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छत्तीसगढ़ में जिलाधिकारी बने मिसाल, स्कूल में कैदी की बेटी का दाखिला कराया - Bilaspur collector

खुशी जब 15 दिन की थी, तब उसकी मां छोड़कर चली गई थी और खुशी के पिता जेल में सजा काट रहे हैं. एक महीने पहले जेल निरीक्षण के दौरान कलेक्टर की नजर महिला कैदियों के बीच बैठी इस नन्ही बच्ची पर पड़ी और वो उसके पास गए. खुशी ने जब उन्होंने उसकी इच्छा पूछी तो उसने जेल से बाहर आने और पढ़ाई करने की बात कही. उसकी इस बात ने कलेक्टर को भावुक कर दिया और उन्होंने शहर के एक स्कूल में दाखिला कराने का फैसला लिया.

कैदी की बेटी ने जताई पढ़ने की इच्छा
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Published : Jun 25, 2019, 11:46 PM IST

बिलासपुर: खुशी मिली इतनी कि मन में न समाए, ये लाइन इस नन्ही सी खुशी के लिए एकदम फिट है. हो भी क्यों न जिसकी जिंदगी में मां को खोने का गम और पिता के जेल में होने का अंधेरा था, उसकी जिंदगी में कलेक्टर साहब ने शिक्षा का उजियारा किया है. बिलासपुर कलेक्टर संजय अलंग के इस नेक काम की तारीफ हर तरफ हो रही है.

जेल में सजा काट रहे हैं खुशी के पिता
खुशी के पिता जेल में सजा काट रहे हैं और मां तब छोड़कर चली गई जब वो महज 15 दिन की थी. करीब एक महीने पहले जेल निरीक्षण के दौरान कलेक्टर की नजर महिला कैदियों के बीच बैठी इस नन्ही बच्ची पर पड़ी और वो उसके पास गए. खुशी ने जब उन्होंने उसकी इच्छा पूछी तो उसने जेल से बाहर आने और पढ़ाई करने की बात कही. उसकी इस बात ने कलेक्टर को भावुक कर दिया और उन्होंने शहर के एक स्कूल में दाखिला कराने का फैसला लिया.

कैदी की बेटी के पढ़ने की इच्छा के चलते कलेक्टर ने स्कूल में कराया दाखिला
  • स्कूल दाखिले के पहले दिन कलेक्टर संजय अलंग खुशी को अपनी कार में बैठाकर केंद्रीय जेल से जैन इंटरनेशनल स्कूल तक खुद छोड़ने गए और वहां उसका दाखिला हुआ.
  • एक हाथ में बिस्किट और दूसरे में चॉकलेट लिए बच्ची स्कूल जाने के लिये सुबह से ही तैयार हो गई थी. वह स्कूल के हॉस्टल में ही रहेगी.
  • खुशी के लिये विशेष केयर टेकर का भी इंतजाम किया गया है. स्कूल संचालक ने बताया कि खुशी की पढ़ाई और हॉस्टल का खर्चा स्कूल प्रबंधन ही उठायेगा. ऐसा केंद्रीय जेल के इतिहास में पहली बार हुआ है.
  • खुशी के पिता केंद्रीय जेल बिलासपुर में एक अपराध में सजायफ्ता कैदी हैं. पांच साल की सजा काट ली है, पांच साल और जेल में रहना है.
  • खुशी जब पंद्रह दिन की थी तभी उसकी मां की मौत पीलिया से हो गयी थी. पालन पोषण के लिये घर में कोई नहीं था इसलिये उसे जेल में ही पिता के पास रहना पड़ रहा था.
  • जब वह बड़ी होने लगी तो उसकी परवरिश का जिम्मा महिला कैदियों को दे दिया गया. वह जेल के अंदर संचालित प्ले स्कूल में पढ़ रही थी.
  • कलेक्टर की पहल पर जेल में रह रहे 17 अन्य बच्चों को भी जेल से बाहर स्कूल में एडमिशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.

