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EMERGENCY के 44 साल : 'वो काली रात' जो आज भी सोने नहीं देती - आपातकाल विशेष

हल्द्वानी निवासी पुनीत लाल धींगरा (83) के चश्मदीद रहे हैं. आपातकाल से जुड़ी घटनाओं पर धींगरा ने बताया कि 1974 में इंदिरा गांधी नैनीताल के फ्लैट मैदान में एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचीं थीं. जनसभा में पहुंचने के लिए वो करीब 8 किमी पैदल चले थे, जहां उन्होंने इंदिरा को काला झंडा दिखाया था. इसके बाद पुलिस ने उन्हें और उनके साथियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. सुनें आपातकाल के दौर की आपबीती

इंदिरा गांधी
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Published : Jun 25, 2019, 8:30 PM IST

हल्द्वानी: आपातकाल यानी भारतीय लोकतंत्र का वो काला अध्याय जिसका नाम आते ही 25 जून, 1975 की रात का काला मंजर सामने आ जाता है. जब एक झटके में ही लोगों के नागरिक अधिकार रद्द कर दिये गए. आज आपातकाल को 44 साल पूरे हो गए हैं. भारत के राजनीतिक इतिहास में इस दिन को 'काला दिन' कहा जाता है. उस वक्त के साक्षी हल्द्वानी निवासी पुनीत लाल धींगरा (83) ने आपातकाल से जुड़ी घटनाओं के बारे ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

उन्होंने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आधी रात को आपातकाल की घोषणा की जो 19 महीने तक चला और 21 मार्च 1977 को खत्म हुआ. आपातकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाने वालों के खिलाफ पुलिस द्वारा जुल्म किया गया और महीनों तक जेल में बंद रखा गया.

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आपातकाल लागू करने का फैसले पर राष्ट्रपति फकरूद्दीन अली अहमद ने किए थे साइन (साभार ट्विटर @pibindia)

उस समय को याद कर हल्द्वानी रामपुर रोड निवासी पुनीत लाल धींगरा बताते हैं कि उन्हें भी आपातकाल के दौरान 5 महीने तक जेल में रहना पड़ा था. जेल में उन्हें और उनके साथियों को जो यातनाएं दी गईं थी, उसे याद कर वो आज भी सिहर उठते हैं.44 साल पुरानी कहानी बताते हुए उनकी आंखों में आज भी आंसू आ जाते हैं.

आपातकाल की घटनाओं पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

धींगरा बताते हैं कि आपातकाल के दौरान पुलिस ने विशेषकर संघ से जुड़े हुए कार्यकर्ता और पदाधिकारी को जेल में बंद कर दिया था. उस समय वो जनसंघ पार्टी से जुड़े हुए थे और हल्द्वानी महानगर के अध्यक्ष थे.

पढ़ें- इमरजेंसी के 44 साल, 'लोकतंत्र के लिए लड़ने वाले नायकों को नमन'

इंदिरा को दिखाया था काला झंडा

धींगरा ने बताया कि 1974 में इंदिरा गांधी नैनीताल के फ्लैट मैदान में एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचीं थीं. जनसभा में पहुंचने के लिए वो करीब 8 किमी पैदल चले थे, जहां उन्होंने इंदिरा को काला झंडा दिखाया था. इसके बाद पुलिस ने उन्हें और उनके साथियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. हालांकि, बाद में उन्हें छोड़ दिया था.

धींगरा के अनुसार, 25 जून 1975 को जब आपातकाल की घोषणा हुई तो पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए उनके घर पहुंची थी, लेकिन वे वहां से निकल गए थे. धींगरा बताते हैं कि जनसंघ में अनुशासन का पाठ पढ़ाया गया था कि आंदोलन से किसी व्यक्ति और देश को नुकसान न पहुंचाए जाए. उन्होंने बताया कि तब संघ के महानगर अध्यक्ष होने के नाते उनको पार्टी ने निर्देशित किया था कि इस आंदोलन को और बड़ा किया जाना है. ऐसे में सत्याग्रह के लिए लोगों को तैयार करें.

