पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर पटना से लेकर दिल्ली तक आंदोलन करते थे. पहले यूपीए की सरकार केंद्र में थी तो कई तरह के आरोप लगाते थे, लेकिन पिछले कुछ समय से वह खामोश हैं.
केंद्र और बिहार दोनों जगह एनडीए की सरकार है. डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी नीतीश की मांग पूरी नहीं हुई. पिछले कुछ समय से नीतीश इस मुद्दे पर बात भी नहीं कर रहे.
14वें वित्त आयोग की सिफारिश से लटक गया मामला
इन राज्यों को मिला है विशेष राज्य का दर्जा
आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने के कारण एनडीए के महत्वपूर्ण सहयोगी चंद्रबाबू नायडू नाराज होकर अलग तक हो गए थे. अभी जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है उसमें असम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं. इनमें से कई राज्यों की स्थिति विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद बेहतर हुई है. उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर निवेश हुआ.
विशेष राज्य का दर्जा भौगोलिक और सामाजिक स्थिति व आर्थिक संसाधनों के हिसाब से दिया जाता रहा है. नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल ने पहाड़, दुर्गम क्षेत्र, कम जनसंख्या, आदिवासी इलाका, अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर, प्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व का आधार बनाया था. पांचवें वित्त आयोग ने सबसे पहले 3 राज्यों को 1969 में विशेष राज्य का दर्जा दिया था, जिसमें जम्मू-कश्मीर भी शामिल था. अभी देश के 28 राज्यों में से 10 को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है.
विशेष राज्य का दर्जा मिलने से होते हैं ये फायदे
जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिलता है वहां एक्साइज, कस्टम और कॉर्पोरेट इनकम टैक्स में भी बड़ी रियायत मिलती है. प्लांड खर्च के हिस्से की करीब 30 फीसदी राशि मिलती है. खर्च नहीं होने पर राशि अगले वित्त वर्ष के लिए जारी हो जाती है.
इस वजह से हो रही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले इसके लिए विशेषज्ञों का तर्क रहा है कि बिहार से सबसे अधिक पलायन होता है. गरीबी सबसे ज्यादा है. बेरोजगारी भी सबसे अधिक है. बिहार आपदा ग्रस्त राज्य है. 38 जिले में से 15 जिले बाढ़ ग्रस्त इलाके में आते हैं. हर साल बाढ़ से करोड़ों की संपत्ति, जान-माल और आधारभूत संरचना के साथ फसलों को भी नुकसान होता है.
नीतीश कुमार का भी यह तर्क रहा है कि दूसरे विकसित राज्यों की श्रेणी में आने के लिए बिहार को बिना विशेष राज्य का दर्जा मिले तेजी से विकास संभव नहीं है. बिहार में सड़क, बिजली और कानून-व्यवस्था को लेकर काफी सुधार हुआ है. डबल डिजिट में लगातार ग्रोथ रहने के बावजूद निवेश नहीं हुआ है. झारखंड के अलग होने के बाद बिहार से खनिज संपदा चला गया. उद्योग धंधे भी झारखंड में ही रह गए.
रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट ने की थी विशेष मदद की बात
रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट को नीतीश कुमार ने बड़ी जीत बताया था. यह वह समय था जब नीतीश बीजेपी से अलग हो गए थे. रिपोर्ट में रघुराम राजन कमेटी ने विशेष राज्य के दर्जे की जगह विशेष मदद की बात कही थी और इसके लिए राज्यों की तीन श्रेणी बनाई गई थी. बिहार को सबसे कम विकसित राज्य की श्रेणी में रखा गया था. तब रघुराम राजन मुख्य आर्थिक सलाहकार थे बाद में आरबीआई के गवर्नर भी बने.
क्या कहते हैं जानकार
मामलों के जानकार डीएम दिवाकर का कहना है कि 'रघुराम राजन कमेटी से उम्मीद थी. नीतीश कुमार जब आरजेडी से अलग हुए और एनडीए में आए तो यह उम्मीद और बढ़ी, लेकिन अब नीतीश उसकी चर्चा भी नहीं कर रहे हैं.'
अर्थशास्त्री एनके चौधरी ने कहा 'नीतीश कुमार ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था लेकिन अब कुछ नहीं बोल रहे हैं. बिहार जैसे राज्य के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं है. इसलिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना ही चाहिए.'
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कहा 'सत्ता जाने की डर से नीतीश विशेष राज्य के दर्जा देने की मांग नहीं कर रहे हैं. उन्हें डर है कि लालू जिस स्थान पर हैं कहीं उन्हें भी न पहुंचा दिया जाए.'
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जदयू नेता श्रवण कुमार ने कहा कि 'हमलोग विशेष राज्य का दर्जा की मांग भूले नहीं है. अभी देश की जो परिस्थिति है उसमें ऐसा नहीं है कि बिहार विकास नहीं कर रहा है. यदि विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पूरी होती तो निश्चित रूप से कल कारखाने यहां अधिक लगते और लोगों को रोजगार मिलता.'