नई दिल्ली : वनस्पतियों से रहित पूर्वी लद्दाख का ठंडा रेगिस्तान बहुत सारे लोगों के लिए डरावना लग सकता है. लेकिन यही एक स्थान है, जहां भारत और चीन की सेना के जुटान के बीच सबसे बड़े टकराव की स्थिति के साथ वैश्विक भू-राजनीति में महत्वपूर्ण दांव खेला जा रहा है. दोनों देश अपने-अपने रुख पर अड़े हैं और मतभेद कम होने का कोई संकेत नहीं है. इससे यह स्पष्ट होता है कि वास्तव में यह संघर्ष निकट भविष्य में और प्रचंड रूप अख्तियार करेगा.
भारत और चीन दोनों अपने-अपने रुख पर अड़ गए हैं और सीमाई इलाके में अगले दो माह में आने वाली सर्दी के भीषण मौसम का सामना करने के लिए तैयारियों में जुटे हैं. भारतीय सेना के लिए सैन्य उपकरणों के अलावा बहुत ऊंचाई पर सर्दियों में काम आने वाले उपकरण भी खरीदे जा रहे हैं.
इन सारी गतिविधियों से अवगत एक सैन्य अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया कि परिचालन में हथियारों, गोला-बारूद और सेंसर जैसे उपकरणों की कमी की पहचान की गई है. सेना के उप-प्रमुख की निगरानी में हमारी आपातकालीन सैन्य खरीददारी कई गुना हो गई है. हम और हथियार, गोला-बारूद और सेंसर खरीद रहे हैं.
सैन्य अधिकारी ने कहा कि पहले हर साल 12-15 ठेके होते थे. चीन के साथ सीमा पर की घटना के बाद सेना से जुड़े लगभग 100 आपूर्ति के ठेके दिए गए हैं, जिन्हें इस वित्तीय वर्ष के अंत तक पूरी हो जाने की उम्मीद है.
एक अन्य सूत्र के अनुसार, कुछ दिनों में रक्षा सचिव (उत्पादन) के आर्मी-2020 में भाग लेने के लिए रूस जाने की उम्मीद है. आर्मी-2020 रूस की सैन्य प्रदर्शनी है, जिसमें वाणिज्यिक करार के लिए सेना के उपकरणों का प्रदर्शन किया जाता है. लंबे समय से संयुक्त रूप से एके-203 राइफलों का निर्माण करने के करार के साथ सैन्य उपकरणों की आपूर्ति का समझौता फलीभूत होने की उम्मीद है.
यह मानते हुए कि भविष्य में होने वाले सारे युद्ध बहुत गहन और कम समय के होंगे, इस कारण सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले सैन्य उपकरणों की तुरंत तलाश बहुत जरूरी हो गया है. द ज्वाइंट इंडियन आर्म्ड फोर्सेज डॉक्टरीन (2017) यानी संयुक्त भारतीय सशस्त्र बल सिद्धांत (2017) में घोषणा की गई है 'भविष्य के युद्ध की प्रकृति अस्पष्ट, अनिश्चित, छोटी, तेज, घातक, तीव्र, सटीक, सीधा नहीं, अप्रतिबंधित और मिश्रित होने की संभावना है'.
व्याप्त मानसिकता
जो बात अभी जारी संघर्ष को बहुत अलग बनाती है और इस बार जो इसके तेज होने संभावना को अधिक बल देती है. वह दोनों देशों के नेतृत्व की मौजूदा मानसिकता है. जिनके फरमान को सेनाओं को पालन करना होगा. अभी दोनों एशियाई बड़े देशों में राष्ट्रवादी विचारधारा का वर्चस्व देखा जा रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि राष्ट्रवाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के घोषणा पत्र का मुख्य बिन्दु हैं.
