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गुमनामी के अंधेरे में गुम हुए प्रख्यात चित्रकार नंदलाल बसु

'मुझे शक है होने ना होने पर खालिद, अगर हूं तो अपना पता चाहता हूं' खालिद मुबश्शिर का यह शेर नंदलाल बसु के गुम होते वजूद पर बिल्कुल सटीक बैठता है. इस देश को आजाद कराने से लेकर संविधान के निर्माण तक ना जाने कितने लोगों ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है, लेकिन इतिहास में कुछेक लोगों की ही मौजूदगी दर्ज है.

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चित्रकार नंदलाल बसु
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Published : Nov 28, 2019, 5:10 PM IST

आज जिस इतिहास को ज्यादातर लोगों ने पढ़ा है, वह कुछ महापुरुषों पर आकर खत्म हो जाता है. लेकिन आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर संविधान की मूल प्रति की डिजाइन बनाने वाले बिहार के नंदलाल बसु की मौजूदगी न तो इतिहास के पन्नों में दर्ज है और न ही किसी संग्रहालय में उनकी कृति को जगह दी गयी है.

प्रख्यात चित्रकार नंदलाल बसु (अंग्रेजी में Nandlal Bose) का जन्म 3 दिसम्बर 1882 को बिहार के मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर में हुआ था. उनके पिता दरभंगा महाराज की रियासत के मैनेजर हुआ करते थे और हवेली खड़गपुर स्टेट का प्रबंधन देखते थे.

प्रख्यात चित्रकार नंदलाल बसु का जीवन परिचय.

नंदलाल पूरे देश में प्रख्यात चित्रकार और अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के शिष्य के रूप में प्रसिद्ध हुए.

नंदलाल एक चित्रकार होने के साथ-साथ लेखक भी थे. उन्होंने रूपावली, शिल्प चर्चा और शिल्पकला जैसी रचनाएं भी लिखी हैं.

हरि सिंह महाविद्यालय के अंग्रेजी के प्रोफेसर रामचरित्र सिंह ने नंदलाल बसु की जिंदगी का अपनी पुस्तक में जिक्र किया है. किताब में लिखा है कि कविवर गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने एक संक्षिप्त विवरण में नंदलाल के बारे में कहा था कि वह एक पूर्ण काल्वित, अपने जीवन तथा कार्य में समर्पित, सांसारिक सफलता के प्रति उदासीन, अपनी कला एवं कार्यों के प्रति एक निष्ठ व्यक्तित्व हैं.

प्रोफेसर सिंह की किताब के मुताबिक आचार्य नंदलाल एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता पूर्णचंद्र बसु शुरू में दरभंगा महाराज की रियासत में एक ओवरसियर थे. इसके बाद वह दरभंगा महाराज के विश्वास पात्र बने और वास्तुविद् तथा विश्वस्त सेवक के तौर पर काम किया.

वहीं, नंदलाल बसु के दादा अपने समय के समृद्ध व्यक्ति थे. उन्होंने ईद के कारोबार से धन अर्जित कर कोलकाता के हावड़ा में एक घर बनवाया था.

नंदलाल जब भी कोलकाता जाते, इसी घर में जाकर ठहरते थे. बाद में वह इसी घर में रहने लगे. उनका हवेली खड़गपुर का मकान टूट चुका है और अब वहां सरकारी बस स्टैंड है.

नंदलाल बसु की मां क्षेत्रमणि देवी की रुचि शिल्प कला में थी, इसलिए उन्हें कला की प्रेरणा अपनी माता से ही मिली. हालांकि जब नंदलाल 13 साल के थे, तभी उनकी माता का निधन हो गया. बसु की प्रारंभिक शिक्षा हवेली खड़गपुर स्थित मिडिल स्कूल में हुई.

यही वजह थी कि अच्छी हिन्दी के साथ-साथ उनमें बांग्ला की भी समझ थी. नंदलाल ने जिस मिडिल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की थी, वह भवन आज सरकार की उपेक्षा का शिकार है और जर्जर स्थिति में है.

नंदलाल बसु की पत्नी के परिवार वालों ने बताया कि खड़गपुर झील रोड पर स्थित पाल परिवार का पुश्तैनी मकान बदतर स्थिति में है, जिसमें सोमप्रकाश पाल अपनी पत्नी, छोटे भाई और उनकी पत्नी के साथ रहते हैं.

