नई दिल्ली : आज श्रावण का आखिरी सोमवार होने के साथ ही रक्षाबंधन भी है. इस मौके पर उज्जैन में अलसुबह बाबा महाकाल की भस्म आरती हुई और भगवान महाकालेश्वर का दूध-दही युक्त पंचामृत से अभिषेक किया गया. जिसके बाद ढोल-नगाड़ों और घंटों की गूंज के साथ विधि-विधान से पुजारियों ने बाबा महाकाल की भस्म आरती की. वहीं बाबा महाकाल को राखी बांधी गई और 11 हजार लड्डू का भोग भी लगाया गया. इस मौके पर बाबा महाकाल का आकर्षक श्रृंगार भी किया गया था. वहीं झारखंड के देवघर में भी बाबा मंदिर में लाखों की संख्या में भक्तों का तांता लगी रहता था, लेकिन इस बार कोरोना के कारण मेला नहीं लगा है. इस बार भक्तों के लिए सिर्फ ऑनलाइन दर्शन की ही व्यवस्था की गई है.
पूर्णिमा के दिन श्रावण का पांचवा सोमवार पड़ा है. जिसकी वजह से इस विशेष मौके पर मध्यप्रदेश में उज्जैन के बाबा महाकालेश्वर को रात 2:30 बजे जलाभिषेक कर महा पंचामृत अभिषेक किया गया. जिसमें दूध, दही, घी, शहद और विशेष प्रकार के फलों का रस शामिल होता है. पंचामृत अभिषेक के बाद भांग और चन्दन से भोलेनाथ का आकर्षक श्रृंगार किया गया और बाबा को भस्म चढ़ाई गई. भस्मिभूत होने के बाद भगवान को वस्त्र धारण कराये गए और फिर झांझ-मंजीरे, ढोल-नगाड़े और शंखनाद के साथ बाबा की भस्मारती की गई.
भस्मारती के बाद बाबा महाकाल को राखी बांधी गई और 11 हजार लड्डुओं का भोग लगाया गया, फिर झांझ-मंजीरे, ढोल-नगाड़े और शंखनाद के साथ महाकाल की आरती हुई. वैसे तो हर साल श्रावण माह की भस्म आरती में 2 हजार से अधिक भक्त शामिल होते थे, लेकिन इस बार कोरोना महामारी के चलते श्रद्धालुओं के शामिल होने पर पूरी तरह प्रतिबंध है. आम श्रद्धालु केवल बाबा महाकाल के दूर से ही दर्शन ही कर सकेंगे. दर्शन के लिए सुबह 5:30 बजे से रात्रि 9:00 बजे तक का समय तय किया गया है. इस दौरान केवल वही भक्त दर्शन कर सकेंगे, जिन्होंने पूर्व में दर्शन के लिए बुकिंग करा रखी है और जो केवल मध्यप्रदेश के ही रहने वाले हैं.
कोरोना संक्रमण की वजह से इस बार सरकार ने केवल मध्यप्रदेश के रहवासियों को ही बाबा महाकाल के दर्शन करने की अनुमति दी है. मध्यप्रदेश के बाहर के श्रद्धालुओं को इस बार दर्शन करने का लाभ नहीं मिलेगा. वहीं इस बार कोरोना संकट के कारण भगवान को सवा लाख की जगह प्रतीकात्मक रूप से 11 हजार लड्डुओं का ही भोग लगाया गया.
हिंदू मान्यताओं में रक्षाबंधन की शुरुआत
मान्यताओं के अनुसार सावन में ही देवी देवताओं का समुद्र मंथन हुआ था और प्रत्येक सोमवारी को एक रत्न की प्राप्ति हुई थी. आज पांचवीं सोमवारी को पांचजन्य (शंख) का अभिर्भाव हुआ था. जिसे भगवान विष्णु ने अपने पास रखा था और आज बाबा भोले को गंगा जल, बेलपत्र, दूध से पूजा अर्चना करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.
आज सावन की अंतिम सोमवारी के साथ-साथ रक्षा बंधन भी है. जानकारों की माने तो रक्षा बंधन सतयुग से चला आ रहा है. जब राजा बलि के दरबार में भगवान विष्णु गए और तीन पग जमीन मांगी जिसमें एक पग में ब्रह्मांड नापे दूसरा पग में पृथ्वी नापे तभी राजा बलि समझ गए कि यह अद्भुत महिमा भगवान विष्णु ही कर सकते हैं. ऐसे में राजा बलि को अहसास हो गया, तभी तीसरे पग में अपना मस्तक दे दिए. जिससे भगवान विष्णु बलि से काफी प्रसन्न हो गए थे. बलि राक्षस कुल में भी धार्मिक थे तभी राजा बलि ने भगवान विष्णु से रक्षा की मिन्नत की. भगवान विष्णु ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांध दिया. इसी समय से ही रक्षा बंधन की शुरुआत हुई है. बहन अपनी भाई को राखी बांधती है और बहन भाई से रक्षा की अपेक्षा रखती है.
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शुभ मुहूर्त
सुबह 5:30 से 07:00 और 07:00 से 08:00 तीसरा 08:45 से लेकर दोपहर 02:00 बजे तक राखी बांधने का शुभ मुहूर्त बताया गया है. बहरहाल, बाबा मंदिर में कोरोना को लेकर बाहरी प्रवेश पर पूरी तरह से रोक है. सिर्फ बाबा भोले की सीमित पुरोहित ही पूजा अर्चना की गयी है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अंतिम सोमवार को सौ लोगों ने बाबा मंदिर में जल चढ़ाया