नई दिल्ली : राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने के बाद देश की निगाहें अब फैसले पर जा टिकी हैं. ऐसे में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) का ध्यान भी अगले कदम पर केंद्रित है. इस कड़ी में आरएसएस के वैचारिक परामर्शदाताओं ने 31 अक्टूबर को हरिद्वार में मुख्यत: इस बाबत और अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए एक बैठक बुलाई है.
हालांकि आरएसएस की यह उच्चस्तरीय बैठक एक आम बैठक की तरह नहीं है बल्कि यह पांच वर्षों के अंतराल में एक बार होती है. संघ ने भी हालांकि इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं कहा है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत जब भैयाजी जोशी, दत्तात्रेय हसबोले और कृष्ण गोपाल समेत अपने शीर्ष स्तर के कनिष्ठ पदाधिकारियों से मुलाकात करेंगे तो राम मंदिर उनका शीर्ष एजेंडा होगा.
बैठक की महत्ता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि संघ से जुड़े सभी संगठनों के प्रचारक चार नवम्बर तक चलने वाली इस बैठक में उपस्थित रहेंगे.
सूत्रों पर भरोसा करें तो बैठक के दौरान राम मंदिर पर एक प्रस्ताव पारित किए जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
बैठक की महत्ता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी सभी महत्वपूर्ण बैठकों में भाग लेगी. पार्टी को सम्मेलन की व्यापक 'भावनाओं' के प्रति एक समझ विकसित करने के लिए बैठक में शामिल होने के लिए कहा गया है.
पांच दिवसीय बैठक का आयोजन 17 नवम्बर को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की सेवानिवृत्ति से एक पखवाड़ा पहले और बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी से एक महीना पहले आयोजित की जा रही है. न्यायमूर्ति गोगोई द्वारा उनकी सेवानिवृत्ति से पहले मामले में फैसला सुनाये जाने की उम्मीद है.
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गौरतलब है कि कुछ दिन पहले एक विशेष साक्षात्कार में विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) के शीर्ष अधिकारी मिलिंद परांडे ने उम्मीद जताई थी कि सबूत राम लला के पक्ष में है और अगली दिवाली तक भव्य राम मंदिर का निर्माण अब संभव है.