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विशेष लेख : विश्व को ईंधन उपभोग की नहीं, उत्पादन की आवश्यकता है!

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Published : Jan 4, 2020, 6:12 PM IST

अगले दस वर्षों में प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन पर काबू पाना बेहद जरूरी है. हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को धरती से निकालकर ईंधन की तरह इस्तेमाल कर मौजूदा हालात को और ज्यादा खराब कर रहे हैं. आज के उजाले के लिए हम अपने भविष्य को अंधकार में धकेल रहे हैं. हम कार्बन उत्सर्जन के बवंडर में फंसकर अपना ही दम घोट रहे हैं. जानकारों की राय में इस समस्या से बचने का सबसे कारगर उपाय है साफ ईंधन का इस्तेमाल, जिससे पर्यावरण मे प्रदूषण नहीं फैलेगा. इस समस्या से कैसे निजात मिले? इस विषय पर विशेषज्ञ अंबुज नौटियाल की राय पढ़ें...

sustainable natural resources
सांकेतिक चित्र

सारी दुनिया प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन से दूरी बना रही है. हम दुनिया को चलाने के लिए अपने पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे हैं. यह चलन पिछले कई दशकों से जारी है. प्राकृतिक सम्पदाओं के खत्म होने के साथ-साथ यह इंसानों में कई तरह की बीमारियों की वजह भी बन रही है. इसके साथ पर्यावरण को नुकसान के कारण अन्य जीव जंतुओं पर भी खतरा मंडरा रहा है. इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है, ऐसे ईंधन का निर्माण करना जो मनुष्यों के साथ अन्य जीवों और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए.

अगले दस सालों में इस समस्या पर काबू पाना बेहद जरूरी है. हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को धरती से निकालकर ईंधन की तरह इस्तेमाल कर मौजूदा हालातों को और ज्यादा खराब कर रहे हैं. आज के उजाले के लिए हम अपने भविष्य को अंधकार में धकेल रहे हैं. हम कार्बन उत्सर्जन के बवंडर में फंसकर अपना ही दम घोट रहे हैं. जानकारों की राय में इस समस्या से बचने का सबसे कारगर उपाय है साफ ईंधन का इस्तेमाल, जिससे पर्यावरण मे प्रदूषण नही फैलेगा. इस समस्या से कैसे निजात मिले?

कोयले और पेट्रोल के क्या हैं खतरे?

आज भी दुनिया में कोयले, तेल और गैस से बने ईंधन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके कारण, 5500 करोड़ टन कार्बन का उत्सर्जन हो रहा है. यह ग्लोबल वॉर्मिंग और पर्यावरण के प्रदूषण को बढ़ाने के साथ ही निम्नलिखित समस्याओं को भी बढ़ा रहा है-

  • वातावरण के तापमान में एक डिग्री के इजाफे से समुद्र स्तर में 10 सेमी का इजाफा होगा.
  • इसके कारण तटीय इलाकों में रहने वाले 2.1 करोड़ लोगों के बेघर होने का खतरा है.
  • वहीं, प्रति हेक्टयर, गेंहू के उत्पादन में 3% और चावल के उत्पादन में 4% की कमी आ जाएगी, जिससे दुनिया में खाने की कमी होगी.
  • मनुष्यों में सेहत बरकरार रखने में मददगार 5% अच्छा बैक्टीरिया भी गायब हो जाएगा, जिससे बीमारियों के फैलने का खतरा मंडराने लगेगा.
  • पीने के पानी की उपलब्ध्ता 9% से गिरकर 4% तक पहुंच जाएगी.

हम क्या कर सकते हैं ?

  • जीवाश्म ईंधन के उत्पादन और इस्तेमाल में कमी से प्राकृतिक संसाधनों पर जोर कम होगा.
  • सरकारों को भी साफ ईंधन के व्यापक उत्पादन के लिए अनुसंधान पर समय और पैसा खर्च करने की जरूरत है.
  • पवन और सौर ऊर्जा के बड़े पैमाने पर उत्पादन की तरफ काम करने की जरूरत है.
  • अपने घरों में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले लोगों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहित करने की जरूरत है.
  • इस तरह से बनी बिजली घरों में काम आती है और बाकी बिजली को ग्रिड में भेजा जा सकता है.
  • बैटरी से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा देने से पर्यावरण के प्रदूषण को कम किया जा सकता है.

