिक्योरिटी आर्मी में वह अपनी सेवा देते रहे. अपनी सेवा की पूरी अवधि में वे जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में पदस्थ रहे. 26 जनवरी 1998 को कश्मीर के विशेष अभियान में उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए सेनाध्यक्ष ने उन्हें पुरस्कृत भी किया था.

पांच पाकिस्तानी सैनिकों पर दागी थी गोलियां
साल 1999 में कारगिल की लड़ाई में नेतृत्व कर रहे कौशल यादव और उनके साथियों को जुलु टॉप को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वह पूरे जोश, उत्साह और दृढ़ संकल्प के साथ चढ़ाई वाले दुर्गम पहाड़ी पर विपरीत परिस्थितियों के बावजूद लगातार चढ़ते गए.

Shaheed Kaushals elder brother
शहीद कौशल के बड़े भाई

वीर चक्र से सम्मानित हैं शहीद कौशल
25 जुलाई 1999 को शत्रु सेना ने लगातार ऊपर से गोलीबारी की, जिसके बावजूद कौशल यादव नहीं रुके. कौशल ने पांच पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. गोलियों से बुरी तरह शरीर छलनी होने के बाद भी कौशल ने हिम्मत नहीं हारी और जुलु टॉप को पाकिस्तानी कब्जे से मुक्त कराया. कौशल ने जुलु टॉप पर विजय पताका के रूप में भारत का तिरंगा फहराया. देश की शान में लड़ने वाले योद्धा कौशल मां भारती का झंडा फहराकर, भारतीय सीमा की रक्षा करते हुए शहीद हो गए. देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले कौशल यादव को उनके अदम्य साहस, शौर्य और पराक्रम के लिए भारत सरकार ने मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया. उनकी शहादत लोगों को हमेशा प्ररेणा देती रहेगी.

छत्तीसगढ़ में शहीद कौशल यादव पुरस्कार की स्थापना
छत्तीसगढ़ खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने शहीद कौशल की स्मृति में जूनियर खिलाड़ियों के लिए राज्य स्तरीय शहीद कौशल यादव पुरस्कार की स्थापना की. कौशल भिलाई के हुडको सेक्टर के रहने वाले थे. जिस कॉलोनी में वह रहते थे, उसका नाम बदलकर शहीद कौशल यादव कर दिया गया. हर साल 25 जुलाई को हुडको के स्मारक स्थल में शहीद कौशल यादव को श्रद्धांजलि दी जाती है. जहां आम नागरिकों के साथ ही जनप्रतिनिधि और जिला प्रशासन के लोग श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं.

-martyr kaushal yadav on kargil vijay diwas who belong
शहीद कौशल को मिला सम्मान

पढ़ें - कारगिल विजय दिवसः जानिए शौर्य की कहानी तोपची प्रेमचंद की जुबानी

बचपन में 'फौजी' सीरियल देखकर सेना में जाने का बनाया था मन
शहीद कौशल यादव के बड़े भाई राम बचन यादव ने बताया कि कौशल यादव स्कूल के समय से ही खेलने-कूदने में रुचि रखते थे. कौशल डीडी नेशनल चैनल में फौजी सीरियल देखा करते थे, जिसे देखकर वे कहते थे कि वह सेना में जाएंगे और देश की सेवा करेंगे.

बड़े भाई ने बताया कि तीन जून 1989 को पैराशूट रेजीमेंट में भर्ती हुए कौशल शुरू से ही उधमपुर में ही पदस्थ थे. उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि 26 जुलाई को ऑपरेशन विजय दिवस मनाया जाएगा, लेकिन पाकिस्तान के कब्जे से जो पोस्ट छूट गए थे, उन्हें मुक्त कराने के लिए कौशल के साथ ही उनके कई साथियों को इसकी जिम्मेदारी दे दी गई. 25 जुलाई की रात जुलु टॉप सहित दूसरे पोस्ट खाली कराने का दायित्व मिलने के बाद कौशल मिशन में निकल पड़े, जहां गोलीबारी में कौशल यादव शहीद हो गए.

