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अमेरिकन एजेंसी के साथ मिलकर स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ने रखी थी चीन पर नजर

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Published : Sep 6, 2020, 7:31 PM IST

Updated : Sep 6, 2020, 8:01 PM IST

चीन ने 1964 में परमाणु परीक्षण किया था. इसके बाद भारत और अमेरिका दोनों के कान खड़े हो गए थे. तब सीआईए ने स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की मदद से चीन पर निगरानी रखी थी. आइए जानते हैं इसका पूरा ब्योरा हमारे वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट में.

How a SFF spy op with CIA help sparked radioactivity fears at Nanda Devi-
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स

नई दिल्ली : रहस्यमय स्पेशल फ्रंटियर फोर्सेज (एसएफएफ) या 'एस्टेब्लिशमेंट-22' भारत के एक सबसे अच्छे खुफिया तंत्र में शामिल है, लेकिन इस फोर्स की गोपनीयता का पर्दा धीरे-धीरे हटना शुरू हो गया है, क्योंकि हाल में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ झड़प में एसएफएफ के एक अधिकारी की शहादत हो गई थी.

1962 में चीन की तर्ज पर विशेष कमांडो ऑपरेशन करने के हुक्म के साथ इसकी स्थापना की गई. चकराता-मुख्यालय वाले एसएफएफ को बहुत अधिक ऊंचाई वाली जंग में विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है. यह भारत के कई सैन्य और आंतरिक सुरक्षा संघर्षों का हिस्सा रहा है. इसके साथ-साथ कई शीर्ष-गुप्त अभियानों का एक सक्रिय भागीदार भी रहा है, लेकिन इसका काम जनता की नजरों से बचा रहा.

इस तरह के अभियानों में इसका एक अभियान अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की महत्वाकांक्षी योजना के अनुसार 7816 मीटर की ऊंचाई स्थित नंदा देवी की चोटी पर एक निगरानी यंत्र को स्थापित करना था. कंचनजंघा के बाद नंदादेवी भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है.

पश्चिमी दुनिया को आश्चर्यचकित करते हुए चीन ने 1964 में अपने पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में एक परमाणु बम का परीक्षण किया था. उस समय तक पश्चिमी देशों का मानना था कि चीन परमाणु तकनीक प्राप्त करने से अभी बहुत दूर है.

सीआईए की सोच पर आधारित इस अभियान के तरह नंदा देवी शिखर के पास एक उपकरण स्थापित करना था ताकि चीन यदि और कोई परमाणु परीक्षण करे तो उसका पता लगाया जा सके. उन दिनों एसएफएफ का संचालन इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) के जिम्मे था. तब महान पर्वतारोही कैप्टन एमएस कोहली के नेतृत्व में एक टीम गठित की गई.

अब 89 वर्ष के हो चुके कैप्टन कोहली ने ईटीवी भारत ने कहा, ‘मैं भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) में था, लेकिन मेरी सेवाओं का इस्तेमाल आईबी समेत सिस्टर संगठनों ने भी किया.

अमेरिकियों को मिलाकर हमारी एक बड़ी टीम थी लेकिन टीम का मुख्य नेता मैं, सोनम ग्यात्सो, हरीश रावत, जीएस पंगु, सोनम वांग्याल थे. कई लोग नव गठित एसएफएफ या स्टेब्लिशमेंट 22 से थे. टीम के कई सदस्य अलास्का के माउंट मैकिनले स्थित सीआईए के एक सुविधा केंद्र में प्रशिक्षण ले चुके थे.

वर्ष 1965 के अक्टूबर में हुई पहली चढ़ाई में हम केवल कैंप चार तक ही पहुंच सके थे. यह नंदा देवी शिखर से लगभग 150-200 फीट नीचे था. हमें खराब मौसम के कारण अभियान को समाप्त करना पड़ा, लेकिन यंत्र को एक छोटी सी गुफा में छिपाने का फैसला किया ताकि हमारा अगला अभियान हो जब भी हम इसे फिर से प्राप्त कर सकें.

कैप्टन कोहली ने कहा कि लेकिन जब हमारी टीम 1966 में फिर से उस जगह पर पहुंची तो वह यंत्र गायब था.

