बेंगलुरू: महिला दिवस पर हम सेलीब्रेट कर रहे हैं उन महिलाओं के सफर और सफलता को, जिन्हें इस बार भारत सरकार ने पद्म पुरस्कारों के लिए चुना है. इन्हीं में से एक हैं 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट' के नाम से जानी जाने वाली करीब 74 साल की तुलसी गौड़ा. तुलसी ने अपना सारा जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया. पेड़-पौधों को तुलसी अपने बच्चों सा प्यार देती हैं.
कर्नाटक के अंकोला तालुका के होनाल्ली गांव में रहने वाली तुलसी गौड़ा ने अब तक एक लाख से अधिक पौधों लगाए हैं, जो अब पेड़ बनकर घने जंगलों में तब्दील हो चुके हैं. अंकोला तालुका तटीय कर्नाटक में स्थित है. तुलसी आदिवासी महिला हैं और हलाक्की जनजाति से आती हैं. वह होनाल्ली गांव में एक छोटी सी झोपड़ी में रहती हैं और प्रकृति के प्रति अपने असाधारण प्रेम के लिए जानी जाती हैं. लोग उनसे पौधों के बारे में जानकारी लेने आते हैं.
तुलसी कहती हैं कि वह पद्म श्री पुरस्कार पाने से बेहद खुश हैं. सिर्फ वह ही नहीं बल्कि उनके आस-पास के लोग भी इस उपलब्धि पर गर्व महसूस कर रहे हैं. तुलसी बताती हैं कि वह 35 साल से पौधे लगा रही हैं और इस काम को करके वह बिल्कुल नहीं थकती हैं बल्कि उन्हें खुशी होती है. वह अब भी सिर्फ पौधे ही लगाना चाहती हैं. तुलसी कहती हैं कि वह नहीं जानती कि उन्होंने अब तक कितने पौधे लगाए हैं. वह यह भी कहती हैं कि सरकारों को वृक्षों की कटाई नहीं करानी चाहिए. अगर एक पेड़ काटा जाता है तो उसके बदले में दो या तीन पेड़ लगाए जाएं.
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प्रकृति प्रेम ने दिलाई पहचान
तुलसी ने कहीं से भी शिक्षा ग्रहण नहीं की लेकिन पौधों के बारे में उनका ज्ञान बेजोड़ है. वह पहले वन विभाग में कार्यरत थीं लेकिन अभी सेवानिवृत्त हो चुकी हैं. रिटायर होने के बाद भी पेड़-पौधों से तुलसी का लगाव कम नहीं हुआ. वह अब भी पौधरोपण करती रहती हैं. वह तब तक पौधों की सेवा करती रहती हैं, जब तक वह मजबूत नहीं हो जाते. उन्होंने अपने गांव में वृक्षों की कटाई को लेकर कड़ा विरोध जताया था.
मिल चुके हैं कई पुरस्कार
जंगल और पेड़-पौधों के प्रति उनकी जागरूकता और योगदान को देखते उन्हें पद्म पुरस्कार से नवाजा गया है. पर्यावरण संरक्षण में उनके योगदान के लिए इससे पहले तुलसी गौड़ा को कर्नाटक राज्य और अन्य लोगों द्वारा कई बार सम्मानित किया जा चुका है. राज्य की तरफ से उन्हें राज्योत्सव पुरस्कार भी मिल चुका है.