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ऐसी थी गांधी के सत्याग्रह की ताकत, दुनिया ने माना लोहा

इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती मनाई जा रही है. इस अवसर पर ईटीवी भारत दो अक्टूबर तक हर दिन उनके जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा कर रहा है. हम हर दिन एक विशेषज्ञ से उनकी राय शामिल कर रहे हैं. साथ ही प्रतिदिन उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों की प्रस्तुति दे रहे हैं. प्रस्तुत है आज छठी कड़ी.

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Published : Aug 21, 2019, 7:01 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 5:52 PM IST

महात्मा गांधी ( फाइल फोटो)

लेनिन से जिस प्रकार से पूरी दुनिया में वामपंथी आंदोलनकारियों को प्रेरित किया था, माओ और फिडेल कास्त्रो ने जिस तरह से हिंसा की राजनीति से विदेशी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी, गांधी ने इनसे अलग एक नया मार्ग अपनाया था. वह रास्ता था सत्याग्रह का. गांधी के इस मार्ग से मंडेला और मार्टिन लूथर जैसी महान विभूति ने प्रेरणा लेकर अपने-अपने यहां क्रांतिकारी बदलाव ला दिए.

बिना खून बहाए ही किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ सत्याग्रह के जरिए किस तरह से लड़ाई लड़ी जा सकती है, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में गांधी का यह सबसे अनूठा योगदान रहा. सत्याग्रह का अहिंसक तरीका बहुत ही प्रभावशाली था. इस रास्ते हमें ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली. सत्याग्रह ने निहत्थे पुरुषों और महिलाओं को ग्रेट ब्रिटेन जैसे साम्राज्यवादी ताकत के खिलाफ लड़ने का हौसला दिया. सत्याग्रह आंदोलन के जरिए ही इन लोगों में विश्वास पैदा हुआ और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो जैसे आंदोलन चलाए.

1857 और उसके बाद कई मौकों पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ हिंसक तरीकों से हमला किया गया था. सबसे पहला और प्रमुख प्रयास आंदोलनकारी मंगल पांडे का था. लेकिन अंग्रेजों ने उनके विद्रोह को क्रूरता से कुचल दिया था. अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर निर्वासित कर दिया गया. उसके बाद चिटगांव सैन्य विद्रोह हुआ. इसे भी निर्दयतापूर्वक दबा दिया गया.

कुछ क्रांतिकारी है, जिन्होंने व्यक्तिगत तौर पर अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र उठाए थे. इनमें खुदीराम बोस जैसे वीर शामिल थे. ये सभी कार्य उच्च बलिदान और त्याग के थे. इसके बावजूद बड़े पैमाने पर बड़ी संख्या में लोग उनके पीछे नहीं आए. या कहें कि वे साहस नहीं जुटा सके.

गांधी ने द. अफ्रीका में अंग्रेजों की रंगभेदी शासन के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा था. 1915 में वे भारत लौटे. उसके बाद उन्होंने सत्याग्रह को अपना हथियार बना लिया. निहत्थे लोगों को संघटित किया. बिहार के चंपारण में 1917 में उन्होंने भारत में पहली बार नील की जबरन खेती करवाने का सत्याग्रह के जरिए विरोध किया. यह उनका एक प्रयोग था. इसका असर ऐसा रहा कि नील की जबरन खेती बंद हो गई. इससे लोगों को एक रास्ता मिला. उन्होंने देखा कि अहिंसा की क्या ताकत होती है.

पढ़ें- ...यही वजह थी कि गांधी आश्रम व्यवस्था पर जोर देते थे

देश के आम लोगों ने महसूस किया कि वे भी शक्तिशाली ब्रिटिश राज को चुनौती दे सकते हैं. वो भी बिना बम और बंदूक को हाथ में लिए. उसके बाद सत्याग्रह आम लोगों का औजार बन गया. चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के तुरंत बाद खिलाफत आंदोल शुरू हुआ. शौकत अली और मोहम्मद अली इसका नेतृत्व कर रहे थे. इस आंदोलन में बड़ी संख्या में मुस्लिमों ने भागीदारी की थी. गांधी ने अली बंधु के आंदोलन का समर्थन किया था. यह आंदोलन बहुत हद तक अहिंसक रहा. खिलाफत एक राष्ट्रवादी आंदोलन था. इस दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल दिखी थी. ऐसी ही एकता 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान भी दिखी थी.