'शहीद कौशल के परिवार के नाम से जाना जाता है हमारा परिवार'
कौशल के भतीजे अभिषेक यादव ने बताया कि उनके चाचा जब शहीद हुए तब वे छोटे थे. वह कहते हैं कि आज सभी लोग उनके परिवार को शहीद कौशल यादव के परिवार के नाम से जानते हैं. ऑपरेशन विजय में चाचा कौशल यादव लीड कर रहे थे. माइनस 15 डिग्री तापमान में वह जैसे ही ऊपर पहुंचे, तो दूसरे साइड से गोलीबारी हुई. कठीन हालात में भी कौशल ने पाकिस्तानियों को मार गिराया और वे खुद जख्मी हो गए. भतीजे अभिषेक यादव ने बताया कि कारगिल में द्रास में एक मेमोरियल बना हुआ है, जहां कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों की याद में स्मारक बनाया गया है. जो भी परिचित वहां जाता है और आकर चाचा का नाम बताता है, तो बेहद खुशी होती है.

शहीद कौशल को याद कर भावुक हुआ दोस्त
शहीद कौशल यादव के बचपन के दोस्त उज्ज्वल दत्त ने बताया कि कौशल को बचपन में लाला कहकर पुकारते थे. दोस्त ने बताया कि कौशल शुरुआत से ही बहादुर थे. उनकी एक्सरसाइज बेहद अलग होती थी. कौशल कमांडो ट्रेनिंग में थे और वे हमेश कहते थे कि उन्हें विशेष ट्रेनिंग में रखा जाता है. उज्जवल ने बताया कि कौशल जब भी भिलाई आते थे, वे उनके घर जरूर जाते थे. वे परिवार की तरह थे.

उज्जवल ने बताया कि कौशल उनसे अक्सर सेना में होने वाली गतिविधियों के बारे में बातें किया करते थे. कौशल के दोस्त बताते हैं कि सेना की ट्रेनिंग का हर किस्सा वे उनसे साझा किया करते थे.

पढ़ें - कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जांबाजों ने दी थी शहादत

हंसमुख प्रवृत्ति के थे कौशल
हमेशा हंसते रहने वाले कौशल की छवि मस्तमौला युवा की थी. बॉर्डर से घर आते, तो बच्चे बन जाते और जमकर मस्ती करते. कौशल कहते थे कि उनके मरने के बाद लोगों को पता चलेगा कि वे इतना हंसते क्यों थे. ये बताते-बताते उनका दोस्त भावुक हो गया और कहा कि उसे शहीद होना था इसलिए हंसता-मुस्कुराता चला गया.

दोस्त ने एक और बात साझा की कि सेना में गुप्त कामों के नियम के मुताबिक कौशल को बड़ी-बड़ी दाढ़ी और लंबे-लंबे बाल रखने पड़ते थे. उन्हें वैसा ही लुक रखना पड़ता था, जिससे दुश्मनों की नजर में न आएं. ये उनकी ट्रेनिंग का एक हिस्सा था.

इस कारगिल विजय दिवस पर कौशल यादव को ईटीवी भारत की श्रद्धांजलि.

दुर्ग : सिर कटा सकते हैं लेकिन सिर झुका सकते नहीं...यह पंक्तियां सटीक बैठती हैं छत्तीसगढ़ महतारी के उस बेटे पर जिसने भारत माता की आन-बान और शान के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. भारत-पाकिस्तान के बीच साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध में देश के कई वीरों सपूतों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान कर दिया. इन्हीं में से एक थे भिलाई के रहने वाले वीर चक्र से सम्मानित शहीद कौशल यादव. हिन्दुस्तान का शीष न झुकने पाए, इसके लिए कौशल अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे. ईटीवी भारत आपको छत्तीसगढ़ के पराक्रम और शौर्य से भरे उस वीर की जयगाथा सुना रहा है, जिसके लहू का एक-एक कतरा 'भारत माता की जय' कहता रहा.

शहीद कौशल यादव को नमन

कारगिल युद्ध में शहीद हुए कौशल यादव का जन्म चार अक्टूबर 1969 को भिलाई में हुआ था. उनके पिता का नाम रामनाथ यादव और मां का नाम धनेश्वरी देवी है. कौशल को बचपन से घरवाले लाला कहकर पुकारते थे, किसे पता था कि यादव परिवार के घर का लाला माटी का लाल साबित होगा और वीर चक्र से सम्मानित होगा.