इसे भी पढ़ें- हरित ऊर्जा की तरफ भारत के बढ़ते कदम.. जैव ईंधन के उत्पादन में नई पहल

इस तरह के कदम उठाने से हम आने वाले समय में निम्नलिखित बदलावों की उम्मीद कर सकते हैं-

  • 2025 तक : हैदराबाद के करीब माहेश्वरम में रहने वाले सुनीता और राजेंद्र बिजली खरीदने की जगह अपने घर की छत पर सौर ऊर्जा का उत्पादन कर रहे हैं, जिस कारण वो अपने घर के हर काम के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं और अतिरिक्त ऊर्जा को ग्रिड में सप्लाई कर सरकार से आर्थिक फायदा भी ले रहे हैं.
  • 2030 तक: कुरनूल में रहने वाला एक किसान बेंगलुरु में अपने बेटे का पास जाता है और जरूरी सामान के साथ वो पवन ऊर्जा से संचालित एक चार्ज्ड बैटरी भी ले जाता है और वापसी में खाली बैटरी को साथ ले आता है.
  • 2035 तक: दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु आदि शहरों की सभी सड़कों पर बड़ी संख्या में गाड़ियां हैं, पर वो प्रदूषण नही फैला रही हैं. लोग आराम से ताजी हवा में सांस ले सकते हैं, क्योंकि धुआं फैलाने वाली गाड़ियों की जगह बिजली से चलने वाली गाड़ियों ने ले ली है.

ये काम हो रहे हैं-

  • सौर ऊर्जा : ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी स्पेन, पुर्तगाल और फ्रांस जैसे देश, पारम्परिक ऊर्जा से ज्यादा सौर ऊर्जा का उत्पादन कर रहे हैं. इन देशों में सौर ऊर्जा के उत्पाद से जुड़े खर्चों को काफी कम किया गया है. इससे प्रेरित होकर संयुक्त राष्ट्र और भारत सरकार ने अपने यहां 2030 तक ऊर्जा मांग का 30% और 2070 तक 50% सौर ऊर्जा में बदलने का लक्ष्य रखा है.
  • पवन ऊर्जा : यह 98% साफ और भरोसेमंद होती है. पवन ऊर्जा की मशीनों को लगाने के अतिरिक्त और कोई अन्य खर्चा नहीं है. इसके कारण दुनियाभर में पवन उर्जा के उत्पादन को सालाना 3% की दर से बढ़ाया जा रहा है. पवन ऊर्जा के क्षेत्र में, चीन, अमेरिका, जर्मनी और स्पेन के बाद भारत का पांचवा स्थान आता है. भारत ने 2022 तक अपने यहां साफ ऊर्जा के 175 गीगावॉट उत्पादन का लक्ष्य रखा है. इसमें सौर (100), पवन(60), बायेगैस (10) और छोटी परियोजनाओं से 5 गीगावॉट उत्पादन शामिल है. बता दें कि 100 मेगावॉट=1 गीगावॉट के बराबर, 100 गीगावॉट=1 टेरावॉट के बराबर होता है.
  • हाइडिल ऊर्जा : दुनियाभर में सालाना 2700 टेरावॉट हाइडिल ऊर्जा का उत्पादन होता है. इस ऊर्जा पर, दुनिया के 66 देश अपनी 50% और 24 देश 90% ऊर्जा मांगों के लिए निर्भर रहते हैं. हमारे देश में हाइडिल ऊर्जा से हमारी ऊर्जा मांग का 34% हिस्सा पूरा होता है. देश में अन्य जलाशयों से भी 85,000 मेगावॉट ऊर्जा का उत्पाद होता है.
  • टेबल
  • परमाणु ऊर्जा : केवल 7,000 टन यूरेनियम के इस्तमाल से दुनिया के सभी देशों की ऊर्जा मांगों को साल भर तक पूरा किया जा सकता है. दुनियाभर में 444 परमाणू ऊर्जा संयंत्र काम कर रहे हैं और 66 का निर्माण हो रहा है. भारत में 22 परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से सालना सात गीगावॉट ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है. इसे आंकड़े को 2020 से 2030 के बीच में 20 गीगावॉट तक पहुंचाने का लक्ष्य है.
  • परमाणू फ्यूजन : सूरज की स्तह पर हाइड्रोजन के फ्यूजन के कारण बड़ी तादाद में ऊर्जा पैदा होती है. इसी तर्ज पर धरती पर भी ऐसी ऊर्जा के उत्पादन की कोशिशें जारी हैं. इन परीक्षणों के 2030 तक कामयाब होने की उम्मीद है. वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनियाभर की सालभर की ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए महज 867 टन हाइड्रोजन की जरूरत होगी.

