नई दिल्ली : अयोध्या भूमि विवाद जैसे हाई-प्रोफाइल मामले में निर्णय सुनाने वाले न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ को भले ही सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनके पद पर रहते हुए सिर्फ साढ़े तीन साल हो हुए हैं, लेकिन पहले से ही कई अहम मामलों में गठित पीठों का हिस्सा रहे हैं.
व्यभिचार का मामला हो या निजता का अधिकार, आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज करने का या विवादित सबरीमाला मुद्दा अथवा आधार योजना की वैधता का. यह जस्टिस चंद्रचूड़ ही थे, जिन्होंने इन मामलों पर कठोर फैसला सुनाया.
जस्टिस चंद्रचूड़ अयोध्या विवाद को सुनने के लिए गठित पांच न्यायाधीशों वाली बेंच में भी शामिल थे. इस पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने केवल उन न्यायाधीशों को चुना, जो वरिष्ठता के आधार पर CJI बनाये जाएंगे. इसी वरिष्ठता के आधार पर जस्टिस चंद्रचूड़ 9 नवम्बर, 2022 से 10 नवम्बर, 2024 तक CJI बनाये जाएंगे.
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इन तथ्यों के बावजूद कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति गोगोई और न्यायमूर्ति एस.ए.बोबड़े की वरिष्ठता में तीसरे नंबर पर हैं, अयोध्या सुनवाई के दौरान उन्होंने मुस्लिम और हिन्दू दोनों पक्षों के वकीलों से कठोर सवाल पूछे.
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जस्टिस चंद्रचूड़, भारत के सबसे लंबे समय तक सेवारत मुख्य न्यायाधीश वाई.वी. चंद्रचूड़ के पुत्र हैं, जिन्होंने न्यायमूर्ति केएस पुत्तास्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ के लिए मुख्य निर्णय लिखा था. उस निर्णय में यह सर्वसम्मति से कहा गया था कि संविधान के तहत निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है.
वह आईपीसी की धारा 377 के तहत 158-वर्षीय पुराने औपनिवेशिक कानून की सुनवाई करने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने सहमति व्यक्त करने वाले वयस्कों के बीच असंवैधानिक अप्राकृतिक यौन संबंध को समानता के अधिकारों का उल्लंघन माना.
जस्टिस चंद्रचूड़ 13 मई, 2016 को शीर्ष अदालत के जज बनाये गये. उन्होंने भारतीय युवा वकील संघ बनाम केरल राज्य में बहुमत से फैसला सुनाया, जिसे सबरीमाला मामला कहा जाता है. इस फैसले में उन्होंने कहा कि महिलाओं को मासिक धर्म की उम्र से प्रतिबंधित करने की प्रथा सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करना भेदभावपूर्ण और महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
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बॉयोमीट्रिक पहचान संख्या को लेकर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के अन्य सदस्यों के साथ असहमति जताई. हालांकि, पीठ ने बॉयोमीट्रिक पहचान संख्या आधार की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था. जस्टिस चंद्रचूड़ ने आधार को असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला माना था.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिये गये उस ऐतिहासिक फैसले का भी हिस्सा थे, जो निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए रोगियों को दी गई 'जीवित इच्छा' को मान्यता देता था.
जस्टिस चंद्रचूड़ उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच राष्ट्रीय राजधानी को संचालित करने की शक्तियों के बीच संघर्ष का फैसला किया.
वह 31 अक्टूबर, 2013 से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे और सर्वोच्च न्यायालय में अपने पद पर बने रहे.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ 29 मार्च, 2000 से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने तक बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने रहे.
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न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को जून 1998 में बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था और एक न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति तक उसी वर्ष अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बने.
इसके अलावा सेंट स्टीफेंस कॉलेज, नई दिल्ली से अर्थशास्त्र में बीए के साथ ऑनर्स पूरा करने के बाद, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी किया और एलएलएम की डिग्री और हार्वर्ड लॉ स्कूल, यूएसए से ज्यूरिडिकल साइंसेज (एसजेडी) में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट में कानून का अभ्यास किया और मुंबई विश्वविद्यालय में तुलनात्मक संवैधानिक कानून के प्रोफेसर भी रहे.