नई दिल्ली : कोरोना और लॉकडाउन की मार झेल रहे किसानों पर अब टिड्डी दल का खतरा भी मंडराने लगा है. पाकिस्तान से निकले टिड्डी दलों ने पहले ही देश के ससीमावर्ती राज्य जैसे कि पंजाब, गुजरात और राजस्थान में फसलों को नुकसान पहुंचाया और अब हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली तक में प्रवेश करने की बात सामने आ रही है.
बता दें कि टिड्डी दल (locust) जिस फसल पर भी हमला करता है, उसे पूरी तरह बर्बाद कर देता है. हालांकि, अभी तक टिड्डियों के हमले से किसी बड़े नुकसान की जानकारी सामने नहीं आई है लेकिन इनकी आहट मात्र से ही देशभर के किसानों में भय का माहौल है.
कोरोना महामारी के फैलते प्रभाव के बीच देशव्यापी लॉकडाउन में किसानों ने मुश्किल से रबी फसल काट कर खरीफ की बुआई का काम शुरू किया है या कई राज्यों में खेत तैयार कर रहे हैं. यह मौसम आम और लीची की फसलों का भी है और साग सब्जियों, फलों के साथ-साथ कोई फसल टिड्डी के हमले से बच नहीं सकती.
ऐसे में किसानों की उम्मीद केवल सरकारी तैयारी पर ही टिकी है.
भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्ण बीर चौधरी ने बताया कि पहली बार टिड्डी दल के हमले के बाद भारत की कई कंपनियां एक साथ सामने आईं. उन्होंने रासायनिक पदार्थों के नाम बताते हुए जेनरिक मॉलिक्यूल का उत्पादन किया. उन्होंने कहा कि संस्थाओं की सलाह पर कीटनाशक के उपयोग के लिए मानक तय किए गए हैं. उन्होंने कहा कि जेनरिक मॉलिक्यूल को बिना कारण प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए.
क्या कहते हैं किसान
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है कि देश के कई राज्यों में टिड्डियों के प्रवेश करने की जानकारी सामने आ रही है. ऐसे में राज्य सरकारों को पूरी तैयारी रखनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि सरकार को जहां भी टिड्डी दल पहुंचे वहां कीटनाशक का छिड़काव कर उसे तुरंत खत्म कराना चाहिए, नहीं तो ऐसी कोई फसल नहीं जो टिड्डियों के हमले से बच सके. यह ऐसे कीट हैं जो जहां बैठते हैं, उस फसल को पूरी तरह बर्बाद कर देते हैं.
अभी सरकार ने हाल में 27 कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया है, जिनमें कुछ ऐसे पेस्टिसाइड भी हैं, जो टिड्डियों से लड़ने में कारगर हैं. इस परिस्थिति में सरकार को निर्णय करना चाहिए कि ऐसे पेस्टिसाइड्स को पूरी तरह प्रतिबंधित न करें.
किसान नेता टिकैत ने यह भी कहा कि उनका संगठन कृषि में रसायन के अत्यधिक इस्तेमाल का पक्षधर नहीं है लेकिन सरकार को वर्षों से उपयोग में आ रहे कीटनाशकों पर प्रतिबंध सोच समझ कर लगाना चाहिए.
राकेश टिकैत ने ईटीवी भारत से बातचीत में जानकारी दी कि उत्तर प्रदेश के आगरा में कहीं टिड्डी दल को देखे जाने की बात सामने आई थी और अब जानकारी मिल रही है कि मिर्जापुर की तरफ भी यह आ सकते हैं. हालांकि, अभी तक कहीं से यह जानकारी नहीं मिली है कि कहीं भी टिड्डियों के हमले से फसल को नुक्सान हुआ हो.
भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्ण बीर चौधरी ने टिड्डियों के हमले के खतरे पर सरकार को नसीहत दी है कि ऐसे समय में वह देश के बड़े संस्थानों और वैज्ञानिकों से सलाह लें. उनका कहना है कि टिड्डियों से लड़ने में क्लोरोपायरेफॉस, मेलाथ्यान और डीडीवीपी जैसे कीटनाशक कारगर हैं लेकिन सरकार अब जिन 27 कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने जा रही है, उनमें यह भी शामिल हैं.
सरकार को यह समझना चाहिए कि यह जेनेरिक मॉलिक्यूल्स ही अब टिड्डियों से लड़ने में काम आएंगे. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए किसान नेता ने आगे कहा कि हमारे देश में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, नेशनल केमिकल लैबोरेट्री और इंडियन यूनिवर्सिटी ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी जैसे बड़े संस्थान मौजूद हैं. सरकार को यह देखना चाहिए कि उसकी नीतियां इन संस्थानों के परामर्श से तय होंगी या पेस्टिसाइड नेटवर्क ऐक्शन के कहने पर.
क्या है सरकार की तैयारी
टिड्डी दल पर नियंत्रण के लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 12 मई को एक समीक्षा बैठक की थी, जिसके बाद यह जानकारी प्रेषित की गई थी कि सीमावर्ती राज्य राजस्थान के पांच जिलों और पंजाब के एक जिले में कुल 150 जगहों पर 14,299 हेक्टेयर क्षेत्र में नियंत्रण कार्य किया गया है. सरकार ने इन क्षेत्रों में 50 उपकरण और वाहन भी उपलब्ध कराए हैं और अतिरिक्त उपकरण की खरीद की बात भी कही गई थी.
अब तक ट्रैक्टरों और अग्नि शमन वाहनों की मदद से कीटनाशक का छिड़काव कर टिड्डियों पर नियंत्रण का काम होता रहा है. टिड्डी दल का प्रकोप आम तौर पर जून जुलाई के महीने में मॉनसून और गर्मियों के आगमन के साथ बढ़ता है और यह पकिस्तान के रास्ते भारत के अनुसूचित रेगिस्तान के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं. लेकिन बताया जाता है कि इस साल अप्रैल महीने में भी राजस्थान और पंजाब के सीमावर्ती इलाकों में इनकी उपस्थिति दर्ज हुई, जिसके बाद इन्हें नियंत्रित किया गया.
अब मई के अंतिम हफ्ते में टिड्डियों ने एक साथ कई राज्यों में दस्तक दी है. अभी तक इनके हमले से कहीं भी बड़े नुकसान की जानकारी सामने नहीं आई है लेकिन ऐसी परिस्थिति में देखने वाली बात होगी कि सरकार समय रहते इनके प्रकोप को कितना नियंत्रित कर पाती है और किसानों को दोहरी मार से कैसे बचा पाती है.