हैदराबाद : अनियंत्रित तौर पर कोविड के बढ़ते हुए मामले, भारत में तकरीबन आधा करोड़ और दुनिया भर में तीन करोड़ के आस-पास, साबित करते हैं कि यह महामारी अब प्रचंड रूप ले चुकी है. पूरी मानवता बेचैन है और एक उचित वैक्सीन, जिसपर विभिन्न देशों में 140 से अधिक चल रहे प्रयोगों की सफलता का बेसब्री से इंतजार कर रही है. ऑक्सफोर्ड में वैक्सीन परिक्षण को दो चरणों में सफलता मिल चुकी है और अब सबसे महत्वपूर्ण तीसरे चरण के प्रयोग में प्रवेश कर चुकी है.
ब्रिटेन की दवा की दिग्गज कंपनी एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने तीसरे चरण के प्रयोगों को तब निलंबित कर दिया है जब स्वेछापूर्ण इस वैक्सीन का अपने शरीर पर प्रयोग करवाने वाले एक स्वयंसेवक को तंत्रिका संबंधी जटिलताओं का सामना करना पड़ गया. उन्होंने स्वतंत्र सुरक्षा संस्था और समीक्षा समिति द्वारा किए गए तत्काल अवलोकन के बाद प्रयोगों को फिर से शुरू कर दिया गया है. वैक्सीन की सफलता शोध पर निर्भर करती है, जिसे विभिन्न चरणों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है और वैक्सीन को शोध के प्रत्येक चरण में सफलता प्राप्त करनी होगी. वर्षों से, कई वैज्ञानिक चेतावनी देते आये हैं कि कई जटिलताओं को देखते हुए कोरोना पर जीत हासिल करने के लिए एक प्रभावी टीके को तैयार करना आसान नहीं होगा.
ह्वाइट हाउस और राष्ट्रपति ट्रंप का आरोप है कि चीन उनके देश में वैक्सीन का निर्माण करने वाली प्रयोगशालाओं को हैक कर रहा है. बीजिंग ने भी जल्दबाजी में घोषणा की है कि पूर्ण अनुमोदन मिलने से पहले स्वास्थ्य कर्मचारियों को टीका लगाया जा सकता है और तीसरे चरण के उल्लेख के बिना सामूहिक टीकाकरण के लिए रूस में तैयारियां शुरू हो गयीं हैं. सभी जीवन रक्षक दवा के निर्माण को लेकर कई तरह के संदेह पैदा कर रहे हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि तीसरे चरण का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद वैक्सीन को सार्वजनिक उपयोग में लाने की प्रक्रिया को पूरा करने में 12-18 महीने का समय लग जायेगा. एस्ट्रोजेन का नवीनतम आश्वासन, जिसका उद्देश्य इस साल के अंत तक या अगले साल के शुरुआती महीनों में सभी को टीका उपलब्ध कराना है, जोखिम भरे जल्दबाजी के कदम की ओर इशारा करता है.
साठ के दशक में टॉन्सिलिटिस के इलाज के लिए वैक्सीन को चार साल के व्यापक परीक्षण के बाद अंतिम मंजूरी मिली थी. विभिन्न अन्य टीकों की तुलना में यह सबसे कम अवधि में तैयार किया गया था. एचआईवी की रोकथाम करने वाले टीके के तीन चरण के परीक्षण तीन दशकों से अधिक समय से चल रहे हैं. इन तथ्यों को जानने के बावजूद, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने भारतीय टीके के लिए 15 अगस्त की अवास्तविक समय सीमा तय की. बाद में इन्होंने अपना बयान यह कहते हुए बदल दिया कि यह विभिन्न चरणों को तेजी से पूरा करने के प्रयास में बढ़ गया था. प्रभावी टीकों की तैयारी में, प्रत्येक चरण में अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विकसित येलो फीवर वैक्सीन के उपयोग का उदाहरण लेते हुए, जो गलती से हेपेटाइटिस-बी के जीवाणुओं से दूषित हो गया और कई सैनिक गंभीर रूप से बीमार हो गए जिसके परिणामस्वरूप कई मौतें भी हुईं थीं. पोलियो के वैक्सीन के परीक्षणों के शुरुआती दिनों में, लापरवाही के कारण हजारों लोग वायरस से संक्रमित हो गए थे.
'बिट्स- पिलानी' का अनुमान है कि कोरोना वायरस के कारण अक्टूबर के पहले सप्ताह तक देश में मामलों की संख्या 70 लाख से अधिक हो जाएगी, जो एक बड़ा संकट बनता नजर आ रहा है. अध्ययनों से पता चलता है कि कोरोना द्वारा संक्रमित लाखों लक्षण ना दिखाने वाले रोगियों में एंटीबॉडी विकसित किए जाते हैं. दुनिया भर के कई देशों में बिना किसी भेद-भाव के वायरस के दोबारा हमले का डर बना हुआ है. ऐसी स्थिति में एजेंसियों और सरकारों के लिए सबसे अच्छा है कि वे संयम बरतें जब तक कि टीके की प्रभावशीलता पर पूरा भरोसा न हो जाए. कठोर वास्तविकता यह है कि इस मोड़ पर अगर एंटीडोट पर हो रहे प्रयोग विफल हो जाते हैं तो मानवता के पास इससे होने वाले नुकसान और कठिनाइयों को बर्दाश्त करने के लिए जरा भी धीरज बाकी नहीं बचा है!