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अयोध्या केस : SC ने हिन्दू वादी को लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति दी

उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या मु्द्दे पर सुनवाई पूरी कर ली है और फैसला सुरक्षित रख लिया है. इसी बीच न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में एक और हिन्दू वादी को अपना लिखित नोट दाखिल करने की गुरुवार को इजाजत दी.

उच्चतम न्यायालय
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Published : Oct 24, 2019, 10:35 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में एक और हिन्दू वादी को अपना लिखित नोट दाखिल करने की गुरुवार को इजाजत दी. इस वादी ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि यदि शीर्ष अदालत यह व्यवस्था देती है कि हिन्दू और मुस्लिम पक्ष में से किसी का भी 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर मालिकाना हक साबित नहीं पाया तो इसे सरकारी जमीन घोषित किया जाये.

उमेश चन्द्र पाण्डे ने, जिन्हें 1961 में दायर वाद में उप्र सुन्नी केन्द्रीय वक्फ बोर्ड ने प्रतिवादी बनाया था, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अयोध्या मामले का उल्लेख किया और राहत में बदलाव के बारे में लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति चाही.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितम्बर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी.

संविधान पीठ ने सभी पक्षों से कहा था कि सुनवाई के दौरान उठे मुद्दों के परिप्रेक्ष्य में वे राहत में बदलाव के बारे में 19 अक्टूबर तक लिखित नोट दाखिल करें ताकि न्यायालय निर्णय के योग्य मुद्दों को सीमित कर सके.

ये भी पढ़ें : अयोध्या विवाद मामले में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित

पाण्डे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी. शेखर ने जब गुरुवार को लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति मांगी तो प्रधान न्यायाधीश ने टिप्पणी की, 'हम समझ रहे थे कि अयोध्या प्रकरण पूरा हो गया.'

हालांकि, पीठ ने उन्हें यह नोट दाखिल करने की अनुमति दे दी.

पाण्डे ने अपने नोट में कहा है कि लार्ड डलहौजी ने 1856 में अवध के नवाज को अपदस्थ करने के बाद अवध की पूरी रियासत को अपने अधीन कर दिया था. बाद में लार्ड कैनिंग ने तीन मार्च, 1858 में एक आदेश जारी करके अवध की सारी भूमि के मालिकाना हक ब्रिटिश सरकार के पक्ष में जब्त कर लिया था.

नोट में कहा गया है कि इसलिए अयोध्या की विवादित भूमि नजूल (सरकार) की जमीन हो गयी और आज भी वही स्थिति बरकरार है, जिसे मुस्लिम पक्षकारों ने भी स्वीकार किया है.

ये भी पढ़ें : अयोध्या मामला: मुस्लिम पक्षकार वक्फ बोर्ड के दावे से हैरान, कहा- समझौते का प्रस्ताव स्वीकार नहीं

शीर्ष अदालत ने इससे पहले मंगलवार को 'निर्वाणी अखाड़ा' को लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति दी थी. इस नोट में निर्वाणी अखाड़ा ने उस स्थल पर श्रद्धालु के रूप में रामलला की पूजा अर्चना के प्रबंधन का अधिकार देने का अनुरोध किया था.

इस मामले में निर्मोही अखाड़ा और निर्वाणी अखाड़ा दोनों ही रामलला विराजमान के जन्मस्थल पर पूजा और प्रबंधन के अधिकार चाहते हैं.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में एक और हिन्दू वादी को अपना लिखित नोट दाखिल करने की गुरुवार को इजाजत दी. इस वादी ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि यदि शीर्ष अदालत यह व्यवस्था देती है कि हिन्दू और मुस्लिम पक्ष में से किसी का भी 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर मालिकाना हक साबित नहीं पाया तो इसे सरकारी जमीन घोषित किया जाये.

उमेश चन्द्र पाण्डे ने, जिन्हें 1961 में दायर वाद में उप्र सुन्नी केन्द्रीय वक्फ बोर्ड ने प्रतिवादी बनाया था, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अयोध्या मामले का उल्लेख किया और राहत में बदलाव के बारे में लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति चाही.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितम्बर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी.

संविधान पीठ ने सभी पक्षों से कहा था कि सुनवाई के दौरान उठे मुद्दों के परिप्रेक्ष्य में वे राहत में बदलाव के बारे में 19 अक्टूबर तक लिखित नोट दाखिल करें ताकि न्यायालय निर्णय के योग्य मुद्दों को सीमित कर सके.

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पाण्डे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी. शेखर ने जब गुरुवार को लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति मांगी तो प्रधान न्यायाधीश ने टिप्पणी की, 'हम समझ रहे थे कि अयोध्या प्रकरण पूरा हो गया.'

हालांकि, पीठ ने उन्हें यह नोट दाखिल करने की अनुमति दे दी.

