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देश का भविष्य हैं हुनरमंद युवा

सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें कमलनाथ को सपेरा, जीतू पटवारी को उनका हेल्पर और दिग्विजय सिंह को नाग के रूप में दर्शाया गया है.

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Published : Oct 26, 2020, 2:09 PM IST

देश का भविष्य हैं हुनरमंद युवा
देश का भविष्य हैं हुनरमंद युवा

रोबोट क्रांति की शुरुआत की भविष्यवाणी, जो पहले की गई थी वह कोरोना वायरस के फैलाव की वजह से अब समय से पहले ही हो जाएगी. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की नवीनतम रिपोर्ट ने इसके साथ ही कहा है कि वर्ष 2025 तक अरबों नौकरियों की प्रकृति बदल जाएगी. स्वचालन और डिजिटलीकरण में आई तेजी के फलस्वरूप अरबों नौकरियों में बदलाव किया जा रहा है. इसके कारण दस करोड़ तक नई नौकरियां पैदा होंगी.

यह अच्छी खबर है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और रोबोटिक्स की वजह से जितने लोगों की नौकरी जाएगी, उससे अधिक नौकरियां पैदा होंगी. हालांकि, युवाओं को उन्हें दोनों हाथों से हथियाने के लिए हुनर के साथ तैयार रहना सबसे जरूरी है.

डब्ल्यूईएफ विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के कहने का अर्थ है कि दुनिया के देशों की योजनाओं को आवश्यकता की सीमा तक तेज करने की जरूरत है. निकट भविष्य में उपग्रह सेवाओं, इलेक्ट्रिक वाहनों, अभिनव एंटीबायोटिक्स, एड टेक आदि जैसे बीस क्षेत्रों से दुनिया बदलने की उम्मीद है. ऐसे विस्तार के अवसरों से भारत को किस हद तक लाभ होगा ?

पिछले साल, यूनिसेफ ने अनुमान लगाया था कि 2030 तक देश के कामकाजी-युवा वर्ग की आबादी 31 करोड़ स्नातकों के साथ दुनिया में सबसे अधिक 96 करोड़ से अधिक हो जाएगी. हालांकि, कुल आवेदकों में केवल आधे के पास ही रोजगार के लिए आवश्यक कौशल होंगे. अध्ययनों से पता चलता है कि नौकरी के लिए कौशल की कमी वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है. साथ ही सुझाव दिया गया है कि तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई की जरूरत है.

हालांकि, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का नारा है कि 'गुणवत्तापूर्ण शिक्षा छात्र का अधिकार है. यह सुनने में अच्छा है, देश के विकास में अपने योगदान को अधिकतम करने के लिए मानव संसाधन जुटाने का व्यापक एजेंडा सरकारों के मुख्य एजेंडे के रूप में उभरना बाकी है.

ग्यारह साल पहले शुरू की गई राष्ट्रीय कौशल विकास रणनीति की जगह राजग सरकार ने 2022 तक 40 करोड़ लोगों को अत्यधिक कुशल संसाधनों के रूप में बदलने के उद्देश्य से 'स्किल्ड इंडिया' नीति शुरू की. केंद्र ने स्वयं स्वीकार किया कि उनमें से जो 'कौशल विकास योजना' के पहले चरण में 2016-2019 के दौरान प्रशिक्षित हुए, केवल 24.17 प्रतिशत ही रोजगार प्राप्त कर पाए.

यह तथ्य कि 72 लाख प्रशिक्षित अभ्यर्थियों में से केवल 15 लाख ही रोजगार में आ सकते हैं. यह संदेह से परे साबित होता है कि कौशल भारत लक्ष्य बुरी तरह से चूक गया है. दोनों तेलुगु राज्यों ने हाल ही में अगले साल तक 80 हजार छात्रों की प्रतिभा को बेहतर बनाने के लिए अमेरिकी कंपनी रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन (आरपीए) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट और राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी के साथ मिलकर एक लाख युवा स्नातकों को डिजिटल कौशल से लैस किया है.

भारत में जहां देश की एक तिहाई से अधिक जनसंख्या 15-24 वर्ष की आयु वर्ग के युवा हैं, उन्हें कुशल मानव संसाधन में ढालना तत्काल संभव नहीं है, एक विशेष प्रणाली जो समय-समय पर अगले पांच से दस वर्षों में प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक कुशल मानव संसाधनों की संख्या का आकलन करती है उसका कहना है कि वैसी प्रणाली की बनाई जानी चाहिए और इसके शोध और सिफारिशों के आधार पर उपयुक्त पाठ्यक्रम तैयार किए जाने चाहिए.

माध्यमिक स्तर तक भाषा, गणित और विज्ञान की बुनियादी बातों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, नैतिक शिक्षा और चरित्र विकास तक सीमित हो और कॉलेज स्तर पर पढ़ाई की प्राथमिकता रोजगार पाना और हुनरमंद होना चाहिए, जबकि कई कंपनियां नौकरी नहीं देने की वजह उचित रूप से योग्य कुशल श्रमिकों की अनुपलब्धता बताती हैं.