(अंबुज नौटियाल)

सारी दुनिया प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन से दूरी बना रही है. हम दुनिया को चलाने के लिए अपने पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे हैं. यह चलन पिछले कई दशकों से जारी है. प्राकृतिक सम्पदाओं के खत्म होने के साथ-साथ यह इंसानों में कई तरह की बीमारियों की वजह भी बन रही है. इसके साथ पर्यावरण को नुकसान के कारण अन्य जीव जंतुओं पर भी खतरा मंडरा रहा है. इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है, ऐसे ईंधन का निर्माण करना जो मनुष्यों के साथ अन्य जीवों और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए.

अगले दस सालों में इस समस्या पर काबू पाना बेहद जरूरी है. हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को धरती से निकालकर ईंधन की तरह इस्तेमाल कर मौजूदा हालातों को और ज्यादा खराब कर रहे हैं. आज के उजाले के लिए हम अपने भविष्य को अंधकार में धकेल रहे हैं. हम कार्बन उत्सर्जन के बवंडर में फंसकर अपना ही दम घोट रहे हैं. जानकारों की राय में इस समस्या से बचने का सबसे कारगर उपाय है साफ ईंधन का इस्तेमाल, जिससे पर्यावरण मे प्रदूषण नही फैलेगा. इस समस्या से कैसे निजात मिले?

कोयले और पेट्रोल के क्या हैं खतरे?

आज भी दुनिया में कोयले, तेल और गैस से बने ईंधन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके कारण, 5500 करोड़ टन कार्बन का उत्सर्जन हो रहा है. यह ग्लोबल वॉर्मिंग और पर्यावरण के प्रदूषण को बढ़ाने के साथ ही निम्नलिखित समस्याओं को भी बढ़ा रहा है-

  • वातावरण के तापमान में एक डिग्री के इजाफे से समुद्र स्तर में 10 सेमी का इजाफा होगा.
  • इसके कारण तटीय इलाकों में रहने वाले 2.1 करोड़ लोगों के बेघर होने का खतरा है.
  • वहीं, प्रति हेक्टयर, गेंहू के उत्पादन में 3% और चावल के उत्पादन में 4% की कमी आ जाएगी, जिससे दुनिया में खाने की कमी होगी.
  • मनुष्यों में सेहत बरकरार रखने में मददगार 5% अच्छा बैक्टीरिया भी गायब हो जाएगा, जिससे बीमारियों के फैलने का खतरा मंडराने लगेगा.
  • पीने के पानी की उपलब्ध्ता 9% से गिरकर 4% तक पहुंच जाएगी.

हम क्या कर सकते हैं ?

  • जीवाश्म ईंधन के उत्पादन और इस्तेमाल में कमी से प्राकृतिक संसाधनों पर जोर कम होगा.
  • सरकारों को भी साफ ईंधन के व्यापक उत्पादन के लिए अनुसंधान पर समय और पैसा खर्च करने की जरूरत है.
  • पवन और सौर ऊर्जा के बड़े पैमाने पर उत्पादन की तरफ काम करने की जरूरत है.
  • अपने घरों में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले लोगों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहित करने की जरूरत है.
  • इस तरह से बनी बिजली घरों में काम आती है और बाकी बिजली को ग्रिड में भेजा जा सकता है.
  • बैटरी से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा देने से पर्यावरण के प्रदूषण को कम किया जा सकता है.

