नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने विश्वास जताया है कि कोरोना संकट के बीच भारत 2025 तक पांच ट्रिलियन इकोनोमी बनने का लक्ष्य जरूर हासिल करेगा. सीमा पर चीन के साथ चल रहे विवाद पर उन्होंने कहा कि चीन के नेतृत्व पर बाहरी दबाव का संकट है. चीन के अंदर भी कोरोना और उसके प्रबंधन को लेकर जनता के बीच आक्रोश है.
लद्दाख में चीनी सैनिकों की गतिविधियों से जुड़े सवाल पर राम माधव ने कहा कि देश के अंदर और बाहरी तनाव के चलते इस तरह की घटना को अंजाम दिया जा रहा है. हालांकि, यह राजनीतिक विश्लेषण का विषय है. उन्होंने कहा कि हम सीमा पर शांति चाहते हैं. हर समय हमारी यही प्राथमिकता रही है. माधव ने कहा कि अब हमारी नई नीति स्पष्ट है; 'हम शांति के लिए कुछ भी मूल्य दें, इसके लिए हम तैयार नहीं हैं.'
प्रस्तुत है भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव से बातचीत के प्रमुख अंश-
सवाल : कोरोना संकट के बीच इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि आप क्या मानते हैं.
राम माधव : वैसे तो मोदी सरकार पार्ट-2 की कई बड़ी उपलब्धियां हमारे खाते में हैं. इसमें आर्थिक क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सुधार शामिल हैं, जिसे हमारी सरकार ने लाया है. किसानों और गरीबों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं हैं. सामाजिक कल्याण और महिलाओं के कल्याण के लिए गरीब और मजदूरों के कल्याण के लिए कई योजना मोदी सरकार लेकर आई है, विशेषकर मुस्लिम महिलाओं के हक में ट्रिपल तलाक का कानून लेकर सरकार आई या फिर ट्रांसजेंडर के लिए लाया गया कानून. हमारी सरकार ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं.
राष्ट्रीय एकता को ध्यान में रखकर जो अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त करने वाला जो निर्णय हो या फिर सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के तहत बाहर से आने वाले शरणार्थियों को नागरिकता देने का मामला, हमारी सरकार ने महत्वपूर्ण फैसले किए हैं. सरकार ने आर्थिक और सामरिक दृष्टि से भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. भारतीय इकोनॉमी को 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य की तरफ बढ़ाने में भी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं.
सवाल : क्या कोरोना संकट के बावजूद भारत पांच ट्रिलियन डॉलर इकोनोमी का लक्ष्य पूरा कर पाएगा.
राम माधव : पांच ट्रिलियन इकोनामी की तरफ हम आगे बढ़ रहे हैं. बात सिर्फ इतना है कि कोरोना को लेकर एक स्लोडाउन जरूर आया है, लेकिन वह सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरे विश्व में है. बावजूद इसके, 2025 तक हम 5 ट्रिलियन इकोनामी को पार कर पाएंगे या नहीं, यह सवाल लोगों के मन में उठना लाज़िमी है. लेकिन पहले तो हम यह बताएं कि भारत 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनामी नहीं, बल्कि 2030 तक 10 ट्रिलियन इकोनोमी का लक्ष्य पूरा करने वाला है. बीच में एक गतिरोध आया है, मगर सरकार अपनी परियोजनाओं और नीतियों में तेजी लाएगी और आने वाले क्वार्टर में लक्ष्य पूरा कर लिया जाएगा.
सवाल : क्या आप मानते हैं कोरोना संकट एक स्वर्णिम काल है चीनी मार्केट को खत्म कर ज्यादा से ज्यादा देसी वस्तुओं और आत्मनिर्भरता को बढ़ाने का ?
