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सैनिकों की शहादत के बाद पीएम का सामने न आना पीड़ादायक : शिवसेना - जवानों की शहादत के बावजूद वस्तुस्थिति

लद्दाख में बीते सोमवार को भारत और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए. इस मामले में कार्रवाई को लेकर शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' ने भारत सरकार के खिलाफ हमला बोला है और उसका कहना है कि जवानों की शहादत के बावजूद वस्तुस्थिति बताने के लिए देश के प्रधानमंत्री का जनता के सामने न आना पीड़ादायक है. पढ़ें पूरी खबर...

Editorial of ShivSena Saamana
शिवसेना के मुखपत्र सामना का संपादकीय
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Published : Jun 18, 2020, 1:27 PM IST

मुंबई : लद्दाख में भारत और चीनी सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. इस बाबत शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' ने अपने अग्रलेख में केंद्र सरकार पर हमला बोला है. 'सामना' ने कहा कि यह युद्ध नहीं बल्कि दो देशों के सैनिकों के बीच हुई मारपीट है. ऐसा कहा जा रहा है कि मारपीट में हमारे 20 जवान शहीद हुए जबकि चीन के लगभग 40 जवान मारे गए. मतलब दो देशों की सीमा पर जो कुछ हाथ में आया, उसी हथियार से लड़ रहे हैं. सिर फोड़ रहे हैं. भारत-चीन सीमा का यह संघर्ष और हमला 50 सालों बाद शुरू हुआ और 20 जवानों की शहादत के बावजूद वस्तुस्थिति बताने के लिए देश के प्रधानमंत्री का जनता के सामने न आना पीड़ादायक है.

'सामना' के अग्रलेख के अनुसार पूर्वी लद्दाख स्थित गलवान घाटी सीमा पर सोमवार की रात भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए. ऐसा अधिकृत रूप से कहने में बुधवार की सुबह हो गई. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी. जैसे को तैसा उत्तर देने में हम सक्षम हैं. फिर भी गलवान गाटी में क्या हुआ? चीन की सीमा पर क्या हो रहा है? यह अब तक जनता को नहीं बताया गया है. सूत्र कहते हैं कि चीन के कमांडिंग ऑफिसर और उसके 30-40 सैनिक मारे गए. अब चीन के सैनिक मारे गए, इस पर खुश होकर हम सिर्फ ताली बजाते बैठें क्या? चीन का नुकसान हुआ, यह स्वीकार है, लेकिन भारत की सीमा में चीनी सेना घुस आई है. यह सच होगा तो चीन ने हिन्दुत्व की संप्रभुता पर आघात किया है.

इसके पहले 1975 में चीन की सेना अरुणाचल प्रदेश में घुस आई थी और वहां पर गोलीबारी की थी. इस गोलीबारी में भारत के चार सैनिक शहीद हो गए थे. उसके बाद से अब तक की यह सबसे बड़ी झड़प सीमा पर हुई है. किसी भी प्रकार के हथियार बंदूक, अस्त्र, टैंक आदि का प्रयोग न करते हुए दोनों तरफ की इतनी बड़ी सैन्य हानि होनी है तो रक्षा उत्पादन और परमाणु बम क्यों बनाएं? हम पाषाण युग के पत्थरों से होने वाली जैसी लड़ाई में एक-दूसरे की जान ले रहे हैं. लद्दाख की सीमा पर यही देखने में आया.

संपादकीय में कहा गया कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से देश अधिक मजबूत, गंभीर और लड़ाकू तेवर का हुआ है. ऐसा दावा तीन वर्षों में कई बार किया गया, लेकिन इस दौरान पाकिस्तान, नेपाल और अब चीन ने भारत पर सीधे-सीधे हमला किया है. भारत की सीमा से सटे किसी भी देश से हमारे अच्छे संबंध नहीं हैं और हमारे सत्ताधीश दुनिया जीतने निकले हैं, इस पर आश्चर्य होता है. नेपाल ने भारत का नक्शा कुतरा है. पाकिस्तान की मस्ती सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी जारी है. चीन तो एक फंसाने वाला और मायावी देश है ही, लेकिन नेपाल भी भारत की ओर टेढ़ी नजर से देखकर चुनौती दे रहा होगा तो विश्वनेता और महासत्ता आदि बनने की ओर अग्रसर हमारे देश की अवस्था ठीक नहीं है, यह मानना होगा.

