आगरा : अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने जब ताज के दीदार के बाद इसे भारत की संस्कृति का प्रतीक करार दिया है. दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल की खूबसूरती और इससे जुड़ी यादों पर कई शायरों-कवियों ने अपनी नज्में लिखी हैं.
दरअसल, मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज के लिए बनवाया था. सन् 1632-53 में बना ताजमहल प्रेम का प्रतीक बन गया है. मोहब्बत की इस निशानी पर शकील बदायूंनी कहते हैं, 'इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल/सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है/इस के साये में सदा प्यार के चर्चे होंगे/खत्म जो हो न सकेगी वो कहानी दी है' तो सागर आजमी लिखते हैं, 'तुम से मिलती-जुलती मैं आवाज कहां से लाऊंगा/ ताजमहल बन जाए मगर मुमताज कहां से लाऊंगा.'
वहीं, जमील मलिक कहते हैं, 'कितने हाथों ने तराशे ये हसीं ताजमहल/झांकते हैं दर-ओ-दीवार से क्या क्या चेहरे.'
साहिर लुधियानवी कहते हैं, 'ताज तेरे लिए इक मजहर-ए-उल्फत ही सही/तुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अकीदत ही सही/मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से/बज्म-ए-शाही में गरीबों का गुजर क्या मानी.'
ताज के बारे में अमजद हुसैन हाफिज कर्नाटकी ने लिखा है, 'है किनारे ये जमुना के इक शाहकार/देखना चांदनी में तुम इसकी बहार
याद-ए-मुमताज में ये बनाया गया/संग-ए-मरमर से इस को तराशा गया/शाहजहां ने बनाया बड़े शौक से/बरसों इस को सजाया बड़े शौक से/हां ये भारत के महल्लात का ताज है/सब के दिल पे इसी का सदा राज है.'
महशर बदायूंनी ने भी ताज पर खूबसूरत शेर लिखे हैं. वह कहते हैं, 'अल्लाह मैं ये ताज महल देख रहा हूं/या पहलू-ए-जमुना में कंवल देख रहा हूं. ये शाम की जुल्फों में सिमटते हुए अनवार फिरदौस-ए-नजर ताज-महल के दर-ओ-दीवार.'
परवीन शाकिर ने ताज पर लिखा है, 'संग-ए-मरमर की खुनुक बांहों में/हुस्न-ए-ख्वाबीदा के आगे मेरी आंखें शल हैं/गुंग सदियों के तनाजुर में कोई बोलता है/व़क्त जज्बे के तराजू पे जर-ओ-सीम-ओ-जवाहिर की तड़प तौलता है.'
मशहूर शायर कैफी आजमी भी ताज पर लिखने से नहीं चूके. उन्होंने लिखा, 'ये धड़कता हुआ गुंबद में दिल-ए-शाहजहां/ये दर-ओ-बाम पे हंसता हुआ मलिका का शबाब/जगमगाता है हर इक तह से मजाक-ए-तफरीक/और तारीख उढ़ाती है मोहब्बत की नकाब/चांदनी और ये महल आलम-ए-हैरत की कसम/दूध की नहर में जिस तरह उबाल आ जाए/ऐसे सय्याह की नजरों में खुपे क्या ये समां जिस को फरहाद की किस्मत का खयाल आ जाए.'
वहीं, प्रसिद्ध कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' की कलम से कविता फूटी- 'ताजमहल की छाया में'. उन्होंने लिखा है, 'हम-तुम आज खड़े हैं जो कंधे से कंधा मिलाए/देख रहे हैं दीर्घ युगों से अथक पांव फैलाए/व्याकुल आत्म-निवेदन-सा यह दिव्य कल्पना-पक्षी क्यों न हमारा हृदय आज गौरव से उमड़ा आए.'
(आईएएनएस)