राम माधव : आत्म निर्भरता का सिद्धांत लेकर हमारी सरकार मोदी पार्ट वन से ही काम करना शुरू कर चुकी थी. आत्म निर्भरता के लिए ही मोदी वन में मुद्रा योजना, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया और ऐसी तमाम योजनाएं इसलिए लेकर आए थे, ताकि अपने पैरों पर खड़ा होकर व्यापार कर सकें और अब जब कोरोना महामारी हमारे सामने आई है, तो हमारे सामने यह बात आई कि कई ऐसी संभावनाएं होती हैं जहां पर हम आगे बढ़ सकते हैं. हमारे देश में हम जींस-पैंट बनाते थे मगर उस में लगने वाली चेन भारत में नहीं बनती थी. ऐसी सामान्य चीजों पर पहले भारत में कभी नहीं सोचा था. इसलिए प्रधानमंत्री ने यह आह्वान किया कि आत्म निर्भरता के रास्ते पर हम आगे बढ़ें. आत्मनिर्भरता का मतलब यह नहीं है कि हम दुनिया से अलग हो जाएंगे और अपने घर में पर बैठ जाएंगे, बल्कि आज आत्मनिर्भरता का मतलब यह है कि हम अपने पैरों पर खड़े होंगे और स्वदेशी हमारा हमारा आधार होगा और 5 ट्रिलियन इकोनामी के लिए हम दुनिया में आगे बढ़ेंगे.
सवाल : एक साल में उपलब्धियां काफी लंबी रहीं. मोदी पार्ट-2 के इस छोटे कार्यकाल में भी कई उपलब्धियां रहीं. अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35ए हटाना हो नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) हो, या फिर राम मंदिर का निर्माण. मगर विपक्ष इन्हें उपलब्धियां नहीं मान रहा और उनका कहना है कि सरकार ने जानबूझकर विवाद उत्पन्न किए. विपक्ष का आरोप है कि सीएए या अनुच्छेद 370 में लोगों को भरोसे में न रखकर निर्णय लिया गया और इसके बाद ज्यादा तनाव उत्पन्न हुआ.
राम माधव : जिन चीजों को विपक्ष विवादास्पद बनाने का प्रयास कर रहा है, मैं यह साफ-साफ कहना चाहूंगा कि जो भी कदम उठाए गए हैं, वह देश हित में हैं. देश की सुरक्षा और देश की एकता के हित में है. सबसे बड़ी बात यह है कि हम कोई नई चीज अचानक लेकर नहीं आए हैं. इन सारी चीजों पर हमारी पार्टी की विचारधारा शुरू से ही रही है. इन बातों के आधार पर ही हम जनता के सामने आते रहे हैं. अनुच्छेद 370 की जहां तक बात है, यह आज हमने कोई नया काम नहीं किया है. यह हम पिछले 50 साल से कहते आ रहे हैं. हम देश की जनता से ये बातें कहते आए हैं और उसके आधार पर हमने निर्णय लिया है. इसलिए विपक्ष एक हद तक विरोध जता सकता है, लेकिन उस विरोध का मतलब यह नहीं कि जनता ने इसको समर्थन नहीं दिया. जनता ने सरकार को समर्थन दिया है.
सवाल- जम्मू-कश्मीर में देशभर के उद्योगपति जाकर उद्योग लगाएं और कश्मीर को मुख्यधारा में लाया जाए, इस संबंध में उद्योगपतियों को किसी तरह की विशेष छूट दिए जाने की या सस्ती जमीन मुहैया कराए जाने की चर्चा चल रही है.