पढ़ें- गलवान घाटी में शहीद हुए कर्नल संतोष बाबू की अंतिम विदाई

ट्रंप और चीन की लड़ाई कोरोना के प्रसार के कारण हुई, लेकिन अमेरिका चीन की मिसाइलों की जद में नहीं है. हमारा देश उसकी जद में है और चीन हमारा पड़ोसी देश है, यह नहीं भुलाया जा सकता. इसीलिए पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और वाजपेयी ने हमेशा धधकती सीमा को शांत रखने का प्रयास किया. देश के सीमा पर संघर्ष की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. चीन से जो संघर्ष आज शुरू है, उसका कारण पंडित नेहरू की असफल विदेश नीति है. ऐसा बोलकर सार्वजनिक सभाओं में तालियां मिल जाएंगी, लेकिन आज जवानों का जो बलिदान शुरू है, उसे रोकने की जिम्मेदारी मोदी सरकार की है.

संपादकीय में कहा गया कि गड़बड़ सीमा पर नहीं, बल्कि दिल्ली में है. इसके साथ ही दिल्ली सरकार के खिलाफ अपशब्द प्रयोग कर कहा गया कि इसीलिए सीमा पर दुश्मन आंख दिखा रहा है. तीन साल पहले जोर लगाकर ऐसा बोलने वाले नरेंद्र मोदी आज दिल्ली के सर्वसत्ताधीश हैं. इसलिए आज जो हुआ है, उसका प्रतिकार मोदी को ही करना होगा. चीन के राष्ट्रपति अहमदाबाद आकर प्रधानमंत्री मोदी के साथ झूले पर ढोकला खाते बैठे. उसी समय हमने इसी स्तंभ से यह चेतावनी दी थी, लाल चीनी बंदरों पर विश्वास मत करो. जैसे पंडित नेहरू के साथ विश्वासघात किया गया, वैसे ही तुम्हारे साथ भी होगा. दुर्भाग्य से ऐसा हो चुका है.

पढ़ें- लद्दाख में शहीद हुए जवानों की अंतिम विदाई में भावनाओं का ज्वार

पाकिस्तान को धमकी देना, चेतावनी देना, सर्जिकल स्ट्राइक करके राजनीतिक माहौल बनाना आसान है. चूंकि पाकिस्तान देश नहीं, बल्कि एक टोली मात्र है. लेकिन चीन के मामले में ऐसा नहीं है. अमेरिका जैसी मदमस्त महासत्ता को कुछ नहीं मानने वाले चीन के पास एक वैश्विक शक्ति है. चीन साम्राज्यवादी और घुसपैठिया है. उसने भारत पर पहले ही अतिक्रमण कर रखा है. लद्दाख की भारतीय जमीन में घुसकर चीन ने जो हमला किया, वह एक चेतावनी है. दिल्ली में बैठकों और चर्चाओं का दौर शुरू है. तनाव किसी को नहीं चाहिए. फिलहाल यह किसी को स्वीकार भी नहीं होगा, लेकिन 20 जवानों का बलिदान व्यर्थ जाने दें क्या? प्रतिकार नहीं हुआ तो मोदी की प्रतिष्ठा को इससे धक्का लगेगा.

मुंबई : लद्दाख में भारत और चीनी सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. इस बाबत शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' ने अपने अग्रलेख में केंद्र सरकार पर हमला बोला है. 'सामना' ने कहा कि यह युद्ध नहीं बल्कि दो देशों के सैनिकों के बीच हुई मारपीट है. ऐसा कहा जा रहा है कि मारपीट में हमारे 20 जवान शहीद हुए जबकि चीन के लगभग 40 जवान मारे गए. मतलब दो देशों की सीमा पर जो कुछ हाथ में आया, उसी हथियार से लड़ रहे हैं. सिर फोड़ रहे हैं. भारत-चीन सीमा का यह संघर्ष और हमला 50 सालों बाद शुरू हुआ और 20 जवानों की शहादत के बावजूद वस्तुस्थिति बताने के लिए देश के प्रधानमंत्री का जनता के सामने न आना पीड़ादायक है.

'सामना' के अग्रलेख के अनुसार पूर्वी लद्दाख स्थित गलवान घाटी सीमा पर सोमवार की रात भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए. ऐसा अधिकृत रूप से कहने में बुधवार की सुबह हो गई. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी. जैसे को तैसा उत्तर देने में हम सक्षम हैं. फिर भी गलवान गाटी में क्या हुआ? चीन की सीमा पर क्या हो रहा है? यह अब तक जनता को नहीं बताया गया है. सूत्र कहते हैं कि चीन के कमांडिंग ऑफिसर और उसके 30-40 सैनिक मारे गए. अब चीन के सैनिक मारे गए, इस पर खुश होकर हम सिर्फ ताली बजाते बैठें क्या? चीन का नुकसान हुआ, यह स्वीकार है, लेकिन भारत की सीमा में चीनी सेना घुस आई है. यह सच होगा तो चीन ने हिन्दुत्व की संप्रभुता पर आघात किया है.