पाण्डे ने अपने नोट में कहा है कि लार्ड डलहौजी ने 1856 में अवध के नवाज को अपदस्थ करने के बाद अवध की पूरी रियासत को अपने अधीन कर दिया था. बाद में लार्ड कैनिंग ने तीन मार्च, 1858 में एक आदेश जारी करके अवध की सारी भूमि के मालिकाना हक ब्रिटिश सरकार के पक्ष में जब्त कर लिया था.

नोट में कहा गया है कि इसलिए अयोध्या की विवादित भूमि नजूल (सरकार) की जमीन हो गयी और आज भी वही स्थिति बरकरार है, जिसे मुस्लिम पक्षकारों ने भी स्वीकार किया है.

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शीर्ष अदालत ने इससे पहले मंगलवार को 'निर्वाणी अखाड़ा' को लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति दी थी. इस नोट में निर्वाणी अखाड़ा ने उस स्थल पर श्रद्धालु के रूप में रामलला की पूजा अर्चना के प्रबंधन का अधिकार देने का अनुरोध किया था.

इस मामले में निर्मोही अखाड़ा और निर्वाणी अखाड़ा दोनों ही रामलला विराजमान के जन्मस्थल पर पूजा और प्रबंधन के अधिकार चाहते हैं.

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SC-AYODHYA
SC allows Hindu litigant to file written note in Ayodhya case
         New Delhi, Oct 24 (PTI) The Supreme Court Thursday allowed a Hindu litigant in the decades-old Ram Janmbhoomi-Babri Masjid land dispute case to file a written note seeking to declare the 2.77 acre site at Ayodhya as government land if the court holds that neither the Hindu nor the Muslim side has proved ownership.
         Umesh Chandra Pandey, who was made a party (defendant) in a lawsuit filed in 1961 by the UP Sunni Central Wakf Board, mentioned the Ayodhya case before a bench headed by Chief Justice Ranjan Gogoi and sought its nod for filing the written note on 'moulding of reliefs' or narrowing down of the issues raised.
         A 5-judge Constitution bench headed by the CJI had reserved the verdict on October 16 after concluding the 40-day-long hearing in the politically sensitive case and had asked the litigating parties to submit their written note by October 19 on "moulding of reliefs" so that the court can narrow down the issues needed to be adjudicated upon in the vexatious issue.
         When senior advocate V Shekhar, appearing for Pandey, sought the permission to file the written note Thursday, after the expiry of the deadline, the bench observed: "We thought the Ayodhya case is over".
         However, the bench, also comprising Justices S A Bobde and S A Nazeer, allowed the filing of the written note.
         Pandey, in his note, said the entire territory of Awadh was annexed by Lord Dalhousie in 1856 after dethroning of 'Nawab' and later a proclamation was issued by Lord Canning confiscating the proprietary right of Awadh land to the British government on March 3, 1858.
         Hence, the disputed land at Ayodhya became 'nazul' (government) land and the same position remains as on today which has been accepted by Muslim parties also, it said.
         "While moulding the relief, this court may consider that in the event of plaintiffs (the deity through next friend and others) in suit no. 5 and plaintiffs in suit number 4 (Sunni Wakf Board and others) failing to prove the title to the disputed land, the court may declare that the title (ownership) in respect of disputed land belongs to the state and it is for the state to decide what to do with the disputed land...," it said.
         Earlier, the apex court on Tuesday had allowed 'Nirvani Akahara' to file the written note seeking the "right to manage worship of the deity" as 'shebait' (devotee) at the site.
         Both 'Nirmohi Akahara' and its rival 'Nirvani Akahara' are seeking right to manage and offer 'puja' at the birthplace of deity 'Ram Lalla Virajman' at the site.
         Prior to this, Muslim parties, including the Sunni Wakf Board, had filed the written note on moulding of relief in Supreme Court and had said the verdict in the Ayodhya land dispute case will impact "future generations" and have "consequences" for the country's polity.
         On Saturday, several Hindu parties had filed their written submissions in the Supreme Court with the counsel for the deity 'Ram Lalla' asserting that Hindus have been worshipping at the disputed area "since time immemorial" and the birthplace of the Lord Ram is "non-negotiable".
         Besides the deity, other Hindu parties -- Nirmohi Akhara, All India Hindu Mahasabha and devotee Visharad -- had also filed their written notes on Saturday in this case.
         The high voltage hearing in the Ram Janambhoomi-Babri Masjid dispute involving 2.77 acres of land is the second longest after the landmark Keshvanand Bharti case in 1973 during which the proceedings for propounding the doctrine of basic structure of the Constitution continued for 68 days.
         The hearing on the validity of Aadhaar scheme lasted for 38 days in the top court, which came into existence in 1950. PTI SJK
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