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कोरोना महामारी में ऑक्सीजन की उपयोगिता और भारत में इसकी क्षमता - Oxygen crisis and capacity

दुनियाभर में कोरोना महामारी फैली हुई है. इस महामारी में ऑक्सीजन मरीजों के लिए प्राणदायनी साबित हो रही है. वहीं इस दौरान देश में ऑक्सीजन की तेजी से मांग बढ़ी. देश में उत्पादित होने वाली कुल ऑक्सीजन की महज 15 से 20 फीसदी मात्रा ही चिकित्सीय क्षेत्र में उपयोग की जाती है. शेष गैस का उपयोग औद्योगिक क्षेत्रों में किया जाता है. कोरोना महामारी के दौरान ऑक्सीजन की उपयोगिता देखते हुए सरकार ने देश में एक लाख से ज्यादा ऑक्सीजन बेडों की उपलब्धता कराई है. बता दें कि एक दिन में 200 ऑक्सीजन बेड वाले अस्पतालों को 90 सिलेंडर की आवश्यकता होती है.

Oxygen
ऑक्सीजन
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Published : Jun 29, 2020, 10:41 PM IST

हैदराबाद : दुनियाभर में कोरोना महामारी फैली हुई है. इस महामारी से लड़ने में ऑक्सीजन संजीवनी साबित हो रही है. हालांकि यह जानना बेहतर होगा है कि ऑक्सीजन कैसे काम करती है और भारत बढ़ती मांग के साथ रोगियों के लिए ऑक्सीजन क्या है. कई अस्पताल चिंतित है कि क्या उन्हें आवश्यकता के अनुसार ऑक्सीजन सिलेंडर मिलेंगे. कई अस्पताल ऑक्सीजन की आपूर्ति का उपयोग रोगियों को ऐसी स्थिति में पहुंचने से रोक रहे हैं, जहां उन्हें वेंटिलेटर की आवश्यकता हो सकती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कोरोना से संक्रमित गंभीर रोगियों में से लगभग 15 फीसदी मरीजों को ऑक्सीजन की आवश्यकता होगी, जबकि पांच फीसदी मरीजों को वेंटिलेटर की आवश्यकता होगी. अन्य मरीजों को ऑक्सीजन या वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत नहीं होगी.

एक स्वास्थ्य मंत्रालय के आकलन के अनुसार, 200-बेड चिकित्सा सुविधा, जो ऑक्सीजन सिलेंडर पर निर्भर करती है. उसे प्रतिदिन को 90 जंबो सिलेंडर और बैकअप के रूप में और 90 सिलेंडर की आवश्यकता होगी. प्रत्येक सिलेंडर में लगभग 7.25 घन मीटर ऑक्सीजन होता है.

मंत्रालय ने ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए प्रमुख स्रोतों, ऑक्सीजन प्रणाली घटक, ऑक्सीजन की मात्रा की प्रामाणिक आवश्यकता और ऑक्सीजन सिलेंडर को संभालने के लिए आवश्यक सावधानियों को शामिल करते हुए दिशानिर्देश तैयार किए हैं, जिसमें सिलेंडर भरने से लेकर परिवहन, लोडिंग, अनलोडिंग तक का सही उपयोग है. सभी संबंधित अस्पतालों और कर्मचारियों को समय पर मांग और भुगतान सुनिश्चित करने के लिए सूचित किया जाना चाहिए ताकि ऑक्सीजन की आपूर्ति में कोई व्यवधान न हो.

ऑक्सीजन बेड क्या है?

एक ऑक्सीजन बेड को तीन चीजों की आवश्यकता होती है- ऑक्सीजन की आपूर्ति पाइप, ऑक्सीजन सांद्रता (concentrator) या ऑक्सीजन सिलेंडर.

एक सरकारी डॉक्टर ने बताया प्रति ऑक्सीजन बेड की लागत कुछ हजार से कुछ लाख के बीच हो सकती है.

