चामराजनगर (कर्नाटक) : प्राचीन काल से ही हाथी पर अवैध शिकार चल रहा है और अब भी वन विभाग के सख्त नियमों और विनियमों के बीच ये जारी है. आमतौर पर, शिकारी हाथी दांत के लिए उनका शिकार करते हैं. लेकिन हाथियों के मारने के पीछे सिर्फ दांत ही कारण नहीं है. इसके कई और राज भी हैं.
जो शिकारी हाथी को उनके दांत के लिए मारते हैं, उससे भी ज्यादा वे एक दवा के रूप में उपयोग होने वाले छाती के हिस्से के लिए मादा हाथी का शिकार करते हैं. हालांकि वन विभाग के कुछ बड़े अधिकारी मादा हाथियों के शिकार की बात से इंकार करते हैं, लेकिन एक पुलिस अधिकारी जो वीरप्पन को पकड़ने के अभियान में शामिल थे, उन्होंने मादा हाथियों के शिकार पर ईटीवी भारत के साथ जानकारी साझा की है. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सिद्दाराजा नाइक ने मादा हाथियों के शिकार का खुलासा किया है. बता दें कि, सिद्दाराजा हंटर वीरप्पन को गिरफ्तार करने वाली विशेष टीम में शामिल थे.
धड़ल्ले से हो रहा मादा हाथी का शिकार
हनूर तालुक के लोककानहल्ली इलाके के कंदययनपाल्या गांव के निवासी माल्लीगौड़ा ने कहा कि, वे मेडिसिन का उपयोग करने के लिए साथ ही चेस्ट का हिस्सा पाने के लिए एकमात्र मादा हाथी को मार देते हैं. पीएसआई सिद्धराज नायक ने ईटीवी भारत से कहा कि, शिकारी हाथी को मार देता है और बाद में वे गोरान्धा (हाथी के सीने के हिस्से का अंदरूनी हिस्सा) को हटा देते हैं, जिसका उपयोग कुछ लोग दवाई के रूप में करते थे.
अवैध शिकार का खुलासा
चीन और अरब देशों में मादा हाथी के सीने के हिस्से का उपयोग करके दवा बनाई जाती थी. वहीं, कुछ लोग हाथी के पैर का उपयोग कुर्सी और सिंहासन बनाने के लिए इस्तेमाल किया करते थे. हाथी के दांत, पैर, हड्डियां और यहां तक की पूंछ के लिए भी शिकारी हाथियों को मार देते हैं. देश में हाथियों का संरक्षण होना आवश्यक है. इसके लिए हम सबको जागरूक होना होगा.