ETV Bharat / bharat

आगरा के इस बाजार से शुरू हुआ था जहांगीर और नूरजहां का प्यार

लाल बलुआ पत्थरों से बना आगरा का किला (Agra Fort) अपने अंदर कई उत्थान और पतन की कहानियों को दफन किए हुए है. मोहब्बत की नगरी में बसा आगरा किला मुगलिया सल्तनत और शान-ओ-शौकत का गवाह है. लाल पत्थरों से बने होने के कारण इसे लाल किला भी कहते हैं. पेश है आगरा किले पर खास रिपोर्ट...

आगरा का किला
आगरा का किला
author img

By

Published : Feb 9, 2021, 6:53 PM IST

Updated : Feb 9, 2021, 7:26 PM IST

आगरा : मोहब्बत की नगरी आगरा का किला मुगलिया सल्तनत और शान-ओ-शोकत का गवाह है. यहां पर अकबर ने शाही बाजार लगाने का चलन शुरू किया था. अकबर ने इसे 'खुशरोज' बाजार नाम दिया था. 'खुशरोज' यानी खुशी का दिन. यही 'खुशरोज' बाजार कब 'मीना बाजार' हो गया, पता नहीं चला.

यह बाजार मुगल बादशाह जहांगीर और उनकी बेगम नूरजहां की मोहब्बत का भी गवाह है. यहां पर ही पहली बार जहांगीर और नूरजहां मिले थे. लेकिन, यह मीना बाजार पर्यटकों के लिए बंद है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) मीना बाजार की सूरत संवार रहा है. इस पर करीब 23.32 लाख रुपये का खर्च आ रहा है. मार्च 2021 तक यह काम पूरा हो जाएगा.

आगरा किले की कहानी

13 साल की उम्र में हुआ राज्याभिषेक
अकबर तीसरा मुगल शासक था. हिमायूं की मौत के बाद 13 साल की उम्र में ही 14 फरवरी, 1556 को उसका राज्याभिषेक किया गया था. अकबर ने आगरा और फतेहपुर सीकरी को राजधानी बनाया. यहां से हिन्दुस्तान में मुगलिया सल्तनत को चलाया.

तीन भाग में बंटा है मीना बाजार
आगरा किले में स्थित मीना बाजार तीन भागों में बंटा है. मोती मस्जिद से दिल्ली गेट की तरफ जाने वाले रास्ते पर दोनों ओर दुकानें हैं. यहां के दो भाग में मुगलकालीन फर्श और उसके स्वरूप को संरक्षित किया जा चुका है. तीसरे भाग में मुगलकालीन फर्श का संरक्षण किया जा रहा है. यहां के 7.5 मीटर चौड़े और 128.8 मीटर लंबे रास्ते को संरक्षित किया जा रहा है. यहां पर खुदाई करने और मलबा हटाने पर रास्तों के दोनों किनारे 19.4 मीटर चौड़ा मुगलकालीन फर्श मिला है.

अंग्रेजों ने बना दिया था यहां अस्पताल
अंग्रेजी हुकूमत के दौरान आगरा किले में दिल्ली गेट से सटे मीना बाजार को अस्पताल में बदल दिया गया था. अंग्रेजों ने यहां 75 बेड का अस्पताल तैयार कराया था. इसे सर्वेंट हॉस्पिटल नाम दिया गया था. अस्पताल का बोर्ड आज भी वहां पर लगा हुआ है. यहां पर घायल ब्रिटिश जवानों का उपचार किया जाता था. यहां पर एंबुलेंस खड़ी करने की जगह भी निर्धारित की गई थी.

एंबुलेंस से मरीज उतारने में दिक्कत न हो, इसलिए मीना बाजार की दुकानों के आगे छह फुट ऊंचाई तक मलबा डालकर प्लेटफार्म बनाया गया था. अब इसी मलबे को हटाने पर नीचे लाखौरी ईंटों का फर्श निकाला है.

ड्रेनेज सिस्टम भी मिला
एएसआई ने मीना बाजार में मलबा हटाना शुरू किया तो यहां मलबे के नीचे शानदार ड्रेनेज सिस्टम निकला. यह मलबा डालने के कारण ध्वस्त हो गया था. एएसआई अब इसे भी मूल रूप में संरक्षित कर रहा है. मीना बाजार में दोनों ओर पक्की दुकानें हैं.