Shaheed Kaushal Yadav Nagar
शहीद कौशल यादव नगर

पढ़ाई से ज्यादा खेल में लगता था कौशल का मन
शहीद कौशल की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय BSP स्कूल (भिलाई) में पूरी हुई. कौशल की रुचि पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा नहीं थी, लेकिन खेलकूद में उनका बहुत मन लगता था. माता-पिता जब उन्हें पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देने के लिए कहा करते थे, तो लाला का जवाब होता था, 'जब सेना में जाऊंगा तब खूब खेलूंगा.' स्कूली जीवन में वे फुटबॉल, बॉक्सिंग और अच्छे एथलीट थे.

बचपन से ही था फौज में जाने का सपना
जब कौशल यादव भिलाई के कल्याण कॉलेज में बीएससी के प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे, तभी उनका चयन भारतीय सेना में हो गया. खबर की जानकारी मिलते ही लाला की खुशी का ठिकाना नहीं था. बचपन से ही फौज में जाने की उनकी बड़ी इच्छा को देखते हुए परिजनों ने उन्हें कभी रोकने की कोशिश भी नहीं की.

Shaheed Kaushal Yadav Memorial
शहीद कौशल यादव स्मारक

बचपन से ही संयुक्त परिवार में पले-बढ़े कौशल यादव छुट्टियों में घर आते थे. घर आने के बाद वे ज्यादातर अपना समय अपने जुड़वा भतीजों के साथ खेलने और घूमने में ही बिताते थे. उन्हें बच्चों से बेहद स्नेह था और बच्चों को उनसे.

जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में पदस्थ थे कौशल
साल 1989 से सेना की नौ पैरा यूनिट (बी ग्रुप) स्पेशल सिक्योरिटी आर्मी में वह अपनी सेवा देते रहे. अपनी सेवा की पूरी अवधि में वे जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में पदस्थ रहे. 26 जनवरी 1998 को कश्मीर के विशेष अभियान में उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए सेनाध्यक्ष ने उन्हें पुरस्कृत भी किया था.

पांच पाकिस्तानी सैनिकों पर दागी थी गोलियां
साल 1999 में कारगिल की लड़ाई में नेतृत्व कर रहे कौशल यादव और उनके साथियों को जुलु टॉप को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वह पूरे जोश, उत्साह और दृढ़ संकल्प के साथ चढ़ाई वाले दुर्गम पहाड़ी पर विपरीत परिस्थितियों के बावजूद लगातार चढ़ते गए.

Shaheed Kaushals elder brother
शहीद कौशल के बड़े भाई

वीर चक्र से सम्मानित हैं शहीद कौशल
25 जुलाई 1999 को शत्रु सेना ने लगातार ऊपर से गोलीबारी की, जिसके बावजूद कौशल यादव नहीं रुके. कौशल ने पांच पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. गोलियों से बुरी तरह शरीर छलनी होने के बाद भी कौशल ने हिम्मत नहीं हारी और जुलु टॉप को पाकिस्तानी कब्जे से मुक्त कराया. कौशल ने जुलु टॉप पर विजय पताका के रूप में भारत का तिरंगा फहराया. देश की शान में लड़ने वाले योद्धा कौशल मां भारती का झंडा फहराकर, भारतीय सीमा की रक्षा करते हुए शहीद हो गए. देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले कौशल यादव को उनके अदम्य साहस, शौर्य और पराक्रम के लिए भारत सरकार ने मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया. उनकी शहादत लोगों को हमेशा प्ररेणा देती रहेगी.

छत्तीसगढ़ में शहीद कौशल यादव पुरस्कार की स्थापना
छत्तीसगढ़ खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने शहीद कौशल की स्मृति में जूनियर खिलाड़ियों के लिए राज्य स्तरीय शहीद कौशल यादव पुरस्कार की स्थापना की. कौशल भिलाई के हुडको सेक्टर के रहने वाले थे. जिस कॉलोनी में वह रहते थे, उसका नाम बदलकर शहीद कौशल यादव कर दिया गया. हर साल 25 जुलाई को हुडको के स्मारक स्थल में शहीद कौशल यादव को श्रद्धांजलि दी जाती है. जहां आम नागरिकों के साथ ही जनप्रतिनिधि और जिला प्रशासन के लोग श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं.

