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सोलन भारत का एकमात्र शहर, जिसने चखाया था देश को मशरूम का स्‍वाद

देश को मशरूम का स्वाद चखाने का श्रेय हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर को जाता है. इसी शहर में मशरूम की खोज की गई. यहां भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने 1961 में मशरूम पर कार्य शुरू किया था.

Mushroom production in solan
प्रतीकात्मक फोटो
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Published : Dec 27, 2019, 11:54 PM IST

शिमला : देश को मशरूम का स्वाद चखाने का श्रेय हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर को जाता है. इसी शहर में मशरूम की खोज की गई. यहां भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने 1961 में मशरूम पर कार्य शुरू किया था.

पहले छोटे स्तर पर बटन मशरूम उत्पादन किया गया. 1970 में चंबाघाट में कृषि विश्वविद्यालय ने मशरूम पर रिसर्च शुरू की.1975 में ढिंगरी किस्म खोजी गई. आज देश में प्रतिवर्ष एक लाख नब्बे हजार टन व हिमाचल में 15 हजार टन मशरूम उगाया जाता है.

सोलन में देश का एकमात्र मशरूम अनुसंधान निदेशालय (डीएमआर) स्थापित है. मशरूम की खोज के लिए सोलन शहर के योगदान व मशरूम अनुसंधान में डीएमआर के प्रयासों को देखते हुए 10 सितंबर, 1997 को इसे मशरूम सिटी ऑफ इंडिया घोषित किया गया. डीएमआर के वैज्ञानिक वर्षभर मशरूम की नई किस्मों की खोज व उनके औषधीय फायदों पर रिसर्च करती है. मशुरूम की खेती किसान की आर्थिकी को मजबूत करने और रोगों को दूर करने में लाभदायक है.

डॉ वी पी की ईटीवी से खास बातचीत

डीएमआर में मशरूम की 30 किस्मों पर चल रहा काम
1983 में राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान व प्रशिक्षण केंद्र सोलन में अस्तित्व में आया. इसे 26 दिसंबर, 2008 को डीएमआर में अपग्रेड किया गया था. 27 राज्यों में डीएमआर की विकसित तकनीकों के परीक्षण व अन्य कार्यों के लिए 23 समन्वयक व नौ सहकारी केंद्र हैं.
डीएमआर 30 अलग-अलग किस्मों की मशरूम पर कार्य कर रहा है. इसको शिटाके मशरूम पर अकेला पेटेंट मिला है. शिटाके पहले तीन महीने में उगाई जाती थी, लेकिन अब नई विकसित तकनीक से डेढ़ माह में उगाई जा रही है. ऐसी किस्में तैयार की जा रही हैं जो 12 डिग्री से 32 डिग्री तापमान में भी उगाई जा सकती हैं.

मशरूम सब्जी के साथ साथ दवा के क्षेत्र में अव्वल
डॉक्टर बी पी शर्मा ने बताया कि मशरुम ना केवल पौष्टिक सब्जी है. वहीं, इसमें विटामिन डी भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है. उन्होंने बताया कि अभी तक जितने भी मशरूम कुंभ अनुसंधान केंद्र में इजाद किए गए हैं. वह सभी दवा के तौर पर बाजार में उतारे गए हैं. उन्होंने बताया कि मशरूम में कुपोषण, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज शुगर, विटामिन, कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ने की क्षमता मौजूद होती है. इन मशरूमों में गेनोड्रमा मशरूम, कॉर्डिसेप्स मशरूम व शिटाके मशरूम कई लाइलाज रोगों को दूर करने में लाभदायक सिद्ध हो रहा है.

मशरूम उत्पादन के लिए न तो जमीन की जरूरत पड़ती है न ही विशेष सामान की. पराली जैसे वेस्ट में भी इसे उगाया जा सकता है. छोटे से कमरे में भी किसान मशरूम की खेती कर सकते हैं. खुम्भ अनुसंधान केंद्र सोलन के निदेशक डॉ. वी पी शर्मा ने बताया कि मशरूम की खेती कर हिमाचल के किसान इसे अपनी आमदनी का साधन बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक सर्वे के अनुसार, अगर एक हेक्टेयर जमीन में धान और गेहूं लगाया जाता है तो प्रतिवर्ष किसान 50,000 कमाता है. वहीं, अगर एक हेक्टेयर भूमि पर प्रतिवर्ष मशरूम लगाया जाए तो किसान एक करोड़ तक की आमदनी कमा सकता है.