इसे भी पढ़ें- हरित ऊर्जा की तरफ भारत के बढ़ते कदम.. जैव ईंधन के उत्पादन में नई पहल

इस तरह के कदम उठाने से हम आने वाले समय में निम्नलिखित बदलावों की उम्मीद कर सकते हैं-

  • 2025 तक : हैदराबाद के करीब माहेश्वरम में रहने वाले सुनीता और राजेंद्र बिजली खरीदने की जगह अपने घर की छत पर सौर ऊर्जा का उत्पादन कर रहे हैं, जिस कारण वो अपने घर के हर काम के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं और अतिरिक्त ऊर्जा को ग्रिड में सप्लाई कर सरकार से आर्थिक फायदा भी ले रहे हैं.
  • 2030 तक: कुरनूल में रहने वाला एक किसान बेंगलुरु में अपने बेटे का पास जाता है और जरूरी सामान के साथ वो पवन ऊर्जा से संचालित एक चार्ज्ड बैटरी भी ले जाता है और वापसी में खाली बैटरी को साथ ले आता है.
  • 2035 तक: दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु आदि शहरों की सभी सड़कों पर बड़ी संख्या में गाड़ियां हैं, पर वो प्रदूषण नही फैला रही हैं. लोग आराम से ताजी हवा में सांस ले सकते हैं, क्योंकि धुआं फैलाने वाली गाड़ियों की जगह बिजली से चलने वाली गाड़ियों ने ले ली है.

ये काम हो रहे हैं-

  • सौर ऊर्जा : ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी स्पेन, पुर्तगाल और फ्रांस जैसे देश, पारम्परिक ऊर्जा से ज्यादा सौर ऊर्जा का उत्पादन कर रहे हैं. इन देशों में सौर ऊर्जा के उत्पाद से जुड़े खर्चों को काफी कम किया गया है. इससे प्रेरित होकर संयुक्त राष्ट्र और भारत सरकार ने अपने यहां 2030 तक ऊर्जा मांग का 30% और 2070 तक 50% सौर ऊर्जा में बदलने का लक्ष्य रखा है.
  • पवन ऊर्जा : यह 98% साफ और भरोसेमंद होती है. पवन ऊर्जा की मशीनों को लगाने के अतिरिक्त और कोई अन्य खर्चा नहीं है. इसके कारण दुनियाभर में पवन उर्जा के उत्पादन को सालाना 3% की दर से बढ़ाया जा रहा है. पवन ऊर्जा के क्षेत्र में, चीन, अमेरिका, जर्मनी और स्पेन के बाद भारत का पांचवा स्थान आता है. भारत ने 2022 तक अपने यहां साफ ऊर्जा के 175 गीगावॉट उत्पादन का लक्ष्य रखा है. इसमें सौर (100), पवन(60), बायेगैस (10) और छोटी परियोजनाओं से 5 गीगावॉट उत्पादन शामिल है. बता दें कि 100 मेगावॉट=1 गीगावॉट के बराबर, 100 गीगावॉट=1 टेरावॉट के बराबर होता है.
  • हाइडिल ऊर्जा : दुनियाभर में सालाना 2700 टेरावॉट हाइडिल ऊर्जा का उत्पादन होता है. इस ऊर्जा पर, दुनिया के 66 देश अपनी 50% और 24 देश 90% ऊर्जा मांगों के लिए निर्भर रहते हैं. हमारे देश में हाइडिल ऊर्जा से हमारी ऊर्जा मांग का 34% हिस्सा पूरा होता है. देश में अन्य जलाशयों से भी 85,000 मेगावॉट ऊर्जा का उत्पाद होता है.
  • टेबल
  • परमाणु ऊर्जा : केवल 7,000 टन यूरेनियम के इस्तमाल से दुनिया के सभी देशों की ऊर्जा मांगों को साल भर तक पूरा किया जा सकता है. दुनियाभर में 444 परमाणू ऊर्जा संयंत्र काम कर रहे हैं और 66 का निर्माण हो रहा है. भारत में 22 परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से सालना सात गीगावॉट ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है. इसे आंकड़े को 2020 से 2030 के बीच में 20 गीगावॉट तक पहुंचाने का लक्ष्य है.
  • परमाणू फ्यूजन : सूरज की स्तह पर हाइड्रोजन के फ्यूजन के कारण बड़ी तादाद में ऊर्जा पैदा होती है. इसी तर्ज पर धरती पर भी ऐसी ऊर्जा के उत्पादन की कोशिशें जारी हैं. इन परीक्षणों के 2030 तक कामयाब होने की उम्मीद है. वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनियाभर की सालभर की ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए महज 867 टन हाइड्रोजन की जरूरत होगी.

(अंबुज नौटियाल)

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