-martyr kaushal yadav on kargil vijay diwas who belong
शहीद कौशल को मिला सम्मान

पढ़ें - कारगिल विजय दिवसः जानिए शौर्य की कहानी तोपची प्रेमचंद की जुबानी

बचपन में 'फौजी' सीरियल देखकर सेना में जाने का बनाया था मन
शहीद कौशल यादव के बड़े भाई राम बचन यादव ने बताया कि कौशल यादव स्कूल के समय से ही खेलने-कूदने में रुचि रखते थे. कौशल डीडी नेशनल चैनल में फौजी सीरियल देखा करते थे, जिसे देखकर वे कहते थे कि वह सेना में जाएंगे और देश की सेवा करेंगे.

बड़े भाई ने बताया कि तीन जून 1989 को पैराशूट रेजीमेंट में भर्ती हुए कौशल शुरू से ही उधमपुर में ही पदस्थ थे. उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि 26 जुलाई को ऑपरेशन विजय दिवस मनाया जाएगा, लेकिन पाकिस्तान के कब्जे से जो पोस्ट छूट गए थे, उन्हें मुक्त कराने के लिए कौशल के साथ ही उनके कई साथियों को इसकी जिम्मेदारी दे दी गई. 25 जुलाई की रात जुलु टॉप सहित दूसरे पोस्ट खाली कराने का दायित्व मिलने के बाद कौशल मिशन में निकल पड़े, जहां गोलीबारी में कौशल यादव शहीद हो गए.

'शहीद कौशल के परिवार के नाम से जाना जाता है हमारा परिवार'
कौशल के भतीजे अभिषेक यादव ने बताया कि उनके चाचा जब शहीद हुए तब वे छोटे थे. वह कहते हैं कि आज सभी लोग उनके परिवार को शहीद कौशल यादव के परिवार के नाम से जानते हैं. ऑपरेशन विजय में चाचा कौशल यादव लीड कर रहे थे. माइनस 15 डिग्री तापमान में वह जैसे ही ऊपर पहुंचे, तो दूसरे साइड से गोलीबारी हुई. कठीन हालात में भी कौशल ने पाकिस्तानियों को मार गिराया और वे खुद जख्मी हो गए. भतीजे अभिषेक यादव ने बताया कि कारगिल में द्रास में एक मेमोरियल बना हुआ है, जहां कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों की याद में स्मारक बनाया गया है. जो भी परिचित वहां जाता है और आकर चाचा का नाम बताता है, तो बेहद खुशी होती है.

शहीद कौशल को याद कर भावुक हुआ दोस्त
शहीद कौशल यादव के बचपन के दोस्त उज्ज्वल दत्त ने बताया कि कौशल को बचपन में लाला कहकर पुकारते थे. दोस्त ने बताया कि कौशल शुरुआत से ही बहादुर थे. उनकी एक्सरसाइज बेहद अलग होती थी. कौशल कमांडो ट्रेनिंग में थे और वे हमेश कहते थे कि उन्हें विशेष ट्रेनिंग में रखा जाता है. उज्जवल ने बताया कि कौशल जब भी भिलाई आते थे, वे उनके घर जरूर जाते थे. वे परिवार की तरह थे.

उज्जवल ने बताया कि कौशल उनसे अक्सर सेना में होने वाली गतिविधियों के बारे में बातें किया करते थे. कौशल के दोस्त बताते हैं कि सेना की ट्रेनिंग का हर किस्सा वे उनसे साझा किया करते थे.

पढ़ें - कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जांबाजों ने दी थी शहादत

हंसमुख प्रवृत्ति के थे कौशल
हमेशा हंसते रहने वाले कौशल की छवि मस्तमौला युवा की थी. बॉर्डर से घर आते, तो बच्चे बन जाते और जमकर मस्ती करते. कौशल कहते थे कि उनके मरने के बाद लोगों को पता चलेगा कि वे इतना हंसते क्यों थे. ये बताते-बताते उनका दोस्त भावुक हो गया और कहा कि उसे शहीद होना था इसलिए हंसता-मुस्कुराता चला गया.

दोस्त ने एक और बात साझा की कि सेना में गुप्त कामों के नियम के मुताबिक कौशल को बड़ी-बड़ी दाढ़ी और लंबे-लंबे बाल रखने पड़ते थे. उन्हें वैसा ही लुक रखना पड़ता था, जिससे दुश्मनों की नजर में न आएं. ये उनकी ट्रेनिंग का एक हिस्सा था.

इस कारगिल विजय दिवस पर कौशल यादव को ईटीवी भारत की श्रद्धांजलि.

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