नई दिल्ली : चीन मामलों के जानकार जयदेव रानाडे ने कहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तैनात पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों द्वारा पैदा किया गया गतिरोध शीर्ष नेतृत्व की सहमति के बाद का है. वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा से बातचीत में भारत सरकार के पूर्व खुफिया अधिकारी रानाडे ने कहा कि इस फैसले में चीनी सेना की पश्चिमी थिएटर कमान भी शामिल है. उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण हो रही बहस के मद्देनजर राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने अधिकार को फिर से स्थापित करने के लिए गतिरोध की रणनीति अपनाई है. यह उनकी ध्यान भटकाने की रणनीति है.
वर्ष 2008 में कैबिनेट सचिवालय में अतिरिक्त सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए रानाडे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य के रूप में भी काम करते रहे हैं. चीन के साथ भारत के तनाव को लेकर उनका कहना है कि चीन में पहली बार एक अभूतपूर्व घटना हुई है. बकौल रानाडे, 'चीन में लोग सार्वजनिक रूप से शी जिनपिंग और कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना कर रहे हैं. वहां के लोग 2049 तक अमेरिका से आगे निकलने के अपने सपने और शी जिनपिंग को विफल होते हुए देख रहे हैं.'
गौरतलब है कि रानाडे ने चीन और तिब्बत से जुड़ी कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का लेखन किया है. उन्होंने कहा कि भारत को नई दिल्ली-बीजिंग संबंध की परवाह किए बिना ताइवान के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को तेजी से बढ़ाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि लद्दाख में एलएसी पर जारी गतिरोध, भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में पुनर्गठित करना तथा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में चीनी रणनीतिक निवेश से अलग नहीं है.
सवाल - क्या बीजिंग के बयान से लगता है कि चीन सुलह करना चाहता है ?
जवाब- अगर बीजिंग सुलह करने वाला होता तो घुसपैठ नहीं हेती. मुझे उन पर विश्वास नहीं है क्योंकि चीनी कहते कुछ और हैं, करते कुछ और हैं. अगर वह ऐसा चाहते तो घुसपैठ होती ही नहीं.
सवाल- ट्रंप द्वारा पेश की गई मध्यस्थता पर क्या कहना चाहंगे ?
जवाब - उन्होंने अतीत में पाकिस्तान के साथ भी ऐसा ही किया है. यहां उन्होंने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता और मध्यस्थ होने की बात कही है. इससे निश्चित रूप से बीजिंग परेशान होगा और वह ऐसी किसी भी बातचीत के लिए तैयार नहीं होंगे और न ही हम ऐसा करेंगे.
सवाल - क्या चीन द्वारा सेना की वृद्धि करने को अमेरिका एक संभावना के रूप में देख रहा है, वो भी ऐसे में जब यूरोप महामारी से प्रभावित है ?
जवाब- अगर चीनी कुछ करते हैं तो हमारे बलों की ओर से जवाबी कार्रवाई की जाएगी. वैसे, हम लड़ाई नहीं चाहते. हम यथास्थिति में लौटने के लिए कूटनीतिक समझौता करेंगे. इसका मतलब यह कि वह जहां थे वहीं वापस चले जाएंगे और हम वहीं आ जाएंगे, जहां हम थे. आज विश्व स्तर पर चीन विरोधी भावना फैली हुई है, चीन के विदेशी खुफिया ब्यूरो थिंक टैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में चीन विरोधी जितनी भावनाएं फैल रही हैं उनका नेतृत्व अमेरिका कर रहा है, इसलिए वे चिंतित हैं.
सवाल- शी जिनपिंग के आंतरिक और बाहरी चुनौतियों के लिए एलएसी स्टैंड-ऑफ डायवर्सन रणनीति क्या है?
जवाब - शी जिनपिंग काफी दबाव में हैं. चीन में कम्युनिस्ट पार्टी और शी जिनपिंग के नाम पर लोग बाहर निकलकर उनकी आलोचना कर रहे हैं, उनसे पद छोड़ने की मांग कर रहे हैं. वह अभूतपूर्व है. पिछले 20 वर्षों में हमने ऐसा कभी नहीं देखा कि चीन में किसी नेता को आलोचना का सामना करना पड़ा हो.
सवाल- क्या अनौपचारिक बातचीत जैसे नए तंत्र की जरूरत है ? क्या मौजूदा सीमा प्रोटोकॉल उपयोगी हो रहे हैं ?
जवाब- हमारे पास यह तंत्र है और इसके अलावा और भी हो सकते हैं, लेकिन अगर कोई एक पार्टी उनका सम्मान नहीं करती है तो कोई बात नहीं. हम फिर भी प्रोटोकॉल के साथ जाना चाहेंगे. क्योंकि कुछ ना होने से बेहतर है कुछ होना.
सवाल- क्या भारत द्वारा ताइवान, व्यापार और तिब्बत से लाभ उठाया जा सकता है ?
उत्तर- BRI (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) पहले से ही मुश्किल में है. चीन का खुद भी ताइवान के साथ संपर्क और व्यापार है. यह एक आर्थिक अवसर है जिसका हम दोहन या अनुकूलन करने में विफल रहे हैं. हम यहां से उच्च स्तरीय तकनीक के साथ-साथ कई और चीजें प्राप्त कर सकते हैं.
सवाल- एलओसी, घाटी और एलएसी की परिस्थितियां भारतीय सेना के लिए कितनी चुनौतीपूर्ण हैं ?
उत्तर- एक नागरिक के रूप में यह स्वाभाविक रूप से चिंताजनक है, क्योंकि यह राज्य को खुद ही शांतिपूर्ण और स्थिर बनने की अनुमति देगा, वहां के लोग प्रभावित होंगे. हम ऐसी स्थिति को पसंद नहीं करेंगे जहां चीन और भारत शत्रुतापूर्ण मुद्रा में एक साथ हों, हालांकि हम इसके लिए काफी हद तक तैयार हैं.