एक ऑक्सीजन संकेंद्रक (concentrator) की क्षमता और गुणवत्ता के आधार पर इसकी लागत लगभग एक-तीन लाख रुपये हो सकती है. एक सिलेंडर की कीमत लगभग 7-8 हजार रुपये होती है, लेकिन जैसे-जैसे मांग बढ़ती है वैसे ही आपूर्ति अक्सर एक मुद्दा बन जाती है.(खासकर दूरदराज के इलाकों में)

पढ़ें : जानें, पाकिस्तान में कब-कब हुए बड़े हमले और क्या है बलूच लिबरेशन आर्मी

भारत में बेडों की संख्या

एक मई तक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, भारत में अस्पताल में भर्ती कोरोना के लगभग 3.2 प्रतिशत मरीज ऑक्सीजन सहायता पर थे और 1.1 फीसदी वेंटिलेटर पर थे. वहीं इलाज चल रहे मामलों में से 4.7 फीसदी लोग आईसीयू में थे.

देश में एक मई तक 75,000 वेंटिलेटर की मांग थी. उस दौरान देश मात्र में 19,398 वेंटिलेटर उपलब्ध थे. सरकार ने एक मई तक 60,884 वेंटिलेट के आर्डर दिए थे, जिनमें से 59,884 घरेलू निर्माताओं को जैसे BEL, Skanray के साथ मारूति सुजकी और AP Medtech को बनाने के लिए दिए गए.

एक मई तक भारत में ऑक्सीजन की कुल विनिर्माण क्षमता 6,400 मीट्रिक टन थी. इसमें से 1,000 मीट्रिक टन का उपयोग चिकित्सा ऑक्सीजन के लिए किया जाता है. देश में ऑक्सीजन के पांच बड़े और 600 छोटे निर्माता हैं और देश के 409 अस्पतालों में अपनी ऑक्सीजन उत्पादन है. एक मई तक 1,050 क्रायोजेनिक टैंकर उपलब्ध थे.

28 जून, 2020 को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि कोरोना संबंधित स्वास्थ्य बुनियादी ढ़ाचें में वृद्धि की गई है. 1,055 कोरोना अस्पतालों में अब 1,77,529 पृथक बेड, 23,168 आईसीयू बेड और 78,060 ऑक्सीजन बेड उपलब्ध कराए गए हैं. इसके साथ ही 2,400 कोरोना स्वास्थ्य केंद्र भी संचालित किए जा रहे हैं, जिसमें 1,40,099 पृथक बेड, 11,508 आईसीयू बेड और 51,371 ऑक्सीजन बेड उपलब्ध कराए गए हैं.

भारत में क्षमता

देशभर में गैस संयंत्रों में ऑक्सीजन को ऑक्सीजन सांद्रता या जनरेटर के माध्यम से ऑक्सीजन का उत्पादन किया जाता है. फिर इसे सड़क मार्ग से चिकित्सा संस्थानों में पहुंचाया जाता है.

चिकित्सीय ऑक्सीजन की आपूर्ति कई तरीकों से होती है. अच्छी तरह से स्थापित सेट-अप में, तरल ऑक्सीजन को जमीन में निर्मित बड़े टैंकों में भर दिया जाता है, फिर पाइपलाइनों के एक नेटवर्क के माध्यम से बेड तक आपूर्ति की जाती है, लेकिन भारत में कई चिकित्सा संस्थान विशेष रूप से छोटे शहर और कस्बें सिलेंडर पर निर्भर हैं. कुछ जंबो सिलेंडरों का उपयोग करते हैं, जिन्हें थोक में खरीदा जाता है और ऑक्सीजन-बैंक में संग्रहीत किया जाता है, जिसे तकनीकी रूप से मनीफोल्ड (manifold) कहा जाता है.

पढ़ें : प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : मुआवजा न मिलने से उठ रहा किसानों का भरोसा

ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल गैसेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अनुसार, भारत में लगभग 15 -20% ऑक्सीजन मेडिकल क्षेत्र के लिए है, और बाकी औद्योगिक उद्देश्यों के लिए है जैसे कि स्टील के उत्पादन के लिए.

एक सरकारी सर्वेक्षण में, अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति से संबंधित मुद्दों पर प्रकाश डाला गया था. नागालैंड और बिहार के पटना में, ऑक्सीजन सिलेंडर और नियामकों की कमी को नोट किया गया.

ऑक्सीजन को लेकर सरकार के कदम

तेलंगाना सरकार ने उस्मानिया जनरल अस्पताल, गांधी अस्पताल और तेलंगाना इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च में कोरोना वायरस वार्डों में बेड तक सीधे ऑक्सीजन की आपूर्ति के साथ वार्ड स्थापित करने की योजना बना रही है. ठेकेदारों को अस्पताल के बिस्तरों में ऑक्सीजन की आपूर्ति स्थापित करने के लिए बुलाया है.