भारत जहां वैश्विक शक्ति के रूप में एक स्थान चाहता है, वहीं चीन की महत्वाकांक्षा वर्ष 2049 तक अमेरिका से मिल रही चुनौतियों को पार कर दुनिया का नंबर एक देश का स्थान पाने की है. अमेरिका भी दुनिया के सर्वाधिक ताकतवर देश की अपनी स्थिति को छोड़ने को तैयार नहीं है. इसलिए संघर्ष और उसका परिणाम विश्व राजनीति के भविष्य को तय करेगा.
भारत-चीन के बीच व्यापक संघर्ष का अमेरिका के लिए भी निहितार्थ है, क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को नवंबर में चुनाव का सामना करना है. वह अपनी जीत मौके को बेहतर बनाने का अवसर नहीं जाने देंगे.
तंत्र की नाकामी
भारत और चीन के पास सेना के स्तर पर, राजनयिक स्तर पर, विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर (या भारतीय मामले में एनएसए स्तर पर) ऐसे कई तंत्र हैं जो दुश्मनी को और बढ़ने से रोकने के लिए तैयार हैं, लेकिन ये पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिंगपिन के बीच 'अनौपचारिक' शिखर वार्ता की बात नहीं करते हैं. लेकिन मौजूदा संदर्भ में मोदी- शी के शीर्ष तंत्र के अलावा ऐसा लगता है कि सारे तंत्र का इस्तेमाल कर लिया गया है और वे सारे नाकाम हो गए हैं. ऐसा मानने का कारण है कि समाधान की प्रक्रिया रुकी पड़ी है.
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कोविड महामारी
भारत और चीन दोनों कोरोनो वायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई की कमजोरियों का खुलासा कर चुके हैं. इस महामारी ने अमेरिका की कमजोरियों को भी उजागर कर दिया है क्योंकि न्यूयॉर्क ग्राउंड जीरो बन गया है, जहां सर्वाधिक मौतें हुईं हैं.
भारत और चीन के बीच व्यापक संघर्ष शासन व्यवस्था को महामारी की ओर से जनता का ध्यान हटाने और अपने समर्थन आधार को मजबूत करने का काम करेगा. इसके साथ ही यह चीन को अमेरिका पर निशाना साधने का मौका भी देगा, क्योंकि वह अभी नस्ली दंगों की वजह बर्बाद और सबसे कमजोर स्थिति में है.
भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मामले में चीन के एक-तिहाई है. पहले से एक खस्ताहाल स्थिति में है, यदि ऐसी स्थिति में चीन अपनी ताकत से पीछे हटने के लिए मजबूर कर देता है तो चीन दुनिया में एक वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी लंबे समय से इच्छित स्थान पा जाएगा. यही कारण है कि दोनों देश अपनी स्थिति से टस से मस नहीं हो रहे हैं. अमेरिका के नेतृत्व में पहले से ही एक गठबंधन है जो चीन को 'घूर कर घबरा देने के लिए' भारत को उकसा रहा है.
चतुष्कोण के निहितार्थ
चीन के खिलाफ भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया कुल चार देशों के चतुष्कोणीय गठबंधन के बनने के साथ ही चीन के लिए संघर्ष में अपने पक्ष में परिणाम पाने का सपना धराशायी हो जाएगा, क्योंकि उसके शुरू करने से पहले ही यह चार देशों का संगठन उसे ध्वस्त कर देंगे. यह चीन की स्थिति को दर्शाएगा. दुनिया में शीर्ष पर पहुंचने में उसे कुछ समय के लिए खुद को और मजबूत करना होगा.
संक्षेप में कहें तो चीन का रुख निश्चित रूप से आक्रामक हैं, भारत इसके लिए तैयार नहीं है. इसलिए भारतीय दृष्टिकोण से कहें तो चीन को पीछे हटाना ही एकमात्र रास्ता है. इस बार के भारतीय तंत्र की मानसिकता में एक निश्चित बदलाव आया है और संघर्ष की संभावना बढ़ गई है.