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रोजगार खोने के भय से महानगरों की ओर फिर लौट रहे श्रमिक : सर्वे - fear of losing jobs

कोरोना वायरस महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के बीच कई प्रवासी श्रमिक अपने घरों को लौट गए थे. लेकिन अब लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद वे वापस महानगरों की ओर लौट रहे हैं. उन्हें भय है कि कहीं उनका रोजगार न चला जाए. इसी भय से वे बड़े शहरों की ओर लौट रहे हैं. समाजसेवी संस्थान जागर प्रतिष्ठान के एक सर्वे में यह तथ्य सामने आया है.

migrant laborer
प्रवासी मजदूर
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Published : Jun 16, 2020, 4:47 PM IST

मुंबई : कोरोना वायरस महामारी के बीच देशव्यापी लॉकडाउन के चलते मुंबई और पुणे में फंसे कई मजदूरों ने पलायान शुरू कर दिया था. कुछ मजदूर साइिकल तो कुछ पैदल ही अपने गांव लौट गये थे. लेकिन उन्हें रोजगार की चिंता सता रही है. लॉकडाउन खुलने के बाद अब वही श्रमिक मुंबई व पुणे सहित बड़े शहरों की ओर लौट रहे हैं. समाजसेवी अशोक तागड़े ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि समाजसेवी संस्था जागर प्रतिष्ठान को सर्वेक्षण से इसकी जानकारी मिली है.

महाराष्ट्र के बीड जिले में गन्ने की खेती करने वाले मजदूर रहते हैं. गन्ना कटाई के लिए हर साल साढ़े सात से आठ लाख से अधिक मजदूर विभिन्न जिलों में जाते हैं. गन्ना श्रमिकों के अलावा, अन्य श्रमिक भी पुणे और मुंबई जैसे बड़े शहरों में काम करने जाते हैं.

कोरोना वायरस के मद्देनजर किए गए लॉकडाउन के दौरान दो से ढाई लाख से अधिक मजदूर गांव लौट गए थे. इस दौरान अपना पेट पालने के लिए श्रमिकों को शहरों में फिर लौटना था. वहीं अनलॉक-1 में सरकार द्वारा दी गई छूट में महानगरों में छोटी और बड़ी कंपनियां खुलने लगीं. हालांकि, जब मुंबई और पुणे से मजदूर गांव लौटे, तो इन जगहों पर मजदूरों की कमी हो गई थी. इसके चलते, ठेकेदार श्रमिकों को वापस लाने की व्यवस्था कर रहे हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता अशोक तागडे ने कहा कि गांवों के श्रमिक अपनी जान जोखिम में डालकर मुंबई और पुणे लौट रहे हैं.

एक लाख से अधिक मजदूर लौटे थे बीड
गन्ना श्रमिकों को छोड़कर, लॉकडाउन के बाद 1.25 लाख से अधिक श्रमिक बीड जिले में लौट आए थे. इनमें से 40 फीसदी से अधिक श्रमिक अपनी नौकरी खोने के डर से वापस शहर जा रहे हैं. समाजसेवी संस्था जागर प्रतिष्ठान ने इस बारे में अधिक जानकारी दी है.

जिला प्रशासन ने वितरित किए यात्री पास
गत एक जून के बाद कुछ हद तक लॉकडाउन में ढील दी गई. इसके बाद, जिले से जाने वालों की संख्या में तेजी से बढ़ गई. इससे पास मांगने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है. प्रशासन द्वारा सोमवार तक 73,865 पास वितरित किए जा चुके हैं. इसके अलावा, कुछ गड़बड़ियों के कारण 1 लाख 8 हजार 300 पास को खारिज कर दिया गया.

पढ़ें :- प्रियंका का योगी सरकार पर हमला, बोलीं- मैप में प्रवासी मजदूरों की जगह नहीं

बीड जिले में कुल 1,404 गांव हैं. जागर प्रतिष्ठान जिले में काम करता है. लॉकडाउन के दौरान गांव लौटने वाले मजदूरों की मानसिकता का पता लगाने के लिए जिले में एक सर्वेक्षण किया गया. इसमें 45 से 50 गांवों के 40 प्रतिशत से अधिक मजदूरों को पुणे और मुंबई भेज दिया गया था.

रोजगार के लिए शहर जाते हैं मजदूर
गांव लौटने वाले श्रमिकों के पास गांव में कोई काम नहीं है. इसके अलावा, उन्हें मूलभूत सुविधाओं के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है. वहीं लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद शहर में श्रमिकों को काम पर रखने के लिए उनके पास फोन आ रहे हैं. मजदूरों के काम पर नहीं आने पर दूसरे मजदूर को काम दिए जाने की बात कही जाती है, इसके डर से मजदूर वापस काम पर जा रहे हैं. जागर प्रतिष्ठान द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, 40 प्रतिशत या 40,000 से 45,000 से अधिक मजदूरों ने बीड जिले से मुंबई और पुणे लौट गए हैं.

