हैदराबाद : अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में नस्लीय भेदभाव भी एक अहम मुद्दा बन सकता है. अमेरिका में नस्लीय मुद्दों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने फराहनाज इस्पाहानी और डॉ रैंडल ब्लाजाक से खास बातचीत की. फरहानाज रिलीजियस फ्रीडम इंस्टीट्यूट और विल्सन केंद्र में रिसर्च फेलो हैं. डॉ रैंडल अमेरिकी शहर पोर्टलैंड में हेट क्राइम रिसर्चर और लेखक हैं.
एक सवाल के जवाब में फरहानाज ने कहा, 'मैं लगभग 35 साल पहले अमेरिका आया था. उस समय मैं 18 साल का था. तत्कालीन अमेरिका बहुत ही अलग था. तब प्रवासियों का स्वागत होता था. लेकिन हममें से ज्यादातर लोग उस समय अध्ययन के लिए आए थे, या शिक्षित परिवारों से संबंधित थे.'
उन्होंने बताया कि अब आव्रजन का पैटर्न भी बदल गया है और लोगों के स्वागत का तरीका भी बदल गया है, लेकिन आप जो उदारता देखते हैं, वह बहुत स्पष्ट है. आप पुराने लोगों को देखते हैं जो अपने जीवन के तरीके, अपने भगवान, उनके चर्च, अपनी भूमि, हथियारों के अधिकार को लेकर बहुत भयभीत हैं. वह इस बदलते परिदृश्य का सामना नहीं कर सकते.
2016 में डोनाल्ड ट्रंप के चुने जाने के कारण को लेकर उन्होंने कहा कि ऐसे बहुत से लोगों में ने डोनाल्ड ट्रंप को वोट दिया. इसलिए जरूरी नहीं कि यह एक सकारात्मक वोट ही था.
रैंडल ब्लाजाक ने कहा कि अमेरिका में नस्लवाद से निपटने के लिए बहुत खराब काम हुआ है. सैकड़ों वर्षों के संस्थागत नस्लवाद की समस्या में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है. इसलिए 2020 में बातचीत का मुद्दा बदल गया है, शायद महामारी ने एक भूमिका निभाई है.
उन्होंने कहा कि चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में नस्लवाद पर बातचीत हो रही है. यह गोरे लोगों द्वारा हो रहा है जो यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि अन्य लोग वास्तव में इसका सामना कैसे करते हैं.