अमेरिकियों ने हमसे कहा कि किसी भी हाल में उस यंत्र को खोजना है क्योंकि उसमें रेडियोधर्मी कैप्सूल हैं, जिससे जीवन को खतरा है. यह तलाशी अभियान तीन साल तक जारी रहा. वास्तव में उस यंत्र में एक सेंसर था और उसके साथ छह फीट लंबा एंटीना लगा था ताकि चीन के परमाणु परीक्षण स्थल से आंकड़े एकत्र कर सके. सेंसर एक जेनरेटर से संचालित किया गया था, जो रेडियोधर्मी गर्मी को बिजली में बदल देता था. जेनरेटर के अंदर के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से में प्लूटोनियम ईंधन कैप्सूल था. अनुमान है कि सेंसर को बिजली देने के लिए पांच किलोग्राम प्लूटोनियम 238 और 239 को जेनरेटर में रखा गया था.

यह भी पढ़ें- एसएफएफ जांबाजों को पहचान दिलाने की उठी मांग, जानिए क्यों है चर्चा

कई लोगों का मानना है कि प्लूटोनियम ईंधन कैप्सूल गर्मी उत्सर्जित करता है इसलिए हो सकता है कि इसने अपने रास्ते की बर्फ को पिघला दिया हो. अमेरिका में कई का यह भी मानना है कि हो सकता है कि भारतीय टीम ने चुपके से उस यंत्र को दूर फेंक दिया हो.

उन्होंने कहा कि जहां तक उस समय की बात जो मुझे पूरी तरह से याद है, उस खोए हुए जनरेटर की खोज का काम 1965 से 1968 तक तीन साल चला. यह मेरे जीवन का सबसे मुश्किल भरा और कठिन समय था.

कैप्टन कोहली ने कहा, मेरे साथ श्री कपूर करके एक वैज्ञानिक थे. (मुझे उनका पूरा नाम याद नहीं है). हमलोगों ने 1966 से हर दिन ऋषि गंगा के पानी का परीक्षण किया ताकि रेडियोधर्मिता के स्तर का पता चल सके. ऋषि गंगा ग्लेशियर के निकलती है.

महान पर्वतारोही कैप्टन कोहली ने कहा कि वर्ष 1967 में अमेरिका एक और उपकरण लाया और हमने एक अन्य अभियान के तहत उसे नंदा देवी की चोटी से नीचे की ओर लगा दिपा.

नई दिल्ली : रहस्यमय स्पेशल फ्रंटियर फोर्सेज (एसएफएफ) या 'एस्टेब्लिशमेंट-22' भारत के एक सबसे अच्छे खुफिया तंत्र में शामिल है, लेकिन इस फोर्स की गोपनीयता का पर्दा धीरे-धीरे हटना शुरू हो गया है, क्योंकि हाल में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ झड़प में एसएफएफ के एक अधिकारी की शहादत हो गई थी.

1962 में चीन की तर्ज पर विशेष कमांडो ऑपरेशन करने के हुक्म के साथ इसकी स्थापना की गई. चकराता-मुख्यालय वाले एसएफएफ को बहुत अधिक ऊंचाई वाली जंग में विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है. यह भारत के कई सैन्य और आंतरिक सुरक्षा संघर्षों का हिस्सा रहा है. इसके साथ-साथ कई शीर्ष-गुप्त अभियानों का एक सक्रिय भागीदार भी रहा है, लेकिन इसका काम जनता की नजरों से बचा रहा.

इस तरह के अभियानों में इसका एक अभियान अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की महत्वाकांक्षी योजना के अनुसार 7816 मीटर की ऊंचाई स्थित नंदा देवी की चोटी पर एक निगरानी यंत्र को स्थापित करना था. कंचनजंघा के बाद नंदादेवी भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है.

पश्चिमी दुनिया को आश्चर्यचकित करते हुए चीन ने 1964 में अपने पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में एक परमाणु बम का परीक्षण किया था. उस समय तक पश्चिमी देशों का मानना था कि चीन परमाणु तकनीक प्राप्त करने से अभी बहुत दूर है.