मुंबई : कोरोना वायरस महामारी के बीच देशव्यापी लॉकडाउन के चलते मुंबई और पुणे में फंसे कई मजदूरों ने पलायान शुरू कर दिया था. कुछ मजदूर साइिकल तो कुछ पैदल ही अपने गांव लौट गये थे. लेकिन उन्हें रोजगार की चिंता सता रही है. लॉकडाउन खुलने के बाद अब वही श्रमिक मुंबई व पुणे सहित बड़े शहरों की ओर लौट रहे हैं. समाजसेवी अशोक तागड़े ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि समाजसेवी संस्था जागर प्रतिष्ठान को सर्वेक्षण से इसकी जानकारी मिली है.

महाराष्ट्र के बीड जिले में गन्ने की खेती करने वाले मजदूर रहते हैं. गन्ना कटाई के लिए हर साल साढ़े सात से आठ लाख से अधिक मजदूर विभिन्न जिलों में जाते हैं. गन्ना श्रमिकों के अलावा, अन्य श्रमिक भी पुणे और मुंबई जैसे बड़े शहरों में काम करने जाते हैं.

कोरोना वायरस के मद्देनजर किए गए लॉकडाउन के दौरान दो से ढाई लाख से अधिक मजदूर गांव लौट गए थे. इस दौरान अपना पेट पालने के लिए श्रमिकों को शहरों में फिर लौटना था. वहीं अनलॉक-1 में सरकार द्वारा दी गई छूट में महानगरों में छोटी और बड़ी कंपनियां खुलने लगीं. हालांकि, जब मुंबई और पुणे से मजदूर गांव लौटे, तो इन जगहों पर मजदूरों की कमी हो गई थी. इसके चलते, ठेकेदार श्रमिकों को वापस लाने की व्यवस्था कर रहे हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता अशोक तागडे ने कहा कि गांवों के श्रमिक अपनी जान जोखिम में डालकर मुंबई और पुणे लौट रहे हैं.

एक लाख से अधिक मजदूर लौटे थे बीड
गन्ना श्रमिकों को छोड़कर, लॉकडाउन के बाद 1.25 लाख से अधिक श्रमिक बीड जिले में लौट आए थे. इनमें से 40 फीसदी से अधिक श्रमिक अपनी नौकरी खोने के डर से वापस शहर जा रहे हैं. समाजसेवी संस्था जागर प्रतिष्ठान ने इस बारे में अधिक जानकारी दी है.

जिला प्रशासन ने वितरित किए यात्री पास
गत एक जून के बाद कुछ हद तक लॉकडाउन में ढील दी गई. इसके बाद, जिले से जाने वालों की संख्या में तेजी से बढ़ गई. इससे पास मांगने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है. प्रशासन द्वारा सोमवार तक 73,865 पास वितरित किए जा चुके हैं. इसके अलावा, कुछ गड़बड़ियों के कारण 1 लाख 8 हजार 300 पास को खारिज कर दिया गया.

पढ़ें :- प्रियंका का योगी सरकार पर हमला, बोलीं- मैप में प्रवासी मजदूरों की जगह नहीं

बीड जिले में कुल 1,404 गांव हैं. जागर प्रतिष्ठान जिले में काम करता है. लॉकडाउन के दौरान गांव लौटने वाले मजदूरों की मानसिकता का पता लगाने के लिए जिले में एक सर्वेक्षण किया गया. इसमें 45 से 50 गांवों के 40 प्रतिशत से अधिक मजदूरों को पुणे और मुंबई भेज दिया गया था.

रोजगार के लिए शहर जाते हैं मजदूर
गांव लौटने वाले श्रमिकों के पास गांव में कोई काम नहीं है. इसके अलावा, उन्हें मूलभूत सुविधाओं के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है. वहीं लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद शहर में श्रमिकों को काम पर रखने के लिए उनके पास फोन आ रहे हैं. मजदूरों के काम पर नहीं आने पर दूसरे मजदूर को काम दिए जाने की बात कही जाती है, इसके डर से मजदूर वापस काम पर जा रहे हैं. जागर प्रतिष्ठान द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, 40 प्रतिशत या 40,000 से 45,000 से अधिक मजदूरों ने बीड जिले से मुंबई और पुणे लौट गए हैं.

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