मुस्लिम और सरदारों के घरों में छिपते थे

उन्होंने बताया कि पुलिस रात दिन उनकी तलाश में थी, लेकिन वे भेष बदलकर मुस्लिम और सरदारों के घर में रहा करते थे. पुलिस मुखबिरों की सूचना पर लगातार उनकी गिरफ्तारी का प्रयास कर रही थी, लेकिन वह हर बार बचकर निकल जाते थे. धींगरा ने बताया कि संघ के नेताओं के निर्देश पर वे स्कूटर से रात में निकलकर पूरी रणनीति को तैयार करते थे.

उस समय कोई भी व्यक्ति इंदिरा गांधी के विरोध में आगे नहीं आ रहा था. सत्याग्रह के लिए 11 लोगों को तैयार किया था, लेकिन अगले दिन केवल 5 लोग बचे. उन्हीं 5 लोगों के साथ हल्द्वानी में सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा, मगर पुलिस ने उन्हें उठाकर नैनीताल जेल भेज दिया. इसके बाद उन्हें बरेली और फतेहपुर जेल भेजा गया, जहां वो करीब 5 महीन तक रहे. धींगरा बताते हैं कि 5 महीने जेल में रहने के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर ने उनके और उनके कुछ साथियों के केस को विड्रॉ किया. जिसके बाद रात के 10 बजे जेल से उनकी रिहाई के आदेश आए.

आज 83 वर्षीय पुनीत लाल को सरकार द्वारा 16 हजार रुपए आपातकाल पेंशन भत्ता दिया जाता है. धींगरा बताते हैं कि आपातकाल के दौरान जब वे जेल में रहे तो उनके परिवार को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. उनकी दुकान बंद हो चुकी थी, जिस कारण पत्नी और तीन बच्चों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था. फिलहाल पुनीत लाल आपातकाल के दौर को याद कर आज भी सिहर उठते हैं और अपनी व्यथा बताते-बताते उनकी आंखों से आंसू छलकने लगते हैं.

हल्द्वानी: आपातकाल यानी भारतीय लोकतंत्र का वो काला अध्याय जिसका नाम आते ही 25 जून, 1975 की रात का काला मंजर सामने आ जाता है. जब एक झटके में ही लोगों के नागरिक अधिकार रद्द कर दिये गए. आज आपातकाल को 44 साल पूरे हो गए हैं. भारत के राजनीतिक इतिहास में इस दिन को 'काला दिन' कहा जाता है. उस वक्त के साक्षी हल्द्वानी निवासी पुनीत लाल धींगरा (83) ने आपातकाल से जुड़ी घटनाओं के बारे ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

उन्होंने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आधी रात को आपातकाल की घोषणा की जो 19 महीने तक चला और 21 मार्च 1977 को खत्म हुआ. आपातकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाने वालों के खिलाफ पुलिस द्वारा जुल्म किया गया और महीनों तक जेल में बंद रखा गया.

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आपातकाल लागू करने का फैसले पर राष्ट्रपति फकरूद्दीन अली अहमद ने किए थे साइन (साभार ट्विटर @pibindia)

उस समय को याद कर हल्द्वानी रामपुर रोड निवासी पुनीत लाल धींगरा बताते हैं कि उन्हें भी आपातकाल के दौरान 5 महीने तक जेल में रहना पड़ा था. जेल में उन्हें और उनके साथियों को जो यातनाएं दी गईं थी, उसे याद कर वो आज भी सिहर उठते हैं.44 साल पुरानी कहानी बताते हुए उनकी आंखों में आज भी आंसू आ जाते हैं.

आपातकाल की घटनाओं पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

धींगरा बताते हैं कि आपातकाल के दौरान पुलिस ने विशेषकर संघ से जुड़े हुए कार्यकर्ता और पदाधिकारी को जेल में बंद कर दिया था. उस समय वो जनसंघ पार्टी से जुड़े हुए थे और हल्द्वानी महानगर के अध्यक्ष थे.

