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नसबंदी पर घिरी कमलनाथ सरकार, आपातकाल में भी हुआ था ऐसा - मध्य प्रदेश में नसबंदी

आपातकाल के दौरान पूरे देश में नसबंदी की योजना लागू की गई थी. इसके लिए अधिकारियों और कर्मचारियों को एक टारजेट दिया गया था. इसे पूरा नहीं करने पर कार्रवाई की जाती थी. करीब 45 साल बाद एक बार फिर से मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार ने ऐसा ही आदेश जारी कर दिया. हालांकि, विवाद बढ़ते ही इस फैसले को वापस ले लिया. पढ़ें पूरी खबर.

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मुख्यमंत्री कमलनाथ (फाइल फोटो)
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Published : Feb 21, 2020, 3:09 PM IST

Updated : Mar 2, 2020, 1:53 AM IST

नई दिल्ली/भोपाल : मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार नसबंदी के फैसले पर चौतरफा घिर गई है. विवाद बढ़ते ही प्रदेश सरकार ने इस निर्णय को वापस ले लिया. हालांकि, कमलनाथ सरकार के इस फैसले ने एक बार फिर से आपातकाल की याद दिला दी, जब जबरन नसबंदी की योजना लागू की गई थी.

25 जून 1975 को पूरे देश में आपातकाल लागू किया गया था. इस दौरान बहुत सारे ऐसे फैसले लिए गए थे, जिस पर खूब विवाद हुआ था. इन्हीं निर्णयों में से एक था नसबंदी का. इसका उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण बताया गया था. कहा जाता है कि इस फैसले के पीछे संजय गांधी की सोच थी.

इस अभियान की शुरुआत दिल्ली से की गई थी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में करीब 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई थी. दो हजार से अधिक लोगों की ऑपरेशन के दौरान मौत हो गई थी.

उस समय यह अफवाह फैल गई थी कि सरकार मुस्लिमों की आबादी पर नियंत्रण लगाने की कोशिश कर रही है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस काम में लगे अधिकारियों और कर्मचारियों को एक टारजेट दिया गया था. ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी दी गई थी.

अब एक बार फिर से मध्यप्रदेश सरकार के फैसले ने उस याद को ताजा कर दिया है. मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के आदेश में कहा गया था कि विभाग के कर्मचारी और अधिकारियों को कम से कम एक नसबंदी का केस लाना ही होगा और यदि वे ऐसा नहीं कराएंगे, तो उनकी सेवा समाप्त कर दी जाएगी और वेतन भी रोका जाएगा.

नसबंदी कराने का टारगेट पूरा कराए जाने के लिए जारी किए गए मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के फरमान की विपक्ष ने कड़ी निंदा की है.

भाजपा नेता विश्वास सारंग का कहना है कि पार्टी इस योजना के खिलाफ नहीं है, लेकिन सरकार ने टारगेट पूरा कराने के लिए जिस तरह का फरमान जारी किया है, ये सरकार की मानसिकता को दिखा रहा है, इसे सरकार की दमनकारी नीति बताते हुए सारंग ने राज्य सरकार पर हिटलर शाही करने का आरोप लगाया है.

इसे भी पढ़ें- कमलनाथ ने सर्जिकल स्ट्राइक पर फिर उठाए सवाल, कहा- 'न आंकड़े हैं, न फोटो हैं'

इस मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मानक अग्रवाल का कहना है कि फरमान उनके लिए है जो टारगेट अब तक पूरा नहीं कर पाए हैं, ये टारगेट पूरा करने के लिए अधिकारियों का फरमान है. ऐसे अधिकारी जो आखिरी माह में नसबंदी का टारगेट पूरा कराने के लिए कर्मचारियों की बलि लेने का काम कर रहे हैं, उन अधिकारियों पर राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई करना चाहिए.

नई दिल्ली/भोपाल : मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार नसबंदी के फैसले पर चौतरफा घिर गई है. विवाद बढ़ते ही प्रदेश सरकार ने इस निर्णय को वापस ले लिया. हालांकि, कमलनाथ सरकार के इस फैसले ने एक बार फिर से आपातकाल की याद दिला दी, जब जबरन नसबंदी की योजना लागू की गई थी.

25 जून 1975 को पूरे देश में आपातकाल लागू किया गया था. इस दौरान बहुत सारे ऐसे फैसले लिए गए थे, जिस पर खूब विवाद हुआ था. इन्हीं निर्णयों में से एक था नसबंदी का. इसका उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण बताया गया था. कहा जाता है कि इस फैसले के पीछे संजय गांधी की सोच थी.

इस अभियान की शुरुआत दिल्ली से की गई थी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में करीब 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई थी. दो हजार से अधिक लोगों की ऑपरेशन के दौरान मौत हो गई थी.

उस समय यह अफवाह फैल गई थी कि सरकार मुस्लिमों की आबादी पर नियंत्रण लगाने की कोशिश कर रही है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस काम में लगे अधिकारियों और कर्मचारियों को एक टारजेट दिया गया था. ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी दी गई थी.

अब एक बार फिर से मध्यप्रदेश सरकार के फैसले ने उस याद को ताजा कर दिया है. मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के आदेश में कहा गया था कि विभाग के कर्मचारी और अधिकारियों को कम से कम एक नसबंदी का केस लाना ही होगा और यदि वे ऐसा नहीं कराएंगे, तो उनकी सेवा समाप्त कर दी जाएगी और वेतन भी रोका जाएगा.

नसबंदी कराने का टारगेट पूरा कराए जाने के लिए जारी किए गए मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के फरमान की विपक्ष ने कड़ी निंदा की है.

भाजपा नेता विश्वास सारंग का कहना है कि पार्टी इस योजना के खिलाफ नहीं है, लेकिन सरकार ने टारगेट पूरा कराने के लिए जिस तरह का फरमान जारी किया है, ये सरकार की मानसिकता को दिखा रहा है, इसे सरकार की दमनकारी नीति बताते हुए सारंग ने राज्य सरकार पर हिटलर शाही करने का आरोप लगाया है.

इसे भी पढ़ें- कमलनाथ ने सर्जिकल स्ट्राइक पर फिर उठाए सवाल, कहा- 'न आंकड़े हैं, न फोटो हैं'

इस मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मानक अग्रवाल का कहना है कि फरमान उनके लिए है जो टारगेट अब तक पूरा नहीं कर पाए हैं, ये टारगेट पूरा करने के लिए अधिकारियों का फरमान है. ऐसे अधिकारी जो आखिरी माह में नसबंदी का टारगेट पूरा कराने के लिए कर्मचारियों की बलि लेने का काम कर रहे हैं, उन अधिकारियों पर राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई करना चाहिए.

Last Updated : Mar 2, 2020, 1:53 AM IST
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