द. अफ्रीका में गांधी को सत्याग्रह की ताकत का अहसास हुआ था कि कैसे गोरे तानाशाह शासक की रंगभेद नीति के खिलाफ प्रभावशाली रणनीति के तौर पर इसे प्रयोग किया गया था. कैसे आम लोगों को उसके पीछे खड़ा किया जा सकता है.

कस्तूरबा उन चंद सत्याग्रहियों में शामिल थीं, जिन्होंने आगे बढ़कर अपनी गिरफ्तारी दी थी. 1917-42 के बीच में बड़ी संख्या में सत्याग्रह आंदोलन ने महिलाओं को भाग लेने के लिए प्रेरित किया था. क्योंकि यह अहिंसक मार्ग था.

गांधी यह भी मानते थे कि एक सत्याग्रही को अनुशासित जीवन का पालन करना चाहिए. इसलिए उन्होंने लोगों को अपने भाषणों और लेखों के जरिए शिक्षित किया. यंग इंडिया, हरिजन और नवजीवन में उनके विचार साफ तौर पर जनता को प्रेरित करते रहे. उन्होंने गुजरात विद्यापीठ को एक तरीके से सत्याग्रहियों के प्रशिक्षण के लिए तैयार किया था. इस विवि को उन्होंने 1920 में स्थापित किया था. नमक सत्याग्रह के अलावा कई ऐसे आंदोलनों में गुजरात विद्यापीठ के छात्रों और शिक्षकों ने हिस्सा लिया था.

सत्याग्रह की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि गांधी के विरोधी भी उनके दोस्त बन जाते थे. पूरी दुनिया में गांधी के फॉलोअर्स की संख्या बहुत बड़ी थी. गांधी का जीवन और उनका दर्शन न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया में कई अन्य देशों के सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया. इनमें से सबसे प्रमुख हैं द. अफ्रीका के नेल्सन मंडेला और अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग.

गांधी ने जिस सत्याग्रह और अहिंसा का प्रचार किया था, वह सादगी भरी जिंदगी से जुड़ा था, पर्यावरण से उसकी संगतता थी, सामुदायिक जिंदगी के साथ सहभागिता थी, शोषितों और वंचितों को ऊपर उठाने और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की थी.

पूंजीपति और साम्यवाद विचारधारा में बंटी दुनिया को गांधी ने हिंद स्वराज का विचार दिया. एक ऐसा समाज, जो स्वावलंबी हो, सहभागिता पर आधारित हो और सबको साथ लेकर चल सके.

(लेखक- नचिकेता देसाई, वह गांधी के निजी सचिव रह चुके महादेव देसाई के पोते हैं)

आलेख में लिखे विचार लेखक के निजी हैं. इससे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है

लेनिन से जिस प्रकार से पूरी दुनिया में वामपंथी आंदोलनकारियों को प्रेरित किया था, माओ और फिडेल कास्त्रो ने जिस तरह से हिंसा की राजनीति से विदेशी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी, गांधी ने इनसे अलग एक नया मार्ग अपनाया था. वह रास्ता था सत्याग्रह का. गांधी के इस मार्ग से मंडेला और मार्टिन लूथर जैसी महान विभूति ने प्रेरणा लेकर अपने-अपने यहां क्रांतिकारी बदलाव ला दिए.

बिना खून बहाए ही किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ सत्याग्रह के जरिए किस तरह से लड़ाई लड़ी जा सकती है, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में गांधी का यह सबसे अनूठा योगदान रहा. सत्याग्रह का अहिंसक तरीका बहुत ही प्रभावशाली था. इस रास्ते हमें ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली. सत्याग्रह ने निहत्थे पुरुषों और महिलाओं को ग्रेट ब्रिटेन जैसे साम्राज्यवादी ताकत के खिलाफ लड़ने का हौसला दिया. सत्याग्रह आंदोलन के जरिए ही इन लोगों में विश्वास पैदा हुआ और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो जैसे आंदोलन चलाए.

1857 और उसके बाद कई मौकों पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ हिंसक तरीकों से हमला किया गया था. सबसे पहला और प्रमुख प्रयास आंदोलनकारी मंगल पांडे का था. लेकिन अंग्रेजों ने उनके विद्रोह को क्रूरता से कुचल दिया था. अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर निर्वासित कर दिया गया. उसके बाद चिटगांव सैन्य विद्रोह हुआ. इसे भी निर्दयतापूर्वक दबा दिया गया.

कुछ क्रांतिकारी है, जिन्होंने व्यक्तिगत तौर पर अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र उठाए थे. इनमें खुदीराम बोस जैसे वीर शामिल थे. ये सभी कार्य उच्च बलिदान और त्याग के थे. इसके बावजूद बड़े पैमाने पर बड़ी संख्या में लोग उनके पीछे नहीं आए. या कहें कि वे साहस नहीं जुटा सके.

