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मोटापे और तनाव से ग्रस्त लोगों के लिए जानलेवा हो सकता है कोरोना - obese people face mental and physical problems

ह्यूस्टन में यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास हेल्थ साइंस सेंटर और यूटी साउथवेस्टर्न के नेतृत्व में किए गए शोध के अनुसार, कोविड-19 महामारी मोटापे से ग्रस्त लोगों पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रही है क्योंकि वह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ को ठीक रखने के लिए मेहनत नहीं कर पाते हैं. पढ़ें यह लेख...

मोटापे और तनाव से ग्रस्त लोगों के लिए घातक है कोरोना
मोटापे और तनाव से ग्रस्त लोगों के लिए घातक है कोरोना
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Published : Jun 13, 2020, 12:13 PM IST

Updated : Jun 13, 2020, 12:56 PM IST

हैदराबाद : शोधकर्ताओं ने पाया है कि कोरोना महामारी मोटापे से ग्रस्त लोगों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है क्योंकि वह अपने वजन और मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए कोई मेहनत नहीं कर पाते हैं.

जर्नल क्लिनिकल ओबेसिटी में प्रकाशित शोध के लिए अनुसंधान दल ने मोटापे से ग्रस्त 123 रोगियों का अध्ययन किया और खुलासा किया कि लगभग 73 प्रतिशत रोगियों में चिंता और तनाव बढ़ गया था और 84 प्रतिशत मरीज गहरे अवसाद में चले गए थे.

अमेरिका के टेक्सास विश्वविद्यालय के लेखक सारा मसीहा ने कहा कि सभी को बताया गया कि संक्रमण से खुद को बचाने के लिए घर पर रहें और विशेष रूप से गंभीर मोटापे से ग्रस्त लोगों को जो अगर कोरोना की चपेट में आते हैं तो उनकी जान को खतरा हो सकता है.

यह डेटा 15 अप्रैल से 31 मई तक संग्रह की गई एक ऑनलाइन प्रश्नावली से आया था. प्रतिभागियों की औसत आयु 51 वर्ष थी और इनमें 87 प्रतिशत महिलाएं थीं. इन रोगियों के लिए औसत बॉडी मास इंडेक्स 40 था.

निष्कर्षों से पता चला है कि लगभग 70 प्रतिशत लोगों को वजट घटाने में काफी दिक्कते हो रही हैं, जबकि 48 प्रतिशत के पास व्यायाम का समय कम था और 56 प्रतिशत लोग रोज की दिनचर्या में व्यायाम को शामिल नहीं कर पा रहे थे. लगभग आधे रोगियों में भोजन को स्टॉक करने की प्रवृति बढ़ गई और 61 प्रतिशत रोगी तनाव से ग्रसित होकर भोजन खा रहे थे.

शोधकर्ताओं के अनुसार दो रोगियों ने सार्स-सीओवी-2 की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. लेकिन लगभग 15 प्रतिशत लोगों ने वायरस वाले लक्षण होने की जानकारी दी. इनमें से लगभग 10 प्रतिशत लोगों ने अपनी नौकरी खो दी और 20 प्रतिशत ने कहा कि वह संतुलित भोजन करने की उनकी क्षमता नहीं है.

अध्ययन के लेखक जैम अल्मांडोज ने कहा कि इस अध्ययन की प्रमुख ताकत यह है कि यह पहले डेटा संचालित शोध में से एक है, जो यह बताता है कि कोविड-19 महामारी ने मोटापे के रोगियों के खान-पान को किस तरह प्रभावित किया.

अल्मांडोज ने बताया कि मोटापे से ग्रस्त कई मरीजों को पहले से ही ताजे, स्वस्थ खाद्य पदार्थों के मिलने की कमी से जूझ रहे हैं. कुछ लोग किराने की दुकानों की कमी वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जहां एकमात्र विकल्प फास्ट फूड और सुविधा स्टोर से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ ही हैं.

अल्मांडोज ने कहा कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अन्य मोटापे से ग्रसित लोगों के लिए जरूरी चीजों की अभाव पैदा हो सकता है.

जब आप सामाजिक अलगाव के लिए धकेल दिए जाते हैं तो अपनी नौकरी और बीमा कवरेज को खोने के साथ-साथ एक संभावित आपदा भी आपका इंतजार कर रही होती है.

शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि यह शोध जानकारी दे सकता है स्वास्थ्यकर्मियों और मेडिकलकर्मियों को जिसकी मदद से वैसी रणनीति तैयार करने में मदद कर सकते हैं, जो कोविड-19 के प्रभाव को शारीरीक और मानिसक तौर पर मोटापे से ग्रस्त लोगों में कम कर सकें.