राम माधव : वैसे तो 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश है. देश के अन्य राज्यों की तरह ही यहां पर भी सामान्य ही है सबकुछ. मगर फिर भी, जम्मू कश्मीर के लिए एक नई डोमिसाइल पॉलिसी यानी स्थानीय निवासियों के लिए एक नई पॉलिसी अभी-अभी केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्वीकृत की है. इस पॉलिसी के तहत वहां के लोगों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा. राज्य की व्यवस्था सुचारू रूप से चले इसके लिए नई नीति स्वीकृत की गई है. डोमिसाइल पॉलिसी सबसे पहले बनानी होती है, और अब यह डोमिसाइल पॉलिसी बन चुकी है. इसके बाद ही सारी नीतियां स्वीकृत होंगी. मोटे तौर पर हम सबकी इच्छा और प्रयास है कि जम्मू-कश्मीर के अंदर अच्छे प्रकार से निवेश आए और वहां विकास हो ताकि वहां के लोगों को नौकरियां मिले. उनकी जीवन स्तर ऊंचा उठे और उनकी आर्थिक व्यवस्था ठीक हो. अपने अर्थव्यवस्था के लिए जम्मू-कश्मीर अभी पूर्ण रूप से केंद्र पर डिपेंडेंट है, मगर यह स्थिति तभी बदलेगी जब जम्मू-कश्मीर आत्मनिर्भर होगा, वहां उद्योग और व्यापार बढ़ेंगे.
सवाल : क्या मानते हैं कि कश्मीर के हालात सामान्य होने के लिए वहां पर राजनीतिक गतिविधियां भी बढ़नी चाहिए ? हालांकि ज्यादातर नेता अब हिरासत से बाहर आ गए हैं. उमर अब्दुल्ला की रिहाई हो चुकी है, मगर महबूबा मुफ्ती अभी भी हिरासत में है.
राम माधव : क्या कश्मीर में उमर अब्दुल्ला और महबूबा दो ही राजनेता हैं? क्या राजनीतिक गतिविधियां सिर्फ दो ही लोग चलाते हैं ? वहां पर हजारों नेता हैं. सभी पार्टियों के नेता हैं. कांग्रेस का एक भी नेता जेल में नहीं है. वहां कांग्रेस राजनीतिक गतिविधियां क्यों नहीं शुरू करती. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के कुछ नेता को छोड़कर सब फ्री हैं. वे राजनीतिक गतिविधियां चला सकते हैं, शुरू कर सकते हैं. आज उस राज्य में परिस्थिति यह है कि राज्य की जनता अनुच्छेद 370 हटाने के विषय को स्वीकार कर चुकी है. मगर उनकी रोजमर्रा की कई समस्याएं हैं. उसको हल करने के लिए उनके नेताओं को उपस्थित होना पड़ेगा. स्थानीय राजनेता वहां पर एक ब्रिज का काम करते हैं. लेकिन आज वहां सभी पार्टियों के नेता घरों में बैठे हैं. सिर्फ एक बीजेपी को छोड़कर बाकी दलों के नेता कोई राजनीतिक गतिविधि और ब्रिज बनाने का काम नहीं कर रहे. हमारी अपील है कि वह बाहर आएं अपने राजनीतिक गतिविधि शुरू करें. जम्मू कश्मीर में एक नई व्यवस्था को आगे बढ़ाना चाहिए. वहां पर राजनीतिक गतिविधि आर्थिक गतिविधि शुरू होनी चाहिए.
सवाल : उमर अब्दुल्ला की पाबंदियां हटा ली गई हैं, फिर भी उनकी पार्टी कोई राजनीतिक गतिविधियां नहीं कर रही है. अंदरखाने आरोप यह भी लगाए जा रहे हैं कि उमर अब्दुल्ला और भाजपा के बीच कुछ राजनीतिक संधि की भी तैयारी है. क्या कहेंगे आप?
राम माधव : आज के समय में 24 नेता जो अंदर हैं, मैं मानता हूं कि स्थिति ठीक होते ही वह सभी भी बाहर आ जाएंगे और समय ठीक होते ही सभी को अपने-अपने दलों के माध्यम से वहां तक राजनीतिक गतिविधियां शुरू करनी है. जहां तक हमारी पार्टी का प्रश्न है जम्मू में तो हमारी पार्टी सक्रिय है ही, हमारे कार्यकर्ता सक्रिय हैं. अपने कामों में लगे हैं. कश्मीर घाटी के अंदर आज उस राज्य की जो जनता है, उनके बीच भी एक केंद्र बिंदु बन कर हम वहां भी गतिविधियां चलाने की कोशिश करेंगे. अब परिस्थितियां बदली हैं, भारतीय जनता पार्टी एक राष्ट्रीय दल है और हम भी वहां लोगों के बीच जाकर उनका एक केंद्र बनने की कोशिश करेंगे और इस समय हमारा और कोई राजनीतिक गठजोड़ करने का कोई प्रयास नहीं है.