सीआईए की सोच पर आधारित इस अभियान के तरह नंदा देवी शिखर के पास एक उपकरण स्थापित करना था ताकि चीन यदि और कोई परमाणु परीक्षण करे तो उसका पता लगाया जा सके. उन दिनों एसएफएफ का संचालन इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) के जिम्मे था. तब महान पर्वतारोही कैप्टन एमएस कोहली के नेतृत्व में एक टीम गठित की गई.

अब 89 वर्ष के हो चुके कैप्टन कोहली ने ईटीवी भारत ने कहा, ‘मैं भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) में था, लेकिन मेरी सेवाओं का इस्तेमाल आईबी समेत सिस्टर संगठनों ने भी किया.

अमेरिकियों को मिलाकर हमारी एक बड़ी टीम थी लेकिन टीम का मुख्य नेता मैं, सोनम ग्यात्सो, हरीश रावत, जीएस पंगु, सोनम वांग्याल थे. कई लोग नव गठित एसएफएफ या स्टेब्लिशमेंट 22 से थे. टीम के कई सदस्य अलास्का के माउंट मैकिनले स्थित सीआईए के एक सुविधा केंद्र में प्रशिक्षण ले चुके थे.

वर्ष 1965 के अक्टूबर में हुई पहली चढ़ाई में हम केवल कैंप चार तक ही पहुंच सके थे. यह नंदा देवी शिखर से लगभग 150-200 फीट नीचे था. हमें खराब मौसम के कारण अभियान को समाप्त करना पड़ा, लेकिन यंत्र को एक छोटी सी गुफा में छिपाने का फैसला किया ताकि हमारा अगला अभियान हो जब भी हम इसे फिर से प्राप्त कर सकें.

कैप्टन कोहली ने कहा कि लेकिन जब हमारी टीम 1966 में फिर से उस जगह पर पहुंची तो वह यंत्र गायब था.

अमेरिकियों ने हमसे कहा कि किसी भी हाल में उस यंत्र को खोजना है क्योंकि उसमें रेडियोधर्मी कैप्सूल हैं, जिससे जीवन को खतरा है. यह तलाशी अभियान तीन साल तक जारी रहा. वास्तव में उस यंत्र में एक सेंसर था और उसके साथ छह फीट लंबा एंटीना लगा था ताकि चीन के परमाणु परीक्षण स्थल से आंकड़े एकत्र कर सके. सेंसर एक जेनरेटर से संचालित किया गया था, जो रेडियोधर्मी गर्मी को बिजली में बदल देता था. जेनरेटर के अंदर के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से में प्लूटोनियम ईंधन कैप्सूल था. अनुमान है कि सेंसर को बिजली देने के लिए पांच किलोग्राम प्लूटोनियम 238 और 239 को जेनरेटर में रखा गया था.

यह भी पढ़ें- एसएफएफ जांबाजों को पहचान दिलाने की उठी मांग, जानिए क्यों है चर्चा

कई लोगों का मानना है कि प्लूटोनियम ईंधन कैप्सूल गर्मी उत्सर्जित करता है इसलिए हो सकता है कि इसने अपने रास्ते की बर्फ को पिघला दिया हो. अमेरिका में कई का यह भी मानना है कि हो सकता है कि भारतीय टीम ने चुपके से उस यंत्र को दूर फेंक दिया हो.

उन्होंने कहा कि जहां तक उस समय की बात जो मुझे पूरी तरह से याद है, उस खोए हुए जनरेटर की खोज का काम 1965 से 1968 तक तीन साल चला. यह मेरे जीवन का सबसे मुश्किल भरा और कठिन समय था.

कैप्टन कोहली ने कहा, मेरे साथ श्री कपूर करके एक वैज्ञानिक थे. (मुझे उनका पूरा नाम याद नहीं है). हमलोगों ने 1966 से हर दिन ऋषि गंगा के पानी का परीक्षण किया ताकि रेडियोधर्मिता के स्तर का पता चल सके. ऋषि गंगा ग्लेशियर के निकलती है.

महान पर्वतारोही कैप्टन कोहली ने कहा कि वर्ष 1967 में अमेरिका एक और उपकरण लाया और हमने एक अन्य अभियान के तहत उसे नंदा देवी की चोटी से नीचे की ओर लगा दिपा.

Last Updated : Sep 6, 2020, 8:01 PM IST
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