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एक देश, एक चुनाव : कितना व्यावहारिक, कितनी मुश्किलें - संविधान दिवस के अवसर पर पीएम

लोक सभा या राज्य विधान सभाओं का कार्यकाल निश्चित होता है. लेकिन समय से पहले ही भंग हो जाए, तो दोबारा से चुनाव कराए जाते हैं. एक साथ चुनाव कराने के लिए क्या राज्य सरकारें तैयार होंगी. क्या वे समय से पहले अपनी सरकारें गंवाना चाहेंगी. क्या एक साथ चुनाव कराने पर उतनी संख्या में मशीनें, सुरक्षा बल वगैरह का इंतजाम हो सकेगा. ऐसी कई जरूरतें हैं, जिसका ख्याल रखना बहुत जरूरी होगा. कितना व्यावहारिक है और कितनी मुश्किलें हैं, आइए इस पर एक नजर डालते हैं.

एक देश एक चुनाव
एक देश एक चुनाव
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Published : Nov 29, 2020, 5:00 AM IST

हैदराबाद : 26 नवंबर, संविधान दिवस के अवसर पर पीएम नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर से 'वन नेशन वन इलेक्शन' पर जोर दिया. पीएम मोदी ने 80वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के समापन सत्र को संबोधित करते हुए इसे जरूरी बताया. उन्होंने इसे देशहित में बताया है. आइए जानते हैं वन नेशन वन इलेक्शन के विभिन्न पहलुओं के बारे में.

असंवैधानिक कृत्य
लोक सभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के संबंध में संविधान में कोई निश्चित प्रावधान का उल्लेख नहीं किया गया है. इस आधार पर यह तर्क दिया जा रहा है कि एक साथ चुनाव संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है.

खर्च
एक साथ एक चुनाव में भी धन के खर्च को रोका नहीं जा सकेगा. विधि आयोग के अनुसार यदि 2019 के चुनाव इसी प्रणाली से कराए गए होते तो नई ईवीएम खरीदने के लिए 4500 करोड़ रुपये लगते. 2024 में दूसरी बार एक साथ सभी चुनाव कराने के लिए पुरानी ईवीएम (15 साल जीवनकाल) को बदलने में 1751.17 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. 2029 में 2017.93 करोड़ और 2034 के चुनावों में यह खर्च 13981.58 करोड़ रुपये आएगा.

सरकार गिरने पर क्या होगा: संविधान में लोक सभा या राज्य विधान सभाओं का निश्चित कार्यकाल है. लोक सभा या विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना संवैधानिक नहीं है. अगर कोई सरकार समय से पहले गिर जाए तो क्या होगा? 16 में से 7 लोकसभा समय से पहले भंग हो चुकी हैं.

राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय मुद्दे
विधानसभा चुनाव में भी मतदाता राष्ट्रीय मुद्दों पर मतदान कर सकते हैं. इससे बड़ी राष्ट्रीय दल को लाभ हो सकता है. इस वजह से क्षेत्रीय दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. जिन देशों में यह व्यवस्था लागू है उनमें से अधिकांश में राष्ट्रपति की व्यवस्था वाली सरकारें हैं.

2018 की बैठक
2018 में लॉ कमीशन की बैठक में भाजपा और कांग्रेस इससे दूर रहे. चार दलों (अन्नाद्रमुक, शिअद, सपा, टीआरएस) ने समर्थन किया. नौ राजनीतिक दलों तृणमूल, आप, द्रमुक, तेदेपा, सीपीआइ, सीपीएम, जेडीएस, गोवा फारवर्ड पार्टी और फारवर्ड ब्लाक) ने विरोध किया.

अनुच्छेद 356
केंद्र सरकार को अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकारों को भंग करने का अधिकार है. इस अधिकार के बावजूद एक साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं.

पर्याप्त जनशक्ति की मांग
यह मुश्किल होगा, लेकिन ऐसा असंभव भी नहीं कि चुनाव आयोग पांच साल में इस प्रकार के चुनाव आयोजित नहीं कर सकती है. 2019 के लोक सभा चुनावों में अधिकारियों की संख्या के संदर्भ में भारत सरकार ने लगभग 2,60,000 / पैरामिलिट्री बलों को नियुक्त किया था. इसके अलावा देश के सभी राज्यों से 10,00,000 पुलिस अधिकारियों को तैनात किया गया था.