बीएमजे नामक पत्रिका में पिछले महीने प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि उम्र, मोटापा और अंतर्निहित बीमारी से ग्रसित व्यक्ति यदि कोरोना से संक्रमित हो जाए तो यह जानलेवा हो सकती है.

हैदराबाद : शोधकर्ताओं ने पाया है कि कोरोना महामारी मोटापे से ग्रस्त लोगों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है क्योंकि वह अपने वजन और मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए कोई मेहनत नहीं कर पाते हैं.

जर्नल क्लिनिकल ओबेसिटी में प्रकाशित शोध के लिए अनुसंधान दल ने मोटापे से ग्रस्त 123 रोगियों का अध्ययन किया और खुलासा किया कि लगभग 73 प्रतिशत रोगियों में चिंता और तनाव बढ़ गया था और 84 प्रतिशत मरीज गहरे अवसाद में चले गए थे.

अमेरिका के टेक्सास विश्वविद्यालय के लेखक सारा मसीहा ने कहा कि सभी को बताया गया कि संक्रमण से खुद को बचाने के लिए घर पर रहें और विशेष रूप से गंभीर मोटापे से ग्रस्त लोगों को जो अगर कोरोना की चपेट में आते हैं तो उनकी जान को खतरा हो सकता है.

यह डेटा 15 अप्रैल से 31 मई तक संग्रह की गई एक ऑनलाइन प्रश्नावली से आया था. प्रतिभागियों की औसत आयु 51 वर्ष थी और इनमें 87 प्रतिशत महिलाएं थीं. इन रोगियों के लिए औसत बॉडी मास इंडेक्स 40 था.

निष्कर्षों से पता चला है कि लगभग 70 प्रतिशत लोगों को वजट घटाने में काफी दिक्कते हो रही हैं, जबकि 48 प्रतिशत के पास व्यायाम का समय कम था और 56 प्रतिशत लोग रोज की दिनचर्या में व्यायाम को शामिल नहीं कर पा रहे थे. लगभग आधे रोगियों में भोजन को स्टॉक करने की प्रवृति बढ़ गई और 61 प्रतिशत रोगी तनाव से ग्रसित होकर भोजन खा रहे थे.

शोधकर्ताओं के अनुसार दो रोगियों ने सार्स-सीओवी-2 की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. लेकिन लगभग 15 प्रतिशत लोगों ने वायरस वाले लक्षण होने की जानकारी दी. इनमें से लगभग 10 प्रतिशत लोगों ने अपनी नौकरी खो दी और 20 प्रतिशत ने कहा कि वह संतुलित भोजन करने की उनकी क्षमता नहीं है.

अध्ययन के लेखक जैम अल्मांडोज ने कहा कि इस अध्ययन की प्रमुख ताकत यह है कि यह पहले डेटा संचालित शोध में से एक है, जो यह बताता है कि कोविड-19 महामारी ने मोटापे के रोगियों के खान-पान को किस तरह प्रभावित किया.

अल्मांडोज ने बताया कि मोटापे से ग्रस्त कई मरीजों को पहले से ही ताजे, स्वस्थ खाद्य पदार्थों के मिलने की कमी से जूझ रहे हैं. कुछ लोग किराने की दुकानों की कमी वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जहां एकमात्र विकल्प फास्ट फूड और सुविधा स्टोर से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ ही हैं.

अल्मांडोज ने कहा कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अन्य मोटापे से ग्रसित लोगों के लिए जरूरी चीजों की अभाव पैदा हो सकता है.

जब आप सामाजिक अलगाव के लिए धकेल दिए जाते हैं तो अपनी नौकरी और बीमा कवरेज को खोने के साथ-साथ एक संभावित आपदा भी आपका इंतजार कर रही होती है.

शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि यह शोध जानकारी दे सकता है स्वास्थ्यकर्मियों और मेडिकलकर्मियों को जिसकी मदद से वैसी रणनीति तैयार करने में मदद कर सकते हैं, जो कोविड-19 के प्रभाव को शारीरीक और मानिसक तौर पर मोटापे से ग्रस्त लोगों में कम कर सकें.

बीएमजे नामक पत्रिका में पिछले महीने प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि उम्र, मोटापा और अंतर्निहित बीमारी से ग्रसित व्यक्ति यदि कोरोना से संक्रमित हो जाए तो यह जानलेवा हो सकती है.

Last Updated : Jun 13, 2020, 12:56 PM IST
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