सवाल - क्या डीलिमिटेशन के बाद जम्मू में कुछ सीटें बढ़ सकती हैं.
राम माधव : वैसे तो डीलिमिटेशन (परिसीमन) की प्रक्रिया 2006 में जब हर जगह पर चली थी, किन्हीं कारणों से वह जम्मू-कश्मीर में इसका एक्सरसाइज नहीं हो पाया था. अब जो नया कानून है उस कानून के मुताबिक हमारी सीटों की संख्या बढ़ाई गई है. 6 सीटें बढ़ाई गई हैं. फेस सीट बढ़ने का ममतलब होता है कि फिर से संसद के आधार पर नई प्रक्रिया करनी पड़ती है. अब नई रचना होनी चाहिए उसमें जम्मू को कितना मिलेगा और बाकी को कितनी सीटें मिलेंगी यह बातें होनी चाहिए और परिसीमन आयोग को सही मायने में पूर्ण विभाजित करके आगे बढ़ाया जाना चाहिए. हम देखेंगे कि उसमें जम्मू को और बाकी को कितनी सीटें मिलती हैं.
सवाल : चीन से सटी सीमा पर विवाद को लेकर आपका क्या कहना है.
राम माधव : तथ्यहीन खबरों पर यकीन न करें, आंतरिक समस्या की वजह से चीन आक्रामक हुआ है. भारत और चीन के बीच 3500 किमी की लंबी सीमा है. यहां पर कुछ क्षेत्र हमेशा तनावग्रस्त रहा है. अभी हम पिछले 10 सालों की ही बात करें, तो कम से कम एक हजार ऐसी घटनाएं हुई होगीं, जब चीन की तरफ से वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया गया होगा. अभी भी हो रहा है. अब चीन ज्यादा आक्रामक दिख रहा है. लेकिन एक बात ये भी है कि इस समय कई प्रकार के वीडियो सामने आ रहे हैं, कई खबरें आ रही हैं, सोशल मीडिया में भी खबरें आ रही हैं. जब तक सरकार कुछ नहीं कहती है, तब तक हमें इन खबरों पर यकीन नहीं करना चाहिए. जैसे कोई बोलता है कि 25 किमी सीमा के अंदर चला आया. इस पर यकीन करने का कोई कारण नहीं है. क्योंकि हमने पूर्ण निगरानी रखी हुई है.
एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे
जब से मोदी सरकार बनी है, तब से सीमा के संबंध में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है. अब जब सीमा के संबंध में विवाद होता है, तो कूटनीति के माध्यम से समाधान ढूंढने का प्रयास तो जरूर होता है, पर जमीन पर हम एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे. जो हमारा सार्वभौम क्षेत्र है, उसके लिए दृढ़ता से हमारी सेना जमीन पर खड़ी है. डोकलाम के समय में भी यही हुआ था. आज भी जब चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का अतिक्रमण कर रहा है तो ग्राउंड पर हम दृढ़ता से खड़े हैं. बल्कि पिछले 40 सालों में इस सीमा पर एक भी बुलेट फायर नहीं की गई है. हम युद्ध नहीं चाहेंगे. पर जमीन के विषय में जमीन पर कोई समझौता नहीं करेंगे. डिप्लोमेसी के जरिए बातचीत करेंगे. लद्दाख में इसी नीति का पालन किया जा रहा है. बाकी खबरों पर ज्यादा विश्वास ना करें.
सवाल : क्या कोरोना संकट का चीन फायदा उठा रहा है.