जब हिन्दू रानी ने रख दिया था अकबर के सीने पर खंजर
इतिहासकार राज किशोर 'राजे' ने बताया कि इसे अभी मीना बाजार कहते हैं. इसका नाम पहले 'खुशरोज' बाजार था. इसका कई किताबों में जिक्र है. यह फैंसी बाजार था. इसे अकबर ने लगवाना शुरू किया था. इस बाजार में महिलाएं दुकान लगाती थीं. इस बाजार में शाही परिवार और महिलाएं ही खरीदारी कर सकती थीं. अकबर खुद इस बाजार में आता था. यहां खूब खरीदारी होती थी. यह एक मनोरंजन का स्थान था.

इस 'खुशरोज' बाजार से जुड़ी एक दुर्लभ घटना भी है. बीकानेर के राज परिवार के पृथ्वीराज की रानी इस बाजार में खरीदारी करने पहुंची थीं. वहां अकबर ने उनके साथ अभद्रता कर दी थी. इस पर रानी ने खंजर निकाल कर अकबर के सीने पर रख दी थी. इसके बाद इस बाजार को बंद कर दिया गया था.

जहांगीर-नूरजहां की पहली मुलाकात का गवाह है ये बाजार
अकबर के खास मिर्जा गियास बेग की बेटी मेहरुन्निसा थी. उसका निकाह जहांगीर के साथ हुआ था. निकाह के बाद वह नूरजहां कहलाई. जहांगीर और नूरजहां की पहली मुलाकात 'खुशरोज बाजार' यानि मीना बाजार में ही हुई थी. इतिहासकार राज किशोर 'राजे' का कहना है कि नूरजहां की सुंदरता को देखते ही जहांगीर उस पर मोहित हो गया था. मगर उसकी शादी ईरानी साहसी अलीकुली के साथ हुई थी.

गद्दी पर बैठने पर जहांगीर ने अलीकुली को शेर अफगान की उपाधि दी थी. बाद में बर्दवान की जागीर भी दे दी. लेकिन सन् 1607 में जहांगीर के दूतों ने 'शेर अफगान' उर्फ अलीकुली को युद्ध में मार डाला. इसके बाद मेहरून्निसा को दिल्ली लाकर बादशाह के शाही हरम में भेज दिया गया. वहां पर बादशाह अकबर की विधवा रानी रुकैयाबेगम की परचायिका बनी. उसके बाद जहांगीर ने 1611 में मेहरून्निसा से निकाह कर लिया. ये उसकी बीसवीं पत्नी थी. उसे बाद में उसने नूरमहल या नूरजहां की उपाधि दी.

25 साल पहले संरक्षित किया जाना था मीना बाजार
वरिष्ठ टूरिस्ट गाइड शमशुद्दीन का कहना है कि आगरा में तमाम संरक्षित स्मारक जीर्ण शीर्ण हालत में हैं. एएसआई उनके संरक्षण पर क्यों ध्यान नहीं दे रहा है. मीना बाजार को एएसआई अब संरक्षित कर रहा है. इसे 25 साल पहले संरक्षित किया जाना चाहिए था. इससे इसकी हालत इतनी ज्यादा खराब नहीं होती. इतना खर्चा भी नहीं आता. इतना ही नहीं इस ऐतिहासिक बाजार को पर्यटकों के लिए भी खोलना चाहिए. इससे लोग इसके इतिहास के बारे में जान सकेंगे.

खुदाई के बाद निकली बाजार की सतह
एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार का कहना है कि मीना बाजार की दुकानों को पहले ही संरक्षित किया जा चुका था. उसके बाद यह देखा गया कि इस मीना बाजार के पाथवे का स्तर क्या था, किस सतह पर लोग चलते थे. उसे खोजने के लिए हमने खुदाई शुरू की. खुदाई के साथ ही हम अब पाथ-वे के संरक्षण का कार्य भी कर रहे हैं. पाथ-वे का फर्श पत्थर का है. उसके दोनों और लाखौरी ईंट लगी हुई हैं. इसमें करीब 23.32 लाख रुपये का खर्च आ रहा है. हमारा पहला काम स्मारक का संरक्षण करना है. उसकी लाइफ को बढ़ाना है. संभव हुआ तो हम इसे पर्यटकों के लिए खोल देंगे.