सोमप्रकाश ने बताया कि नंदलाल बसु उनकी छोटी बुआ के पति थे और उनके नंदलाल से काफी नजदीकी रिश्ते थे. सोमप्रकाश ने बताया कि जिस तरह से नंदलाल गुमनामी के अंधेरे में गुम हुए, उन्हें काफी दुख हुआ.

उन्होंने कहा कि एक तरफ तो सरकार भारत के इतिहास से जुड़े लोगों को ढूंढ कर सम्मानित कर रही है, वहीं नंदलाल जैसे लोगों का किसी को ख्याल नहीं है.

पाल बताते हैं कि तत्कालीन डीएसपी डीएन गुप्ता की पहल पर नंदलाल बसु की प्रतिमा को चौक पर स्थापित किया गया था ताकि लोग जान सकें कि हवेली खड़गपुर से उनका क्या रिश्ता है और आजादी के साथ-साथ आजाद भारत वर्ष में उनका क्या योगदान है.

नंदलाल बसु जब अपनी उच्च शिक्षा के लिए शांति निकेतन गये, उसी समय इंदिरा गांधी भी कला एवं साहित्य की शिक्षा लेने शांति निकेतन पहुंची, जहां नंदलाल ने इंदिरा की शिक्षा और देखरेख की जिम्मेदारी ली.

नंदलाल और इंदिरा जब शांति निकेतन में शिक्षा ले रहे थे, उस दौरान महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू अक्सर शांति निकेतन आया करते थे, दोनों ही नंदलाल की कला और साहित्य से काफी प्रभावित थे.

वर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ और पं. नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने भारत के संविधान के निर्माण के बाद नंदलाल बसु से उसकी मूल प्रति की डिजाइन बनाने का आग्रह किया था. नंदलाल ने इसे सहर्ष स्वीकार किया और मूल प्रति पर चित्रकारी की, जो कि भारत वर्ष के इतिहास में दर्ज हो गयी.

लोग संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर को तो जानते हैं, लेकिन संविधान को चित्रांकित करने वाले नंदलाल बसु के नाम से लोग आज भी अपरिचित हैं.

समाज की यह जिम्मेदारी है कि नंदलाल जैसी शख्सियत और उनके जीवन चित्रण को इतिहास में दर्ज कराया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी नंदलाल बसु के जीवन चित्रण से प्रेरणा लेकर खुद को समाज के लिए एक बेहतर कलाकार बना पाए.

आज जिस इतिहास को ज्यादातर लोगों ने पढ़ा है, वह कुछ महापुरुषों पर आकर खत्म हो जाता है. लेकिन आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर संविधान की मूल प्रति की डिजाइन बनाने वाले बिहार के नंदलाल बसु की मौजूदगी न तो इतिहास के पन्नों में दर्ज है और न ही किसी संग्रहालय में उनकी कृति को जगह दी गयी है.

प्रख्यात चित्रकार नंदलाल बसु (अंग्रेजी में Nandlal Bose) का जन्म 3 दिसम्बर 1882 को बिहार के मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर में हुआ था. उनके पिता दरभंगा महाराज की रियासत के मैनेजर हुआ करते थे और हवेली खड़गपुर स्टेट का प्रबंधन देखते थे.

प्रख्यात चित्रकार नंदलाल बसु का जीवन परिचय.

नंदलाल पूरे देश में प्रख्यात चित्रकार और अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के शिष्य के रूप में प्रसिद्ध हुए.

नंदलाल एक चित्रकार होने के साथ-साथ लेखक भी थे. उन्होंने रूपावली, शिल्प चर्चा और शिल्पकला जैसी रचनाएं भी लिखी हैं.

हरि सिंह महाविद्यालय के अंग्रेजी के प्रोफेसर रामचरित्र सिंह ने नंदलाल बसु की जिंदगी का अपनी पुस्तक में जिक्र किया है. किताब में लिखा है कि कविवर गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने एक संक्षिप्त विवरण में नंदलाल के बारे में कहा था कि वह एक पूर्ण काल्वित, अपने जीवन तथा कार्य में समर्पित, सांसारिक सफलता के प्रति उदासीन, अपनी कला एवं कार्यों के प्रति एक निष्ठ व्यक्तित्व हैं.