इसके पहले 1975 में चीन की सेना अरुणाचल प्रदेश में घुस आई थी और वहां पर गोलीबारी की थी. इस गोलीबारी में भारत के चार सैनिक शहीद हो गए थे. उसके बाद से अब तक की यह सबसे बड़ी झड़प सीमा पर हुई है. किसी भी प्रकार के हथियार बंदूक, अस्त्र, टैंक आदि का प्रयोग न करते हुए दोनों तरफ की इतनी बड़ी सैन्य हानि होनी है तो रक्षा उत्पादन और परमाणु बम क्यों बनाएं? हम पाषाण युग के पत्थरों से होने वाली जैसी लड़ाई में एक-दूसरे की जान ले रहे हैं. लद्दाख की सीमा पर यही देखने में आया.

संपादकीय में कहा गया कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से देश अधिक मजबूत, गंभीर और लड़ाकू तेवर का हुआ है. ऐसा दावा तीन वर्षों में कई बार किया गया, लेकिन इस दौरान पाकिस्तान, नेपाल और अब चीन ने भारत पर सीधे-सीधे हमला किया है. भारत की सीमा से सटे किसी भी देश से हमारे अच्छे संबंध नहीं हैं और हमारे सत्ताधीश दुनिया जीतने निकले हैं, इस पर आश्चर्य होता है. नेपाल ने भारत का नक्शा कुतरा है. पाकिस्तान की मस्ती सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी जारी है. चीन तो एक फंसाने वाला और मायावी देश है ही, लेकिन नेपाल भी भारत की ओर टेढ़ी नजर से देखकर चुनौती दे रहा होगा तो विश्वनेता और महासत्ता आदि बनने की ओर अग्रसर हमारे देश की अवस्था ठीक नहीं है, यह मानना होगा.

पढ़ें- गलवान घाटी में शहीद हुए कर्नल संतोष बाबू की अंतिम विदाई

ट्रंप और चीन की लड़ाई कोरोना के प्रसार के कारण हुई, लेकिन अमेरिका चीन की मिसाइलों की जद में नहीं है. हमारा देश उसकी जद में है और चीन हमारा पड़ोसी देश है, यह नहीं भुलाया जा सकता. इसीलिए पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और वाजपेयी ने हमेशा धधकती सीमा को शांत रखने का प्रयास किया. देश के सीमा पर संघर्ष की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. चीन से जो संघर्ष आज शुरू है, उसका कारण पंडित नेहरू की असफल विदेश नीति है. ऐसा बोलकर सार्वजनिक सभाओं में तालियां मिल जाएंगी, लेकिन आज जवानों का जो बलिदान शुरू है, उसे रोकने की जिम्मेदारी मोदी सरकार की है.

संपादकीय में कहा गया कि गड़बड़ सीमा पर नहीं, बल्कि दिल्ली में है. इसके साथ ही दिल्ली सरकार के खिलाफ अपशब्द प्रयोग कर कहा गया कि इसीलिए सीमा पर दुश्मन आंख दिखा रहा है. तीन साल पहले जोर लगाकर ऐसा बोलने वाले नरेंद्र मोदी आज दिल्ली के सर्वसत्ताधीश हैं. इसलिए आज जो हुआ है, उसका प्रतिकार मोदी को ही करना होगा. चीन के राष्ट्रपति अहमदाबाद आकर प्रधानमंत्री मोदी के साथ झूले पर ढोकला खाते बैठे. उसी समय हमने इसी स्तंभ से यह चेतावनी दी थी, लाल चीनी बंदरों पर विश्वास मत करो. जैसे पंडित नेहरू के साथ विश्वासघात किया गया, वैसे ही तुम्हारे साथ भी होगा. दुर्भाग्य से ऐसा हो चुका है.

पढ़ें- लद्दाख में शहीद हुए जवानों की अंतिम विदाई में भावनाओं का ज्वार

पाकिस्तान को धमकी देना, चेतावनी देना, सर्जिकल स्ट्राइक करके राजनीतिक माहौल बनाना आसान है. चूंकि पाकिस्तान देश नहीं, बल्कि एक टोली मात्र है. लेकिन चीन के मामले में ऐसा नहीं है. अमेरिका जैसी मदमस्त महासत्ता को कुछ नहीं मानने वाले चीन के पास एक वैश्विक शक्ति है. चीन साम्राज्यवादी और घुसपैठिया है. उसने भारत पर पहले ही अतिक्रमण कर रखा है. लद्दाख की भारतीय जमीन में घुसकर चीन ने जो हमला किया, वह एक चेतावनी है. दिल्ली में बैठकों और चर्चाओं का दौर शुरू है. तनाव किसी को नहीं चाहिए. फिलहाल यह किसी को स्वीकार भी नहीं होगा, लेकिन 20 जवानों का बलिदान व्यर्थ जाने दें क्या? प्रतिकार नहीं हुआ तो मोदी की प्रतिष्ठा को इससे धक्का लगेगा.

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