हैदराबाद : भारत और नेपाल के बीच जटिल सीमा विवाद चरम पर उस वक्त पहुंच गया जब नेपाल की संसद ने नया मानचित्र स्वीकृत किया. दरअसल इस मानचित्र में नेपाल के द्वारा भारतीय भूमि लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को शामिल किया गया है.
इस मसले पर ईटीवी भारत से बात करते हुए, भारत के पूर्व विदेश सचिव, सलमान हैदर ने कहा, 'भारत के साथ नेपाल के संबंध कैसे बिगड़ा और बिगड़ने दिया गया. क्योंकि नेपाल से भारत का बहुत महत्वपूर्ण संबंध है. इसे बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए. क्योंकि यह संबंध इतिहास से जुड़ा है और यह दोनों देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. मैं संबंधों में सुधार देखने की उम्मीद करूंगा. चीजें गलत हो जाती हैं लेकिन सुधार का काम व्यवस्थित तरीके से किया जाना चाहिए.
दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का कारण कालापानी क्षेत्र के निकटतम सुदूरपश्चिम प्रांत में भारतीय सीमा के पास दारचुला में नेपाली सेना के प्रमुख की यात्रा है. सेना प्रमुख की यात्रा नेपाल में केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार के संकल्प को रेखांकित करेगी ताकि कालापानी क्षेत्र पर अपना क्षेत्रीय दावा किया जा सके.
'सेना प्रमुख को भेजकर, नेपाल अपनी राष्ट्रवादी भावना को प्रकट करने की कोशिश कर रहा है. . मैं नहीं कहूंगा कि नेपाल भारत के साथ संघर्ष को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, 'प्रोफेसर राजन कुमार, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू ने बताया.
विशेष रूप से कालापानी क्षेत्र के बारे में विवाद नया नहीं है और 1960 के दशक के बाद से यह अब और आगे बढ़ गया है. वर्तमान में 327 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कालापानी आईटीबीपी द्वारा नियंत्रित है. इसका 1962 से वहां एक चौकी है. संपूर्ण भारत-नेपाल सीमा 1,758 किमी लंबी है.
भारत का दावा है कि कालापानी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा है, जबकि नेपाल का कहना है कि यह दारचुला जिले का हिस्सा है. कालापानी घाटी तिब्बत में एक प्राचीन तीर्थ स्थल कैलाश-मानसरोवर के लिए भारतीय मार्ग है. नेपाल कालापानी के पश्चिम में नदी का दावा करता है और इस प्रकार देश का क्षेत्रीय अधिकार है. भारत का मानना है कि कालापानी के पूर्व में एक सीमा रेखा है और इसलिए कालापानी भारत में होने का दावा करता है.
प्रो. कुमार कहते हैं, '2015 में नेपाल द्वारा नाकाबंदी ना केवल पेट्रोलियम के आयात को रोक दिया बल्कि भारत से दवाइयों और भूकंप राहत सामग्री पर भी रोक लगा दिया. इसे भारत के प्रति नेपाल की नीति में एक बड़ा बदलाव देखा गया. भारत-नेपाल संबंध के लिए यह एक महत्वपूर्ण घटना थी.'
प्रो कुमार ने बताया कि दोनों देशों के बीच हालिया सीमा विवाद भारत के 80 किलोमीटर लंबी सड़क के उद्घाटन पर शुरू हुआ, जो लिपुलेख हिमालयी दर्रे से होकर गुजरता है जो एक रणनीतिक त्रि-स्थिति पर है- तिब्बत, भारत और नेपाल के बीच रास्ता है.
'नेपाल का दावा ऐतिहासिक रूप से न्यायसंगत नहीं है और इसने बहुत लंबे समय से इस मुद्दे को नहीं उठाया है. 1950 के दशक में जब भी भारत और चीन के बीच व्यापारिक समझौते हुए, उन सभी समझौतों में लिपुलेख भारत और चीन के बीच व्यापारिक मार्ग का हिस्सा था. नेपाल ने तब इस पर कोई आपत्ति नहीं की, लेकिन अब नेपाल में राष्ट्रवादी भावना बहुत मजबूत हो गई है. चीन नेपाल का समर्थन कर रहा है और देशों के बीच संबंध मजबूत हुए हैं. भारत के लिए विवाद सुलझाने का एकमात्र तरीका मजबूत कूटनीतिक वार्ता है, क्योंकि भारत पर्याप्त सावधानी नहीं बरत रहा है. भारत को बहुत संवेदनशील होने की जरूरत है.
कुमार ने कहा, 'भारत ने नेपाल को चीन की ओर नहीं जाने देना चाहिए क्योंकि भविष्य में यह हमारे लिए और अधिक समस्याग्रस्त होगा और यदि चीन नेपाल में पैर जमाने लगता है, तो नेपाल एक बफर देश के रूप में काम करना बंद कर देगा. अब तक की नीतियां भारत के अनुकूल हैं लेकिन भारत धीरे-धीरे उस लाभ को खो रहा है. मैं कुछ सूक्ष्म और व्यावहारिक कूटनीति के माध्यम से सुनिश्चित हूं, भारत नेपाल के साथ सीमा मुद्दे का प्रबंधन कर सकता है.'