प्रोफेसर सिंह की किताब के मुताबिक आचार्य नंदलाल एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता पूर्णचंद्र बसु शुरू में दरभंगा महाराज की रियासत में एक ओवरसियर थे. इसके बाद वह दरभंगा महाराज के विश्वास पात्र बने और वास्तुविद् तथा विश्वस्त सेवक के तौर पर काम किया.

वहीं, नंदलाल बसु के दादा अपने समय के समृद्ध व्यक्ति थे. उन्होंने ईद के कारोबार से धन अर्जित कर कोलकाता के हावड़ा में एक घर बनवाया था.

नंदलाल जब भी कोलकाता जाते, इसी घर में जाकर ठहरते थे. बाद में वह इसी घर में रहने लगे. उनका हवेली खड़गपुर का मकान टूट चुका है और अब वहां सरकारी बस स्टैंड है.

नंदलाल बसु की मां क्षेत्रमणि देवी की रुचि शिल्प कला में थी, इसलिए उन्हें कला की प्रेरणा अपनी माता से ही मिली. हालांकि जब नंदलाल 13 साल के थे, तभी उनकी माता का निधन हो गया. बसु की प्रारंभिक शिक्षा हवेली खड़गपुर स्थित मिडिल स्कूल में हुई.

यही वजह थी कि अच्छी हिन्दी के साथ-साथ उनमें बांग्ला की भी समझ थी. नंदलाल ने जिस मिडिल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की थी, वह भवन आज सरकार की उपेक्षा का शिकार है और जर्जर स्थिति में है.

नंदलाल बसु की पत्नी के परिवार वालों ने बताया कि खड़गपुर झील रोड पर स्थित पाल परिवार का पुश्तैनी मकान बदतर स्थिति में है, जिसमें सोमप्रकाश पाल अपनी पत्नी, छोटे भाई और उनकी पत्नी के साथ रहते हैं.

सोमप्रकाश ने बताया कि नंदलाल बसु उनकी छोटी बुआ के पति थे और उनके नंदलाल से काफी नजदीकी रिश्ते थे. सोमप्रकाश ने बताया कि जिस तरह से नंदलाल गुमनामी के अंधेरे में गुम हुए, उन्हें काफी दुख हुआ.

उन्होंने कहा कि एक तरफ तो सरकार भारत के इतिहास से जुड़े लोगों को ढूंढ कर सम्मानित कर रही है, वहीं नंदलाल जैसे लोगों का किसी को ख्याल नहीं है.

पाल बताते हैं कि तत्कालीन डीएसपी डीएन गुप्ता की पहल पर नंदलाल बसु की प्रतिमा को चौक पर स्थापित किया गया था ताकि लोग जान सकें कि हवेली खड़गपुर से उनका क्या रिश्ता है और आजादी के साथ-साथ आजाद भारत वर्ष में उनका क्या योगदान है.

नंदलाल बसु जब अपनी उच्च शिक्षा के लिए शांति निकेतन गये, उसी समय इंदिरा गांधी भी कला एवं साहित्य की शिक्षा लेने शांति निकेतन पहुंची, जहां नंदलाल ने इंदिरा की शिक्षा और देखरेख की जिम्मेदारी ली.

नंदलाल और इंदिरा जब शांति निकेतन में शिक्षा ले रहे थे, उस दौरान महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू अक्सर शांति निकेतन आया करते थे, दोनों ही नंदलाल की कला और साहित्य से काफी प्रभावित थे.

वर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ और पं. नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने भारत के संविधान के निर्माण के बाद नंदलाल बसु से उसकी मूल प्रति की डिजाइन बनाने का आग्रह किया था. नंदलाल ने इसे सहर्ष स्वीकार किया और मूल प्रति पर चित्रकारी की, जो कि भारत वर्ष के इतिहास में दर्ज हो गयी.

लोग संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर को तो जानते हैं, लेकिन संविधान को चित्रांकित करने वाले नंदलाल बसु के नाम से लोग आज भी अपरिचित हैं.

समाज की यह जिम्मेदारी है कि नंदलाल जैसी शख्सियत और उनके जीवन चित्रण को इतिहास में दर्ज कराया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी नंदलाल बसु के जीवन चित्रण से प्रेरणा लेकर खुद को समाज के लिए एक बेहतर कलाकार बना पाए.

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