राम माधव : चीन समय-समय पर इस तरह की उग्रता दिखाता रहा है तो उसकी आंतरिक वजहें रहीं हैं. जहां तक भारत का सवाल है, यह कभी भी उग्र नहीं रहा है. देश युद्धोन्मादी नहीं रहा है. हम हमेशा शांति से ही सीमा की रक्षा करते रहे हैं. हमने कभी भी प्रोवोकेशन नहीं किया, फिर भी चीन करता है. इस प्रकार की घटना को अंजाम देता है, तो इसका मतलब है कि चीन में आतंरिक समस्याएं हैं. इस समय चीन के नेतृत्व पर बाहरी दबाव का संकट है. अमेरिका दबाव डाल रहा है. हांगकांग में समस्याएं है. ताइवान को लेकर समस्या हो रही है. चीन के अंदर भी कोरोना और उसके प्रबंधन को लेकर जनता के बीच आक्रोश है. तो देश के अंदर और बाहर के तनाव के चलते इस तरह की घटना को अंजाम दिया जा रहा है. वैसे, यह तो राजनीतिक विश्लेषण का विषय है. हम सीमा पर शांति चाहते हैं. हमारा हर समय यही प्राथमिकता रही है. अब हमारी नई नीति ये है कि हम शांति के लिए कुछ भी मूल्य दें, इसके लिए हम तैयार नहीं हैं.
सवाल : क्या इसका फायदा पाकिस्तान उठा सकता है.
राम माधव : पाकिस्तान की सीमा पर भी हम पूर्ण निगरानी रखे हुए हैं. हालांकि, पाकिस्तान लगातार आतंकियों के घुसपैठ की कोशिश करने में लगा हुआ है. अभी कश्मीर में गर्मी का मौसम शुरू हुआ है. यह जून-जुलाई-अगस्त तक चलता है. इस समय पाकिस्तान आतंकियों की घुसपैठ कराता है. इस समय माउंटेन के दर्रे खुलते हैं. हमारी सेना पूरी तरह से सतर्क है. बल्कि एक दिन में सेना ने 14 आतंकियों को ढेर कर दिया. हम सतर्क हैं. और किसी भी हाल में पाकिस्तान को इस परिस्थिति का फायदा उठाने नहीं देंगे. जम्मू कश्मीर की जनता भी आतंकियों को सहारा नहीं दे रही है. जनता भी शांति चाहती है. हम जनता की इच्छा को भी पूरा करेंगे. पाकिस्तान को कोई अवसर नहीं मिलेगा.
सवाल : क्या हैं मोदी सरकार की उपलब्धियां.
राम माधव : हम जब भी जनता के बीच जाते हैं चुनाव के संदर्भ में, तो तीन बिंदु लेकर जाते हैं. सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास. हमारी सरकार की नीतियां सबको साथ लेकर चलने की रही है. इसकी वजह से हम कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सफल हुए हैं. हमारे प्रधानमंत्री सबको साथ लेकर चले हैं. वो चाहे विपक्ष हो, राज्य सरकारें हो, 130 करोड़ लोगों को साथ लेकर चले हैं. सबका साथ, विशेषकर गरीब लोगों का. किसानों का, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के समुदाय के लोगों का. अभी जो माइग्रेंट लेबर घर वापस जा रहे हैं, उनके लिए अनेक कल्याणकारी कार्य की शुरुआत की गई है. मनरेगा में काम करने के दिनों की संख्या बढ़ा दी गई है. एक लाख करोड़ मनरेगा के लिए फंड दिया गया है, ताकि मजदूर लोग घर जाएं, तो उन्हें काम मिल सके.