शिमला : देश को मशरूम का स्वाद चखाने का श्रेय हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर को जाता है. इसी शहर में मशरूम की खोज की गई. यहां भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने 1961 में मशरूम पर कार्य शुरू किया था.

पहले छोटे स्तर पर बटन मशरूम उत्पादन किया गया. 1970 में चंबाघाट में कृषि विश्वविद्यालय ने मशरूम पर रिसर्च शुरू की.1975 में ढिंगरी किस्म खोजी गई. आज देश में प्रतिवर्ष एक लाख नब्बे हजार टन व हिमाचल में 15 हजार टन मशरूम उगाया जाता है.

सोलन में देश का एकमात्र मशरूम अनुसंधान निदेशालय (डीएमआर) स्थापित है. मशरूम की खोज के लिए सोलन शहर के योगदान व मशरूम अनुसंधान में डीएमआर के प्रयासों को देखते हुए 10 सितंबर, 1997 को इसे मशरूम सिटी ऑफ इंडिया घोषित किया गया. डीएमआर के वैज्ञानिक वर्षभर मशरूम की नई किस्मों की खोज व उनके औषधीय फायदों पर रिसर्च करती है. मशुरूम की खेती किसान की आर्थिकी को मजबूत करने और रोगों को दूर करने में लाभदायक है.

डॉ वी पी की ईटीवी से खास बातचीत

डीएमआर में मशरूम की 30 किस्मों पर चल रहा काम
1983 में राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान व प्रशिक्षण केंद्र सोलन में अस्तित्व में आया. इसे 26 दिसंबर, 2008 को डीएमआर में अपग्रेड किया गया था. 27 राज्यों में डीएमआर की विकसित तकनीकों के परीक्षण व अन्य कार्यों के लिए 23 समन्वयक व नौ सहकारी केंद्र हैं.
डीएमआर 30 अलग-अलग किस्मों की मशरूम पर कार्य कर रहा है. इसको शिटाके मशरूम पर अकेला पेटेंट मिला है. शिटाके पहले तीन महीने में उगाई जाती थी, लेकिन अब नई विकसित तकनीक से डेढ़ माह में उगाई जा रही है. ऐसी किस्में तैयार की जा रही हैं जो 12 डिग्री से 32 डिग्री तापमान में भी उगाई जा सकती हैं.

मशरूम सब्जी के साथ साथ दवा के क्षेत्र में अव्वल
डॉक्टर बी पी शर्मा ने बताया कि मशरुम ना केवल पौष्टिक सब्जी है. वहीं, इसमें विटामिन डी भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है. उन्होंने बताया कि अभी तक जितने भी मशरूम कुंभ अनुसंधान केंद्र में इजाद किए गए हैं. वह सभी दवा के तौर पर बाजार में उतारे गए हैं. उन्होंने बताया कि मशरूम में कुपोषण, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज शुगर, विटामिन, कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ने की क्षमता मौजूद होती है. इन मशरूमों में गेनोड्रमा मशरूम, कॉर्डिसेप्स मशरूम व शिटाके मशरूम कई लाइलाज रोगों को दूर करने में लाभदायक सिद्ध हो रहा है.

मशरूम उत्पादन के लिए न तो जमीन की जरूरत पड़ती है न ही विशेष सामान की. पराली जैसे वेस्ट में भी इसे उगाया जा सकता है. छोटे से कमरे में भी किसान मशरूम की खेती कर सकते हैं. खुम्भ अनुसंधान केंद्र सोलन के निदेशक डॉ. वी पी शर्मा ने बताया कि मशरूम की खेती कर हिमाचल के किसान इसे अपनी आमदनी का साधन बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक सर्वे के अनुसार, अगर एक हेक्टेयर जमीन में धान और गेहूं लगाया जाता है तो प्रतिवर्ष किसान 50,000 कमाता है. वहीं, अगर एक हेक्टेयर भूमि पर प्रतिवर्ष मशरूम लगाया जाए तो किसान एक करोड़ तक की आमदनी कमा सकता है.

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One to one with director of Mushroom Centr Solan Dr.V.P.Sharma





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