सात अप्रैल, 2020 को, भारत के ड्रग कंट्रोलर ने कोरोना को ध्यान में रखते हुए चिकित्सा उपयोग के लिए ऑक्सीजन का निर्माण करने के लिए औद्योगिक ऑक्सीजन के निर्माताओं को एक परिपत्र अनुदान जारी किया. यह भी उल्लेख किया गया है कि ऑक्सीजन के निर्माण की अनुमति ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 और नियमों के अनुसार आवेदन प्राप्त करने के 24 घंटे के भीतर दी जाएगी.

हैदराबाद : दुनियाभर में कोरोना महामारी फैली हुई है. इस महामारी से लड़ने में ऑक्सीजन संजीवनी साबित हो रही है. हालांकि यह जानना बेहतर होगा है कि ऑक्सीजन कैसे काम करती है और भारत बढ़ती मांग के साथ रोगियों के लिए ऑक्सीजन क्या है. कई अस्पताल चिंतित है कि क्या उन्हें आवश्यकता के अनुसार ऑक्सीजन सिलेंडर मिलेंगे. कई अस्पताल ऑक्सीजन की आपूर्ति का उपयोग रोगियों को ऐसी स्थिति में पहुंचने से रोक रहे हैं, जहां उन्हें वेंटिलेटर की आवश्यकता हो सकती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कोरोना से संक्रमित गंभीर रोगियों में से लगभग 15 फीसदी मरीजों को ऑक्सीजन की आवश्यकता होगी, जबकि पांच फीसदी मरीजों को वेंटिलेटर की आवश्यकता होगी. अन्य मरीजों को ऑक्सीजन या वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत नहीं होगी.

एक स्वास्थ्य मंत्रालय के आकलन के अनुसार, 200-बेड चिकित्सा सुविधा, जो ऑक्सीजन सिलेंडर पर निर्भर करती है. उसे प्रतिदिन को 90 जंबो सिलेंडर और बैकअप के रूप में और 90 सिलेंडर की आवश्यकता होगी. प्रत्येक सिलेंडर में लगभग 7.25 घन मीटर ऑक्सीजन होता है.

मंत्रालय ने ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए प्रमुख स्रोतों, ऑक्सीजन प्रणाली घटक, ऑक्सीजन की मात्रा की प्रामाणिक आवश्यकता और ऑक्सीजन सिलेंडर को संभालने के लिए आवश्यक सावधानियों को शामिल करते हुए दिशानिर्देश तैयार किए हैं, जिसमें सिलेंडर भरने से लेकर परिवहन, लोडिंग, अनलोडिंग तक का सही उपयोग है. सभी संबंधित अस्पतालों और कर्मचारियों को समय पर मांग और भुगतान सुनिश्चित करने के लिए सूचित किया जाना चाहिए ताकि ऑक्सीजन की आपूर्ति में कोई व्यवधान न हो.

ऑक्सीजन बेड क्या है?

एक ऑक्सीजन बेड को तीन चीजों की आवश्यकता होती है- ऑक्सीजन की आपूर्ति पाइप, ऑक्सीजन सांद्रता (concentrator) या ऑक्सीजन सिलेंडर.

एक सरकारी डॉक्टर ने बताया प्रति ऑक्सीजन बेड की लागत कुछ हजार से कुछ लाख के बीच हो सकती है.

एक ऑक्सीजन संकेंद्रक (concentrator) की क्षमता और गुणवत्ता के आधार पर इसकी लागत लगभग एक-तीन लाख रुपये हो सकती है. एक सिलेंडर की कीमत लगभग 7-8 हजार रुपये होती है, लेकिन जैसे-जैसे मांग बढ़ती है वैसे ही आपूर्ति अक्सर एक मुद्दा बन जाती है.(खासकर दूरदराज के इलाकों में)

पढ़ें : जानें, पाकिस्तान में कब-कब हुए बड़े हमले और क्या है बलूच लिबरेशन आर्मी

भारत में बेडों की संख्या

एक मई तक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, भारत में अस्पताल में भर्ती कोरोना के लगभग 3.2 प्रतिशत मरीज ऑक्सीजन सहायता पर थे और 1.1 फीसदी वेंटिलेटर पर थे. वहीं इलाज चल रहे मामलों में से 4.7 फीसदी लोग आईसीयू में थे.