पढ़ेंः आंखें ही नहीं तो आधार कार्ड कैसे, UP में सरकार की योजनाओं से वंचित है पूरा परिवार

ऐसे ही और अफसरों की जरूरत
जेल में बिना किसी जुर्म के न जाने कितने ऐसे मासूम हैं जो सपने देखने को भी तरस रहे हैं, जिनकी जिंदगी अंधेरे में शुरू होती है और उजाले की आस में निकल जाती है. इस देश को और संजय अलंग जैसे अफसरों की जरूरत है, जो ऐसी कई और खुशियों के जीवन में खुशियां बिखेर सकें.

बिलासपुर: खुशी मिली इतनी कि मन में न समाए, ये लाइन इस नन्ही सी खुशी के लिए एकदम फिट है. हो भी क्यों न जिसकी जिंदगी में मां को खोने का गम और पिता के जेल में होने का अंधेरा था, उसकी जिंदगी में कलेक्टर साहब ने शिक्षा का उजियारा किया है. बिलासपुर कलेक्टर संजय अलंग के इस नेक काम की तारीफ हर तरफ हो रही है.

जेल में सजा काट रहे हैं खुशी के पिता
खुशी के पिता जेल में सजा काट रहे हैं और मां तब छोड़कर चली गई जब वो महज 15 दिन की थी. करीब एक महीने पहले जेल निरीक्षण के दौरान कलेक्टर की नजर महिला कैदियों के बीच बैठी इस नन्ही बच्ची पर पड़ी और वो उसके पास गए. खुशी ने जब उन्होंने उसकी इच्छा पूछी तो उसने जेल से बाहर आने और पढ़ाई करने की बात कही. उसकी इस बात ने कलेक्टर को भावुक कर दिया और उन्होंने शहर के एक स्कूल में दाखिला कराने का फैसला लिया.

कैदी की बेटी के पढ़ने की इच्छा के चलते कलेक्टर ने स्कूल में कराया दाखिला
  • स्कूल दाखिले के पहले दिन कलेक्टर संजय अलंग खुशी को अपनी कार में बैठाकर केंद्रीय जेल से जैन इंटरनेशनल स्कूल तक खुद छोड़ने गए और वहां उसका दाखिला हुआ.
  • एक हाथ में बिस्किट और दूसरे में चॉकलेट लिए बच्ची स्कूल जाने के लिये सुबह से ही तैयार हो गई थी. वह स्कूल के हॉस्टल में ही रहेगी.
  • खुशी के लिये विशेष केयर टेकर का भी इंतजाम किया गया है. स्कूल संचालक ने बताया कि खुशी की पढ़ाई और हॉस्टल का खर्चा स्कूल प्रबंधन ही उठायेगा. ऐसा केंद्रीय जेल के इतिहास में पहली बार हुआ है.
  • खुशी के पिता केंद्रीय जेल बिलासपुर में एक अपराध में सजायफ्ता कैदी हैं. पांच साल की सजा काट ली है, पांच साल और जेल में रहना है.
  • खुशी जब पंद्रह दिन की थी तभी उसकी मां की मौत पीलिया से हो गयी थी. पालन पोषण के लिये घर में कोई नहीं था इसलिये उसे जेल में ही पिता के पास रहना पड़ रहा था.
  • जब वह बड़ी होने लगी तो उसकी परवरिश का जिम्मा महिला कैदियों को दे दिया गया. वह जेल के अंदर संचालित प्ले स्कूल में पढ़ रही थी.
  • कलेक्टर की पहल पर जेल में रह रहे 17 अन्य बच्चों को भी जेल से बाहर स्कूल में एडमिशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.

पढ़ेंः आंखें ही नहीं तो आधार कार्ड कैसे, UP में सरकार की योजनाओं से वंचित है पूरा परिवार

ऐसे ही और अफसरों की जरूरत
जेल में बिना किसी जुर्म के न जाने कितने ऐसे मासूम हैं जो सपने देखने को भी तरस रहे हैं, जिनकी जिंदगी अंधेरे में शुरू होती है और उजाले की आस में निकल जाती है. इस देश को और संजय अलंग जैसे अफसरों की जरूरत है, जो ऐसी कई और खुशियों के जीवन में खुशियां बिखेर सकें.