हम इस प्रकार के कल्याणकारी विकास कार्यों को लेकर उनके बीच जाते हैं. और सबका विश्वास तभी हासिल होता है, जब लोगों को लगता है कि मोदी के हाथ में देश सुरक्षित है. देश संपन्न हो रहा है. आज कुछ सर्वे की रेटिंग भी आई है. इसमें आपने देखा होगा कि मोदी की रेटिंग 90 फीसदी से ऊपर है. इसका मतलब है कि पूरे देश को हम पर विश्वास है. भारत में एक ही धर्म के लोग 90 फीसदी तो है नहीं. इसका मतलब है कि सभी धर्मों, सभी जातियों और सभी वर्गों के लोग मोदी पर विश्वास रखते हैं. यह विश्वास और विकास का हमारा प्रयास और एकता का हमारा प्रयास लेकर देश के सामने जाएंगे. मुझे लगता है कि जब इस विषय को लेकर जनता के सामने जाते हैं. तो बिहार हो, बंगाल हो या असम में, हमें पूर्ण समर्थन मिलेगा. बिहार और असम में हमारी सरकारें हैं. उन्हें वापस लाने में हम फिर से सफल होंगे.
कोरोना के खिलाफ केरल मॉडल से बेहतर है असम मॉडल
जहां तक बात असम की है, तो हमारी सरकार ने कोरोना वायरस (कोविड-19) के संदर्भ में बहुत अच्छा काम किया है. लोग केरल मॉडल की बात करते हैं, लेकिन वास्तव में असम मॉडल की चर्चा करनी चाहिए. इसकी स्टडी होनी चाहिए. असम ने एक लाख लोगों की टेस्टिंग की है. केरल में 50 हजार लोगों की भी टेस्टिंग नहीं की गई है. इसलिए अच्छा शासन हमारा है, तो लोग वोट देंगे.
ममता का निरंकुश शासन
बंगाल में ममता का अहंकारी और निरंकुश शासन है. 15 साल हो गए हैं. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वहां उनकी सरकार पर फुलस्टॉप लगे और हमारी सरकार बनाने का पूरा प्रयास करेंगे.
असम में एनआरसी के मुद्दे को लेकर भी चुनाव पर कोई प्रभाव पड़ेगा. मुझे लगता है कि इस सवाल को लेकर असम की जनता के मन में कोई संशय नहीं है. क्योंकि कोरोना संकट से पहले जब सीएए और एनआरसी को लेकर चर्चा हो रही थी, हमारे कार्यकर्ता तब बहुत सक्रिय रहे हैं. असम की जनता को सच बताने में. इस कारण असम में इसे लेकर कोई विवाद नहीं है. असम के सारे जन इसके महत्व को स्वीकार भी करते हैं.
सवाल : क्या आप विपक्ष को विश्वास में नहीं ले पाए हैं ? राहुल गांधी हर मुद्दे हर योजना पर सवाल उठा रहे हैं. कोरोना संकट के दौरान भी विपक्ष एक साथ खड़ा नहीं हुआ.
राम माधव : यह हमारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात है. जहां हम 130 करोड़ के लोगों के स्वास्थ्य और स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए एक जंग लड़ रहे हैं, वहां विपक्ष हमारा साथ नहीं दे रहा है. बल्कि कुछ लोग भारत की छवि दुनिया भर में खराब करने में लगे हैं, चाहे राहुल गांधी हों या फिर बाकी विपक्ष के लोग हों. कोरोना की समस्या के समय माइग्रेंट लेबर की भी समस्या है. क्या केवल केंद्र सरकार अकेले लड़ रही है? क्या इसमें राज्य सरकारें शामिल नहीं हैं? क्या इसमें कांग्रेस की सरकारें नहीं हैं ? आधे से ज्यादा माइग्रेंट कांग्रेस शासित राज्यों से निकले हैं. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ या राजस्थान. क्या इस पर राजनीति करनी चाहिए? हमको 130 करोड़ जनता के प्रतिनिधि के रूप में मिलकर काम करना है. विपक्ष केवल छद्म राजनीति कर रहा है. कोई मदद नहीं हो रही है, यह कहना गलत है. सिर्फ माइग्रेंट लेबर की ही समस्या ले लें, तो सबसे बड़ी विफलता किसी राज्य की है, तो वह महाराष्ट्र है और बंगाल दूसरी तरफ है. इसलिए हमको मिलकर लड़ना है, और विपक्ष इसमें बहुत कम नजर आता है.