गांधी ने द. अफ्रीका में अंग्रेजों की रंगभेदी शासन के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा था. 1915 में वे भारत लौटे. उसके बाद उन्होंने सत्याग्रह को अपना हथियार बना लिया. निहत्थे लोगों को संघटित किया. बिहार के चंपारण में 1917 में उन्होंने भारत में पहली बार नील की जबरन खेती करवाने का सत्याग्रह के जरिए विरोध किया. यह उनका एक प्रयोग था. इसका असर ऐसा रहा कि नील की जबरन खेती बंद हो गई. इससे लोगों को एक रास्ता मिला. उन्होंने देखा कि अहिंसा की क्या ताकत होती है.

पढ़ें- ...यही वजह थी कि गांधी आश्रम व्यवस्था पर जोर देते थे

देश के आम लोगों ने महसूस किया कि वे भी शक्तिशाली ब्रिटिश राज को चुनौती दे सकते हैं. वो भी बिना बम और बंदूक को हाथ में लिए. उसके बाद सत्याग्रह आम लोगों का औजार बन गया. चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के तुरंत बाद खिलाफत आंदोल शुरू हुआ. शौकत अली और मोहम्मद अली इसका नेतृत्व कर रहे थे. इस आंदोलन में बड़ी संख्या में मुस्लिमों ने भागीदारी की थी. गांधी ने अली बंधु के आंदोलन का समर्थन किया था. यह आंदोलन बहुत हद तक अहिंसक रहा. खिलाफत एक राष्ट्रवादी आंदोलन था. इस दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल दिखी थी. ऐसी ही एकता 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान भी दिखी थी.

द. अफ्रीका में गांधी को सत्याग्रह की ताकत का अहसास हुआ था कि कैसे गोरे तानाशाह शासक की रंगभेद नीति के खिलाफ प्रभावशाली रणनीति के तौर पर इसे प्रयोग किया गया था. कैसे आम लोगों को उसके पीछे खड़ा किया जा सकता है.

कस्तूरबा उन चंद सत्याग्रहियों में शामिल थीं, जिन्होंने आगे बढ़कर अपनी गिरफ्तारी दी थी. 1917-42 के बीच में बड़ी संख्या में सत्याग्रह आंदोलन ने महिलाओं को भाग लेने के लिए प्रेरित किया था. क्योंकि यह अहिंसक मार्ग था.

गांधी यह भी मानते थे कि एक सत्याग्रही को अनुशासित जीवन का पालन करना चाहिए. इसलिए उन्होंने लोगों को अपने भाषणों और लेखों के जरिए शिक्षित किया. यंग इंडिया, हरिजन और नवजीवन में उनके विचार साफ तौर पर जनता को प्रेरित करते रहे. उन्होंने गुजरात विद्यापीठ को एक तरीके से सत्याग्रहियों के प्रशिक्षण के लिए तैयार किया था. इस विवि को उन्होंने 1920 में स्थापित किया था. नमक सत्याग्रह के अलावा कई ऐसे आंदोलनों में गुजरात विद्यापीठ के छात्रों और शिक्षकों ने हिस्सा लिया था.

सत्याग्रह की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि गांधी के विरोधी भी उनके दोस्त बन जाते थे. पूरी दुनिया में गांधी के फॉलोअर्स की संख्या बहुत बड़ी थी. गांधी का जीवन और उनका दर्शन न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया में कई अन्य देशों के सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया. इनमें से सबसे प्रमुख हैं द. अफ्रीका के नेल्सन मंडेला और अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग.

गांधी ने जिस सत्याग्रह और अहिंसा का प्रचार किया था, वह सादगी भरी जिंदगी से जुड़ा था, पर्यावरण से उसकी संगतता थी, सामुदायिक जिंदगी के साथ सहभागिता थी, शोषितों और वंचितों को ऊपर उठाने और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की थी.

पूंजीपति और साम्यवाद विचारधारा में बंटी दुनिया को गांधी ने हिंद स्वराज का विचार दिया. एक ऐसा समाज, जो स्वावलंबी हो, सहभागिता पर आधारित हो और सबको साथ लेकर चल सके.

(लेखक- नचिकेता देसाई, वह गांधी के निजी सचिव रह चुके महादेव देसाई के पोते हैं)

आलेख में लिखे विचार लेखक के निजी हैं. इससे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है

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Last Updated : Sep 27, 2019, 5:52 PM IST
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