नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 370 पर शीघ्र सुनवाई से इंकार कर दिया है. न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. याचिका अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और कांग्रेस कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला ने लगाई थी. इन्होंने याचिका की सुनवाई के लिये शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था. पीठ ने कहा कि ये सामान्य प्रक्रिया के तहत सूचीबद्ध होगी.
व्यक्तिगत रूप से याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने मामले का उल्लेख करते हुए पीठ से 12 या 13 अगस्त को सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था.
दूसरी ओर, पूनावाला की ओर से अधिवक्ता सुहेल मलिक ने कहा कि, 'वह अनुच्छेद 370 पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं लेकिन चाहते हैं कि राज्य से ‘कर्फ्यू और पाबंदियां’ तथा इंटरनेट, समाचार चैनलों और फोन लाइनों को अवरूद्ध करने सहित उठाए गए सख्त कदम वापस लिये जाएं.'
पीठ ने शर्मा से सवाल किया कि, 'क्या उन्होंने याचिका में बताई गयी खामियों को दूर कर दिया है. इस पर शर्मा ने कहा कि उन्होंने आपत्तियों को दूर कर दिया है. रजिस्ट्री ने उनकी याचिका को नंबर दे दिया है.'
शर्मा ने याचिका शीघ्र सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करने का अनुरोध करते हुए कहा, 'पाकिस्तान सरकार और कुछ कश्मीरी लोगों ने कहा है कि वे अनुच्छेद 370 पर राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में जाएगें.'
इस पर पीठ ने सवाल किया, 'यदि वे संयुक्त राष्ट्र जायेंगे तो क्या संयुक्त राष्ट्र भारत के संविधान संशोधन पर रोक लगा सकता है ?.'
पीठ ने शर्मा से कहा, ‘आप अपनी ऊर्जा इस मामले में बहस के लिये बचा कर रखें.’
शर्मा ने अपनी याचिका में दावा किया है राष्ट्रपति का आदेश गैर-कानूनी है. इसे जम्मू कश्मीर विधानसभा की सहमति के बगैर ही पारित किया गया है.
पूनावाला के वकील ने कहा राज्य की जनता अपने परिवार के सदस्यों से संपर्क स्थापित करना चाहती है. उन्हें वहां की मौजूदा स्थिति में अपने परिजनों की कुशलक्षेम जानने का अधिकार है.
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दरअसल याचिका में पूनावाला ने नजरबंद पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को रिहा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है. इसके साथ उन्होंने राज्य की वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिये न्यायिक आयोग गठित करने का भी अनुरोध किया है.
वहीं कांग्रेस कार्यकर्ता की याचिका में कहा गया है, सरकार के फैसले से संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 में मौलिक अधिकारों का हनन होता है.
बहरहाल याचिका में यह भी कहा गया है केन्द्र द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटा दिया गया है. इस फैसला से राज्य में राजनीतिक दलों के अनेक नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है. राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया है.
बता दें राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने संविधान के अनुच्छेद 370 के उन प्रावधानों को समाप्त घोषित कर दिया है. जो जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देता था.
उल्लेखनीय है सरकार ने जम्मू कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर दिया है. साथ में सीमावर्ती राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभक्त कर दिया है. मंगलवार को संसद से मंजूरी प्राप्त हो गई थी.
इसके बाद, राष्ट्रपति ने इस पर अपनी मुहर लगायी थी.