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कालेधन और आजीवन कारावास की सजा का आकलन करने वाली याचिका काल्पनिक : कोर्ट

कोर्ट ने कालाधन जब्त करने और आजीवन कारावास की सजा का आकलन करने के लिए केंद्र से निर्देश मांगने वाली याचिका को काल्पनिक बताते हुए इस पर विचार करने से इनकार कर दिया.

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Published : Dec 11, 2020, 7:03 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने रिश्वतखोरी जैसे अपराधों में 100% कालाधन जब्त करने और आजीवन कारावास की सजा का आकलन करने के लिए केंद्र से निर्देश मांगने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि यह याचिका काल्पनिक है.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हृषिकेश की पीठ भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

उपाध्याय ने 1993 की वोहरा कमेटी की रिपोर्ट को राजनीति के अपराधीकरण पर एनआईए, सीबीआई, ईडी और एसएफआईओ को सौंपने की भी मांग की थी. जस्टिस कौल ने कहा कि वे संसद को कोई आदेश जारी नहीं कर सकते और याचिकाकर्ता न्यायपालिका सभी भूमिकाओं को अदा करने की उम्मीद नहीं कर सकते.

न्यायमूर्ति कौल ने सवाल किया कि क्या ये सार्थक प्रार्थनाएं हैं? गरीबी को मिटाना, देश को साफ करना? उन्होंने याचिकाकर्ता को याचिकाएं लिखने से बेहतर देश पर किताबें लिखने का सुझाव दिया.

पढ़ें :- कालाधन, बेनामी संपत्ति जब्त करने की व्यवहार्यता का पता लगाने को याचिका दायर

कोर्ट ने माना कि उम्मीद है कि देश शीर्ष पर होगा और दुनिया एक खूबसूरत जगह बन जाएगी. कोर्ट इस तरह की याचिकाओं पर विचार नहीं करेगी. इस मामले को खारिज कर दिया गया और वापस ले लिया गया. याचिकाकर्ता को इस मुद्दे के लिए कानून आयोग का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दी गई है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने रिश्वतखोरी जैसे अपराधों में 100% कालाधन जब्त करने और आजीवन कारावास की सजा का आकलन करने के लिए केंद्र से निर्देश मांगने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि यह याचिका काल्पनिक है.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हृषिकेश की पीठ भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

उपाध्याय ने 1993 की वोहरा कमेटी की रिपोर्ट को राजनीति के अपराधीकरण पर एनआईए, सीबीआई, ईडी और एसएफआईओ को सौंपने की भी मांग की थी. जस्टिस कौल ने कहा कि वे संसद को कोई आदेश जारी नहीं कर सकते और याचिकाकर्ता न्यायपालिका सभी भूमिकाओं को अदा करने की उम्मीद नहीं कर सकते.

न्यायमूर्ति कौल ने सवाल किया कि क्या ये सार्थक प्रार्थनाएं हैं? गरीबी को मिटाना, देश को साफ करना? उन्होंने याचिकाकर्ता को याचिकाएं लिखने से बेहतर देश पर किताबें लिखने का सुझाव दिया.

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कोर्ट ने माना कि उम्मीद है कि देश शीर्ष पर होगा और दुनिया एक खूबसूरत जगह बन जाएगी. कोर्ट इस तरह की याचिकाओं पर विचार नहीं करेगी. इस मामले को खारिज कर दिया गया और वापस ले लिया गया. याचिकाकर्ता को इस मुद्दे के लिए कानून आयोग का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दी गई है.

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