आगरा : मोहब्बत की नगरी आगरा का किला मुगलिया सल्तनत और शान-ओ-शोकत का गवाह है. यहां पर अकबर ने शाही बाजार लगाने का चलन शुरू किया था. अकबर ने इसे 'खुशरोज' बाजार नाम दिया था. 'खुशरोज' यानी खुशी का दिन. यही 'खुशरोज' बाजार कब 'मीना बाजार' हो गया, पता नहीं चला.

यह बाजार मुगल बादशाह जहांगीर और उनकी बेगम नूरजहां की मोहब्बत का भी गवाह है. यहां पर ही पहली बार जहांगीर और नूरजहां मिले थे. लेकिन, यह मीना बाजार पर्यटकों के लिए बंद है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) मीना बाजार की सूरत संवार रहा है. इस पर करीब 23.32 लाख रुपये का खर्च आ रहा है. मार्च 2021 तक यह काम पूरा हो जाएगा.

आगरा किले की कहानी

13 साल की उम्र में हुआ राज्याभिषेक
अकबर तीसरा मुगल शासक था. हिमायूं की मौत के बाद 13 साल की उम्र में ही 14 फरवरी, 1556 को उसका राज्याभिषेक किया गया था. अकबर ने आगरा और फतेहपुर सीकरी को राजधानी बनाया. यहां से हिन्दुस्तान में मुगलिया सल्तनत को चलाया.

तीन भाग में बंटा है मीना बाजार
आगरा किले में स्थित मीना बाजार तीन भागों में बंटा है. मोती मस्जिद से दिल्ली गेट की तरफ जाने वाले रास्ते पर दोनों ओर दुकानें हैं. यहां के दो भाग में मुगलकालीन फर्श और उसके स्वरूप को संरक्षित किया जा चुका है. तीसरे भाग में मुगलकालीन फर्श का संरक्षण किया जा रहा है. यहां के 7.5 मीटर चौड़े और 128.8 मीटर लंबे रास्ते को संरक्षित किया जा रहा है. यहां पर खुदाई करने और मलबा हटाने पर रास्तों के दोनों किनारे 19.4 मीटर चौड़ा मुगलकालीन फर्श मिला है.

अंग्रेजों ने बना दिया था यहां अस्पताल
अंग्रेजी हुकूमत के दौरान आगरा किले में दिल्ली गेट से सटे मीना बाजार को अस्पताल में बदल दिया गया था. अंग्रेजों ने यहां 75 बेड का अस्पताल तैयार कराया था. इसे सर्वेंट हॉस्पिटल नाम दिया गया था. अस्पताल का बोर्ड आज भी वहां पर लगा हुआ है. यहां पर घायल ब्रिटिश जवानों का उपचार किया जाता था. यहां पर एंबुलेंस खड़ी करने की जगह भी निर्धारित की गई थी.

एंबुलेंस से मरीज उतारने में दिक्कत न हो, इसलिए मीना बाजार की दुकानों के आगे छह फुट ऊंचाई तक मलबा डालकर प्लेटफार्म बनाया गया था. अब इसी मलबे को हटाने पर नीचे लाखौरी ईंटों का फर्श निकाला है.

ड्रेनेज सिस्टम भी मिला
एएसआई ने मीना बाजार में मलबा हटाना शुरू किया तो यहां मलबे के नीचे शानदार ड्रेनेज सिस्टम निकला. यह मलबा डालने के कारण ध्वस्त हो गया था. एएसआई अब इसे भी मूल रूप में संरक्षित कर रहा है. मीना बाजार में दोनों ओर पक्की दुकानें हैं.