देशभर में 10,00,000 से अधिक मतदान केंद्र भी हैं. इस प्रकार, यदि एक पोलिंग बूथ पर एक बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) के साथ लगभग 4 लोगों द्वारा काम करते है तो इसमें कुल 5 लोग लगते हैं. इस प्रकार से चुनाव में 50,00,000 से अधिक लोग लगेंगे. वहीं चुनाव में अर्धसैनिक बल, नागरिक, प्रशासनिक अधिकारी और अन्य लोग लगे होते हैं. इस आधार पर एक करोड़ लोगों की आवश्यकता होगी.

हैदराबाद : 26 नवंबर, संविधान दिवस के अवसर पर पीएम नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर से 'वन नेशन वन इलेक्शन' पर जोर दिया. पीएम मोदी ने 80वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के समापन सत्र को संबोधित करते हुए इसे जरूरी बताया. उन्होंने इसे देशहित में बताया है. आइए जानते हैं वन नेशन वन इलेक्शन के विभिन्न पहलुओं के बारे में.

असंवैधानिक कृत्य
लोक सभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के संबंध में संविधान में कोई निश्चित प्रावधान का उल्लेख नहीं किया गया है. इस आधार पर यह तर्क दिया जा रहा है कि एक साथ चुनाव संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है.

खर्च
एक साथ एक चुनाव में भी धन के खर्च को रोका नहीं जा सकेगा. विधि आयोग के अनुसार यदि 2019 के चुनाव इसी प्रणाली से कराए गए होते तो नई ईवीएम खरीदने के लिए 4500 करोड़ रुपये लगते. 2024 में दूसरी बार एक साथ सभी चुनाव कराने के लिए पुरानी ईवीएम (15 साल जीवनकाल) को बदलने में 1751.17 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. 2029 में 2017.93 करोड़ और 2034 के चुनावों में यह खर्च 13981.58 करोड़ रुपये आएगा.

सरकार गिरने पर क्या होगा: संविधान में लोक सभा या राज्य विधान सभाओं का निश्चित कार्यकाल है. लोक सभा या विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना संवैधानिक नहीं है. अगर कोई सरकार समय से पहले गिर जाए तो क्या होगा? 16 में से 7 लोकसभा समय से पहले भंग हो चुकी हैं.

राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय मुद्दे
विधानसभा चुनाव में भी मतदाता राष्ट्रीय मुद्दों पर मतदान कर सकते हैं. इससे बड़ी राष्ट्रीय दल को लाभ हो सकता है. इस वजह से क्षेत्रीय दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. जिन देशों में यह व्यवस्था लागू है उनमें से अधिकांश में राष्ट्रपति की व्यवस्था वाली सरकारें हैं.

2018 की बैठक
2018 में लॉ कमीशन की बैठक में भाजपा और कांग्रेस इससे दूर रहे. चार दलों (अन्नाद्रमुक, शिअद, सपा, टीआरएस) ने समर्थन किया. नौ राजनीतिक दलों तृणमूल, आप, द्रमुक, तेदेपा, सीपीआइ, सीपीएम, जेडीएस, गोवा फारवर्ड पार्टी और फारवर्ड ब्लाक) ने विरोध किया.

अनुच्छेद 356
केंद्र सरकार को अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकारों को भंग करने का अधिकार है. इस अधिकार के बावजूद एक साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं.

पर्याप्त जनशक्ति की मांग
यह मुश्किल होगा, लेकिन ऐसा असंभव भी नहीं कि चुनाव आयोग पांच साल में इस प्रकार के चुनाव आयोजित नहीं कर सकती है. 2019 के लोक सभा चुनावों में अधिकारियों की संख्या के संदर्भ में भारत सरकार ने लगभग 2,60,000 / पैरामिलिट्री बलों को नियुक्त किया था. इसके अलावा देश के सभी राज्यों से 10,00,000 पुलिस अधिकारियों को तैनात किया गया था.

देशभर में 10,00,000 से अधिक मतदान केंद्र भी हैं. इस प्रकार, यदि एक पोलिंग बूथ पर एक बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) के साथ लगभग 4 लोगों द्वारा काम करते है तो इसमें कुल 5 लोग लगते हैं. इस प्रकार से चुनाव में 50,00,000 से अधिक लोग लगेंगे. वहीं चुनाव में अर्धसैनिक बल, नागरिक, प्रशासनिक अधिकारी और अन्य लोग लगे होते हैं. इस आधार पर एक करोड़ लोगों की आवश्यकता होगी.

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