पढ़ें- इमरजेंसी के 44 साल, 'लोकतंत्र के लिए लड़ने वाले नायकों को नमन'

इंदिरा को दिखाया था काला झंडा

धींगरा ने बताया कि 1974 में इंदिरा गांधी नैनीताल के फ्लैट मैदान में एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचीं थीं. जनसभा में पहुंचने के लिए वो करीब 8 किमी पैदल चले थे, जहां उन्होंने इंदिरा को काला झंडा दिखाया था. इसके बाद पुलिस ने उन्हें और उनके साथियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. हालांकि, बाद में उन्हें छोड़ दिया था.

धींगरा के अनुसार, 25 जून 1975 को जब आपातकाल की घोषणा हुई तो पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए उनके घर पहुंची थी, लेकिन वे वहां से निकल गए थे. धींगरा बताते हैं कि जनसंघ में अनुशासन का पाठ पढ़ाया गया था कि आंदोलन से किसी व्यक्ति और देश को नुकसान न पहुंचाए जाए. उन्होंने बताया कि तब संघ के महानगर अध्यक्ष होने के नाते उनको पार्टी ने निर्देशित किया था कि इस आंदोलन को और बड़ा किया जाना है. ऐसे में सत्याग्रह के लिए लोगों को तैयार करें.

मुस्लिम और सरदारों के घरों में छिपते थे

उन्होंने बताया कि पुलिस रात दिन उनकी तलाश में थी, लेकिन वे भेष बदलकर मुस्लिम और सरदारों के घर में रहा करते थे. पुलिस मुखबिरों की सूचना पर लगातार उनकी गिरफ्तारी का प्रयास कर रही थी, लेकिन वह हर बार बचकर निकल जाते थे. धींगरा ने बताया कि संघ के नेताओं के निर्देश पर वे स्कूटर से रात में निकलकर पूरी रणनीति को तैयार करते थे.

उस समय कोई भी व्यक्ति इंदिरा गांधी के विरोध में आगे नहीं आ रहा था. सत्याग्रह के लिए 11 लोगों को तैयार किया था, लेकिन अगले दिन केवल 5 लोग बचे. उन्हीं 5 लोगों के साथ हल्द्वानी में सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा, मगर पुलिस ने उन्हें उठाकर नैनीताल जेल भेज दिया. इसके बाद उन्हें बरेली और फतेहपुर जेल भेजा गया, जहां वो करीब 5 महीन तक रहे. धींगरा बताते हैं कि 5 महीने जेल में रहने के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर ने उनके और उनके कुछ साथियों के केस को विड्रॉ किया. जिसके बाद रात के 10 बजे जेल से उनकी रिहाई के आदेश आए.

आज 83 वर्षीय पुनीत लाल को सरकार द्वारा 16 हजार रुपए आपातकाल पेंशन भत्ता दिया जाता है. धींगरा बताते हैं कि आपातकाल के दौरान जब वे जेल में रहे तो उनके परिवार को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. उनकी दुकान बंद हो चुकी थी, जिस कारण पत्नी और तीन बच्चों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था. फिलहाल पुनीत लाल आपातकाल के दौर को याद कर आज भी सिहर उठते हैं और अपनी व्यथा बताते-बताते उनकी आंखों से आंसू छलकने लगते हैं.

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EMERGENCY@44: वो काली आज भी सोने नहीं देती, याद कर सिहर उठते हैं पुनीत लाल 





हल्द्वानी: आपातकाल यानी भारतीय लोकतंत्र का वो काला अध्याय जिसका नाम आते ही 25 जून 1975 की रात का काला मंजर सामने आ जाता है. जब एक झटके में ही लोगों के नागरिक अधिकार रद्द कर दिये गए. आपातकाल के 44 साल होने जा रहे हैं. भारत के राजनीतिक इतिहास में इसे काला दिन कहा जाता है. उस वक्त के साक्षी हल्द्वानी निवासी पुनीत लाल धींगरा (83) ने आपातकाल से जुड़ी घटनाओं के बारे ईटीवी भारत से खास बातचीत की. 

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आधी रात को आपातकाल की घोषणा की जो 19 महीने तक चला और 21 मार्च 1977 को खत्म हुआ. आपातकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाने वालों के खिलाफ पुलिस द्वारा जुल्म किया गया और महीनों साल तक जेल में बंद रखा गया. 