जब हिन्दू रानी ने रख दिया था अकबर के सीने पर खंजर
इतिहासकार राज किशोर 'राजे' ने बताया कि इसे अभी मीना बाजार कहते हैं. इसका नाम पहले 'खुशरोज' बाजार था. इसका कई किताबों में जिक्र है. यह फैंसी बाजार था. इसे अकबर ने लगवाना शुरू किया था. इस बाजार में महिलाएं दुकान लगाती थीं. इस बाजार में शाही परिवार और महिलाएं ही खरीदारी कर सकती थीं. अकबर खुद इस बाजार में आता था. यहां खूब खरीदारी होती थी. यह एक मनोरंजन का स्थान था.

इस 'खुशरोज' बाजार से जुड़ी एक दुर्लभ घटना भी है. बीकानेर के राज परिवार के पृथ्वीराज की रानी इस बाजार में खरीदारी करने पहुंची थीं. वहां अकबर ने उनके साथ अभद्रता कर दी थी. इस पर रानी ने खंजर निकाल कर अकबर के सीने पर रख दी थी. इसके बाद इस बाजार को बंद कर दिया गया था.

जहांगीर-नूरजहां की पहली मुलाकात का गवाह है ये बाजार
अकबर के खास मिर्जा गियास बेग की बेटी मेहरुन्निसा थी. उसका निकाह जहांगीर के साथ हुआ था. निकाह के बाद वह नूरजहां कहलाई. जहांगीर और नूरजहां की पहली मुलाकात 'खुशरोज बाजार' यानि मीना बाजार में ही हुई थी. इतिहासकार राज किशोर 'राजे' का कहना है कि नूरजहां की सुंदरता को देखते ही जहांगीर उस पर मोहित हो गया था. मगर उसकी शादी ईरानी साहसी अलीकुली के साथ हुई थी.

गद्दी पर बैठने पर जहांगीर ने अलीकुली को शेर अफगान की उपाधि दी थी. बाद में बर्दवान की जागीर भी दे दी. लेकिन सन् 1607 में जहांगीर के दूतों ने 'शेर अफगान' उर्फ अलीकुली को युद्ध में मार डाला. इसके बाद मेहरून्निसा को दिल्ली लाकर बादशाह के शाही हरम में भेज दिया गया. वहां पर बादशाह अकबर की विधवा रानी रुकैयाबेगम की परचायिका बनी. उसके बाद जहांगीर ने 1611 में मेहरून्निसा से निकाह कर लिया. ये उसकी बीसवीं पत्नी थी. उसे बाद में उसने नूरमहल या नूरजहां की उपाधि दी.

25 साल पहले संरक्षित किया जाना था मीना बाजार
वरिष्ठ टूरिस्ट गाइड शमशुद्दीन का कहना है कि आगरा में तमाम संरक्षित स्मारक जीर्ण शीर्ण हालत में हैं. एएसआई उनके संरक्षण पर क्यों ध्यान नहीं दे रहा है. मीना बाजार को एएसआई अब संरक्षित कर रहा है. इसे 25 साल पहले संरक्षित किया जाना चाहिए था. इससे इसकी हालत इतनी ज्यादा खराब नहीं होती. इतना खर्चा भी नहीं आता. इतना ही नहीं इस ऐतिहासिक बाजार को पर्यटकों के लिए भी खोलना चाहिए. इससे लोग इसके इतिहास के बारे में जान सकेंगे.

खुदाई के बाद निकली बाजार की सतह
एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार का कहना है कि मीना बाजार की दुकानों को पहले ही संरक्षित किया जा चुका था. उसके बाद यह देखा गया कि इस मीना बाजार के पाथवे का स्तर क्या था, किस सतह पर लोग चलते थे. उसे खोजने के लिए हमने खुदाई शुरू की. खुदाई के साथ ही हम अब पाथ-वे के संरक्षण का कार्य भी कर रहे हैं. पाथ-वे का फर्श पत्थर का है. उसके दोनों और लाखौरी ईंट लगी हुई हैं. इसमें करीब 23.32 लाख रुपये का खर्च आ रहा है. हमारा पहला काम स्मारक का संरक्षण करना है. उसकी लाइफ को बढ़ाना है. संभव हुआ तो हम इसे पर्यटकों के लिए खोल देंगे.

Last Updated : Feb 9, 2021, 7:26 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.