नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश राजेंद्र मेनन को सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के नए अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त करने की सिफारिश की गई है. यह सिफारिश सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई द्वारा की गई है.
मामले के संबंध में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा है कि सरकार जल्द ही उनका नाम साफ कर देगी, इसे सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया है.
गौरतलब है कि अदालत ने AFT (आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल) सदस्यों के कार्यकाल और नियुक्ति को बढ़ाने से इनकार कर दिया.
अटॉर्नी जनरल ने अदालत को यह भी बताया कि न्यायिक सदस्यों के लिए सशस्त्र बलों के न्यायाधिकरण में 14 पद खाली हैं. और 12 पद प्रशासनिक सदस्यों के लिए हैं.
आपको बता दें, केंद्र ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि उसे अनुशंसा को स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है.
पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं.
पीठ ने कहा, 'जहां तक अधिकरण के अध्यक्ष का सवाल है, अनुशंसाएं की जा चुकी हैं और इस मामले में उपयुक्त प्राधिकार यानी केंद्र सरकार के आदेश का इंतजार है.'
पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें अधिकरण के अध्यक्ष और दो मौजूदा न्यायिक सदस्यों के कार्यकाल को विस्तार देने का अनुरोध किया गया है. उनका कार्यकाल क्रमश: छह अक्टूबर, पांच दिसंबर और 14 दिसंबर को समाप्त होने वाला है.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अधिकरण के निवर्तमान अध्यक्ष न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह के उत्तराधिकारी के नाम को मंजूरी दे दी है.
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केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि अनुशंसा को स्वीकार करने में प्रथम दृष्टया सरकार को कोई आपत्ति नहीं है.
उन्होंने कहा कि जहां तक एएफटी में न्यायिक सदस्यों और प्रशासनिक सदस्यों के संबंध में रिक्त पदों को भरने का संबंध है, वित्त अधिनियम, 2017 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सर्वोच्च अदालत में लंबित है. वह अधिनियम अधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति से संबंधित है.
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस स्तर पर किसी आदेश की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस मुद्दे पर फैसला लंबित है.
वेणुगोपाल ने कहा कि न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली समिति ने आठ न्यायिक सदस्यों और प्रशासनिक सदस्यों के नामों की सिफारिश की है लेकिन उनकी नियुक्ति और कार्यकाल इस मुद्दे पर निर्णय से प्रभावित होंगे.
प्रधान न्यायाधीश गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने दो अप्रैल को वित्त अधिनियम, 2017 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
(एक्सट्रा इनपुट- पीटीआई)