उस समय को याद कर हल्द्वानी रामपुर रोड निवासी पुनीत लाल धींगरा बताते हैं कि उन्हें भी आपातकाल के दौरान 5 महीने तक जेल में रहना पड़ा था. जेल में उन्हें और उनके साथियों को जो यातनाएं दी गईं थी, उसे याद कर वो आज भी सिहर उठते हैं.

44 साल पुरानी कहानी बताते हुए उनकी आंखों में आज भी आंसू आ जाते हैं. धींगरा बताते हैं कि आपातकाल के दौरान पुलिस ने विशेषकर संघ से जुड़े हुए कार्यकर्ता और पदाधिकारी को जेल में बंद कर दिया था. उस समय वो जनसंघ पार्टी से जुड़े हुए थे और हल्द्वानी महानगर के अध्यक्ष थे.

इंदिरा को दिखाया था काला झंडा

धींगरा ने बताया कि 1974 में इंदिरा गांधी नैनीताल के फ्लैट मैदान में एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचीं थीं. जनसभा में पहुंचने के लिए वो करीब 8 किमी पैदल चले थे, जहां उन्होंने इंदिरा को काला झंडा दिखाया था. इसके बाद पुलिस ने उन्हें और उनके साथियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. हालांकि, बाद में उन्हें छोड़ दिया था.

धींगरा के अनुसार, 25 जून 1975 को जब आपातकाल की घोषणा हुई तो पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए उनके घर पहुंची थी, लेकिन वे वहां से निकल गए थे. धींगरा बताते हैं कि जनसंघ में अनुशासन का पाठ पढ़ाया गया था कि आंदोलन से किसी व्यक्ति और देश को नुकसान न पहुंचाए जाए. उन्होंने बताया कि तब संघ के महानगर अध्यक्ष होने के नाते उनको पार्टी ने निर्देशित किया था कि इस आंदोलन को और बड़ा किया जाना है. ऐसे में सत्याग्रह के लिए लोगों को तैयार करें. 

मुस्लिम और सरदारों के घरों में छिपते थे

उन्होंने बताया कि पुलिस रात दिन उनकी तलाश में थी, लेकिन वे भेष बदलकर मुस्लिम और सरदार के घर में रहा करते थे. पुलिस मुखबिरों की सूचना पर लगातार उनकी गिरफ्तारी का प्रयास कर रही थी, लेकिन वह हर बार बचकर निकल जाते थे. 

धींगरा ने बताया कि संघ के नेताओं के निर्देश पर वे स्कूटर से रात में निकलकर पूरी रणनीति को तैयार करते थे. उस समय कोई भी व्यक्ति इंदिरा गांधी के विरोध में आगे नहीं आ रहा था. सत्याग्रह के लिए 11 लोगों को तैयार किया था, लेकिन अगले दिन केवल 5 लोग बचे. उन्हीं 5 लोगों के साथ हल्द्वानी में सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा, मगर पुलिस ने उन्हें उठाकर नैनीताल जेल भेज दिया. इसके बाद उन्हें बरेली और फतेहपुर जेल भेजा गया, जहां वो करीब 5 महीन तक रहे. 

धींगरा बताते हैं कि 5 महीने जेल में रहने के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर ने उनके और उनके कुछ साथियों के केस को विड्रॉ किया. जिसके बाद रात के 10 बजे जेल से उनकी रिहाई के आदेश आए.

आज 83 वर्षीय पुनीत लाल को सरकार द्वारा 16 हजार रुपए आपातकाल पेंशन भत्ता दिया जाता है. धींगरा बतात है कि आपातकाल के दौरान जब वे जेल में रहे तो उनके परिवार को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. उनकी दुकान बंद हो चुकी थी, जिस कारण पत्नी और तीन बच्चों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था. फिलहाल पुनीत लाल आपातकाल के दौर को याद कर आज भी सिहर उठते हैं और अपनी व्यथा बताते-बताते उनकी आंखों से आंसू छलकने लगते हैं.

 


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