पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने जमकर 'नन ऑफ द एबॉव' (नोटा) बटन दबाया है. नोटा वोटों की संख्या असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को मिले वोटों से कहीं ज्यादा है. चुनाव आयोग की ओर से जारी किए गए आंकड़े के अनुसार इस चुनाव में राज्य में सात लाख से ज्यादा लोगों ने ईवीएम पर नोटा का बटन दबाया है. 243 सीटों वाली विधानसभा के लिए हुए इस उपचुनाव में सत्ताधारी गठबंधन को 125, विपक्षी महागठबंधन को 110 और अन्य पार्टियों को 8 सीटें मिली हैं. इस चुनाव एनडीए को बहुमत मिला है और नीतीश कुमार का सीएम बनना तय हो गया है.
1.68 फीसदी मतदाताओं की पसंद नोटा
चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक बिहार के 7,06,252 मतदाताओं ने इस बार 'नोटा' पर वोट डाले हैं. यानी उन्होंने किसी भी दल या प्रत्याशी के लिए वोटिंग नहीं की है. यह संख्या बिहार में हुए कुल मतदान का 1.68 फीसदी है. जबकि, विधानसभा की 5 सीटें जीतने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को नोटा से काफी कम 1.24 फीसदी ही वोट मिले हैं. एआईएमआईएम ही नहीं इस चुनाव में एक सीट जीती बीएसपी का 1.49 फीसदी वोट और 2-2 सीटों वाली सीपीआई की 0.83 का फीसदी और सीपीएम का 0.65 फीसदी वोट भी नोटा से काफी कम है. इस बार राज्य के करीब 7.3 करोड़ वोटरों में से 4 करोड़ से ज्यादा वोट पड़े हैं. जो कि कुल मतदाताओं का 57.09 फीसदी है.
16 नवंबर को हो सकता है शपथ ग्रहण
बिहार चुनाव में इस बार कई सीटों पर नोटा में पड़े वोट जीतने वाले उम्मीदवारों की जीत के अंतर से भी कहीं ज्यादा है. बिहार में इस बार तीन चरणों में चुनाव संपन्न हुआ और आने वाले 29 नवंबर तक नवनिर्वाचित विधानसभा का गठन कर लिया जाना है. हालांकि सूत्रों के अनुसार 16 नवंबर को नीतीश कुमार सीएम पद की शपथ ले सकते हैं.
सीमांचल की 5 सीटों पर एमआईएमआईएम ने जीत दर्ज की है. जिसे वहां की राजनीति में आने वाले बड़े बदलाव के संकेत माने जा रहे हैं. खुद ओवैसी ने कहा है कि वह पश्चिम बंगाल का भी अगला चुनाव लड़ेंगे और यूपी में भी प्रत्याशी उतारेंगे.
2013 में शुरू हुआ था नोटा
बता दें कि ईवीएम में नोटा का विकल्प 2013 से शुरू किया गया था, जिसमें इसके सिंबल के तौर पर बैलेट पेपर पर काले क्रॉस का निशान रहता है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग इसे वोटर के लिए ईवीएम में वोटिंग के अंतिम विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करता है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले जो मतदाता किसी को भी वोट नहीं देना चाहते थे, उनके लिए 'फॉर्म 49-ओ' भरने का विकल्प होता था, लेकिन, मतदान के इस नियम के तहत मतदाता की गोपनीयता भंग होने का जोखिम होता था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह निर्देश देने से इनकार कर दिया कि अगर ज्यादातर वोटर नोटा का इस्तेमाल करते हैं, तो वह फिर से चुनाव करवाए.