देश में एक मई तक 75,000 वेंटिलेटर की मांग थी. उस दौरान देश मात्र में 19,398 वेंटिलेटर उपलब्ध थे. सरकार ने एक मई तक 60,884 वेंटिलेट के आर्डर दिए थे, जिनमें से 59,884 घरेलू निर्माताओं को जैसे BEL, Skanray के साथ मारूति सुजकी और AP Medtech को बनाने के लिए दिए गए.

एक मई तक भारत में ऑक्सीजन की कुल विनिर्माण क्षमता 6,400 मीट्रिक टन थी. इसमें से 1,000 मीट्रिक टन का उपयोग चिकित्सा ऑक्सीजन के लिए किया जाता है. देश में ऑक्सीजन के पांच बड़े और 600 छोटे निर्माता हैं और देश के 409 अस्पतालों में अपनी ऑक्सीजन उत्पादन है. एक मई तक 1,050 क्रायोजेनिक टैंकर उपलब्ध थे.

28 जून, 2020 को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि कोरोना संबंधित स्वास्थ्य बुनियादी ढ़ाचें में वृद्धि की गई है. 1,055 कोरोना अस्पतालों में अब 1,77,529 पृथक बेड, 23,168 आईसीयू बेड और 78,060 ऑक्सीजन बेड उपलब्ध कराए गए हैं. इसके साथ ही 2,400 कोरोना स्वास्थ्य केंद्र भी संचालित किए जा रहे हैं, जिसमें 1,40,099 पृथक बेड, 11,508 आईसीयू बेड और 51,371 ऑक्सीजन बेड उपलब्ध कराए गए हैं.

भारत में क्षमता

देशभर में गैस संयंत्रों में ऑक्सीजन को ऑक्सीजन सांद्रता या जनरेटर के माध्यम से ऑक्सीजन का उत्पादन किया जाता है. फिर इसे सड़क मार्ग से चिकित्सा संस्थानों में पहुंचाया जाता है.

चिकित्सीय ऑक्सीजन की आपूर्ति कई तरीकों से होती है. अच्छी तरह से स्थापित सेट-अप में, तरल ऑक्सीजन को जमीन में निर्मित बड़े टैंकों में भर दिया जाता है, फिर पाइपलाइनों के एक नेटवर्क के माध्यम से बेड तक आपूर्ति की जाती है, लेकिन भारत में कई चिकित्सा संस्थान विशेष रूप से छोटे शहर और कस्बें सिलेंडर पर निर्भर हैं. कुछ जंबो सिलेंडरों का उपयोग करते हैं, जिन्हें थोक में खरीदा जाता है और ऑक्सीजन-बैंक में संग्रहीत किया जाता है, जिसे तकनीकी रूप से मनीफोल्ड (manifold) कहा जाता है.

पढ़ें : प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : मुआवजा न मिलने से उठ रहा किसानों का भरोसा

ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल गैसेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अनुसार, भारत में लगभग 15 -20% ऑक्सीजन मेडिकल क्षेत्र के लिए है, और बाकी औद्योगिक उद्देश्यों के लिए है जैसे कि स्टील के उत्पादन के लिए.

एक सरकारी सर्वेक्षण में, अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति से संबंधित मुद्दों पर प्रकाश डाला गया था. नागालैंड और बिहार के पटना में, ऑक्सीजन सिलेंडर और नियामकों की कमी को नोट किया गया.

ऑक्सीजन को लेकर सरकार के कदम

तेलंगाना सरकार ने उस्मानिया जनरल अस्पताल, गांधी अस्पताल और तेलंगाना इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च में कोरोना वायरस वार्डों में बेड तक सीधे ऑक्सीजन की आपूर्ति के साथ वार्ड स्थापित करने की योजना बना रही है. ठेकेदारों को अस्पताल के बिस्तरों में ऑक्सीजन की आपूर्ति स्थापित करने के लिए बुलाया है.

सात अप्रैल, 2020 को, भारत के ड्रग कंट्रोलर ने कोरोना को ध्यान में रखते हुए चिकित्सा उपयोग के लिए ऑक्सीजन का निर्माण करने के लिए औद्योगिक ऑक्सीजन के निर्माताओं को एक परिपत्र अनुदान जारी किया. यह भी उल्लेख किया गया है कि ऑक्सीजन के निर्माण की अनुमति ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 और नियमों के अनुसार आवेदन प्राप्त करने के 24 घंटे के भीतर दी जाएगी.

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