Intro:--बिलासपुर कलेक्टर ने एक सराहनीय पहल करते हुए एक बच्ची के चेहरे में खुशी बिखरे दी है और जेल की चारदीवारी में कैद इस मासूम के सपनो को उड़ान देने का कार्य कर एक मिसाल पेश की । बिलासपूर कलेक्टर की इस पहल की चारो ओर जमकर तारीफ हो रही है ।
कलेक्टर अपनी गाड़ी में बैठाकर खुशी को केंद्रीय जेल ले गये और एक नामी गिरामी स्कूल में उसका दाखिला करवाया।


आमतौर पर स्कूल जाने के पहले दिन बच्चे रोते हैं। लेकिन खुशी आज बेहद खुश थी। क्योंकि जेल की सलाखों में बेगुनाही की सजा काट रही खुशी आज आजाद हो रही थी। कलेक्टर की पहल पर शहर के जैन इंटरनेशनल स्कूल ने खुशी को अपने स्कूल में एडमिशन दिया। वह स्कूल के हॉस्टल में ही रहेगी। खुशी के लिये विशेष केयर टेकर का भी इंतजाम किया गया है। स्कूल संचालक श्री अशोक अग्रवाल ने कहा है कि खुशी की पढ़ाई और हॉस्टल का खर्चा स्कूल प्रबंधन ही उठायेगा।

Body:क़रीब एक माह पहले जेल निरीक्षण के दौरान कलेक्टर डॉ संजय अलंग की नजर महिला कैदियों के साथ बैठी खुशी पर गयी थी। तभी वे उससे वादा करके आये थे कि उसका दाखिला किसी बड़े स्कूल में करायेंगे। आज कलेक्टर कलेक्टर डॉ संजय अलंग खुशी को अपनी कार में बैठाकर केंद्रीय जेल से स्कूल तक खुद छोड़ने गये। कार से उतरकर खुशी एकटक स्कूल को देखती रही। खुशी कलेक्टर की उंगली पकड़कर स्कूल के अंदर तक गयी। एक हाथ में बिस्किट और दूसरे में चॉकलेट लिये वह स्कूल जाने के लिये सुबह से ही तैयार हो गयी थी।

Conclusion:आपको बता दें कि खुशी के पिता केंद्रीय जेल बिलासपुर में एक अपराध में सजायफ्ता कैदी हैं। पांच साल की सजा काट ली है, पांच साल और जेल में रहना है। खुशी जब पंद्रह दिन की थी तभी उसकी मां की मौत पीलिया से हो गयी थी। पालन पोषण के लिये घर में कोई नहीं था। इसलिये उसे जेल में ही पिता के पास रहना पड़ रहा था। जब वह बड़ी होने लगी तो उसकी परवरिश का जिम्मा महिला कैदियों को दे दिया गया। वह जेल के अंदर संचालित प्ले स्कूल में पढ़ रही थी। लेकिन खुशी जेल की आवोहवा से आजाद होना चाहती थी। संयोग से एक दिन कलेक्टर जेल का निरीक्षण करने पहुंचे। उन्होंने महिला बैरक में देखा कि महिला कैदियों के साथ एक छोटी सी बच्ची बैठी हुयी है। बच्ची से पूछने पर उसने बताया कि जेल से बाहर आना चाहती है। किसी बड़े स्कूल में पढ़ने का उसका मन है। बच्ची की बात कलेक्टर को भावुक कर गयी। उन्होंने तुरंत शहर के स्कूल संचालकों से बात की और जैन इंटरनेशनल स्कूल के संचालक खुशी को एडमिशन देने को तैयार हो गये।
कलेक्टर की पहल पर जेल में रह रहे 17 अन्य बच्चों को भी जेल से बाहर स्कूल में एडमिशन की प्रक्रिया शुरु कर दी गयी है। वही पूरे मामले में बिलासपुर जेल प्रबंधन भी इस काम के लिए बहुत खुश नजर आ रहा है ।

बाईट ---एसएस तिग्गा जेल अधीक्षक
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