सवाल : अब तो भाजपा ने अपनी राजनीतिक गतिविधि भी शुरू कर दी है. प्रवासी मजदूरों की समस्या के बारे में आपने कुछ सोचा नहीं था. जिससे उनकी हालत इतनी खराब हो गई.
राम माधव : लॉकडाउन के संदर्भ में जितनी बातें बोली जा रहीं हैं, वे अर्थहीन हैं. हास्यास्पद हैं. उस समय लॉकडाउन लगाना तुरंत अनिवार्य था. अगर नहीं लगाते तो आज भारत की हालत अमेरिका और इटली से भी ज्यादा खराब होती. हमने समय पर दृढ़ता से लॉकडाउन लागू किया. अगले तीन सप्ताह में हमने हेल्थ क्षेत्र में कई तैयारियां कीं. हमारे पास टेस्टिंग किट्स नहीं थे. पीपीई उपलब्ध नहीं थे. हम सबका ये प्रयास होना चाहिए था कि माइग्रेंट लेबर को आश्वासन दें. हमें कहना चाहिए था कि आपकी चिंता हम खत्म करेंगे. वैसे केंद्र और राज्य सरकारों ने इसे पूरा भी किया है. एनजीओ ने मदद की. आरएसएस और अन्य संस्थाओं ने मदद की.
प्रवासी मजदूरों पर राजनीति करना दुर्भाग्यपूर्ण
एक बात और जान लीजिए, भारत में करीब आठ करोड़ माइग्रेंट लेबर हैं. इनमें से 70-90 लाख लोग ही निकले. वे नहीं निकले, यही सभी हमारा प्रयास होना चाहिए था. दुर्भाग्य है कि कुछ लोग चिंता और डर की वजह से निकल गए. लेकिन जैसे ही यह संख्या बढ़ी, हमने ट्रेन की व्यवस्था की. उसकी संख्या बढ़ाई. आप बताइए, अगर हम ये कहते कि चार दिन बाद लॉकडाउन करेंगे, तो आनन-फानन में लोग इधर-उधर जाते. तब जो स्थिति होती, क्या हम इसे मैनेज कर सकते थे. ये जो प्रशन उठाते, ये अज्ञानता वश उठाते हैं. वास्तव में आवश्यकता थी कि लॉकडाउन करें. अगर देरी होती, तो अमेरिका जैसे देश में आज 15 लाख मरीज हैं. एक लाख से ज्यादा लोग मर गए हैं. भारत की आबादी दुनिया की आबादी का 15 फीसदी है. लेकिन हमारे यहां सक्रिय केस एक लाख से कम है. मृतकों की संख्या छह हजार के आसपास है. इस लॉकडाउन की वजह से हमने कितना अधिक अपने देश को बचाया है, इसे समझना चाहिए. अर्थहीन तर्क करने का कोई समय नहीं है.
तिरुपति संपत्ति बेचने का विवाद
विवाद को जन्म देना राज्य सरकार की बड़ी गलती थी. वहां की राज्य सरकार, जिसका एक साल पूरा हुआ है, इस तरह के कई विवादों को जन्म दिया है. राजधानी का विवाद है, निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति का विवाद है. अचानक ही किसी को निर्वाचन आयुक्त बना देते हैं. टीटीडी संपत्ति बेचने का विवाद भी अनावश्यक रूप से जन्म दिया गया है. जब जनता की ओर से बड़ा आक्रोश प्रकट किया गया और हमारी पार्टी और कई लोगों ने इस पर चिंता जताई. तब राज्य सरकार पीछे हट गई. ये अच्छी बात है. अब साधु संतों की कमेटी ही यह तय करेगी. अच्छा होगा कि राज्य सरकार इस तरह के विवाद को जन्म ना दें.