यह मामूली नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट उम्मीदवारों की दुर्दशा को दूर करने की एक व्यवहारिक रणनीति है. यदि शिक्षा को समय-समय पर उभरती रोजगार आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में बदल दिया जाता है, तो देश आगे बढ़ने और बहुमुखी विकास के साथ नेतृत्व करने में सक्षम होगा.

रोबोट क्रांति की शुरुआत की भविष्यवाणी, जो पहले की गई थी वह कोरोना वायरस के फैलाव की वजह से अब समय से पहले ही हो जाएगी. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की नवीनतम रिपोर्ट ने इसके साथ ही कहा है कि वर्ष 2025 तक अरबों नौकरियों की प्रकृति बदल जाएगी. स्वचालन और डिजिटलीकरण में आई तेजी के फलस्वरूप अरबों नौकरियों में बदलाव किया जा रहा है. इसके कारण दस करोड़ तक नई नौकरियां पैदा होंगी.

यह अच्छी खबर है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और रोबोटिक्स की वजह से जितने लोगों की नौकरी जाएगी, उससे अधिक नौकरियां पैदा होंगी. हालांकि, युवाओं को उन्हें दोनों हाथों से हथियाने के लिए हुनर के साथ तैयार रहना सबसे जरूरी है.

डब्ल्यूईएफ विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के कहने का अर्थ है कि दुनिया के देशों की योजनाओं को आवश्यकता की सीमा तक तेज करने की जरूरत है. निकट भविष्य में उपग्रह सेवाओं, इलेक्ट्रिक वाहनों, अभिनव एंटीबायोटिक्स, एड टेक आदि जैसे बीस क्षेत्रों से दुनिया बदलने की उम्मीद है. ऐसे विस्तार के अवसरों से भारत को किस हद तक लाभ होगा ?

पिछले साल, यूनिसेफ ने अनुमान लगाया था कि 2030 तक देश के कामकाजी-युवा वर्ग की आबादी 31 करोड़ स्नातकों के साथ दुनिया में सबसे अधिक 96 करोड़ से अधिक हो जाएगी. हालांकि, कुल आवेदकों में केवल आधे के पास ही रोजगार के लिए आवश्यक कौशल होंगे. अध्ययनों से पता चलता है कि नौकरी के लिए कौशल की कमी वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है. साथ ही सुझाव दिया गया है कि तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई की जरूरत है.

हालांकि, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का नारा है कि 'गुणवत्तापूर्ण शिक्षा छात्र का अधिकार है. यह सुनने में अच्छा है, देश के विकास में अपने योगदान को अधिकतम करने के लिए मानव संसाधन जुटाने का व्यापक एजेंडा सरकारों के मुख्य एजेंडे के रूप में उभरना बाकी है.

ग्यारह साल पहले शुरू की गई राष्ट्रीय कौशल विकास रणनीति की जगह राजग सरकार ने 2022 तक 40 करोड़ लोगों को अत्यधिक कुशल संसाधनों के रूप में बदलने के उद्देश्य से 'स्किल्ड इंडिया' नीति शुरू की. केंद्र ने स्वयं स्वीकार किया कि उनमें से जो 'कौशल विकास योजना' के पहले चरण में 2016-2019 के दौरान प्रशिक्षित हुए, केवल 24.17 प्रतिशत ही रोजगार प्राप्त कर पाए.

यह तथ्य कि 72 लाख प्रशिक्षित अभ्यर्थियों में से केवल 15 लाख ही रोजगार में आ सकते हैं. यह संदेह से परे साबित होता है कि कौशल भारत लक्ष्य बुरी तरह से चूक गया है. दोनों तेलुगु राज्यों ने हाल ही में अगले साल तक 80 हजार छात्रों की प्रतिभा को बेहतर बनाने के लिए अमेरिकी कंपनी रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन (आरपीए) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट और राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी के साथ मिलकर एक लाख युवा स्नातकों को डिजिटल कौशल से लैस किया है.

भारत में जहां देश की एक तिहाई से अधिक जनसंख्या 15-24 वर्ष की आयु वर्ग के युवा हैं, उन्हें कुशल मानव संसाधन में ढालना तत्काल संभव नहीं है, एक विशेष प्रणाली जो समय-समय पर अगले पांच से दस वर्षों में प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक कुशल मानव संसाधनों की संख्या का आकलन करती है उसका कहना है कि वैसी प्रणाली की बनाई जानी चाहिए और इसके शोध और सिफारिशों के आधार पर उपयुक्त पाठ्यक्रम तैयार किए जाने चाहिए.

माध्यमिक स्तर तक भाषा, गणित और विज्ञान की बुनियादी बातों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, नैतिक शिक्षा और चरित्र विकास तक सीमित हो और कॉलेज स्तर पर पढ़ाई की प्राथमिकता रोजगार पाना और हुनरमंद होना चाहिए, जबकि कई कंपनियां नौकरी नहीं देने की वजह उचित रूप से योग्य कुशल श्रमिकों की अनुपलब्धता बताती हैं.

यह मामूली नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट उम्मीदवारों की दुर्दशा को दूर करने की एक व्यवहारिक रणनीति है. यदि शिक्षा को समय-समय पर उभरती रोजगार आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में बदल दिया जाता है, तो देश आगे बढ़ने और बहुमुखी विकास के साथ नेतृत्व करने में सक्षम होगा.

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