होशंगाबाद : होशंगाबाद जिले में स्थित पचमढ़ी को उसके कुदरती नजारों के लिए जाना जाता है. यहां की खूबसूरत वादियों में वक्त गुजारने अक्सर सैलानी आते हैं, क्योंकि पचमढ़ी में पग-पग पर रहस्य और रोमांच भरे पड़े हैं. इन रहस्यों से जब पर्दा उठता है तो हर कोई हैरत में पड़ जाता है. कुछ ऐसा ही नजारा हम आपको दिखाने जा रहे हैं. ऊपर नीला आसमान और नीचे नीले फूलों से सजी जन्नत. जी हां यह है नीलकुरिंजी के फूल. जो एक बार फिर पचमढ़ी की सबसे ऊंची चोटी धूपगढ़ पर खिलने लगे हैं.
अनोखा है नीलकुरिंजी फूल
नीलकुरिंजी फूल की खासियत जानकर आप दंग रह जाएंगे. इस फूल के नाम से जाहिर होता है कि यह नीले रंग का है. जिसके खिलने के बाद पचमढ़ी में धूपगढ़ की चोटी का बड़ा हिस्सा हरे रंग से नीले रंग में बदल जाता है. आपको जानकार हैरानी होगी कि नीलकुरिंजी का फूल 12 साल में एक बार खिलता है. जिसे देखने के लिए सैलानी दूर-दूर से पचमढ़ी आते हैं.
![धूपगढ़ की चोटी पर खिला नीलकुरिंजी](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8839458_kdkkdkdlldllld.jpg)
पीएम मोदी ने किया था नीलकुरिंजी का जिक्र
2018 में 15 अगस्त के दिन लालकिले से भाषण देते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने भी नीलकुरिंजी के फूल का जिक्र किया था. उस वक्त यह फूल केरल में मुन्नार की पहाड़ियों पर खिला था. तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह फूल भी भारत की एक अलग पहचान है, जो 12 साल बाद फिर से खिल उठता है. इस फूल से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए और हर बार पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ना चाहिए.
देश में सिर्फ दो स्थानों पर खिलता है नीलकुरिंजी
नीलकुरिंजी का वैज्ञानिक नाम स्ट्रोबिलैंथस कुंथियाना है, जो भारत में दो स्थानों पर ही खिलता है. पहला केरल में मुन्नार की पहाड़ियों पर और दूसरा पचमढ़ी में धूपगढ़ की चोटी पर. खास बात यह है कि फूल अगस्त से अक्टूबर के बीच ही खिलता है. इस साल भी आप नीलकुरिंजी के फूल को धूपगढ़ की चोटी पर देख सकते हैं जो 12 साल बाद फिर पचमढ़ी की खूबसूरती को बढ़ा रहा है. वनस्पति विशेषज्ञों के अनुसार यह फूल एक बार खिलने के बाद सूखने लगते हैं. जिसके बाद यह अपने बीज उसी स्थान पर गिरा देते हैं और पौधों की अगली खेप आने में 12 सालों का लंबा वक्त लगता है.
![केरल के मुन्नार में भी खिलता है नीलकुरिंजी](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8839458_kdkkdkdlldl.jpg)
19वीं शताब्दी में हुई थी नीलकुरिंजी की पहचान
नीलकुरिंजी फूल की पहचान 19वीं शताब्दी में हुई थी. उस वक्त इस फूल की करीब 250 प्रजातियां देखने को मिलती थीं. जिसमें तकरीबन 46 प्रजातियां भारत में पाई जाती थीं. नीलकुरिंजी का फूल 30 से 60 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है, जो 1300 से 2400 मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों पर ही पाया जाता है. पहले यह तमिलानाडु की नीलगुरी पहाड़ियों पर भी उंगते थे, लेकिन अब इसकी प्रजातियां धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं.
औषधीय गुणों से भरपूर है नीलकुरिंजी
वनस्पति विज्ञानी प्रोफेसर रवि कहते हैं कि इस फूल का जिक्र पीएम मोदी ने किया क्योंकि इसकी खासियत दूसरे फूलों में नहीं है. नीलकुरिंजी औषधीय गुणों से भरपूर है. इससे बना शहद दवाई का काम करता है और 15 साल तक खराब नहीं होता है. नीलकुरिंजी के फूलों को दोबारा खिलने में इतना वक्त इसलिए लगता है कि क्योंकि इस फूल के परागकण काफी लंबी अवधि में विकसित होते हैं, इसलिए इसे दोबारा खिलने में 12 सालों का समय लग जाता है.
अब 2032 में खिलेगा नीलकुरिंजी
नीलकुरिंजी के नीले-बैंगनी रंग के फूलों ने इन दिनों पचमढ़ी धूपगढ़ की चोटी का शृंगार किया हुआ है. वनस्पति वैज्ञानिकों ने इसे दुर्लभ प्रजाति के पौधों में शामिल किया है. नीलकुरिंजी का फूल 2008 में पचमढ़ी में लगा था. अब 12 साल बाद 2020 में देखने मिला है. अगला दीदार 2032 में होगा. अगले तीन महीनों तक सैलानी नीले जन्नत की सैर कर सकेंगे. तो दोस्तों इस बार पहाड़ों की रानी पचमगढ़ी पर नीलकुरिंजी का दीदार करने जरूर जाइए.